अमीर धरती,गरीब लोग
छत्तीसगढ़ की धरती में कीमती रत्नों का भंडार है। बावजूद इसके यहां का अदिवासी गरीब और बेहाल है। सरकार आदिवासियों को उजाड़कर उनकी जमीन पर कब्जा कर ली। लेकिन रत्नों से लदी इस धरती की हिफाजत नहीं कर पा रही है। पायलीखंड की हीरा खदान और बेहराडीह,कोदोमाली से सरकार की तिजोरी तो नहीं भरी लेकिन,तस्करों की चांदी है।
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
प्यारे सिंह बताते हैं अलेक्जेन्ड्राइट उनकी जिन्दगी के लिए अभिशाप बन गया। जमीन का पट्टा होने के बाद भी खेती नहीं कर सकते थे। एक दिन कुछ अफसर आए और बोले तुम्हारे जमीन में अरबों रूपए का पत्थर है,जमीन सरकार को दे दो। तुम दोनों भाइयों को खदान की रखवाली के लिए चैकीदार बना देंगे। जमीन तुम्हें अब नहंीं मिलेगी, इसलिए 12 हजार रूपए रख लो। कुछ दिनों तक खदान का गार्ड बनाने के बाद हटा दिए। एक फूटी कौड़ी भी नहीं दिए। अरबों की जमीन से प्यारे सिंह खदेड़ दिए गए और अब फिर रहे हैं मारे मारे। जमीन भी गई और दो वक्त की रोटी भी छिन गई।
हीरा ले लो,रहने को जमीन दे दो
नैन सिंह नेताम के खेत में हीरे तो निकले लेकिन इनकी जिन्दगी मंे केवल दर्द ही दर्द हंै। कुरेदने पर बताते हैं, बचपन में एक दिन दादी ने कहा था कि अपने खेत में सोना नहीं, हीरा है। यह हीरा हमें हर लिया। कहीं का नहीं छोड़ा। हमारी खड़ी फसल को बड़ी बेरहमी से काट दिया गया। अफसर बोले,यहां फिर दिखे तो तुम्हारी टांगे तोड़ देंगे। बाहरी लोगांे का तो बाल बांका तक नहीं हुआ। हमारे खेत की मिट्टी भर कर ट्रकों से ले गए। वे ऐश कर रहे हैं। नैन सिंह नेताम घने जंगल के बीच पायलीखंड के उस हीरे की भंडार की मालिक है जिसे तस्कर लूट कर ले गए। नैन सिंह के साथ ज्यादती करने वाली सरकार को हीरा का एक टुकड़ा भी नहीं मिला। नैन सिंह अब बड़े किसानों के यहां मजदूरी करते हैं। आज भी छोटी सी झोपड़ी में रहती हैं। नैन सिंह की मां कहती हैं कि खेत को ऐसा खोदा कि किसी काम का नहीं रह गया है। हमें पैसा नहीं चाहिए,बस जमीन का कहीं टुकड़ा दे दें ताकि बेटा,बहू को कहीं आसरा मिल जाए सिर छुपाने को।
प्यारे सिंह और नैन सिंह की इस कहानी में छत्तीसगढ़ के मैनपुर-देवभोग इलाके के लोगों के दर्द के साथ विडंबना छिपी है। इस इलाके के लोगों की जिन्दगी में खुशियों की बहार नहीं आ सकी क्यों कि सरकार ने इस दिशा में कोई स्पष्ट योजना नहीं बना सकी। यही वजह है कि इस संपदा पर तस्करों की गिद्ध नजर गड़ी हुई है। जमीनों की अवैध खुदाई कर भारी मुनाफा अपनी जेबों भर रहे हैं और गांव वालों को नाम मात्र की मजूदरी देते आ रहे हैं। इसके चलते उपेक्षा,हताशा और शोषण की तस्वीर से निजात इस क्षेत्र को नहीं मिल पा रहा है।
ऐसे हुई तस्करी की दस्तक
देवभोग के गांव लाटापारा जहां रक्तमणि(गारनेट) का भंडार है। यहां के लोग अजनबी चेहरोें को शक की निगाहों से देखते हैं। इस गांव के देवानंद कश्यप,रामधनी और भानुमति,दुलारी कहती हैं,‘‘सरकार ठीक से काम करती तो गांव के बहुत से लोग सिर्फ गारनेट बेचकर ही अपनी गरीबी दूर कर लेते। लोगों को जंगल के कंद मूल खाने की नौबत नहीं आती। यहां के लोगों से मिलने के बाद पायलीखंड गांव की ओर रवाना हुआ। गौरतलब है कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र के आधार पर भूगर्भ शास्त्री टी.एल.वाकर ने 1900 में एक सर्वे किया था। उनके अनुसार यहां हीरे के अलावा अन्य रत्नों के भंडार की संभावना है। वाकर के बाद ओड़िसा राज्य के प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक विश्वनाथ ने भी इन्द्रावन क्षेत्र में फैले रत्न भंडार पर एक रिपोर्ट तैयार की थी। ऐसा कहा जाता है कि 1986-89 के बीच उनकी रिपोर्ट की नकल कीमती पत्थरों के सौदागरों ने हासिल कर ली थी। उसके बाद ही इलाके में तस्करी क शुरूआत हुई। पायलीखंड ऐसा इलाका है जहां हीरे की चाह में दूर से लोग खींचे चले आते हैं। जांगड़ा गांव से होकर पायलीखंड पहुंचना पड़ता है। इन्द्रावन यहां की प्रमुख नदी है। इसे पार करने के बाद खदान तक पहुंचा जा सकता है।
सुरक्षा भगवान भरोसे
हीरा खदान की सुरक्षा सन् 2009 तक पुलिस के जवानों ने की। एक दिन यह खबर फैली कि नक्सली इधर आ रहे हैं। पुलिस बल इसलिए हटा लिया गया कि कहीं वे हथियार न लूट लें। गांव के लोगों का कहना है कि यह सब साजिश थी,ताकि अवैध खनन किया जा सके। छह वर्ष पहले हीरा खदान में 50 हेक्टेयर क्षेत्र को कटीले तारों से घेरा गया था। अब कटीले तार नहीं दिखते। संरक्षित क्षेत्र में कोई भी आ जा सकता है। खनिज विभाग के पास फंड नहीं होने की वजह से कटीले तार दोबार नहीं लगाया गया। गरियाबंद जिले में पायलीखंड के अलावा बेहराडीह,कोदोमाली में भी हीरे मिलने की वजह से जगह जगह सैकड़ों की तादाद में गड्ढे बन गए है।
इस तरह हुआ सर्वे
गरियाबंद और देवभोग में रत्न भंडार के सर्वे के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम बनी। भौमिक एवं खनिज कर्म संचालनालय के भू वैज्ञानिक दत्ता माईणकर, जयंत कुमार पसीने,दिनेश वर्मा,विजय कुमार सक्सेना,संजय खरे, पी.के.पदमवार, हरविंदर पाल और आर.आर.विसेन ने दो वर्षो में सर्वे कर पता लगाया कि किन किन क्षेत्रों मंे कीमती रत्न हैं। इन वैज्ञानिकों ने मैनपुर ब्लाक के बेहराडीह, कोसममुरा, कोदोमाली, पायलीखंड, जांगड़ा, बाजीघाट और बस्तर क्षेत्र में तोकापाल,भेजीपदर में किंबरलाइट मिलने की पुष्टि की। ज्यादातर पहले हीरा मिलता है,उसके बाद किंबरलाइट चट्टान लेकिन, कभी कभी पहले किंबरलाइट चट्टान उसके बाद हीरा मिलता है।
हीरे की निविदा पर राजनीतिक ग्रहण (फोटो दिग्गी राजा और अजीत जोगी की बाॅक्स में मैटर)
छत्तीसगढ़ में हीरा मिलने की पुष्टि होने के बाद मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्गविजय सिंह ने 1992 में निविदा आमंत्रित की। दिग्गी राजा ने डी-बियर्स कंपनी को मंजूरी दे दी। प्रोस्पेक्टिंग लायसेंस (पीएल) के लिए केन्द्र की देवगौड़ा सरकार को पत्र भेज दिया गया। इस बीच कांग्रेस नेता अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री दिग्गी राजा पर 50 करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगाया और इसकी शिकायत सोनिया गांधी से की। आरोपों के साक्ष्य के बतौर अजीत जोगी ने कहा,‘‘डी बियर्स के निमंत्रण पर दिग्विजय सिंह,प्रदेश के तत्कालीन सचिव शरदचंन्द्र बेहार, खनिज सचिव एस. लक्ष्मीकृष्णन के साथ दक्षिण अफ्रीका के प्रवास पर गए हुए थे। इस प्रवास का पूरा खर्चा कंपनी ने उठाया है। हीरा खनन पर राजनीति होने से अनुबंध समाप्त कर दिया गया। 12 मार्च 1998 को एक बार फिर निविदा निकाली गई। जिसमें चार कंपनियां नेशनल मिनरल डेवलमेंट कार्पोरेशन,डी बियर्स, रियो टिंटो और बी विजय कुमार ने मैनपुर ब्लाक के डी-7 ब्लाक के लिए निविदा भरी। बी विजय कुमार की निविदा मंजूर होने पर भाजपा सांसद रमेश बैस का अरोप था कि बगैर सर्वेक्षण के हीरों की कटिंग-पालिश का काम करने वाले ट्रेडर्स को काम दिया गया है। इसके अलावा यह भी आरोप लगा कि जिन खदानों का ठेका मंजूर किया गया है वहां सिर्फ हीरा ही नहीं अन्य कीमती धातुएं जैसे कोरडंम,गारनेट,स्पाटिक आदि मिलती हैं। इस मामले पर सरकार और बी विजय कुमार के बीच कोई अनुबंध नहीं हुआ कि आखिर इसका लाभ किसे मिलेगा। केन्द्र से सन् 2000 में प्रोस्पेक्ंिटग लायसेंस बी. विजय कुमार को मिल गया। छत्तीसगढ़ राज्य इसी वर्ष बनने पर अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। कंपनी को प्रदेश के खनिज विभाग ने क्षेत्र के सर्वे में गफलतबाजी करने आरोप लगाकर नोटिस थमा दिया। बी.विजय कुमार को लगा कि हाथ से काम छिन जाएगा तो उन्होंने बिलासपुर हाई कोर्ट में मामला दायर किया। 2008 से यह मामला दिल्ली ट्रिब्यूनल मिनिस्ट्री आफ माइंस के पास विचाराधीन है। वहीं मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह कहते हैं,खदान के बारे में किसी भी तरह का निर्णय लेने के पहले फैसला तो देखना ही पड़ेगा‘‘।
तस्करों को खुली आजादी
पायलीखंड अब भी लोग आते हैं हीरे की तलाश में। चैकाने वाली बात है कि खदान में सुरक्षा के नाम पर सीमेंट की दो जर्जर खंभे हैं,जबकि दूसरा गेट टूटा हुआ है। हीरा निकालने के लिए कोई भी तस्कर खदान में आ जा सकता है। उसकी किस्मत में हीरा है तो आसनी से मिल जाएगा। बारिश में इन्द्रावती नदी में बाढ़ आ जाने से गांव कट जाता है। जिससे पुलिस की पहुंच से यह गांव दूर हो जाता है। जिला खनिज अधिकारी एस.के.मारवा कहते हैं,‘‘1991 के सर्वेक्षण में यहां 3 हजार कैरेट के हीरे की संभावना जताई गई थी। कुछ प्रशासनिक कारणों की वजह से खुदाई का मामला आगे नहीं बढ़ सका। ओड़िसा सीमा पर बसा वन ग्राम पायलखंडी और सेदमुड़ा दोनों स्थानों पर दुलर्भ कीमती रत्न अलेक्जेंड्राइट मिलता है। यह क्षेत्र पर्वतों से घिरा हुआ है। रेल मार्ग यहां नहीं है। मैनपुर ब्लाक में पायलखंडी और सेंदमूड़ा देवभोग ब्लाॅक में आता है। मैनपुर में उच्च कोटि के सागौन के जंगल हैं,जबकि देवभोग चावल के लिए प्रसिद्ध है।
गांव की तस्वीर नहीं बदली
सेंदमुड़ा की धरती में अलेक्टजेंड्राइट पत्थर होने की जानकारी मिली तो तस्करों का काफिला आने लगा। सरकार ने भी लोगों की जमीन छीन ली लेकिन इस गांव की तकदीर नहंीं बदली। खनिज विभाग के सेवा निवृत क्षेत्रीय अधिकारी एन.के चद्राकर कहते हैं,1987 में यहां कीमती पत्थर अलेक्टजेंड्राइट के होने की पुष्टि हुई थी। 1992 मंे इस पूरे क्षेत्र को पुलिस कस्टडी में लेकर मध्यप्रदेश खनिज विभाग को सौंप दिया गया। देवभोग जनपद उपाध्यक्ष देशबंधु नायक कहते हैं,‘‘खनिज विभाग के अधीन होने की वजह से पहले पांच साल तक यहां अवैध खनन होता रहा। 1992 में विभाग की देख रेख में उत्खनन का काम शुरू हुआ। कितने पत्थर निकाले और कितना बताए, कोई नहीं जानता। गांव वाले नहीं जानते कि इस पत्थर की क्या उपयोगिता है,कितना कीमती है। इसलिए गांव वालों को इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
खनन पर रोक लगी
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश पर 20 फरवरी 2009 को उदंती-सीतानदी अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया है। 851 वर्ग किलोमीटर कोर जोन है। पायलीखंड की हीरा खदान भी इसी जोन के तहत आती है। वन्य जीव कानून के तहत टाइगर की सुरक्षा को देखते हुए मंत्रालय ने खनन पर रोक लगा दी है। जबकि यहां का हीरा पन्ना की तरह है। बावजूद इसके तस्कर यहां आते हैं। पायलखंडी में नैन सिंह के खेत की तस्वीर सब कुछ कह देती है कि तस्कर जमीन को पोला अब भी हीरे की तलाश में कर रहे हैं। हीरे के लिए पानी की जरूरत अधिक पड़ती है। तस्कर स्थानीय मजदूरों के जरिए मिट्टी खुदवाते हैं। उसके बाद उसे बोरे में भरकर साइकिल के जरिए नदी तक ले जाते हैं। मजदूर घनी जाली में मिट्टी को डालकर उसे धोते हैं। मिट्टी बह जाती है। जाली में कंकर रह जाता है। जिसे सूखाकर या फिर प्लास्टिक की चादर में फैलाकर उसे चावल की तरह बीना जाता है। सूरज की रोशनी में चमकने वाला पत्थर हीरा होता है। मजदूरों को एक हीरा तलाशने में दो से तीन सौ रूपए मिलता है।
रत्नों का अकूत भंडार
गरियाबंद के देवभोग,सरगुजा के सफा, बीजापुर के भोपालपट्टनम और जशपुर के कुनकुरी, वनखेता एवं दीवानपुर में पारदर्शी हीरा पाया जाता है। गरियाबंद जिले के पायलीखंड,जागड़ा,बेहराडीह,कोदेमाली और बाजाघाटी में हीरे की किबंरलाइट है। बस्तर के तोकापालव, भेजरीपदर और जशपुर के फरसबहार, मैनी नदी, सारंगगढ़, पिथौरा, बेहराडीह, कंाकेर-केशकाल,नारायणपुर,छोटा डोंगर,तोकापाल में भी हीरा पाया जाता है। उथली खदान होने की वजह से तस्कर इसका फायदा उठा रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश के कई अन्य जिलों में भी रत्नों के भंडार है। बीजापुर जिले के भोपालपट्टनम में कोरन्डम (माणिक और नीलम) दबे हैं। सुकमा जिले के सोन कुकानार और गरियाबंद के केदूबाय गांव में माणिक पाए गए हैं। गरियाबंद के गोहेकला,धूप कोट,लाटापारा और केदूबाय में रक्तमणि के भंडार मिले हैं। इसके अलावा बीजापुर के कुचनुर और सरगुजा के बिशनपुर में भी इसके भंडार मिले हैं।
पांचवी सबसे बड़ी खदान!
दुनिया भर में हीरे की 22 खदाने हैं। यदि मैनपुर ब्लाक के तहत पायलीखंड की खदान शुरू होती है तो यह विश्व की पांचवा सबसे बड़ा खदान होगी। इस खदान से छत्तीसगढ़ सरकार को सालाना करीब 10 हजार करोड़ का मुनाफा हो सकता है। यह खदान 50 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यहां साउथ आफ्रिका की खदानों जैसे ही हीरे हैं। नई राजधानी में जेम्स एंड ज्वेलरी पार्क शुरू होने से हर व्यक्ति के लाभान्वित होने की उम्मीद है। रोजगार बढ़ने से लोगों की आमदनी और लाइफस्टाइल तो बेहतर होगी हीए भारी.भरकम राजस्व से प्रदेश में डेवलपमेंट की नई तस्वीर भी उभर सकती है। दरसअल छत्तीसगढ़ सरकार पिछले वर्ष सोनाखान की नीलामी की है। इससे संभावना है कि अब जल्द ही यहां माइनिंग शुरू हो जाएगी। सोनाखान के शुरू होने पर मैनपुर के हीरा खदान को भी हरी झंडी मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। यदि ऐसा होता है तो मैनपुर देश का इकलौता हीरा खदान बन जाएगा। यहां करीब 1 लाख कैरेट हीरा मिलने का अनुमान है।
नए बाजार की संभावनाएं
सोनाखान में सोने और पायलीखंड में हीरा खदानों की पुष्टि होने के बाद सूरत और मुंबई की तर्ज पर ही सराफा की नई इंडस्ट्रीज के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने नई कवायद शुरू कर दी है। छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम सीएसआईडीसी और एक निजी कंपनी रामकी समूह के बीच एक एमओयू हुआ है। इसके तहत कंपनी 3 हजार करोड़ रुपए का निवेश कर नया रायपुर में रत्न एवं आभूषण उद्योग, हर्बल और औषधीय पार्क तथा खाद्य प्रसंस्करण पार्क बनाएगी। इसमें सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट जेम्स एंड ज्वेलरी पार्क का है। इसके लिए नया रायपुर में जमीन आवंटित कर दी गई थी लेकिन मामला अब तक ठंडा ही था। सोने के खान की नीलामी ने इस पार्क की संभावनाओं में नई जान फूंकी है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 230 किलोमीटर दूर एक गांव सेंदमुड़ा है। आज से तीस साल पहले इस गांव में प्यारे सिंह और प्यारेलाल नाम के दो भाई रहते थे। इनके पास दो एकड़ खेत था। जिसमें धान उगाया करते थे। प्यारे सिंह को हल चलाते वक्त एक चमकीला पत्थर मिला। उसे उलट पलट कर देखा। कुछ समझ में नहीं आया तो घर ले आए। बच्चों को खेलने के लिए दे दिया। गांव के बच्चे इसे कंचा बनाकर खेलने लगे। प्यारे सिंह को यह पता नहीं था कि जिस पत्थर को वे बच्चों को खेलने के लिए दिए हैं वह कीमती पत्थर अलेक्जेन्ड्राइट है। जो कृत्रिम रोशनी में रंग बदलता है। धीरे,धीरे इस क्षेत्र में दूसरे गांव के खेतों में भी यह पत्थर निकलने लगा। बात गांव से बाहर शहर तक पहुंची तो जौहरी आने लगे। जौहरी बच्चों को चाकलेट,बिस्कुट देकर पत्थर ले लेते थे। फिर कुछ रूपए दिए जाने लगे। धीरे,धीरे गांव वालों को भी यह बात समझ में आने लगी कि पत्थर असाधारण नहीं है। धीरे,धीरे इस पत्थर की कीमत मिलने लगी।