जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग की रिपोर्ट को देखे बगैर आख़िर वो कौन सी वजह है,जिसके चलते भूपेश सरकार ने दो सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन कर दिया। क्या भूपेश सरकार किसी को बचाना चाहती है? एनआइए की रिपोर्ट को कांग्रेस पहले ही नकार चुकी है। ऐसे में सवाल यह है कि एक ही मामले की तीन जांच से झीरम कांड का सच क्या है,कैसे पता चलेगा?
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
झीरम कांड की जांच का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग की रिपोर्ट को भूपेश सरकार देखे बगैर दो सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन कर विपक्ष को हमला करने का मौका दे दिया। एनआइए की रिपोर्ट को भूपेश सरकार पहले ही नकार चुकी है। भूपेश सरकार का आरोप है, कि रमन सरकार के समय के नोडल अधिकारी जांँच में रोड़ा अटकाने का काम किया था। एनआइए झीरम कांड के राजनीतिक षडयंत्र के पहलू की जांच नहीं कर रही थी। इसलिए आई.जी. विवेकानंद सिन्हा के नेतृत्व में 10 सदस्यों वाली एसआइटी टीम बनाई गई। टीम में विषय विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया और पहली बैठक पीएचक्यू रायपुर में हुई। इसके बाद कोई बैठक या जाँच अब तक नहीं हुई है।
झीरम कांड के आठ बरस बाद जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की अगुवाई वाले आयोग ने छः नवम्बर को राज्यपाल अनुसूईया उइके को जांच आयोग के सचिव और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार संतोष कुमार तिवारी ने सौंपी। यह रिपोर्ट 10 खंडों में है। रिपोर्ट के अंदर क्या बातें लिखी है,कोई नहीं जानता। जैसा कि राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके कहती हैं, चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा की ओर से उन्हें दी गई रिपोर्ट पर कानूनी राय लेने के बाद राज्य शासन को भेज दिया है। रिपोर्ट में क्या है, यह तो जस्टिस मिश्रा ही बता सकते हैं।’’
गौरतलब है,कि 28 मई 2013 को जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अगुवाई में जांच कमेटी बनी। उस दौरान 3 महीने में रिपोर्ट देने कहा गया, लेकिन तय सीमा में जांच नहीं हो पाई। बीस बार तारीख बढ़ाई गई। जांच आयोग ने 23 सितंबर 2021 को राज्य सरकार को पत्र लिखकर मांग की आयोग का कार्यकाल बढ़ाया जाए। अचानक 6 नवंबर 2021 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को दी।
झीरम कांड मामले में एनआइए ने कहा था,‘‘नक्सली अपना आतंक फैलाने के लिए, इस तरह की वारदातें करते रहते हैं।़ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने अपनी रिपोर्ट में हमले के लिए कांग्रेस नेताओं को ही जिम्मेदार ठहराया है। कांग्रेस ने रिपोर्ट को झूठ का पुलंदा करार देते हुए कहा,जब तक मामले की जांच सीबीआइ से नहीं होगी, मामले का पर्दाफाश नहीं होगा। सरकार के दबाव में एनआइए जांँच डायरी की रिपोर्ट बदलती रही है। एनआइए की रिपोर्ट में कहा गया है कि परिवर्तन यात्रा के दौरान कांग्रेस नेताओं पर हमला,सरकार को दहशत में डालने और सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश का हिस्सा था।
एनआइए ने सच छिपाया
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने कहा,एनआइए ने विशेष अदालत में दायर आरोप पत्र में विवादस्पद मुद्दों को शामिल नहीं किया है। खासकर कंाग्रेस की परिवर्तन यात्रा के ठीक पहले मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह की विकास यात्रा बस्तर से गुजरी थी। माओवादी यदि सरकार को अस्थिर करना चाहते थे, तो हमला विकास यात्रा पर करते। एनआइए ने इस मामले मे केवल 9 लोगों की ही गिरफ्तार क्यों कर पाई? शेष 25 फरार क्यों हैं? किसने नक्सलियों को सूचना दी थी कि परिवर्तन यात्रा में महेन्द्र कर्मा शामिल हैं। गिरफ्तार व्यक्तियों के हमले का उल्लेख क्यों नहीं है। झीरम मामले में इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई एनआइए की रिपोर्ट में इसका उल्लेख नहीं है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में सन् 25 मई 2013 में झीरम घाटी में नक्सली हमला हुआ था। जिसमें 27 कांग्रेसियों समेत 31 लोगों की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। कांग्रेस को शक है कि, इस हमले के पीछे कोई राजनैतिक कनेक्शन जरूर है। झीरम कांड की जाँंच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 27 मई 2013 को एनआइए को सौंप दी थी। एनआइए ने अपनी जाँंच में 88 नक्सलियों के कैडर को संलिप्त पाया था। एनआइए ने 24 सितंबर 2014 को इस मामले में 9 लोगों के खिलाफ़ चार्जशीट दाखि़ल की। 28 सितंबर 2015 को सप्लीमेंट्री चार्जशीट में 30 लोगों को शामिल किया गया था।
प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और कृषि मंत्री रविंद्र चैबे ने 13 नवम्बर 2021 को मीडिया से कहा,प्रदेश के सबसे बड़े नक्सल हमले की जांच के टॉप सीक्रेट दस्तावेजों को लेकर अफ़सरों ने लापरवाही बरती है। जांच रिपोर्ट जब राज्यपाल के दफ़्तर से मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंची तो लिफाफ़ा खुला हुआ था। इससे रिपोर्ट के लीक होने की आशंका को बल मिलता है। खुले लिफाफ़े की रिपोर्ट को लौटा दिया गया। बाद में सीलबंद लिफाफ़े में दस्तावेज़ भेजे गए।
तो क्या मंत्री का नाम है..
हाई कोर्ट के अधिवक्ता राजेन्द्र तिवारी राजू कहते हैं,न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट सरकार को कायदे से देखना था। उसके बाद जांच अधूरी है,कहते हुए दो सदस्यीय जांच आयोग का गठन करती तो विपक्ष भी आरोप लगाने की हिम्मत न दिखाता। अब इससे ऐसा लगता है,कि कांग्रेस सरकार अपने किसी मंत्री को बचाना चाहती है।
झीरम कांड की नये सिरे से जांच अब आयोग के अध्यक्ष माननीय न्यायमूर्ति सतीश के.अग्निहोत्री और सदस्य माननीय जी.मिनहाजुद्दीन पूर्व न्यायाधीश उच्च न्यायालय बिलासपुर करेंगे। आयोग झीरम कांड की जांच कर 6 महीने में राज्य सरकार को रिपोर्ट देगा। यह रिपोर्ट कांग्रेस सरकार के रहते आने के बाद प्रदेश की सियासत में एक बार फिर हंगामा होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस प्रशांत मिश्रा अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को तभी दिये होंगे,जब उनकी जांच में किसी मंत्री का नाम सामने आया होगा। जैसा कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कहा, नए जांच आयोग के गठन की घोषणा से स्पष्ट है,कि प्रदेश सरकार अपने एक मंत्री की संलिप्तता को लेकर विचलित है। वह मंत्री और उनके नक्सली कनेक्शन के बेनकाब होने से डरी हुई है। अब प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री को बताना चाहिए, कि झीरम हत्याकांड का सर्वाधिक लाभ किस राजनीतिक नेता को होना था और हुआ। यह भी स्पष्ट होना चाहिए, कि इस मामले पर एक पुलिस के चश्मदीद मुखबिर से मिलने बिलासपुर कौन गया था? क्यों गया था? और किसने भेजा था? यह मुखबिर बाद में बागी क्यों हो गया था? कांग्रेस झीरम मामले में एक नए आयोग की चर्चा कर सियासी शोशेबाजी का प्रदर्शन कर रही हैं।’’
नक्सलियों ने किसे जाने दिया
आठ बरसो में झीरम कांड पर कई तरह के सियासी बयान आए। सियासी दलों के दाँंव-पेंच के चलते झीरम कांँड की जांँच एक सियासी टी.वी.शो बन कर रह गया है। सवाल यह है,परिवर्तन यात्रा का रूट किसने बदला और किसकी वजह से परिवर्तन यात्रा निकाली गई? उस परिवर्तन यात्रा में कौन बीच में ही,यात्रा छोड़कर चला गया। नक्सलियों ने किसे जाने दिया। इंटेलिजेंस बार-बार कह रहा था झीरम में नक्सली एकत्र हो रहे हैं। उधर जाना ठीक नहीं है। फिर भी उस रूट पर परिवर्तन यात्रा किसके कहने पर निकाली गई? ऐसे कई सवालों का जवाब भी प्रदेश की जनता जानना चाहती है। लेकिन जिस तरह सियासी द्वंद मचा हुआ है,उससे सही तथ्य सामने आने में संदेह है।
भाजपा प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने कहते हैं,‘‘ झीरम के मामले में जेब में सबूत लिए घूमने की बात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाते मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कही थी। सालों बीत जाने के बाद भी, अब तक सबूत पेश नहीं करने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर साक्ष्य छिपाने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। कांग्रेस के नेता कभी अपने मुख्यमंत्री पर भी तो दबाव बनाते कि,वे सबूत पेश करके झीरम की जाँच को अंजाम तक पहुँचने में सहयोग करते। इस मामले की जांच का जिम्मा कांग्रेस नीत यूपीए की केंद्र सरकार ने सन् 2013 में सौंपा था।’’।’’
जांच से भूपेश नाखुश
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आरोप है,कि आखिर भारत सरकार किस तथ्य को छिपाना चाहती हैं। न्यायिक जांँच आयोग ने षड्यंत्र की जांँच नहीं की। इसके अलावा कांग्रेस ने जो आठ बिन्दु तय किये थे,उसे जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग ने अपनी जांँच में शामिल नहीं किये। गवाही के लिए कुछ लोगों को बुलाया गया कुछ ने गवाही नहीं दी। साथ ही उन्होंने सवाल किया, कि क्या नाम पूछ-पूछ कर मारा गया? क्या ये राजनीतिक षड्यंत्र हैं? हमने आयोग को कई बिंदुओं पर पत्र लिखा, कि नंद कुमार पटेल, महेंद्र कर्मा को सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं दी गई?’’
मुख्यमंत्री एनआइए की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं होकर उस पर सवालिया निशान लगाते हुए 21 नवम्बर 2020 को कहा,‘‘ एनआइए ने झीरम घाटी में जो षंडयंत्र हुआ है,उसके बारे में कोई जांँच नहीं की। पकड़े गये नक्सलियों से और आत्मसमर्पित नक्सलियों से बयान नहीं लिया। रमन्ना, गुडसा उसेंडी, गजराला, अशोक और दूसरे नक्सलियों के बारे में, बाद में कई सबूत मिले। फिर भी एनआइए ने किसी भी चार्जशीट में,इनको शामिल नहीं किया। फूलदेवी नेताम सहित झीरम में घटना स्थल पर उपस्थित साथियों के भी बयान एनआइए ने नहीं लिया।
एफआईआर दर्ज हुआ
उदय मुदलियार के पुत्र जितेन्द्र मुदलियार का आरोप है,कि एनआइए ने किसी भी पीड़ित पक्ष से चर्चा नहीं की है। झीरम से सुकमा जाने वाला रास्ता स्टेट हाईवे है। स्टेट हाइवे में दोनों तरफ इतनी बड़ी संख्या में नक्सली तभी एकत्र हो सकते हैं,जब सुरक्षा व्यवस्था को नज़र अंदाज किया जाएगा। हैरानी वाली बात यह है कि,कार्यक्रम की सूचना सभी को थी। ऐसे में सुरक्षा व्यवस्था नहीं किया जाना,सबसे बड़ा सवाल है।’’
बहरहाल झीरम कांड का 25 लाख का इनामी नक्सली विनोद की कोरोना की वजह से 13 जुलाई 2021 को मौत हो गई है। नक्सलियों की बर्बरता ख़बर बनी लेकिन, बनी क्यों, इस सच पर सियासी धूल की परत इतनी मोटी हो गई है कि,शायद ही कभी हटेगी। झीरम कांड का राज रहस्य बनकर रह जायेगा।