Tuesday, July 27, 2021

बस्तरियों को लुभाने रस्साकशी

 
सिलगेर कांड से आदिवासी और नक्सली दोनों नाराज हैं। और इसका फायदा विपक्ष उठाना चाहता है। चूंकि बस्तर में धर्मातरण जोरों पर है। ऐसे में संघ के अनुकूल नंेतृत्व मिलने पर वह बीजेपी के लिए संगठन को सक्रिय कर सकता। जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। वैसे बीजेपी की एंटी इनकमबैसी के चलते कांग्रेस की सरकार बनी थी। सवाल यह है कि बस्तर का नराज आदिवासी क्या दोबारा कांग्रेस को पूरी बारह सीट देगा?


0 रमेश कुमार ‘रिपु’
बस्तर में अभी तक अर्थशास्त्र का गठबंधन राजनीति की दिशा तय करता आया है। लेकिन कोरोना की वजह से उद्योग धंधे बंद होने की वजह से नक्सलियों के आर्थिक स्त्रोत बंद हो गए हैं। इस वजह से नक्सली कमजोर हो गए हैं। कोई नेतृत्व नहीं होने की वजह से  नक्सली अब नई राजनीति पर उतारू हो गए हैं। सरकार को घेरने की राजनीति शुरू कर दिये हैं। वैसे माओवादियों के एजेंडे में न तो कांग्रेस है और न ही गैर कांग्रेसी सरकारें। उनके एजेंडे में पूरा छत्तीसगढ़ है।   
सिलगेर कांड की आड़ में नक्सलियों ने आदिवासियों को आगे करके भूपेश सरकार को सकते में डाल में दिया हैं। कांग्रेस नहीं चाहती,कि आदिवासी उनसे छिटक जायें। आदिवासियों को रिझाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नेे आबकारी और उद्योग मंत्री कवासी लखमा को बस्तर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर और कोण्डागांव का प्रभारी मंत्री बना दिये हैं। लखमा इसी क्षेत्र में सुकमा जिले के कोंटा से विधायक हैं। सुकमा का प्रभार पीएचई मंत्री गुरु रुद्र कुमार को दिया गया है। जबकि उत्तर बस्तर यानी कांकेर का प्रभारी महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेंडिया के जिम्मे होगा। इससे पहले आदिवासी विकास मंत्री डॉ. प्रेम साय सिंह बस्तर के प्रभारी थे। कांकेर,नारायणपुर और कोण्डागांव पीएचई मंत्री गुरु रुद्र कुमार के प्रभार में था। वहीं बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिले के प्रभारी राजस्व मंत्री जय सिंह अग्रवाल को बनाया गया था। चर्चा है कि यह बदलाव बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों में सरकार और कांग्रेस के प्रति बढ़ती नाराजगी को देखते हुए लिया गया है।
कांग्रेस को लगता है कि आदिवासी नेता के रूप में कवासी लखमा कांग्रेस की खाली जगह को भर सकते हैं। कवासी लखमा ऐसे आदिवासी नेता हैं,जो आदिवासियों के बीच लोकप्रिय हैं। बीजेपी को बलीराम कश्यप के निधन के बाद कोई नेता नहीं मिला जो बलीराम कश्यप की जगह ले सके। झीरम कांड मंे कांग्रेस की बड़े नेताओं की लीडरी ही खत्म हो गई थी।
बस्तर में नक्सलियों के कमजोर होने से राजनीति भी शून्य हो गई है। लेकिन सिलगेर कांड से एक बार फिर बस्तर सुर्खियों में है। चूंंिक कांग्रेस अपने दम पर बस्तर की बारह सीट नहीं पाई है। बीजेपी के पन्द्रह साल से सत्ता में रहने से उसके एंटी इनकमबैसी का लाभ कांग्रेस को मिला। संघ डाॅ रमन सिंह से नाराज चल रहा था। उसने हाथ खींच लिया। संगठनात्मक ढांचा कमजोर हो गया। चंूकि डाॅ रमन सिंह बार-बार दोहराते थे, कि उनकी सरकार बनी तो 2022 तक नक्सलवाद खत्म कर देंगे। नक्सलियों को भी लगा डाॅ रमन सिंह की सरकार आई तो उनका वजूद खतरे में पड़ जायेगा। राजीव भवन में कांग्रेस नेता राजबब्बर का बयान नक्सलियों पर जादू कर दिया। नक्सली क्रांतिकारी हैं। वो क्रांति करने निकले हैं,उन्हें कोई रोके नहीं। बस्तर की सभी सीटें कांग्रेस के हाथ में सौंप दी।
नक्सली जैसा चाह रहे थे, वैसा कांग्रेस की सरकार में हुआ नहीं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आदिवासियो को रिझाने के लिए कहा, कि सरकार आदिवासियों को पट्टा देना चाहती है,ेलेकिन नक्सली नहीं चाहते कि ऐसा हो। इस पर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा,सरकार बताये कितने आदिवासियों को सरकारा पट्ट देना चाहती है। नक्सलियों की आड़ में सरकार आदिवासियों के हितों की अनदेखी न करे।’’
मुख्य मंत्री के बयान और सिलगेर कांड ने आदिवासियों और नक्सलियों दोनों को नाराज कर दिया है। अब सर्व समाज के अध्यक्ष अरविंद नेताम ने कहा,कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों का भरोसा खो दिया है। जब तक सिलगेर मामले का समाधान नहीं निकलेगा, आंदोलन जारी रहेगा। सिलगेर कांड के विरोध में आंदोलन प्रदेश में जितना लंबा खिंचेगा कांग्रेस की छवि और राजनीतिक शाख पर उतना ही बट्टा लगेगा। अन्य संभाग में भी कांग्रेस को सियासी नुकसान का अंदेशा बढ़ेगा।  
धर्मांतरण के खतरे
बस्तर में धर्मांतरण जोरो से चल रहा है। ईसाई मिशनरी पूरी तरह सक्रिय है। संघ के अनुकूल लीडर मिलने पर वह धर्मांतरण के खिलाफ खड़ा होकर बीजेपी को खड़ा कर सकता है। इससे बस्तर में कांग्रेस को बहुत बड़ा राजनीतिक नुकसान होने का अंदेशा है। धर्मांतरण के खिलाफ संघ के खड़े होने पर होने वाले सियासी क्षति से बचने कांग्रेस ने आदिवासी नेत्री सोनी सोरी को अपने पक्ष में करने कवासी लखमा को उसके घर भेज दिया। प्रभारी मंत्री कवासी लखमा देशी अंदाज में सभी के बीच बैठकर खाना खाया और सल्फी भी पी। ऐसा इसलिए किया गया ताकि आदिवासियों को लगे सरकार उनके साथ है। और सर्व समाज आंदोलन रद्द कर दे।   
कांग्रेस में नहीं जाऊँगीः सोनी
सियासी गलियारों में चर्चा है कि सोनी सोरी को कांग्रेस में शामिल करने के लिए कवासी को उनके घर भेजा गया। कांग्रेस सोनी सोरी पर विधान सभा चुनाव में दांव लगाना चाहती है। वहीं स्थानीय कांग्रेसियों की चिंता बढ़ा गई है। हालांकि सोनी सोरी ने इस दावत को राजनीति से परे, पारिवारिक बताया।  
बस्तरियेे पछता रहेः शर्मा
बस्तरिये हमारे हैं का दावा कांग्रेस कर रही है,वहीं बीेजेपी के बस्तर प्रभारी शिवरतन शर्मा कहते हैं,जनता कांग्रेस से त्रस्त हो गई है। बस्तर क्षेत्र में एक भी विकास कार्य नहीं हुए हैं। बस्तर सांसद दीपक बैज ने अपनी नाक कटवा ली है। लोगों को मूलभूत सुविधा दिला पाए। 2023 के चुनाव में बीजेपी बस्तर संभाग की सभी सीटें जीतेगी। बस्तरियों को पछतावा है, कि वो कांग्रेस को चुनकर गलत किये।
बस्तरियों की राय है,सोनी सोरी के घर में कवासी जमीन पर बैठकर पत्तल में भोजन करके आदिवासियों को खुश नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री बताएं कि उनकी पुलिस कब तक आदिवसियों को नक्सली कहकर गोली मारती रहेगी। सिलगेर कांड के मामले को यदि नजर अंदाज कर देंगे,तो आगे चलकर बस्तर में और कई सिलगेर कांड होंगे। क्यों कि अब तक बस्तर में 36 कैंप पेसा कानून के खिलाफ बने हैं। नौ कैंप और बनना है। यानी पुलिस की गोली में फिर किसी आदिवासी का नाम लिखा होगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा, आदिवासियों को लेकर सरकार की क्या मंशा है,वो जाहिर करे। आदिवासियो के साथ जमीन पर बैठकर खाने की राजनीति बंद करे।’’
बहरहाल बस्तर की बारह सीट को लेकर सत्ताई रस्साकशी का खेल कब तक चलेगा,बस्तरिये भी नहीं जानते।
 
 
   
 













बस्तर में अब भी अंधा युग

   
नक्सल प्रभावित बस्तर के सिलगेर में आदिवासी अपनी जमीन पर सुरक्षा बलों के बने कैंप का विरोध किया तो उन्हें गोली मार दी गई। मृतकों का नाम नहीं जानने वाली पुलिस ने उन्हें नक्सली बताकर विवाद खड़ा कर दिया। अब सर्व समाज की नाराजगी के चलते विवाद सरकार के गले की फांस बन गया है। प्रदेश भर में सरकार के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी से कांग्रेस को आदिवासी वोट बैंक खिसकने की चिंता हो रही है। 


0 रमेश कुमार ‘रिपु’
              अब भी बस्तर आदिवासियो के लिए अंधा युग है। पेसा कानून के मुताबिक ग्राम सभा की अनुमति के बगैर कैंपों का निर्माण नहीं किया जा सकता। लेकिन पिछले एक बरस में तीस से अधिक सुरक्षा बल के लिए आदिवासियों की जमीन पर कैंप बनाए गए हैं। वहीं कृषि मंत्री रविन्द्र चैबे ने कहा, अभी नौ और सीआरपीएफ के कैंपों के निर्माण होंगे। यानी आदिवासियों की जमीन पर जबरिया कब्जा किए जाएंगे और फिर विवाद होगा। आदिवासी अपनी जमीन पर कैंप बनाए जाने के खिलाफ प्रदर्शन किया तो उन्हें गोली मार दी गई। इतना ही नहीं, पुलिस को मृतकों को नाम पता नहीं होने के बाद, उन्हें नक्सली घोषित कर दी। जिससे मामला गरमा गया है। अब सरकार की सांस फूलने लगी। 28 दिनांे तक चले ग्रामीण आदिवासियों के प्रदर्शन को कुचलने कई बार पुलिस ने लाठी चार्ज किया। सर्व समाज के दखल देने पर सरकार को एहसास हुआ कि ऐसे में बस्तर की 12 सीट जो उनके पास है उसमें नुकसान हो सकता है। वैसे सरकार और सर्व समाज की वार्ता से कोई हल नहीं निकला। 
गौर तलब है कि भूपेश सरकार ने सिलगेर विवाद की जांच के लिए सांसद दीपक बैज की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय कमेटी गठित की। लेकिन कमेटी में बीजेपी और अन्य पार्टी के किसी भी सदस्य को शामिल नहीं किया गया। कमेटी की जांच रिपोर्ट सरकार ने उजागर नहीं की। सरकार की ओर से गोलीकांड के जिम्मेदारों पर कार्रवाई होता न देखकर, बस्तर के अलग-अलग हिस्सों में आंदोलन फिर से शुरू हो गया है।  
सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष सोहन पोटाई की अगुवाई में मुख्यमंत्री निवास पर प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समक्ष नक्सल समस्या और नक्सली बताकर आम आदिवासियों को प्रताड़ित किए जाने का मुद्दा उठाया। सरकार नक्सलियों से बातचीत शुरू करे अथवा उन्हें बातचीत के लिए अधिकृत करे। हम सभी उनके नेताओं से बातचीत करेंगे। पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ नक्सलवाद खत्म हो गया। आंध्र-तेलंगाना में खत्म हो गया,तो छत्तीसगढ़ में यह समस्या खत्म क्यों नहीं हो रही है?
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, उनकी सरकार शांति और विकास के लिए कटिबद्ध है। वे हर उस व्यक्ति से चर्चा करने के लिए तैयार हैं,जो भारत के संविधान में आस्था रखता है।’’ वहीं सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष सोहन पोटाई ने कहा,मुख्यमंत्री के साथ बातचीत के बाद भी कोई हल नहीं निकाला।  ऐसे में हम 19 जुलाई से आंदोलन के फैसले पर कायम हैं। प्रत्येक ब्लॉक में आदिवासी समाज के लोग सड़क पर उतर कर अपनी बात रखेंगे। यह सरकार की आर्थिक नाकाबंदी होगी।  
गौरतलब है कि बीजापुर और सुकमा जिले की सीमा से लगा सिलगेर गाँव में सुरक्षा बल के कैंप बनने का ग्रामीणों ने 12 मई को विरोध करते हुए धरना दिया। ग्रामीणों की मानें तो कैंप के निर्माण के लिए ग्राम सभा का आयोजन नहीं किया गया। पुलिस ने 17 मई को विरोध को कुचलने के लिए लाठी चार्ज किया। इसके बाद बगैर किसी सूचना के गोली मार दी। पुलिस की गोली से चुटवाही निवासी कवासी भगत, गुडेम के सुग्गा मुरली और तिम्मापुर के भीमा उईका की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। एक गर्भवती महिला की बाद में मौत हो गई। दर्जनों लोग घायल हैं। सुरक्षा बलों ने आठ अन्य आदिवासियों को अवैध रूप से अपनी हिरासत में ले लिया था। हालांकि अब इन्हें सुरक्षा घेरा तोड़ा,और कैंप पर हमला करने के आरोप में जेल भेजा जा चुका है।
पुलिस का कहना है कि 17 मई की फायरिंग में मारे गए तीनों लोग माओवादी संगठन से जुड़े हुए थे। सुकमा एस.पी. के एल धु्रव कहते हैं,माओवादियों के बहकावे में आदिवासी किसान सुरक्षाबल के कैंप का विरोध कर रहे हैं। बस्तर के आई.जी पुलिस सुंदरराज पी का कहना है,पुलिस कैंप के कारण माओवादियों का अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है। इसलिए वो गाँव वालों को दबाव डालकर कैंप का विरोध करा रहे हैं।
हालाँकि पुलिस के दावे के उलट गोली कांड की जाँच के लिए पहुँचे समाजिक कार्यकत्र्ता सोनी सोरी,पूर्व विधायक मनीष कुंजाम का दावा है, कि मारे गये सभी तीन लोग और गोली कांड में घायल लगभग दो दर्जन लोगों में से कोई भी माओवादी नहीं था। पुलिस ने अकारण ही गोली चलाई। प्रदर्शनकारी किसान थे। पुलिस की गोली नक्सलियो को ही क्यों लगी? जबकि सभी निहत्थे थे। पुलिस को संयम रखना चाहिए था न कि गोली चलानी थी।  
नक्सलियों को मुआवजा क्यों
सवाल यह है कि मृतकों का नाम पुलिस नहीं जानती फिर कैसे उन्हें नक्सली घोषित कर दी। यदि वे नक्सली थे तो भूपेश सरकार ने 23 मई को दस-दस हजार रुपए मुआवजा क्यों दी? मृतक के परिजनों ने मुआवजा राशि यह कहकर लौटा दिया,कि मृतक नक्सली थे तो फिर आर्थिक मदद क्यों दी जा रही है। अब सुरक्षा बल और भूपेश सरकार शक के दायरे में है। सामाजिक कार्यकत्र्ता सोनी सोरी कहती हैं,घटना के दिन कुछ आदिवासी गायब थे,जिन्हें स्थानीय लोगों के दबाव में सामने लाया गया,ताकि पुलिस बाद में उन्हें नक्सली बताकर एनकाउंटर न कर दे।   
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
छत्तीसगढ़ पीयूसीएल के अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चैहान ने कहा, हम मांग करते हैं कि सुरक्षाबलो ंके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज हो। सुप्रीम कोर्ट ने पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में वर्ष 2014 में यह निर्णय दिया है,कि मुठभेड़ों के मामलों में पीड़ितों की ओर से भी एक काउन्टर एफआईआर पुलिस अर्धसैनिक बलों और दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनिवार्य रूप से दर्ज होनी चाहिए। यह गोलीकांड बस्तर में  ग्रामीणों के विरुद्ध हिंसा और मानवाधिकारों पर सुरक्षा बलों की हमले की वारदातों की कड़ी का एक हिस्सा है। जिसका तुरंत राजनैतिक समाधान ढूंढने की जरूरत है।  
प्रदर्शनकारियांे ने रखी मांग
मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज करें। जांच कमेटी में अनुसूचित और गैर आदिवासी शामिल किए जाएं। सिलगेर से पुलिस कैंप को हटाया जाए। मृतकों की स्मृति में जो स्मारक बनाए गए हैं वे न तोड़े जाएं। गोलीबारी करने वाले जवानों के खिलाफ मामला दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी की जाए। कैंप का प्रस्ताव पास करने वाली ग्राम सभा की जांच हो।
फिर गोली क्यों मारी
प्रदर्शनकारी आदिवासियों का कहना है,यदि सरकार वाकई हमारा विकास चाहती है तो उसे आंगनबाड़ी, स्कूल,अस्पताल, हैंडपंप आदि की सुविधाएं उपलब्ध कराए। सरकार उद्योगपतियों को लाभ पहुचाने के लिए सड़क बनवा रही है। उसकी सुरक्षा के लिए ही पुलिस कैंप स्थापित किए जा रहे हैं। हमें हमारी जमीन से बेदखल करने के लिए कैंप क्यों बनाया गया? गौरतलब है कि सिलगेर पंचायत के तीन गाँवों के अलावा आस-पास के कम से कम 40 गाँवों के लोग केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स सीआरपीएफ की 153वीं बटालियन के कैंप के खिलाफ सड़कों पर  उतरेे। प्रदर्शनकारियों में शामिल अरलमपल्ली गांव के सोडी दुला कहते हैं कैंप हमारे भले के लिए बनाया गया है,तो आदिवासियों को गोली क्यों मारी। सड़के जितनी चैड़ी बनाई जा रही है, आदिवासियों के किस काम की।
बिलासपुर हाईकोर्ट की अधिवक्ता अक्षरा अमित कहती हैं बस्तर में यह रटा-रटाया जवाब है,कि गोली मारो और माओवादी बता दो। माओवादी बता देने के बाद सभ्य समाज की ओर से भी कोई सवाल नहीं पूछा जाता और आदिवासी किसान की मौत को,माओवादी की मौत मान कर चुप्पी साध ली जाती है।
सुकमा में मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रहे प्रभाकर ग्वाल का आरोप है कि सुरक्षा बल अक्सर ही बेकसूर और गरीब आदिवासियों को प्रताड़ित करते हैं। इसके लिए वे उनके विरुद्ध झूठे प्रकरण तक कायम करने से नहीं चूकते। छत्तीसगढ़ की जेलें ऐसे बेकसूर आदिवासियों से भरी पड़ी हैं। सालों से उनके प्रकरणों में कोई प्रगति नहीं हुई है। बहरहाल बस्तर में सुरक्षाबलों की मौजूदगी वहांँ के स्थानीय निवासियों की रक्षा नहीं कर रही। पूर्व के कई मामलों की जांच के लिए आयोग बने पर नतीजा धरातल पर नहीं दिखा।
बहरहाल सिलगेर में सीआरपीएफ कैम्प के विरोध का अनसुलझा विवाद कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। सर्व आदिवासी समाज सिलगेर में हुई गोलीबारी और घटना के बाद सरकार की प्रतिक्रिया से काफी नाराज है। इस समय बस्तर की सभी 12 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है,लेकिन कांगेस को भी लगने लगा है कि यदि आदिवासी समाज नाराज हो गया तो कांग्रेस के लिए चुनाव में नुकसान हो सकता। गौरतलब है कि भाजपा के शासनकाल में सारकेगुड़ा में ऐसा ही हुआ था। पुलिस ने पंडुम त्यौहार मना रहे गांव वालों को मार डाला। बाद में नक्सली बता दिया। जांच में पुलिस वाले दोषी पाए गए लेकिन किसी को सजा नहीं हुई। जिसका सियासी खामियाजा बीजेपी को उठाना पड़ा। सर्व आदिवासी समाज के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बी.एस रावटे ने कहा,सिलगेर कांड पर न्याय नहीं मिलने से भड़का सर्व आदिवासी समाज 19 जुलाई से प्रदेश भर में आंदोलन शुरू करने जा रहा है। प्रदर्शन का पहला चरण 9 अगस्त आदिवासी दिवस तक चलेगा। सरकार ने बात नहीं मानी तो यह आंदोलन लंबा खिंचेगा।
इन दर्दों का कोई मरहम नहीं
बस्तर में सुरक्षाबलों पर आदिवासियों के घर जलाने, बलात्कार और हत्या के आरोप कई बार लगे। जांच आयोग गठित हुए पर दर्द कम नहीं हुए।
0 वर्ष 2012 में 28-29 जून की दरम्यानी रात सारकेगुडा में हुई मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने 17 नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया था। मारे जाने वालों में सात नाबालिग भी शामिल थे। स्थानीय आदिवासियों का आरोप था,कि बीज पंडूम त्योहार मनाने के लिए आयोजित बैठक में सुरक्षाबलों द्वारा अकारण निर्दोष ग्रामीणों की हत्या की गई है।  
0 वर्ष 2013 में 17-18 मई की दरम्यानी रात को एड़समेटा में हुई मुठभेड़ में आठ नक्सली जिसमें तीन नाबालिग भी थे, के मारे जाने का दावा सुरक्षाबल ने किया था। ग्रामीणों के विरोध पर बयान बदलते हुए सुरक्षाबलों द्वारा क्रॉस फायरिंग में इनकी मौत की बात कही। इस घटना की जांँच तीन मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सौपीं। प्रकरण न्यायालय में अभी विचाराधीन है।
0 12 दिसंबर 2017 की रात तिम्मापुर में बने सीआरपीएफ कैंप पर नक्सली हमले का दावा सुरक्षाबलों ने किया था। इस मुठभेड़ में नंदू पुनेम नामक युवक मारा गया। जबकि पुनेम कैंप के जवानों के साथ क्रिकेट खेलता था।
0 सितंबर 2016 में सीआरपीएफ ने कहा बुरगुम के जंगलों में दो छात्रों की मौत नक्सली मुठभेड़ में हुई। जबकि गाँव वालों का अरोप है,कि परिवार में हुई मौत की सूचना देने बारसूर इलाके से आए सोनाकु और बिज्नो नाम के दोनों लड़कों को पुलिस उस वक्त उठा ले गई,जब वे अपने रिश्तेदार की झोपड़ी में सो रहे थे।
 0 जनवरी 2019 गमपुर में हुई एक मुठभेड़ में सुरक्षा बल ने भीमा और सुखमती को नक्सली बताकर मार डाला था।स्थानीय लोगों का आरोप था नाबालिग सुखमती की हत्या के पहले उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था।
सुरक्षाबलों की कार्यप्रणाली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है,कि वर्ष 2012 में सुकमा जिले के ताड़मेटला में 160, तिम्मापुर में 59, और मोरपल्ली में 33 घरों को जला दिया गया था। अक्टूबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत चार्जशीट में सीबीआई ने यह माना कि मोरपल्ली गांव के माड़वी सुला तथा पुलनपाड़ गांव के बड़से भीमा और मनु यादव की हत्या की गई। मोरपल्ली गांव में ताड़मेटला की एक महिला के साथ बलात्कार की पुष्टि भी सीबीआई ने की थी।