सिलगेर कांड से आदिवासी और नक्सली दोनों नाराज हैं। और इसका फायदा विपक्ष उठाना चाहता है। चूंकि बस्तर में धर्मातरण जोरों पर है। ऐसे में संघ के अनुकूल नंेतृत्व मिलने पर वह बीजेपी के लिए संगठन को सक्रिय कर सकता। जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। वैसे बीजेपी की एंटी इनकमबैसी के चलते कांग्रेस की सरकार बनी थी। सवाल यह है कि बस्तर का नराज आदिवासी क्या दोबारा कांग्रेस को पूरी बारह सीट देगा?
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
बस्तर में अभी तक अर्थशास्त्र का गठबंधन राजनीति की दिशा तय करता आया है। लेकिन कोरोना की वजह से उद्योग धंधे बंद होने की वजह से नक्सलियों के आर्थिक स्त्रोत बंद हो गए हैं। इस वजह से नक्सली कमजोर हो गए हैं। कोई नेतृत्व नहीं होने की वजह से नक्सली अब नई राजनीति पर उतारू हो गए हैं। सरकार को घेरने की राजनीति शुरू कर दिये हैं। वैसे माओवादियों के एजेंडे में न तो कांग्रेस है और न ही गैर कांग्रेसी सरकारें। उनके एजेंडे में पूरा छत्तीसगढ़ है।
सिलगेर कांड की आड़ में नक्सलियों ने आदिवासियों को आगे करके भूपेश सरकार को सकते में डाल में दिया हैं। कांग्रेस नहीं चाहती,कि आदिवासी उनसे छिटक जायें। आदिवासियों को रिझाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नेे आबकारी और उद्योग मंत्री कवासी लखमा को बस्तर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर और कोण्डागांव का प्रभारी मंत्री बना दिये हैं। लखमा इसी क्षेत्र में सुकमा जिले के कोंटा से विधायक हैं। सुकमा का प्रभार पीएचई मंत्री गुरु रुद्र कुमार को दिया गया है। जबकि उत्तर बस्तर यानी कांकेर का प्रभारी महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेंडिया के जिम्मे होगा। इससे पहले आदिवासी विकास मंत्री डॉ. प्रेम साय सिंह बस्तर के प्रभारी थे। कांकेर,नारायणपुर और कोण्डागांव पीएचई मंत्री गुरु रुद्र कुमार के प्रभार में था। वहीं बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिले के प्रभारी राजस्व मंत्री जय सिंह अग्रवाल को बनाया गया था। चर्चा है कि यह बदलाव बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों में सरकार और कांग्रेस के प्रति बढ़ती नाराजगी को देखते हुए लिया गया है।
कांग्रेस को लगता है कि आदिवासी नेता के रूप में कवासी लखमा कांग्रेस की खाली जगह को भर सकते हैं। कवासी लखमा ऐसे आदिवासी नेता हैं,जो आदिवासियों के बीच लोकप्रिय हैं। बीजेपी को बलीराम कश्यप के निधन के बाद कोई नेता नहीं मिला जो बलीराम कश्यप की जगह ले सके। झीरम कांड मंे कांग्रेस की बड़े नेताओं की लीडरी ही खत्म हो गई थी।
बस्तर में नक्सलियों के कमजोर होने से राजनीति भी शून्य हो गई है। लेकिन सिलगेर कांड से एक बार फिर बस्तर सुर्खियों में है। चूंंिक कांग्रेस अपने दम पर बस्तर की बारह सीट नहीं पाई है। बीजेपी के पन्द्रह साल से सत्ता में रहने से उसके एंटी इनकमबैसी का लाभ कांग्रेस को मिला। संघ डाॅ रमन सिंह से नाराज चल रहा था। उसने हाथ खींच लिया। संगठनात्मक ढांचा कमजोर हो गया। चंूकि डाॅ रमन सिंह बार-बार दोहराते थे, कि उनकी सरकार बनी तो 2022 तक नक्सलवाद खत्म कर देंगे। नक्सलियों को भी लगा डाॅ रमन सिंह की सरकार आई तो उनका वजूद खतरे में पड़ जायेगा। राजीव भवन में कांग्रेस नेता राजबब्बर का बयान नक्सलियों पर जादू कर दिया। नक्सली क्रांतिकारी हैं। वो क्रांति करने निकले हैं,उन्हें कोई रोके नहीं। बस्तर की सभी सीटें कांग्रेस के हाथ में सौंप दी।
नक्सली जैसा चाह रहे थे, वैसा कांग्रेस की सरकार में हुआ नहीं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आदिवासियो को रिझाने के लिए कहा, कि सरकार आदिवासियों को पट्टा देना चाहती है,ेलेकिन नक्सली नहीं चाहते कि ऐसा हो। इस पर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा,सरकार बताये कितने आदिवासियों को सरकारा पट्ट देना चाहती है। नक्सलियों की आड़ में सरकार आदिवासियों के हितों की अनदेखी न करे।’’
मुख्य मंत्री के बयान और सिलगेर कांड ने आदिवासियों और नक्सलियों दोनों को नाराज कर दिया है। अब सर्व समाज के अध्यक्ष अरविंद नेताम ने कहा,कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों का भरोसा खो दिया है। जब तक सिलगेर मामले का समाधान नहीं निकलेगा, आंदोलन जारी रहेगा। सिलगेर कांड के विरोध में आंदोलन प्रदेश में जितना लंबा खिंचेगा कांग्रेस की छवि और राजनीतिक शाख पर उतना ही बट्टा लगेगा। अन्य संभाग में भी कांग्रेस को सियासी नुकसान का अंदेशा बढ़ेगा।
धर्मांतरण के खतरे
बस्तर में धर्मांतरण जोरो से चल रहा है। ईसाई मिशनरी पूरी तरह सक्रिय है। संघ के अनुकूल लीडर मिलने पर वह धर्मांतरण के खिलाफ खड़ा होकर बीजेपी को खड़ा कर सकता है। इससे बस्तर में कांग्रेस को बहुत बड़ा राजनीतिक नुकसान होने का अंदेशा है। धर्मांतरण के खिलाफ संघ के खड़े होने पर होने वाले सियासी क्षति से बचने कांग्रेस ने आदिवासी नेत्री सोनी सोरी को अपने पक्ष में करने कवासी लखमा को उसके घर भेज दिया। प्रभारी मंत्री कवासी लखमा देशी अंदाज में सभी के बीच बैठकर खाना खाया और सल्फी भी पी। ऐसा इसलिए किया गया ताकि आदिवासियों को लगे सरकार उनके साथ है। और सर्व समाज आंदोलन रद्द कर दे।
कांग्रेस में नहीं जाऊँगीः सोनी
सियासी गलियारों में चर्चा है कि सोनी सोरी को कांग्रेस में शामिल करने के लिए कवासी को उनके घर भेजा गया। कांग्रेस सोनी सोरी पर विधान सभा चुनाव में दांव लगाना चाहती है। वहीं स्थानीय कांग्रेसियों की चिंता बढ़ा गई है। हालांकि सोनी सोरी ने इस दावत को राजनीति से परे, पारिवारिक बताया।
बस्तरियेे पछता रहेः शर्मा
बस्तरिये हमारे हैं का दावा कांग्रेस कर रही है,वहीं बीेजेपी के बस्तर प्रभारी शिवरतन शर्मा कहते हैं,जनता कांग्रेस से त्रस्त हो गई है। बस्तर क्षेत्र में एक भी विकास कार्य नहीं हुए हैं। बस्तर सांसद दीपक बैज ने अपनी नाक कटवा ली है। लोगों को मूलभूत सुविधा दिला पाए। 2023 के चुनाव में बीजेपी बस्तर संभाग की सभी सीटें जीतेगी। बस्तरियों को पछतावा है, कि वो कांग्रेस को चुनकर गलत किये।
बस्तरियों की राय है,सोनी सोरी के घर में कवासी जमीन पर बैठकर पत्तल में भोजन करके आदिवासियों को खुश नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री बताएं कि उनकी पुलिस कब तक आदिवसियों को नक्सली कहकर गोली मारती रहेगी। सिलगेर कांड के मामले को यदि नजर अंदाज कर देंगे,तो आगे चलकर बस्तर में और कई सिलगेर कांड होंगे। क्यों कि अब तक बस्तर में 36 कैंप पेसा कानून के खिलाफ बने हैं। नौ कैंप और बनना है। यानी पुलिस की गोली में फिर किसी आदिवासी का नाम लिखा होगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा, आदिवासियों को लेकर सरकार की क्या मंशा है,वो जाहिर करे। आदिवासियो के साथ जमीन पर बैठकर खाने की राजनीति बंद करे।’’
बहरहाल बस्तर की बारह सीट को लेकर सत्ताई रस्साकशी का खेल कब तक चलेगा,बस्तरिये भी नहीं जानते।