Sunday, October 24, 2021

कांग्रेसियों के बीच छिड़ी है जंग

      









कांग्रेस की हर शाख पर कालिदास बैठे हुए हैं। यही वजह है कि कांग्रेस की सत्ताई शाख बढ़ने की वजाय कांग्रेस के कालिदास उसे काटते जा रहे हैं। जिन राज्यों में कांग्रेस की सत्ता है भी,उन राज्यों में अपने अधिकारों और राजनीतिक लाभ के लिए कांग्रेसियों में घमासन मचा हुआ है।    
 0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
                 छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार केे आधे सफर के बाद कांग्रेसी आपस में ही विरोधाभास की छवि पेश कर रहे हैं। इसकी वजह है ढाई साल बाद मुख्यमंत्री कौन? कांग्रेसी दो खेमे में बंट गए हैं। एक गुट चाहता है, कि भूपेश बघेल ही मुख्यमंत्री रहें और दूसरे गुट की मंशा है कि हाई कमान अपने वायदे के मुताबिक अब टी.एस.सिंह देव ‘बाबा’को राज्य का नया मुख्यमंत्री घोषित कर दे। कांग्रेस और कांग्रेसी दोनों दुविधा में हैं। मुख्यमंत्री के खेला में जिन कांग्रेसियों के बीच 63 का सियासी रिश्ता था, वो अब 36 में तब्दील हो रहा है। 
अंदरूनी लड़ाई में चार माह का वक्त जाया हो गया। जबकि सरकार को उन मोर्चे पर लड़ना चाहिए,जो विकास के रास्ते में रुकावट बन रहे हैं। अभी तक कांग्रेस के अंदर आल इज वेल की स्थिति थी। लेकिन जून माह से नये मुख्यमंत्री की सुगबुगाहट के साथ ही दिल्ली तक की दौड़ शुरू हो गई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके समर्थक स्वास्थ्य मंत्री टी.एस सिंह देव को बायें करने की सियासी गोटियाँ बिछाते आए हैं। जैसा कि विधायक बृहस्पती ने कुछ दिनों पूर्व यह कह कर सनसनी फैला दी थी कि टी.एस सिंह देव उन पर जान लेवा हमला कराए। इस आरोप से टी.एस सिंहदेव क्षुब्ध होकर कहा,जब तक उनके खिलाफ लगे आरोप के दाग नहीं मिट जाते,वो विधान सभा में नहीं आयेंगे।  इसके बाद से कांग्रेस के अंदर सियासी द्वंद का तंबुरावादन शुरू हो गया। अब गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने भी कह दिया,कि एक बार जो मुख्यमंत्री बन जाता है,वह अंत तक रहता है। यू.पी. में लखीमपुर कांड में भूपेश बघेल का प्रियंका गांधी के साथ खड़े रहना और मृतक के परिजनों के परवारों को 50-50 लाख रुपए देने की घोंषणा करके अपने विरोधियों को संकेत दे दिये हैं,कि वे दस जनपथ के साथ हैं।  
मुख्य मंत्री भूपेश बघेल के समर्थन में दो दफा दर्जनों विधायक दिल्ली हो आए हैं। कांग्रेस हाई कमान किसी से भी नहीं मिला। वहीं टी.एस सिंह देव को अब भी भरोसा है,कि कांग्रेस हाईकमान सियासी समझौते के मुताबिक उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप देगा। मुख्यमंत्री को लेकर सियासी उठापटक के बीच कांग्रेस के अंदर आस्तीन खींचने की सियासत का शो शुरू हो गया है। विधायक बृहस्पती के नेतृत्व में प्रदेश के दर्जन भर कांग्रेसी विधायक शिक्षा मंत्री प्रेम सिंह टेकाम के खिलाफ मोर्चा खोल दिये हैं। विधायकों का आरोप है, कि शिक्षा मंत्री का स्टाफ ट्रांसफर और पोस्टिंग का धंधा चला रहे हैं। दबाव के बाद जशपुर के डीईओ. एस. एन. पंडा को निलंबित कर दिया गया है। दरअसल प्रेम सिंह टेकाम स्वास्थ्य मंत्री के समर्थक हैं। दूसरा गुट पूरी कोशिश में है कि प्रेम सिंह को मंत्री पद से हटा दिया जाए।
दो सौ कांग्रेसियों का इस्तीफा
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के कोपरा पंचायत के चार जिला महामंत्री दो ब्लॉक महामंत्री समेत 200 कार्यकर्ताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इस मामले पर जिला अध्यक्ष भाव सिंह साहू ने कहा,इस मामले में भाजपा और आरएसएस का षड्यंत्र है। राजिम के कांग्रेस विधायक अमितेश शुक्ल पर आरोप है,कि पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार करने वाली कोपरा पंचायत की महिला सरपंच डाली साहू का साथ विधायक दे रहे हैं। क्यों कि विधायक पर पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। वहीं राजिम के पूर्व विधायक संतोष उपाध्याय ने कांग्रेस जिलाध्यक्ष भावसिंह साहू को अपरिपक्व बताते हुए उन्हें विधायक से स्थिति स्पष्ट करवाने की सलाह दी है। ग्रामीणों का आरोप है कि सरपंच डाली साहू ने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया है। गौरतलब है कि कोपरा जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है। इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। बड़ी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का इस्तीफा देना भूपेश बघेल के लिए चुनौती है।
बैठक में भूपेश को बुलावा नहीं
प्रदेश कांग्रेस की बैठक राजीव भवन में थी,लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को नहीं बुलाया गया। बैठक में वे डेढ़ घंटे बाद पहंुचे। नाराज होकर कहा,मुझे जब बुलाया ही नहीं जायेगा तो पता कैसे चलेगा कि कौन नाराज है। बैठक में प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पी.एल पुनिया भी थे। बैठक में कार्यकत्र्ताओं की शिकायत थी, कि पदाधिकारी और सरकार के मंत्री,अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते। एक पदाधिकारी ने यहांँ तक कह दिया कि हमें तो आप तक पहुंचने के लिए कोई जरिया ही नहीं है। एक पदाधिकारी ने ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री की चर्चा से जनता में कांग्रेस की इमेज खराब होने की बात की। इस पर मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई। बैठक से उनके बाहर निकलने पर मीडिया के सवाल पर उन्होंने कहा,इसका जवाब प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी देंगे। कांग्रेस विधायकों का मंत्रियों के खिलाफ बयान दिये जाने और बार-बार दिल्ली जाने पर संगठन ने इनके खिलाफ कार्रवाई से इंकार कर दिया है। क्यों कि संगठन भी समझ रहा हैं कि कार्रवाई किये जाने से कांग्रेस कें अंदर की लड़ाई सड़क पर आ जायेगी।
नया मुख्यमंत्री मिला तो..
सियासी सवाल ये है कि छत्तीसगढ़ को नया मुख्यमंत्री मिलने पर कांग्रेस के अंदर क्या-क्या हो सकता है? क्या भूपेश बघेल के समर्थित विधायक कांग्रेस से इस्तीफा दे देंगे? भूपेश बघेल स्वयं इस्तीफा दे देंगे? संगठन और निगम मंडल में भूपेश के समर्थित लोग क्या अपने-अपने पद से इस्तीफा देंगे। टी.एस सिंह देव संगठन से लेकर विभिन्न आयोग में क्या अपने लोगों को जगह देंगे? चर्चा है कि जिस तरह टी.एस सिंह देव को मुख्यमंत्री सत्ताई ताकत से उन्हें बायें करते गये हैं,वही तरीका टी.एस सिंह देव भी भूपेश बघेल के साथ कर सकते हैं? सवाल ये है कि ऐसा होने पर क्या कांग्रेस राज्य में बीजेपी को शिकस्त दे पाएगी? क्या हाई कमान ओबीसी की जगह सवर्ण को मुख्यमंत्री की कमान देकर श्यामा,वोरा और अर्जुन सिंह के दौर की सियासत को दोहराएगी? ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब राज्य की कांग्रेस भी नहीं जानती।
कांग्रेस फंस गई..
प्ंांजाब में मुख्यमंत्री की कुर्सी से कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने में नवजोत सिद्धू ने हाई वोल्टेज ड्रामा कर पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। सिद्धू को यकीन था, कांग्रेस हाईकमान उन्हें मुख्यमंत्री बना देगा। लेकिन दांव उल्टा पड़ गया। चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद सिद्धू ने 28 सितम्बर को एक और गेम खेला। पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा ट्वीट करके,कांग्रेस की मुश्किले बढ़ाई। उनके दोे समर्थक कैबिनेट मंत्री रजिया सुल्तान और परगट सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सिद्धू नाराज थे, कि मुख्यमंत्री ने मंत्रिमंडल में विवादास्पद विधायक और शराब कारोबारी राणा गुरजीत सिंह को क्यों शामिल किया। पंजाब का मामला अभी शांत हो गया है,कहना मुश्किल है। पंजाब में फरवरी 2022 को चुनाव है। पंजाब में जिस तरह ‘पंजा’ लड़ाने का खेल चल रहा है,उससे जाहिर है कि कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब के सत्ताई जहाज के कैप्टन को हटाकर कांग्रेसियों को दुविधा में डाल दिया है। सवाल ये है, कि सिद्धू कब तक कांग्रेस में रहंेगे? कैप्टन कब तक चुप रहेंगे? क्या वो चुनाव मंे कांग्रेस का साथ देंगे? क्या चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब में कांग्रेस को जीता लेंगे? क्या कांग्रेस सिद्धू को आगे करके चुनाव लड़ेगी? या फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनाव से पहले कोई पार्टी बनायेंगे? पंजाब कांग्रेस में कालिदास कौन है,विपक्ष बखूबी जानता है। मगर कांग्रेस हाईकमान चुप है। बहरहाल कांग्रेस के अंदर जो सियासी द्वंद मचा हुआ है,उसका हल हाईकमान को ढूंढना होगा।
 सिद्धू और चन्नी में खटास
सीएम चन्नी और सिद्धू के बीच खटास बढ़ती जा रही है। सिद्धू लगातार उनकी सरकार पर हमले कर रहे हैं। कभी डीजीपी और एडवोकेट जनरल की नियुक्ति के बहाने तो कभी हाईकमान के एजेंडे के बहाने। माना जा रहा है कि इसी के चलते चन्नी की कैप्टन से मुलाकात की जमीन तैयार हुई। कांग्रेस को उम्मीद थी कि कैप्टन अमरिंदर को हटा देने से पंजाब में सब ठीक हो जाएगा। पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि पंजाब चुनाव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इससे चन्नी सहित अनेक लोगों के कान खड़े हो गए। पंजाब में नई कैबिनेट के शपथ लेने के बाद अब पार्टी हाईकमान का पूरा फोकस साढ़े चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। चुनाव से पहले सिद्धू को संगठन मजबूत करने की हिदायतें दी जा सकती हैं।
कांग्रेस को अनाथ कर दिया
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के हाथ से सत्ता जाने के पीछे कांग्रेसी दबी जुबान से कमनाथ और दिग्विजय सिंह को दोषी ठहरा रहे हैं। इन दोनों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस की सत्ताई आभा से दूर रखने जो जाल बुना, उसमें कांग्रेस सरकार फंस कर धड़ाम हो गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया को न प्रदेश अध्यक्ष और न ही राज्य सभा भेजने के लिए दोनों नेता तैयार थे। इन्ही की वजह से वो अपनी गुना सीट हार गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी से हाथ मिलाकर कांग्रेस का पंजा मरोड़ दिए। आज प्रदेश में कांग्रेस के 95 विधायक हैं,लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की हलचल शून्य है। कमलनाथ की वजह से अरूण यादव नाराज है। खंडवा लोकसभा सीट से वे चुनाव लड़ना चाहते थे। टिकट नहीं मिलने पर उनके अंदर का विरोध छलक पड़ा,फसल मैं तैयार करता हूूँ और काटता कोई और है।’’ विंध्य क्षेत्र से यदि कांग्रेस को सीट मिलती तो कांग्रेस की सरकार न जाती,ऐसा कहकर कमलनाथ ने अजय सिंह राहुल को नाराज कर दिये हैं।
रीवा जिले का प्रभारी राकेश चैधरी को बना देने पर राहुल के नाराज होने पर राजा पटेरिया को बनाया गया। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के घर में राहुल का डीनर करना और उनके बर्थ डे पर कैलाश विजयवर्गीय का जाकर उन्हें बुके देने के बाद यह समझा जाने लगा कि राहुल किसी भी दिन बीजेपी में जा सकते हैं। प्रदेश में एक लोकसभा और तीन विधान सभा के लिए उपचुनाव होने जा रहे हैं। इस चुनाव के परिणाम स्पष्ट करंेगे कि कांग्रेस कितनी सक्रिय है और कमलनाथ को कितना पसंद किया जा रहा है। वैसे प्रदेश मंे कांग्रेस सत्ता जाने के बाद भी कई गुटों में बंटी हुई है।
राजस्थान में पंजाब सा झगड़ा
राजस्थान में कांग्रेस के अंदर पायलट और गहलोत खेमे में 2018 से लड़ाई चल रही है। पायलट खेमा बार-बार मुख्यमंत्री बदलने की मांग करता आया है। पिछले दिनों अशोक गहलोत के ओ.एस.डी लोकेश शर्मा ने एक ट्वीट किया था। जिसे पंजाब की राजनीतिक घटनाक्रम से जोड़ कर देखा गया था। गहलोत के ओएसडी के ट्वीट पर सचिन पायलट के कई समर्थकों ने भी प्रतिक्रिया देते हुए हमला बोला। सतपाल सिंह नाम के एक पायलट समर्थक ने कमेंट में लिखा राजस्थान में बड़े फेरबदल की जरूरत है और आलाकमान करेगा। आप के नेताजी गहलोत के नेतृत्व में हम चुनाव नहीं जीत सकते हैं, आपको भी मालूम है। गहलोत सरकार ने वादा किया था कि किसानों का सम्पूर्ण कर्जा माफ करने और युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देंगे। सब उल्टा हो रहा है। भ्रष्टाचार से लोग परेशान हैं।  
मौजूदा पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से विधायक और नेता नाराज हैं। एक गुट चाहता है,सचिन पायलट को फिर अध्यक्ष बना दिया जाए। डोटासरा राज्य सरकार में शिक्षामंत्री होने के साथ ही सी.एम के खेमे के हैं। वहीं कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रघुवीर मीणा और राज्य के कृषि मंत्री लालचंद कटारिया के नाम की भी चर्चा है।   
गहलोत के समर्थक आकोदिया का दावा है कि सचिन पायलट के सारे विधायक गहलोत के पाले मे आ गए हैं। 2018 में उनके गुट के 21 विधायक जीतकर आए थे। अब पायलट के पास मुश्किल से सात-आठ विधायक होंगे। मंत्रियों में भी आपसी खींचतान है। गत तीन जून 2021 को कैबिनेट बैठक के दौरान शांति धारीवाल और गोविंद डोटासरा आपस मे भिड़ गए। शांति धारीवाल ने डोटासरा से यहां तक कह दिया कि जो बिगाड़ना है बिगाड़ लेना मैंने बहुत अध्यक्ष देखे हैं।  
बहरहाल पिछले पचास वर्षो से कांग्रेस तमिलनाडु की सत्ता से बाहर है। 42 वर्षो से पश्चिम बंगाल की। 30 वर्षो से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मुख्यमंत्री नहंी है। 29 वर्षो से वह बिहार में और 24 वर्षो से गुजरात की सत्ता से बाहर है 19 वर्षो से ओड़िसा में कांग्रेस की सरकार बनी नहीं। 15 वर्षो से मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं है। छत्तीसगढ़ में 15 वर्षो बाद उसकी सरकार बनी। महाराष्ट्र और असम उसका गढ़ माना जाता था,वो भी हाथ से निकल गया है। इन सबकी वजह है कांग्रेसियों में 36 का रिश्ता होना।
 
   

 

आदिवासियों पर नजरे इनायत

           




  
बरसों से उपक्षित आदिवासी इस समय राजनीति के केन्द्र में है। इसलिए कि विधान सभा की 47 और लोकसभा की 6 सीटें आरक्षित हैं। केन्द्र सरकार आदिवासियों को रिझाने दो सौ करोड़ रुपए से जनजातीय नायकों की स्मृतियांँ संजोने संग्राहलय बनायेगी। कांग्रेस आदिवासियों में अपना जनाधार बचाने के लिए जूझ रही है, तो भाजपा उसे झपटने के लिए जाल बुन रही है।
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
            जबलपुर में 18 सितम्बर को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान किया कि केन्द्र सरकार ने आदिवासी नेताओं के सम्मान में देश भर में 200 करोड़ रुपए की लागत से नौ संग्राहलय बनवायेगी,जिनमें एक मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में होगा। यह संग्रहालय शंकर और रघुनाथ शाह पर केन्द्रित होगा। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वी.डी.शर्मा कहते हंैं,हमारी सरकार आदिवासियों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है। उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना चाहते हैं। हमारी सरकार आदिवासियों के नायकों के इतिहास से सबको परिचति कराने के लिए संग्राहलय बनाने कदम उठाया है।’’ 
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह अपनी इस घोंषिणा के जरिए मध्यप्रदेश ही नहीं, देश भर के आदिवासियों को रिझाना चाहते हैं। क्यों कि मध्यप्रदेश में करीब दो करोड़ जनजातीय आबादी है। यानी राज्य की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीबन 21 फीसदी है। राजनीतिक नजरिये से देखें तो प्रदेश की 230 विधान सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है। वहीं लोकसभा की 29 सीटों में छह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है।
दरअसल 2013 के चुनाव में बीजेपी को 47 सीट में 30 सीटें मिली थीा। और उसकी सरकार बनी थी। लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति के लोगों को विश्वास दिलाया, कि उनका हित सिर्फ कांग्रेस सरकार में ही है। और कांग्रेस को 47 में 30 सीटें मिलने से बाजी पलट गई। कांग्रेस की सरकार बन गई। यह अलग बात है कि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की सियासी लड़ाई में कांग्रेस की सरकार धड़ाम हो गई। शिवराज सिंह पुनः मुख्यमंत्री बन गए। भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखकर  राष्ट्रीय नेतृत्व ने आदिवासियों को साधने के लिए घोंषणा की,ताकि आदिवासी वोटर छिटकें नहीं,और बीजेपी को मिलने वाली सीटों का नुकसान न हो।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने एस.टी वोटरों को रिझाने की दिशा में राज्य में पेसा पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार कानून 1996  लागू करने की घोषणा की। राज्य के आदिवासी बहुल 89 विकासखंडों के करीब 24 लाख परिवार जहाँं उचित मूल्य की दुकानें नहीं हैं,उन्हें साप्ताहिक हाटों से राशन उपलब्ध कराया जायेगा। स्थानीय लोगों से गाड़ियाँं 26000 रुपये प्रति माह की दर पर किराये पर ली जाएंगी। साथ ही छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम राजा शंकरशाह के नाम पर रखा जाएगा। बिरसा मुंडा जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जायेगा। यह घोंषणा पार्टी के नफे नुकसान को ध्यान मे ंरखकर किया गया है।  
प्रदेश में एस.टी की तीन सीटों पर हो रहे उपचुनाव के मद्देनजर ऐसे मुद्दे अधिक मायने रखते हैं। सरकार आदिवासियों को लुभाने ऐसी घोंषणा की है। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिह चैहान ने अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभाओं को अधिक स्वायतता देने के लिए एक नई पहल की है। अब आदिवासी गैर लकड़ी वन उपज से आय का एक प्रतिशत अपने पास रख सकेंगे साथ ही छोटे मोटे विवाद का निपटारा खुद ही कर सकेंगे। अनुसूचित क्षेत्रों तक पंचायत का विस्तार सरकार करना चाहती है। गत फरवरी में राज्य सरकार ने राज्य के आदिवासी संस्थान,आदिम जाति कल्याण विभाग,पंचायत एंव ग्रामीण कल्याण विभाग और वन विभाग के सदस्यों की एक कमेटी गठित की है। ये सभी अनुसूचित क्षेत्र में रहने वालों के हितों का ध्यान रखेंगे।
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कहते हैं, शिवराज सिंह चैहान घोंषणा करने में माहिर हैं। अपने 16 साल के कार्यकाल में 16 हजार से भी अधिक घोंषणाएं कर चुके हैं। जमीन पर उनकी घोंषणाएं दिखती नहीं। प्रदेश की जनता को घोंषणा नहीं काम चाहिए। आदिवासियों का हित हो हम भी चाहते हैं,लेकिन मुझे नहीं लगता कि उनकी यह घोंषणा भी पूरी हो सकेगी।’’
सूत्रों का कहना है,राज्य की नौकरशाही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की इस घोंषणा के पक्ष में नहीं है। क्यों कि राज्य के खजाने पर सीधे बोझ पड़ेगा। राज्य मंें करीब 12000- 15000 करोड़ रुपए की गैर लकड़ी वनोपज होती है। गैर लकड़ी वनोपज में तेंदूपत्ता भी शामिल है। यदि इसे ग्राम सभा के हवाले कर दिया जायेगा तो सरकार को सीधे भारी राजस्व घाटा होगा। फिर सियासी सरंक्षण देना भी कठिन हो जाएगा। हर बरस सरकार वेतन और बोनस देती है,वो कहां से लाएगी। इस दिशा में कुछ भी नहीं सोचा गया है।   
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में पेसा कानून का पालन पूरी तरह नहीं किया जाता है। भूमि अधिग्रहण,जल निकायों से संबंधित प्रबंधन लागू हैं। लेकिन वन विभाग के कानून की वजह से टकराव होने पर पेसा कानून कमजोर पड़ जाता है। यानी मध्यप्रदेश में पेसा कानून को अधिक मजबूत बनाने के नियम बनाने हैं। ताकि पेसा कानून की खिलाफत करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिह राहुल कहते हैं,‘‘प्रदेश में बीजेपी की सरकार 15 सालों तक रही फिर भी पेसा कानून लागू क्यों नहीं हुआ,जनता को बताना चाहिए। केवल घोंषणाओं से कुछ नहीं होता।’’
दरअसल 2018 के विधान सभा चुनाव में आदिवासी क्षेत्रों में बीजेपी का जनाधार खिसक गया था। आदिवासी क्षेत्रों में जनाधार वापस पाने के लिए बीजेपी का आदिवासियों के प्रति मोह जाग गया है। जय आदिवासी युवा शक्ति (जेएवाइएस) और पुनरूत्थान वादी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी(जीजीपी) जैसी आदिवासी इकाइयांें की वजह से बीजेपी को डर है कि वह अपनी राजनीतिक जमीन खो देगी। क्यों कि जेएवाइएस पश्चिमी मध्यप्रदेश में एक शक्तिशाली राजनीतिक पार्टी के रूप में अपनी जमीन तैयार की है। बीजेपी की नजर पूर्वी मध्यप्रदेश और महाकौशल में अपनी आदिवासी राजनीतिक जमीन को वापस पाना चाहती है। बीजेपी की नजर में जेएवाइएस कांग्रेस की टीम है। जेएवाइएस के सदस्य डाॅ हीरालाल अलावा ने कांग्रेस की टिकट पर 2018 के चुनाव में धार जिले के मनावर सीट जीते थे। वहीं कांग्रेस जीजीपी को बीजेपी की बी टीम मानती है।
जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन के नेता हीरालाल अलावा ने कहा,वोटों का खिसकना 15 साल के बीजेपी के लंबे शासन के खिलाफ आदिवासी मतदाताओं के गुस्से को दिखाता है। जिसने आदिवासियों को सिर्फ वोटों के लिए दबाया और शोषण किया। इस सरकार ने व्यापारियों को उनकी वन भूमि बेच दी।  
गौरतलब है कि 15-20 साल पहले की तुलना में आदिवासी मतदाता अब अपने अधिकारों को लेकर अधिक जागरूक हैं। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठन 16 साल पहले आदिवासियों को उनकी पहचान दिलाने किया गया था। ये पार्टी गोंड मतदाताओं के बीच काफी प्रभावशाली है। पिछले विधानसभा चुनावों में मालवा क्षेत्र में भील आदिवासी नेतृत्व का उदय हुआ। जय आदिवासी युवा शक्ति जेएवाईएस का गठन हुआ। जीजीपी और जेएवाईएस के अस्तित्व में आने से पहले पारंपरिक पार्टियाँ मौजूद थीं। हाल के वर्षों में आदिवासी लोगों ने नीतिगत मतदान के विपरीत सामान्य तौर पर सामूहिक रूप से मतदान किया।
मध्य प्रदेश की कुल 29 संसदीय सीटों में से आदिवासी समूह शहडोल,मंडला, धार,रतलाम, खरगोन और बेतूल सहित कम से कम छह सीटों पर बेहद प्रभाव डालते हैं, जो अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। इन सीटों के अलावा वे कई अन्य सीटों जैसे, बालाघाट, छिंदवाड़ा और खंडवा जैसी सीटों पर भी परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। जीजीपी के अमन सिंह पोर्ते कहते हैं,लोग दिन प्रति दिन जागरुक होते जा रहे हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हमारा आंदोलन रंग ला रहा है।’’
बहरहाल पिछले कुछ माह से कांग्रेस प्रदेश में आदिवासियों पर हो रहे हमलों का मुद्दा उठाती रही है। नीमच में एक आदिवासी को आठ लोगों ने मिलकर मारा, फिर गाड़ी में बांधकर उसे खींचा। जिससे उसकी मौत हो गई। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2020 में 2401 मामले दर्ज हुए, जबकि 2019 में 1922 मामले दर्ज हुए। सच यह है कि राजनीतिक दलों को आदिवासियों के कल्याण और हितों की चिंता है,तो चुनावी नफा-नुकसान को नजर अंदाज करके आगे आना चाहिए।