Thursday, February 17, 2022

स्त्री-पुरुष के संबंधों की नई भंगिमा

            



0 श्रीमती अंजू मिश्रा
बदलती जीवन शैली और बदलती मान्यताओं की वजह से प्यार की दुनिया में मुहब्बत के अफसाने भी बदल गए हैं। पति-पत्नी के बीच रिश्तों में खटास और नई पीढ़ी के मन में भावनाओं का रंग भी बदल गया है। अब मुहब्बत की जुबां बदल गई है, मगर मन से मुहब्बत की कशिश नहीं गई है। स्त्री-पुरुष के संबंधों को ‘इश्क की हरी पत्तियांँ’’ में बहुत गहराई से वरिष्ठ पत्रकार रमेश कुमार ‘रिपु’ ने उकेरा है। संग्रह की पन्द्रह कहानियांँ में स्त्री पात्र बोल्ड और वर्जना रहित हैं। क्यों कि वे मेट्रो सिटी की हैं,मगर संवेदनशील हैं। यह किताब स्त्री-पुरुष के रिश्तों की नई भंगिमा का कैनवास है। कहानी स्त्री विमर्श के दायरे में है,साथ ही उच्च मध्यमवर्गीय परिवार में स्त्री-पुरुष के संबंधों की प्रेम संवेदना जीवन के प्रति प्रतिबद्ध है। यह कहानी संग्रह मूल्यांकन के लिए चुनौती से कम नहीं है।  
पहली कहानी ‘कितनी दूरियां’ में दर्द मन की तलहटी में पढ़ते-पढ़ते जन्म ले लेता है। और उस दर्द का अंत तब होता है,जब कहानी खत्म होती है। सवाल यह है,कि मन की भावनाओं से देह की कितनी दूरियाँं होती हैं..? इतनी,जैसे होंठ से लिपस्टिक। पांँवों से पायल और फूल से खुशबू! अपने से सात साल बड़ी मुस्लिम लड़की को हिन्दू लड़का उसे रिझाने,प्यार के प्रति उसकी सोच को बदलने के साथ,उसकी ज़िन्दगी को बदल देने के लिए जो कवायद करता है, वो काबिले तारीफ है। साझा संस्कृति की यह कहानी बताती है,स्त्री को मन से ताकतवर होना चाहिए।
‘एक कतरा मुहब्बत’ भावनात्मक कहानी है। युवा बेटी मांँ से किये गये वायदे पर,अपने पिता की पूर्व प्रेमिका को उनसे मिलवाती है। कहानी के कुछ संवाद दिल में जगह बना लेते हैं। ‘बहुत लोग जिन्दगी में लघुकथा की तरह आते हैं और जब जाते हैं, तो उपन्यास की दास्तांँ छोड़ जाते हैं।’ जब भी पत्नी से झगड़ा होता है,मर्दो को अपने पहले प्यार की बड़ी याद आती है।’’
‘राइट परसन,इश्क में खजुराहो होना,ज़िन्दगी की बैलेंस शीट,दूसरी मुहब्बत आदि कहानियों को पढ़ने से ऐसा लगता है,मानो कामदेव ने कागज पर संवाद लिखे हों। ‘बेशर्म दिल’ऊंचे ख्वाब की वजह से लीव इन रिलेशन शिप वाली लड़कियों की जिन्दगी में ऐसा वक्त आता है,जब उनके पास सिर्फ तन्हाई रह जाती है। अपने ब्वाॅय फ्रेंड को अपनी सहेली के पास भेज देती है। ताकि उसकी सहेली का दिल उस पर आ जाये और वह किसी और पर डोरे डाल सके। ‘मचलती लहर’ इश्क की दुनिया के रहस्मयी संसार की कथा है। जहांँ महबूबा चाहती है, कि उसके पति का मर्डर, उसका प्रेमी कर दे,फिर सुकून से मुहब्बत की शैपेन प्रेमी के साथ पी सकें। यह एक थ्रीलर कहानी है। जिसमें रोमांच गजब का है।   
‘दूसरी मुहब्बत’ जैसी औरत समय रहते खुद को नहीं बदलती, तो उनके दाम्पत्य जीवन में इश्क़ का रंग बेनूर हो जाता है। ‘मन का सावन’ दरकती वफ़ाओं के दंश की ऐसी कहानी है,जिसमें युवती को कैंसर होने पर उसका भ्रम टूटता है,कि उसका पति उस पर अपनी जान लुटाता है। बेस्ट फ्रेंड उसका इलाज कराता है। तब उसे माँ की बातों पर यकीं होता है, कि बेस्ट फ्रेंड लाइफ पाटर्नर हों,तो जिन्दगी में शिकायत का मौका नहीं मिलता।
‘प्यार का रेशमी धागा’दिलों में बढ़ते दरार की अनोखी कहानी है। सवाल यह है, कि यदि पति बदल जाये तो पत्नी को कितना बदल जाना चाहिए। कहानी को समझने के लिए कहानी के अंदर उतरना पड़ेगा। लेखक ने कहानी के लिए जो भाषा रची है,वह पति और पत्नी की भावनाओ को स्पर्श कराता है। ‘इश्क की हरी पत्तियांँ’ में एक नपुंसक पति अपनी पत्नी को अंधेरे में रख कर पराई स्त्री में दिलचस्पी लेता है। एक औरत दूसरी औरत को माँ बनने के लिए जो रास्ता सुझाती है,वह पुरुष सत्ता के समक्ष यक्ष प्रश्न है। कोख औरत की है, तो उसकी कोख में किसका बच्चा पलेगा, क्या यह फैसला लेने का हक उसे नहीं मिलना चाहिए..?  
गाँव की मासूम लड़की को शातिर युवक अभिनेत्री बनवा देने का सब्ज बाग दिखाकर उसे मुंबई में लाकर न्यूड माॅडल बना देता है। संयोग से उसका सामना अपने प्रेमी से न्यूड माॅडल के रूप में होता है।‘‘ मुहब्बत में कुछ सांसे जिंदा लाश हो जाती हैं। और ऐसी लाशों की गिनती कभी इंसानों में नहीं होती।’’ समय और सभ्यता के उजाड़ को दर्शाता है ‘फिर रोये रंग’। रंगो की भाषा में संवाद,दिल में उतर जाते हैं। मुहब्बत है तो दुनिया है। मंगर एक सच यह भी है,कि मुहब्बत न होती, तो कुछ भी न होता।
हर कहानी अलग-अलग मूड की है। इसकी लिखावट और बुनावट ऐसी है,कि पाठक को पूरी कहानी पढ़ने के लिए विवश कर देती हैं। कहानी की भाषा और शिल्प उन पाठकों को ज्यादा पसंद आयेगी,जो नई भाषा के दीवाने हैं।
लेखक- रमेश कुमार ‘रिपु’
कीमत - 228 रुपये
प्रकाशक - प्रलेक प्रकाशन मुंबई