Tuesday, June 25, 2019

मुझे खजुराहो बना दो...





तुम वाकय में अद्भुत हो। तुम्हारे आगे खजुराहो की क्या बिसात। पत्थरों से ज्यादा हरारत तो तुममे है। तुम चाहो तो अपनी हरारत से, कई खजुराहो बना दो। तुम्हारी अगड़ाई और कामुक आदाओं को इन निगाहों में कैद कर लिया है...। अब खजुराहो जाकर क्या करना। असली खजुराहो तो मेरे साथ है। बेजान पत्थरों में क्या रखा है!
तुम्हारी निगाहों ने जाना कैसे कि खजुराहो मुझमें है। मै तो एक धड़कती लाश हूं। धड़कना बंद कर दिया तो फिर मेरी सांसों की हरारत महसूस न होगी। इतना ही नहीं, तुम मोम सा जो पिघल जाते हो,ऐसा न होगा।

गजब की बातें कर लेती हो। तुम्हें तो पता भी नहीं है। तुम तो बेजान शीला थी। मेरे स्पर्श से जी उठी हो। मेरी होठों की नरमी से तुम्हारी देह हरिया गई। मेरे प्रेम में तुम इतिराने लगी हो। मेरे इश्क ने तुम्हें नदी बना दिया है। बहने लगी हो, इस घाट से उस घाट। मेरी मुहब्बत ने तुम्हें जंगल की हवा सा पागल कर दिया है। बौरा गई हो।
पहले मै धरती पर आई। उसके बाद खजुराहो बना। मेरी देह की तपिश को पत्थरों ने महसूस किया। उसमें आग तो मैने मुहब्बत के नग्मे गाकर भरे। प्यार के रंगी बिरंगी फूल मेरे लबों को चूमकर उजालों की परियों ने गढ़ा। मेरे कदम जहां, जहां पड़े, ये जमीं जन्नत जैसी हंसीन हो गई। तुम्हें पता भी है,ये दुनिया आज जिंदा है तो सिर्फ मेरी मुहब्बत की वजह से। वर्ना खजुराहो भी कब का ढह गया होता...।

मुझमें इतनी हरारत है कि किसी भी पत्थर को तराश कर ताजमहल बना दूं। किसी शिला पर अपनी ऊंगलियों से उकेर कर. तुम्हारी तरह अप्सरा बना दूं। इन आंखों में इतनी मुहब्बत है कि बेजान शिला को एक नजर देखकर धड़कना सिखा दूं। तुम थी ही क्या। तुम्हारी जिन्दगी में मै बहार बन कर आया। और तुम खिल गई, गुलाब की तरह। अब मुझे सांसो की मृदंग और देह की आग का ककहरा पढ़ा रही हो प्रिये...।

यदि पत्थर की मूर्तियां जी उठें तुम्हारे स्पर्श से। तुम्हारी सांसों की गरमी से मचल उठें। तुम्हारी प्रेम भरी नजरों से मचल उठें..। ऐसा तुम्हें मै वरदान दे दूं तो...।

मै जानता था। ऐसा जरूर कहोगी। लेकिन सोच लो। यदि खजुराहों की सभी मूर्तियां मेरे स्पर्श से जीं उठीं। मेरे आलिंगन से उनकी इच्छायें लहरों की तरह मचल उठीं। मेरे चुम्बन से उनके गाल गुलाबी हो गये। मेरी सांसों की खुशबू से दीवानी हो गई और मै वापस उनके पास से नहीं लौटा तो...। पत्थर जब तक तराशा न जाये तो कुछ भी नहीं है। तराश दो तो ताजमहल बन जाता है। बुत बन जाता है। देवता बन जाता है। औरत की देह भी पत्थर ही है। जब तक प्यार की हथौड़ी न पड़े तो शापित अहिल्या सी ही तो है। मै तुम्हारा इन्द्र हूं। चन्द्रमा और राम भी प्रिये।

तुम्हारी आंखों में जो मुहब्बत की चमक है। वो तुम्हारी नहीं है। मै तुम्हें अपने तन की खुशबू से रूबरू न कराती तो तुम्हारा मन बावरा न होता। मेरी निगाहें तुम्हें दीवाना न बनाती तो मुहब्बत क्या चीज है ,न तो तुम जानते और न ही दुनिया। वो भंवरा भी न जानता मुहब्बत क्या चीज है, जो समझता है कि फूल उसके दम पर खिलता है। तुम खजुराहो की किसी शिला से पूछना कि समुदर के सीने में किसका ज्वार है। मछलियों को उसकी लहरों से प्यार क्यों है। समुंदर रोता कब है..!

देह की उम्र होती है। प्यार की भी उम्र होती है। हर उम्र में प्यार होता है। कौन कहता है मुहब्बत 16 वें सावन से शुरू होती है। कभी इश्क करो तो जानो। औरत की काया में कितना सम्मोहन होता है। सिर्फ खुजराहो देखने से मुहब्बत नहीं होती। मुहब्बत के लिए खजुराहो बनना पड़ता है। मै चाहती हूं खजुराहो बनना। ताकि आदमी बार बार चाहे मुझसे मिलना। मेरे खजुराहो का दीदार करने हमेशा बेताब रहे...।