Wednesday, January 22, 2020

लाभ की खेती पर सवाल

 
  
कृषि अर्थ व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। क्यों कि प्रदेश में तीन लाख किसानों ने कृषि से मुख मोड़ लिया है। प्रदेश के डेढ़ लाख किसानों को उनके धान के समर्थन मूल्य का भुगतान अब तक नहीं हुआ है। दूसरी ओर केन्द्र सरकार का लक्ष्य है 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का। वहीं कमलनाथ सरकार ने बोनस दिया, तो केन्द्र सरकार 14 सौ करोड़ का गेहूं नहीं लेगी। सवाल यह है कि लाभ की खेती के लिए किसान कब तक  जुझें।






 0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                   लगातार पांच बार कृषि कर्मण अवार्ड जीतने के बाद भी मध्यप्रदेश के किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। उनकी स्थिति मजदूरों से भी बदतर है। केन्द्र सरकार के अनुसार प्रदेश के किसानों की औसत आय 6210 रूपये महीना है। जाहिर सी बात है कि किसानों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। जबकि 2014 में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक इसमें अभी तक मात्र 500 रूपये की बढ़ोतरी हुई है। यह राशि किसानों को प्रधानमंत्री सम्मान निधि के रूप में मिलती है। जाहिर सी बात है कि लोकलुभावन नारे से कृषि व्यवस्था मे सुधार संभव नहीं है। तत्काल सुधार की जरूरत है।
ए.के.एस यूनिर्वसिटी सतना की कृषि विज्ञान की छात्रा पल्लवी तिवारी कहती हैं,‘‘देश में लाभ की खेती के लिए पिछले कुछ सालों से किसान जूझ रहे हैं। लेकिन कृषि क्षेत्र में तत्काल सुधार की दिशा में कोई कदम नहीं उठाये जाने की वजह से 15 सालों में करीब तीन लाख किसानों ने खेती करना बंद कर दिया है। लगातार प्राकृतिक आपदा की वजह से फसल सूख गई या फिर अति बारिश में चैपट हो गई। इस वजह से किसान खेती से मुख मोड़ने लगा है। लघु किसान के पास कोई विकल्प नहीं होने की वजह से वो अब भी किसी तरह खेती कर रहा है,लेकिन बड़े किसान कोई और धंधा अपना लिये हैं। एस.एस स्वामीनाथम की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग ने किसानों की स्थिति में सुधार के लिए कई नीतियां बनाई है और सुधार के लिए अपनी सिफारिशें भी की है। लेकिन उनकी सिफारिशें अभी तक लागू नहीं की गई है। कृषि नीतियां अभी भी केवल लोकलुभावन ही है। किसान लगातार कमजोर होते जा रहे हैं। राज्य सरकार उन्हें बोनस देना चाहती है,लेकिन केन्द्र सरकार बोनस दिये जाने पर गेहूं और धान लेने से मना कर रही है। कृषि अर्थव्यवस्था की ओर यदि ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में अन्न के साथ बाजार और श्रम, दोनों पर संकट खड़ा हो सकता है‘‘।
सियासी मोहरा बने किसान
किसानी को लाभ का व्यवसाय बनाने के लिए सिर्फ किसान ही नहीं, बल्कि सरकार और कृषि से जुड़े लोग भी लगातार प्रयास कर रहे हैं। लेकिन जिस तरह से किसानों के धान और गेहूं के समर्थन मूल्य को लेकर राजनीति चल रही है, इससे सबसे ज्यादा प्रभावित किसान ही हो रहा है। किसान राजनीतिक मोहरा बनकर रह गया है। कांग्रेस सत्ता में आने के एक साल बाद भी 55 लाख किसानों को गेहंू का बोनस नहीं दे पाई। वहीं नये वित्तीय सत्र में सरकार को दूसरे रबी सीजन का भी बोनस देना पड़ेगा। कांगे्रस ने समर्थन मूल्य देने का वचन घोषणा पत्र में लिखा था। फरवरी में 160 रूपये बोनस देने की घोंषणा की थी। दो साल पहले केन्द्र सरकार ने गेहूं पर बोनस देने से इंकार कर दिया था। केन्द्र के इंकार के बाद राज्य सरकार ने अपने मद से बोनस राज्य में बांटा था। कई जिलों से किसानों की सूचियां अभी आई नहीं है। कृषि विभाग ने 1450 करोड़ रूपये बांटने का प्रस्ताव बनाया है,लेकिन अभी 900 करोड़ रूपये ही बांटने का निर्णय लिया है। वित्त मंत्री तरूण भनोत कहते हैं,‘‘ पिछली सरकार खजाना खाली करके गई है। केन्द्र सरकार भी आर्थिक मदद नहीं कर रही है। राज्य सरकार अपने स्तर पर बोनस देने की व्यवस्था करेगी’’।
सरकार की मंशा ठीक नहीं
पूर्व खनिज मंत्री एवं विधायक राजेन्द्र शुक्ला कहते हैं,‘‘प्रदेश सरकार दिग्विजय सिंह के शासन के समय की तरह कुव्यवस्था का शिकार हो गई है। प्रदेश सरकार ने किसानों को गेहूं और धान का बोनस देना बंद कर दिया है। गेहूं का 265 रूपये और धान का 200 रूपये। शिवराज सरकार के समय बोनस के  जरिये किसानों से गेहूं और धान खरीदा गया था, ताकि किसानों को कुछ लाभ हो सके। बिजली और खाद में भी उन्हें सब्सिडी दी जाती थी। लेकिन कांग्रेस सरकार की मंशा ठीक नहीं है। समर्थन मूल्य की राशि देने की स्थिति में नहीं है और बोनस देने की भी इच्छा शक्ति नहीं है। किसान लाभ की खेती के लिए न जूझे इसके लिए जरूरी है कि उन्हें जीरो ब्याज पर ऋण दिया जाये। समर्थन मूल्य के साथ प्रोत्साहन राशि भी दें, ताकि खेती से वो मुख न मोड़ें’’।
डेढ़ लाख किसानों का भुगतान रूका
प्रदेश में किसानों से दस लाख टन समर्थन मूल्य पर धान खरीदा गया है। किसानों को समर्थन मूल्य पर 1790 करोड़ रूपये दिया जाना है लेकिन, अभी तक केवल 94 करोड़ रूपये ही दिये गये हैं। यानी करीब डेढ़ लाख किसानों के 1686 करोड़ रूपये का भुगतान अभी नहीं हुआ है। ऐसे मे बाजार से खाद और किसानी से जुड़ी अन्य समान खरीदने में किसानांे के समक्ष आर्थिक दिक्कत है। खरीदी केन्द्रों में धान की ढुलाई अभी तक नहीं हुई है। मंडी से खरीदे गये धान जब गोदाम पहुेंचेंगे,उसके बाद किसानों को खरीदी पर्ची मिलेगी। इसके बाद ही उनके खाते में राशि आयेगी।
टकराव की स्थिति
केन्द्र सरकार ने किसानों की कई योजनाओं की राशि में कटौती कर दी है। इस वजह से राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के बीच टकराव की स्थिति निर्मित हो गई है। कांग्रेस के वचन पत्र में किसानों को गेहूं का बोनस देना शामिल है। लेकिन केन्द्र सरकार ने दो टूक कह दिया है कि, यदि बोनस देंगे, तो गेहूं और धान नहीं लिया जायेगा। यानी 1400 करोड़ रूपये का गेहूं केन्द्र सरकार नहीं लेगी। सरकार के बोनस देने पर उस पर 2800 करोड़ रूपये का आर्थिक बोझ पड़ेगा। कृषि मंत्री सचिन यादव कहते हैं,‘‘ केन्द्र सरकार पक्षपात का रवैया अपना रखी है। किसानों के साथ अन्याय कर रही है,ऐसे में किसानों के लिए खेती लाभा का धंधा साबित नहीं हो सकती। प्रदेश में बारिश से करीब 58 लाख हेक्टेयर की फसल बर्बाद हुई। राज्य सरकार ने केन्द्र से 6700 करोड़ रूपये आपदा राहत की राशि मांगी लेकिन, केन्द्र सरकार ने मात्र एक हजार करोड़ रूपये ही दिये हैं। ऐसे में किसानो को उचित मुआवजा देने में दिक्कतें आ रही है। बावजूद इसके कांग्रेस सरकार किसानो के साथ अन्याय नहीं होने देगी।
भावांतर योजना का भंवर
प्रदेश के किसान बार बार राज्य सरकार पर दबाव डाल रहे हैं कि भावांतर योजना की राशि उन्हें दें। लेकिन केन्द्र सरकार इस योजना की एक हजार करोड़ रूपये अभी तक दी नहीं है। गौरतलब है कि शिवराज सरकार के समय भावांतर योजना मे ंकिसानों के नुकसान पर अतिरिक्त राशि केन्द्र सरकार ने दिया था। लेकिन पिछले एक साल से किसानों के भावांतर योजना का पैसा अटका पड़ा है। केन्द्र सरकार ने इस योजना में पैसा देने से मना कर दिया है। जबकि शिवराज सिंह चैहान कह रहे हैं यदि प्रदेश सरकार ने किसानों को भावांतर योजना का पैसा नहीं दिया तो ठीक नहीं होगा। पार्टी सड़कों से विधान सभा तक प्रदर्शन करेगी। दरअसल 2018 में चुनाव हुए, तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई। लेकिन उससे पहले शिावराज सरकार भावांतर योजना की पूरी राशि नहीं बांटी थी। बकाया के लिए कृषि मंत्रालय को पत्र सरकार ने लिखा, पर वो मिलने से रहा। जाहिर सी बात है कि भावांतर योजना की राशि किसानों को मिलने से रही।
केन्द्र बाधा डाल रहाः राजमणि
राज्य सभा सदस्य राजमणि पटेल कहते हैं,‘‘ केन्द्र सरकार किसान विरोधी सरकार है। ऐसा मै इसलिए कह रहा हूं कि, वो नहीं चाहती है कि प्रदेश सरकार बोनस देकर किसानों से धान और गेहूं खरीदे।     केन्द्र सरकार नहीं चाहती कि प्रदेश का किसान खेती करे। प्राकृतिक आपदा पर हुए नुकसान पर मांगी गई राशि में भी भारी कटौती कर दी गई। केन्द्र सरकार की भूमिका प्रोत्साहन देने की नहीं है। वो हर योजनाओं में बाधा डालने का काम कर रही है। केन्द्र सरकार प्रदेश का पैसा देने में भेद भाव कर रही है। भावांतर योजना के एक हजार करोड़ रूपये अभी तक नहीं दिये हैं। पी.एम फसल बीमा की राशि भी अभी बकाया है। प्रदेश सरकार ने किसानों का ऋण माफ कर उन्हें खेती से जोड़ने की दिशा में कदम बढ़ाया है। ताकि किसान खेती न छोड़ें। कांग्रेस को खाली खजाना मिला है। इसे मोदी को समझना चाहिए।
पंाच लाख किसान बीमा से वंचित
प्रदेश के किसानों का हर स्तर पर खेती लाभ का धंधा साबित नहीं हो रही है। प्रधान मंत्री फसल  बीमा योजना के तहत 2018 में 35 लाख किसानों की फसल का बीमा हुआ था। लेकिन 2019 में केन्द्र सरकार ने बीमा की समय सीमा 15 अगस्त से घटाकर 31 जुलाई कर दी। इससे करीब पांच लाख किसान अपनी फसल का बीमा नहीं करा सके। फसल बीमा की प्रीमियम में राशि कम होने की वजह से क्लेम भी कम ही मिले। बारिश की वजह से प्रदेश के किसानों की फसल चैपट होने से बीमा की राशि आठ हजार रूपये प्रति हेक्टेयर का नुकसान हुआ। प्रदेश में करीब 58 लाख हेक्टेयर की फसल चैपट हुई। चैकाने वाली बात यह है कि क्लेम की राशि भी हर जिले में अलग अलग है। मसलन हरदा जिले में 2018 में 3500 रूपये प्रति हेक्टेयर था जो 2019 में घटा कर 26250 रूपये कर दिया गया। जाहिर सी बात है कि किसानों को प्रति हेक्टेयर 8750 रूपये प्रति हेक्टेयर कम मिला। इसी तरह अलीराजपुर में 8750, अनूपपुर में 4200,बालाघाट में 3500 रूपये,बड़वानी में 10000,बैतूल में 8150 रूपये और भोपाल में 8250 रूपये,बुरहानपुर में 10000 रूपये और आगरा-मालवा में प्रति हेक्टेयर 12000 रूपये का नुकसान किसानों को हुआ।
बोनस राशि में कटौती
प्रदेश में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी सरकारी केंद्रों पर की जा रही है। लेकिन गेहूं खरीदी पर प्रति क्विंटल मिलने वाले बोनस के 160 रुपये की राशि बिल में नहीं जोड़े जाने से किसान नाराज हैं। इसलिए सरकारी खरीदी केंद्रों के बजाय मंडी और खुले बाजार में गेहूं ज्यादा बिक रहा है। गत वर्ष गेहूं का समर्थन मूल्य 1735 रुपए प्रति क्विंटल था। इस पर तत्कालीन राज्य सरकार ने 265 रुपए प्रति क्विंटल बोनस दिया था। इन दोनों राशियों को जोड़कर किसानों को 2000 प्रति क्विंटल की दर से एक साथ भुगतान किया गया था। इससे किसान खुश थे। लेकिन इस वर्ष गेहूं का समर्थन मूल्य 1840 रूपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। लेकिन नई सरकार ने गेहूं पर बोनस की राशि 160 रुपये प्रति क्विंटल देने की घोषणा की,जो पिछले साल से 105 रुपए कम है। सीहौर जिले के 40 हजार 9 किसानों ने 4 लाख 1 हजार 714 मीट्रिक टन गेहूं समर्थन मूल्य पर बेचा था। जिले की 155 सोसायटियों पर गेहूं बेचने वाले इन किसानों को करीब 64 करोड़ 27 लाख 42 हजार 400 रुपए बोनस अभी तक नहीं मिला है।  
प्रदेश सरकार ने किसानों का ऋण माफ करके उनकी चहेती तो बनी, लेकिन बोनस और समर्थन मूल्य पर उनके गल्ले की कीमत नहीं मिलने से वे नाराज हैं। जाहिर सी बात है कि खेती लाभ का धंधा बने इसकी चुनौती कमलनाथ सरकार के समक्ष है।