Tuesday, June 30, 2020

अध्यक्ष बदलने की सियासत






कांग्रेस की बांह मरोड़ने और बीजेपी को नई ताकत के साथ खड़ा करने के मकसद से विष्णुदेव साय को तीसरी बार अध्यक्ष बनाया गया है। उनके अध्यक्ष बनने से डाॅ रमन सिंह राजनीतिक रूप से और मजबूत हुए। 
  
0 रमेश तिवारी ’’रिपु’’
        छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और बीजेपी की राजनीति में अब तक एक समानता थी। दोनों दलों में नेतृत्व एक ही वर्ग के पास रहा। पहली बार बदलाव हुआ। बीजेपी से नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक हैं, जो ओबीसी से हैं और आदिवासी वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष, विष्णु देव साय को बनाया गया है। वहीं कांगे्रस से पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम हैं,जो अनुसूचित जन जाति वर्ग से आते हैं। बीजेपी के अध्यक्ष इसके पहले विक्रम उसेंडी थे। विधान सभा चुनाव 2023 में है,लेकिन उससे पहले बीजेपी ने अपना अध्यक्ष बदल दिया। ऐसा इसलिए किया ताकि, नए प्रदेश अध्यक्ष को चुनाव की तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल जाए। चूंकि बस्तर की पूरी 12 सीटों पर कंाग्रेस का कब्जा है। बीजेपी आदिवासी कार्ड खेलकर आदिवासियों को अपनी ओर करना चाहती है। वैसे नये प्रदेश अध्यक्ष की सुगबुगाहट तभी हो गई जब शहरी निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में बीजेपी को उम्मीद से कम सफलता मिली। विधान सभा चुनाव के समय सत्ता विरोधी हवा के चलते बीजेपी को केवल 15 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन हैरान करने वाली राजनीति का दृश्य तब देखने को मिला जब10 निगमों में महापौर और सभापति नहीं बन सके। 27 में से 20 जिलों में भाजपा जिला पंचायतों में अध्यक्ष नहीं बना सकी। रायपुर में बहुमत था,बावजूद जिला पंचायत अध्यक्ष के उम्मीदवार को सिर्फ 4 वोट मिले, जबकि सदस्य 9 थे। वहीं संगठन में कार्यकारिणी का गठन नहीं कर पाए।
पार्टी के कार्यकत्र्ताओं के बीच यह चर्चा तेज हुई कि 2023 का चुनाव जीतना है, तो नेतृत्व के लिए नया चेहरा चाहिए। ऐसा व्यक्ति चाहिए, जिसकी पकड़ा सत्ता और संगठन में हो। दुर्ग के सांसद विजय बघेल का नाम बड़ी तेजी से उछला। सोशल मीडिया में उन्हें बाधाई दिया जाने लगा। वे चार लाख वोटों से लोकसभा चुनाव जीते थे। अचानक उनका नाम अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हो गया। अनुसूचित जन जाति मोर्चा के राष्ट्रीय के अध्यक्ष रामविचार नेताम भी प्रदेश अध्यक्ष बननस चाहते थे, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुकाबले के लिए उन्हें फिट नहीं माना गया। वहीं डॉ रमन सिंह से उनकी पटरी नहीं बैठने की वजह से, वे दौड़ से बाहर हो गए। डाॅ रमन सिंह ने संगठन मंत्री सौदान सिंह को विष्णुदेव साय और महेश गागड़ा का नाम सुझाया। साय के नाम पर बीजेपी अध्यक्ष जे.पी नड्डा ने मुहर लगा दी। विष्णु देव साय की नियुक्ति पर बृजमोहन अग्रवाल,प्रेमप्रकाश पांडे और राममविचार नेताम आदि कुछ नेताओं ने आपत्ति की। साय की नियुक्ति पर उनके खिलाफ पार्टी का दूसरा गुट सोशल मीडिया में उनके खिलाफ कई तरह की बातें लिखा। एक कार्यकर्ता ने साय के अध्यक्ष बनने पर मुख्यमंत्री बघेल को बधाई देते हुए लिखा, भाजपा ने आपकी राह आसान कर दी।
रमन और हुए मजबूत
पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह की पहली पसंद विष्णुदेव साय थे। विष्णु देव साय रायगढ़ लोकसभा सीट से चार बार सांसद रहे। मोदी की 2014 में बनी सरकार में, वे केंद्रीय राज्य मंत्री थे। 2006 से 2010 और फिर 2014 में करीब आठ महीने के लिए प्रदेश अध्यक्ष रहे। वे दोनों बार तब अध्यक्ष बने, जब राज्य में भाजपा की सरकार थी। अब पार्टी सत्ता से बाहर है। उनकी नियुक्ति से संगठन में डाॅ रमन सिंह का दबदबा बढ़ गया। राजनीतिक रूप से वे और भी मजबूत हो गए। पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने कहा,‘‘ पंचायत से पार्लियामेंट तक का अनुभव साय के पास है। उनके अनुभव का लाभ पार्टी को मिलेगा। उनके नेतृत्व में राज्य संगठन एक मजबूत विपक्ष के रूप में स्थापित होगा। 2023 के विधान सभा चुनाव की तैयारी में मदद मिलेगी’।
बृजमोहन पिछड़ गए
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक भी रमन सिंह की पसंद हैं। उन्होंने ही कौशिक को छत्तीसगढ़ भाजपा का अध्यक्ष बनवाया था। कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनाने का भी बृजमोहन समर्थकों ने विरोध किया था। नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में बृजमोहन अग्रवाल स्वयं थे। बृजमोहन भाजपा के जमीनी नेता हैं, लेकिन 2000 में भाजपा दफ्तर में मारपीट की घटना और फिर निलंबन से वे पार्टी में पीछे चले गए। अब उन पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मित्रता निभाने का आरोप लग रहा है। 
आदिवासी नेता का विरोध क्यों
छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल क्षेत्र है। इस नजरिये से बीजेपी ने हमेशा आदिवासी नेताओं को तरजीह दी। लेकिन पूर्व मंत्री अजय चन्द्राकर और शिवरतन शर्मा के नेतृत्व में कुछ नेताओं ने आदिवासी नेताओं को ही उपकृत किये जाने के खिलाफ तगड़ी मोर्चाबंदी की। नेताओं का कहना था एनडीए सरकार में विष्णुदेव साय मंत्री थे। वर्तमान में आदिवासी नेेत्री रेणुका सिंह मंत्री हैं। नंदकुमार साय भी राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के मुखिया रहे। संगठन में भी स्व. लखीराम अग्रवाल और धरमलाल कौशिक को छोड़ कर, राज्य बनने के बाद हमेशा आदिवासी नेता को अध्यक्ष बनाया गया। राज्य संगठन में संगठन मंत्री पवन साय भी आदिवासी हैं। पहले रामप्रताप सिंह भी आदिवासी रहे हैं। रामविचार नेताम को राज्य सभा सदस्य बनाया गया। उन्हें अनुसूचित जाति मोर्चा का प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ओबीसी नेताओं की नाराजगी इस बात पर है कि आदिवासी नेताओं को इतना सब कुछ देने के बाद भी विधानसभा चुनाव में बस्तर, सरगुजा में दो सीट नहीं मिल पाई और अब फिर से अध्यक्ष नियुक्ति इसी वर्ग से क्यों? दूसरे वर्ग को भी तरजीह दी जाए।
 बहरहाल नये प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति से कांग्रेस में खलबली है। मरवाही विधान सभा में जोगी के निधन से उप चुनाव होना है। यह चुनाव कांग्रेस की साख का सवाल रहेगा।
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डेढ़ साल में भूपेश सरकार की साख गिर गई
डेढ़ साल में उतरने लगा खुमारः साय
बीजेपी के नये प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय कहते हैं, डेढ़ साल में ही भूपेश सरकार की साख जनता के बीच गिर गई है। डेढ़ साल बाद भी घोषणा पत्र मे किये गये महत्वपूर्ण वायदों को पूरा नहीं किया। यही वजह है कि उन्हें झूठे सर्वे का सहारा लेना पड़ा, ‘‘नम्बर टू’’ के लिए। युगवार्ता के रमेश तिवारी‘‘रिपु’’ के साथ बातचीत के मुख्य अंश -  
0 आप को केन्द्रीय नेतृत्व ने तीसरी बार अध्यक्ष बनाया है। जबकि पार्टी के अंदर आपको लेकर विरोध है। इसे लेकर आप क्या सोचते हैं।
00 मेरी नियुक्ति को लेकर किसी तरह का विवाद था,मै नहीं मानता। विवाद होता, तो मेरे अध्यक्ष बनने पर कार्यकत्र्ताओं में उत्साह न होता। पार्टी हित के लिए बीजेपी का पूरा परिवार एक है। मै इसे अपना सौभाग्य मानता हूं कि, केन्द्रीय नेतृत्व ने मुझे तीसरी बार अध्यक्ष पद से नवाजा है। 
0 भूपेश सरकार के काम काज से प्रदेश की 81 फीसदी जनता खुश है। एक सर्वे रिपोर्ट ऐसा कहती है। आप की क्या राय है?
00 डेढ़ साल में ही भूपेश सरकार की साख जनता के बीच गिर गई है। हैरानी वाली बात यह है कि डेढ़ साल की सरकार को सर्वे की क्या जरूरत? यदि ये अपने घोंषणा पत्र के वायदे पूरे किये होते तो जनता बीजेपी के काम काज को याद न करती।   
0 पार्टी की आगामी गतिविधियां क्या होंगी।
00 प्रदेश में 750 से अधिक वर्चुअल रैलियां करेंगे। कार्यकत्र्ताओं को बतायेंगे सरकार की खामियों को किस तरह जनता को बताना है। वाट्सअप्प के जरिये लोगों से संवाद स्थापित करेंगे। मै ने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिखे पत्र, केंद्र सरकार की उपलब्धियां और कोविड से बचाव की जानकारी लिखे पर्चे बांटा। पूरे प्रदेश में कार्यकत्र्ता यही कर रहे हैं। हर जिले का दौरा करूंगा। हमारे पास सरकार के खिलाफ मुद्दे बहुत हैं।
 0 कांग्रेस कहती है कि 15 साल में जो काम बीजेपी नहीं कर सकी, वो हमने डेढ़ साल में कर दिखाया। आप क्या मानते हैं?
00 अपने मुंह से अपनी तारीफ करना कांग्रेस की पुरानी आदत है। यदि प्रदेश की 81 फीसदी जनता खुश है,तो फिर डाॅक्टरों को तीन माह से वेतन क्यों नहीं मिल रहा है। राज्य के कर्मचारियों के वेतन मे कटौती क्यों की गई है। बजट तीस फीसदी कम क्यों किया गया? बेरोजगारों को भत्ता.नौकरी कुछ नहीं मिला। शराबबंदी के घोषणा पत्र पर चुनाव लड़ने वाली सरकार आज शराब क्यों बेच रही है। किसानों का कर्जा माफी भी पूरा नहीं हुआ। पिछले साल ढाई हजार रूपये प्रति क्विंटल धान किसानों से खरीदे थे। इसलिए नहीं खरीदा। समर्थन मूल्य के अंतर की राशि पहली किस्त तो दे दी, लेकिन अन्य किस्त कब देंगे, पता नहीं।   

Friday, June 26, 2020

गजराज के बुरे दिन


 
छत्तीसगढ़ में हाथियों के बुरे दिन आ गए है। एक सप्ताह में छह हाथियों की बड़ी दर्दनाक मौत हुई। वन अमला किसी को भी नहीं बचा सका। जबकि सरकार ने हाथियों की निगरानी के लिए हर साल दो करोड़ रूपये खर्च करती है। सवाल यह है कि क्या किसान हाथियों से अपना घर,अपनी फसल और बाग बगीचे बचाने के लिए उन्हे कीटनाशक दवा खिला रहे हैं?










0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’
                छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में 20 माह की गर्भवती हथिनी की लिवर की बीमारी से मौत हो गई है। ऐसा सरकार की रिपोर्ट कहती है। जबकि डाॅक्टरों का कहना है कि तालाब का प्रदूषित पानी पीने की वजह से हथिनी के लिवर में इंफेक्शन हो गया था। तालाब वन विभाग ने बनवाया था। चैकाने वाली बात है कि हाथियों पर निगरानी रखने वाले भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिक और अफसर कितने लापरवाह हैं कि हथिनी बीमार है, इसका पता नहीं लगा सके। जबकि सरकार सालाना 2 करोड़ रूपये हाथियों की देख रेख के लिए खर्च करती है।   
सूरजपुर जिले में प्रतापपुर वनपरिक्षेत्र के गणेशपुर के जंगल में 8 जून को हाथियों की दहाड़ ग्रामीणों ने सुनी। सुबह हथिनी की लाश पड़ी थी। इसकी जानकारी वन अधिकारियों को दी गई। डॉ महेंद्र कुमार पांडेय ने पोस्टमार्टम किया। हथिनी के पेट में 20 माह का मादा बच्चा था। जिसकी गर्भ में ही मौत हो गई थी। हथिनी के लिवर में इंफेक्शन की वजह से पानी भर गया था। लीवर इंफेक्शन की वजह से उसकी मौत हो गई थी। हथिनी के लिवर में 150 सिस्ट थे। जो कि इतनी संख्या में उन्होंने किसी जानवर में नहीं देखे। पोस्टमार्टम में उसके पेट में ज्यादा चारा भी नहीं मिला। अब ऐसे में वन विभाग के उस दावे पर सवाल उठ रहे हैं, जो मॉनिटरिंग करने का दावा करता है। कायदे से सरकार और वन विभाग को तालाबों की सफाई के साथ ट्रीटमेंट कराना चाहिए ताकि, हाथियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम न हो।
हाथी मरें सरकार का क्या
यह अकेली घटना नहंी थी। दस जून को वहां से कुछ दूरी पर ही तालाब के पास दूसरी हथिनी का शव मिला। पास ही एक बोरी कीटनाशक पड़ा हुआ था। इसके बाद 11 जून को बलरामपुर में तीसरी हथिनी का सड़ा, गला शव मिला। बताया गया है कि इसकी मौत पांच दिन पहले ही हो चुकी थी। यानी तीन दिन मे तीन और एक सप्ताह में सात हाथियों की मौत हुई। सूरजपुर में सड़क से महज 200 मीटर दूर गणेशपुर जंगल में शव पड़ा था। बदबू आने पर ग्रामीणों ने वन विभाग को इसकी सूचना दी। सूरजपुर जिले में पिछले छह माह में सात हाथियों की मौत हो चुकी है। इसमें सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले में 4, बलरामपुर में 2 और जशपुर में एक की मौत हुई है। ये मौत 6 माह के भीतर हुई है। वहीं पिछले 5 साल में अकेले सूरजपुर जिले में 22 हाथियों की जान जा चुकी है। 
मौत की वजह अलग       
तीनों हथिनियों की मौत की रिपोर्ट अलग अलग है। एक की मौत हृदयाघात, दूसरे की टाॅक्सीसिटी और तीसरे की इन्फेक्शन से हुई है। भारत सरकार के वाइल्ड लाइफ से जुड़े अधिकारियों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए यह रिपार्ट बता दी गई। सरकार ने मनमाफिक रिपोर्ट बना के जवाब दे दिया, लेकिन घटना स्थल पर एक बोरी कीटनाशाक क्यों पड़ा था,इसका जवाब नहंीं दिया। गौरतलब है कि कीटनाशक के पैकेट के पास हाथियों का दल खड़ा रहा। हाथियों ने कीटनाशक पैकेट और हथिनी का शव उठाने नहीं दिया। पशु चिकित्सक का आशंका है कि जहर दिया गया है। क्यों कि सूखे नाले में हथिनी के शव के सूंड से झाग निकल रहा था। वनकर्मियों के अनुसार जिस दल की दो हथिनी की मौत हुई है, यह प्यारे हाथी का दल है। बलरामपुर जिले के राजपुर रेंज के अतौरी जंगल में 6 जून को प्यारे हाथी का दल आया था। यहां से होते हुए गणेशपुर की ओर चला गया। आशंका है कि उसी दौरान हथिनी अस्वस्थ होने की कारण चलने में पिछड़ गई होगी और बाद में उसकी मौत हो गई।
करेंट से हाथी की मौत
रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ वन मंडल के गेरसा गांव में किसान भादो राम राठिया और बलसिंह अवैध बिजली के कनेक्शन से खेत की सिंचाई कर रहे थे। खुले तार की चपेट में आने से 16 जून को एक हाथी की मौत हो गई। दोनों किसानों को जेल भेज दिया गया है। इस क्षेत्र में कुछ दिनों से 27 हाथियों का दल पहाड़ के इलाके से कटहल खाने आते हैं। हाथी कटहल खाने आया था, करंट लगने से उसकी मौत हो गई। इसके अलावा 18 जून को एक दंतैल हाथी छाल रेंज के बेहरामार गांव में मृत मिला। देर रात भोजन की तलाश में आने की संभावना  है। धरमजयगढ़ क्षेत्र में तीन दिन में यह दूसरे हाथी की मौत हुई। करेंट लगने से उसकी मौत हो गई।
कीचड़ में नन्हें हाथी की मौत
दलदल में 38 घंटे तक नन्हा हाथी फंसा था लेकिन, उसे वन विभाग नहीं निकाल सका और 12 जून को उसकी मौत हो गई। यह घटना कोरबा के कटघोरा वन परिक्षेत्र के कुल्हरिया की है।  हाथी के शव का पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ अजय तोमर, डॉ ए.के. कोसरिया व डॉ एन.के दुबे ने पोस्टमार्टम के दौरान पाया कि हाथी के एक पैर में 15 सेंटीमीटर सूजन था। जिस स्थान पर हाथी बैठा था, वह खेत है। बांगो डूबान क्षेत्र का हिस्सा होने से हमेशा यहां दलदल रहता है। घुटना मुड़ गया था, इसके बाद वह उठ ही नहीं पाया। वन विभाग के उप सचिव गणवीर ने कहा, दलदली क्षेत्र के कीचड़ में फंसी मादा हाथी को बचाने के लिए प्रभारी डी.एफ.ओ. संत ने कोई प्रयास नहीं किया। इससे शासन की छवि धूमिल हुई है। कटघोरा के प्रभारी डीएफओ डीडी संत को निलंबत कर दिया गया है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक अतुल कुमार शुक्ला और बिलासपुर मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी पी.के. केशर को कारण बताओं नोटिस जारी किया गया है।
कीचड़ में हाथी की मौत
गरियाबंद मैनपुर क्षेत्र से 21 हाथियों का दल धमतरी ब्लॉक के मोंगरी गांव से होकर गुजर रहा था। 15 जून की रात यहां हाथी का बच्चा फंस गया। ग्रामीणों की मदद से उसे निकालने की कोशिश की गई लेकिन नहीं निकाल सके। 16 जून की सुबह उसकी मौत हो गई। ग्रामीण सगनु राम नेताम ने बताया कि 7 जून से हाथी इसी इलाके में थे। सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि, इतने कीचड़ में तो हाथी खेलते हैं।
हाथी बेहोश हो गया
कोरबा जिले के ग्राम पंचायत गुरमा के आश्रित ग्राम कटरा डेरा के एक किसान के घर 14 जून को एक हाथी घुस आया। बेहोश होकर गिर गया। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉक्टर की मौजूदगी में वन विभाग के अमले और ग्रामीणों की मदद से हाथी को करवट लिटाया गया। जिससे सांस लेने में हाथी को राहत मिली। हाथी की ऊंचाई 1.9 मीटर है। अस्वस्थ हाथी का इलाज जारी है। उत्तर सिंगापुर वन क्षेत्र मगरलोड में 17 हाथियों का दल ग्राम मोहेरा, जलकुंभी, हतबंद, अमलीडीह, परसाबुड़ा, रैगाडीह, राजाडेरा के आस पास देखा गया है। गरियाबंद क्षेत्र में इन हाथियों ने उत्पात मचाकर अब मगरलोड क्षेत्र में प्रवेश कर चुके हंै। हाथियों के एक दल ने ग्राम गंजईपुर में एक आदमी को कुचलकर मार चुके है। 
समिति एक माह में देगी रिपोर्ट
सरगुजा संभाग में हाथियों की मौत के मामले की जांच के लिए रिटायर्ड मुख्य वन संरक्षक के.सी बेवर्ता की अध्यक्षता में एक कमेटी र्गिठत की गई है, जो एक माह में रिपोर्ट देगी। कमेटी में वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ आरपी मिश्रा, वरिष्ठ पशु चिकित्सक, वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ देवा देवांगन इस बात की जांच करेंगे कि क्या हाथियों की ऐसी मौत रोकी जा सकती थी या नहीं। वहीं पूर्व वन मंत्री महेश गागड़ा कहते हैं, तीन हाथियों की मौत पर हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए। अब तक गठित समितियां और एसआईटी ने एक भी मामले की रिपोर्ट नहीं दी। सवाल यह है कि क्या छत्तीसगढ़ हाथियों की कब्रगाह बन रहा है?


Tuesday, June 16, 2020

नक्सलियों से यारी





 
सरकार विरोधी अर्बन नक्सलियों की माओवादियों से यारी पुरानी है। नक्सलियों के खौफ की दहशत से ठेकेदार और आम आदमी उनकी मदद करते आए हैं। माओवादियों को कारतूस बेचने वाले पुलिस कर्मी पहली बार पकड़े गए। ऐसी घटनाओं से साफ है कि छत्तीसगढ़ में नक्सल राज क्यों है?








0 रमेश तिवारी‘रिपु’’
                   शहरी नक्सली सरकार विरोधी हंैं या फिर देश विरोधी अथवा सरकार के खिलाफ लड़ने वाले माओवादियों के समर्थक हैं? सूबे में जब भी नक्सलियों के मददगार पकड़े गए, यह सवाल उठा है। युगवार्ता से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक चर्चा में कहे थे,‘‘ प्रदेश में कारतूस और हथियार के कारखाने नहीं हैं। ऐसे में माओवादियों के पास ए. के. 47 और कारतूस कहां से आते हैं,नक्सलियों को हथियार और अन्य विस्फोटक सामग्री की सप्लाई कौन करता है। किस रास्ते से हथियार उन तक पहंुचता है। केन्द्र सरकार को पता करना चाहिए’’। मुख्यमंत्री को शायद इसका अंदाजा उस वक़्त नहीं था कि, शहरी नक्सल ही माओवादियों के मददगार हैं।
नक्सलियों का शहरी नेटवर्क 
सडक निर्माण कंपनी का ठेकेदार तापस पालिका बोलेरो में 24 मार्च की रात्रि में नक्सलियों को सामान पहुंचाने निकला। कांकेर पुलिस ने उसे सिकोड़ थानांतर्गत मरदा मार्ग पर पकड़ा। बोलेरो से दस नग मोबइल फोन,75 मीटर वर्दी कपड़ा 45 जोड़ी जूते, दो नग वाॅकी टाॅकी,दो सौ मीटर इलेक्ट्रिक वायर और अन्य रोजमर्रा के सामानों को जब्त किया। पूछताछ में नक्सली मददगारों में राजनांदगांव के ठेकेदार दयाशंकर मिश्रा का नाम सामने आया। इसके बाद राजनांदगांव निवासी अजय जैन व कोमल प्रसाद वर्मा, कोयलीबेड़ा निवासी रोहित नाग, मेरठ (यूपी) निवासी सुशील शर्मा और बालाघाट (एम.पी) निवासी सुरेश शरणागत तक पुलिस पहंुची।  
सूचना से खुला राज
बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने बताया की 4 जून को माओवादियों के लिए गोला बारूद एवं अन्य सामग्री के सप्लाई के सम्बंध में मुखबिर से सूचना मिलने पर धमतरी निवासी मनोज शर्मा व बालोद निवासी हरिशंकर गेडाम को सुकमा मलकानगिरी चैक से घेराबंदी कर पकड़ा गया। इनके कब्जे से 303 व एसएलआर हथियारों के 395 राउंड कारतूस मिला। दोनों के बताने पर दुर्गकोंदल के गणेश कुंजाम व आत्माराम नरेटी को गिरफ्तार किया गया। इनका संपर्क कांकेर के बड़े नक्सली लीडर दर्शन पेद्दा प्रतापपुर एरिया कमेटी सचिव से होने का खुलासा हुआ। इनके कब्जे से भी 70 राउंड आई.एन.एस.ए.एस. और 303 के मिले 303,एके 47,एस.एल.आर.,आई.एन.एस.ए.एस. के कुल 695 राउंड कारतूस बरामद हुए थे।
कैसे पकड़े गये पुलिस कर्मी
पुलिस की योजना के अनुसार मनोज शर्मा व हरीशंकर स्कॉर्पियो वाहन से सुकमा पहुंचे थे। थानेदार (एएसआई) आनंद जाटव बाइक से मलकानगिरी चैक पहुंचा। उसके पास कारतूस से भरा बैग था। मौके पर ही सबको पकड़ लिया गया। तीनों को पकड़े जाने के बाद पुलिस ने हेड कांस्टेबल सुभाष सिंह को भी इंदिरा कॉलोनी स्थित उसके घर से गिरफ्तार कर लिया। हेडकांस्टेबल की ड्यूटी शस्त्रागार में रहती थी। पकड़े गए हेड कांस्टेबल व ए.एस.आई. ने दो बार कारतूस बेचे जाने की बात कबूल की है। तीसरी बार वे पुलिस के हत्थे चढ़ गए। नक्सल ऑपरेशन में जाने वाले आरक्षक और सहायक आरक्षकों के कारतूस गायब कर नक्सलियों तक सप्लाई करते थे। ए. के. 47 के एक कारतूस नक्सलियों को पांच सौ रूपये में मिलते थे। सन् 2013 और 2018 में भी नक्सल ऑपरेशन से जुड़े आधा दर्जन से ज्यादा जवानों को नक्सलियों को कारतूस बेचने के मामले में पकड़ा गया था। अफसरों ने जवानों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई कर छोड़ दिया था।   
नक्सली मददगार गिरफ्तार
नक्सलियों के लिए सामान व रकम पहुंचाने वाले मामले में 12 आरोपी, ठेकेदार तापस पालिका 24 मार्च, मुंशी दयाशंकर मिश्रा 29 मार्च, अजय जैन कोमल प्रसाद वर्मा राजनांदगांव, रोहित नाग कोयलीबेड़ा, सुशील शर्मा उत्तर प्रदेश, सुरेश शरणागत मध्यप्रदेश 24 अप्रैल, टोनी उर्फ शीलेंद्र भदौरिया राजनांदगांव 5 मई, जनपद सदस्य राजेंद्र सलाम व मुकेश सलाम 6 मई को, अरूण ठाकुर 12 मई तथा मुख्य आरोपी निशांत जैन को 14 मई को पुलिस ने गिरफ्तार किया। पकड़े गए आरोपियों के नक्सली कमांडर सरिता राजुसलाम और नक्सली लीडर दर्शन पेद्दा जैसे कई नक्सलियों से संपर्क था।
करोड़ों का आसामी
काम की तलाश में 2001 को लैण्डमार्क इंजीनियर कंपनी बिलासपुर का मालिक निशांत जैन दिल्ली के गुडगांव से आया था। आज 6 सौ करोड़ का मालिक है। सन् 2018 से वह नक्सलियों से सांठगांठ करके संवेदनशील इलाके कोयलीबेड़ा, अंतागढ़, आमाबेड़ा, सिकसोड़, रावघाट, तोड़ोकी में प्रधान मंत्री सड़क के निर्माण का ठेका लेता था। सड़क निर्माण की आड़ में नक्सलियों की जरूरत के सामान पहंुचाते थे। इसीलिए लैंडमार्क इंजीनियरिंग कंपनी बिलासपुर तथा लैंडमार्क रायल इंजीनियर कंपनी राजनांदगांव के कामों में नक्सली न कभी बाधा उत्पन्न किए और न ही उनके वाहनों को जलाया। इन सभी कामों को दोनों भाइयों ने पेटी कांट्रेक्ट पर रूद्रांश अर्थ मूवर्स कंपनी के पार्टनर तापस पालित,अजय जैन व कोमल जैन को दिया था। इंजीनियरिंग कंपनी का मालिक बनने से निशांत जैन अपने एक रिश्तेदार की निर्माण कंपनी में मैनेजर था। नक्सली नेटवर्क की जांच कर रही एस.आइ.टी को 24 अप्रैल को राजनांदगांव निवासी अजय जैन को गिरफ्तार करने पर कुछ अहम दस्तावेज मिले थे। जांच में इस नेटवर्क का कनेक्शन लैंडमार्क इंजीनियरिंग कंपनी बिलासपुर से जुड़ा। निशांत जैन को एसआईटी की टीम ने बिलासपुर से गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में 14 मई को जेल भेज दिया। उसके दोनों मोबाइल से उसकी काॅल डिटेल पुलिस खगाल रही है। 
पूर्व सरपंच निकला मददगार
कोयलीबेड़ा इलाके में नक्सलियों के लिए ठेकेदारों से लेवी वसूलने और उनकी मदद करने वाला भाजपा मंडल का पूर्व महामंत्री अरुण ठाकुर को पुलिस ने 13 मई को गिरफ्तार किया। ठेकेदारों से मिले सामानों को अरूण नक्सलियों तक पहुंचाता था। अरूण कुमार शुरू से भाजपा व आर.एस.एस से जुड़ा था। वह इलाके के युवाओं को आरएसएस के प्रशिक्षण कैंप भेजता था,जिससे नक्सली उससे नाराज थे। बाद में वह, यह काम बंद कर दिया। 15 साल पहले कोयलीबेड़ा में वार्ड पंच के चुनाव में उपसरपंच चुना गया था। अरुण पिछले साल कोयलीबेड़ा भाजपा मंडल के महामंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। कोयलीबड़ी इलाके में अरूण के दम पर ही नक्सलियों का शहरी नेटवर्क खड़ा हुआ। नक्सलियों के लिए ठेकेदारों से वसूली गई लेवी की रकम में से कुछ अरूण न दबा ली थी। नक्सलियों ने ऐसा करने पर उसके खिलाफ पर्चे बोंदानार इलाके फेकने लगे थे। बाद में नक्सलियों से माफी मांग कर उनका पैसा वापस करने का वायदा किया था। बाद में नक्सली उसे माफ कर अपने काम में लगा दिए थे। 2018 में अरुण कुमार ठेकेदार तापस पालित के साथ मिलकर कागबरस से गुड़ाबेड़ा सड़क के निर्माण में जुड़ गया। पुलिस को शक है कि अरुण अपने प्रिंटर, फोटो कॉपी मशीन व कम्युटर से कोयलीबेड़ा इलाके में नक्सलियों के पर्चे निकाल कर उसे फेंकवाता था। 
क्या है अर्बन नक्सलवाद
देश के सभी नक्सली संगठनों से जुड़ा यह एक ऐसा समूह है, जो शहरों में सक्रिय है। सरकार के अनुसार यह देश के लिए सबसे बड़ा आंतरिक खतरा है। नक्सलवाद अब गांवों या जंगलों तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि, यह अब शहरों तक फैल चुका है। ये सरकारी सिस्टम में अपने लोगों को भेज कर सारा काम करते हैं,किसी को कानों कान खबर नहीं हो पाती। इनका मूल उदे्दश्य वही है जो माओवादियों के होते हैं। हिंसा के जरिए भारत के राज्यों पर कब्जा करना। ऐसे लोगों को भारत सरकार के कामों में बुराई ही बुराई दिखती है। ये हर वक्त सरकार की आलोचना करते हैं। अंडरग्रांउड काम करने वालों के लिए ये रक्षक कवच हैं। कहीं भी नक्सली कार्रवाई होती है,ये उसे दलित,किसान या आदिवासी का दमन बताकर जनमत तैयार करते हैं। इनकी बातें मीडिया,ब्यूरो क्रेसी,न्यायपालिका बड़ी प्रमुखता से सुनती है। माओवादी राष्ट्र को नहीं मानते। इसलिए उसे हमेशा खंडित करने का प्रयास करते हैं। माओवादी जानते हैं कि, लोकतंत्र के सारे सिस्टम शहरों में हैं। समाज को प्रभावित करने वाले नेता,सांसद,अफसर,प्रोफेसर और डाॅक्टर। नक्सली सिस्टम पर भरोसा नहीं करते। उसे उखाड़ फेकने के लिए अर्बन नक्सल उनके मददगार बन जाते हैं। सन् 2009 में पूर्व गृहमंत्री पी.चिंदम्बरम ने माओवादियों के खिलाफ ग्रीन हंट शुरू किया। जिससे माओवादियों को काफी नुकसान हुआ था। नक्सलियों ने अपनी रणनीति बदली और गुपचुप तरीके से शहरों में अपनी गतिविधियां बढ़ाई। समाज के असरदार लोग उनसे जुड़ गई। उनकी ंिहंसक गतिविधियों को वैध और सरकार की कार्रवाई को दमन विरोधी ठहराने की मुहिम शुरू कर दी। जो अब तक जारी है। दरअसल जब तक नक्सलियों की कोर लीडर शिप को खत्म नहीं किया जाएगा,अर्बन नक्सलियों पर नकेल लगाना मुश्किल है।

Tuesday, June 9, 2020

आगे है और कठिन डगर

   छत्तीसगढ़ सरकार आर्थिक आपातकाल के दौर से गुजर रही है। कोरोना को बढ़ने से रोकना,आम आदमी को आत्म निर्भर बनाने के साथ आर्थिक समस्या का समाधान ढूंढना जरूरी है। डाॅक्टर,नर्स और कर्मचारियों को वेतन देने की स्थिति में नहीं है भूपेश सरकार। ऊपर से अपनी तारीफ की सर्वे रिपोर्ट पेश करने से जनता हैरान है। 









0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’
                  उम्मीदें खोकर लौटे मजदूर कभी नहीं सोचे थे कि छत्तीसगढ़ में दुर्दशा और दुश्वारी के ऐसे भी दिन देखने को मिलेंगे। धान के कटोरे में सुख नहीं, परेशानी और दुख भरे हैं। आम जिन्दगी के सामने सबसे बड़ी समस्या है, कैसे आत्म निर्भर बनें। वहीं व्यापारी लाचार है कि, कैसे व्यापार खड़ा करे। मजदूरों के पास रोजी रोटी के साथ, मजदूरी की विकट समस्या है। जो मजदूर लौट आए हैं, वो बाहर जाने का मन शायद ही बनाएं। प्रदेश कैसे फिर से खड़ा हो और समृद्धी के रास्ते पर चल पड़े, सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए। मगर सरकार अपनी पीठ थपथपाने के लिए आंकड़े बाजी में लगी है। आईएएनएस सी वोटर की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक गैर भाजपा शासित राज्यों में, प्रदेश की जनता को संतुष्ट करने वाले मुख्यमंत्रियों में भूपेश बघेल दूसरे नम्बर पर हैं। यह रिपोर्ट चैकाती है। वन मंत्री मोहम्मद अकबर कहते हैं,‘‘धान का 25 सौ रूपए न्यूनतम समर्थन मूल्य,किसानों की कर्ज माफी,आदिवासियों की जमीन वापसी जैसे महत्वपूर्ण फैसलों ने मुख्यमंत्री को जनता का लोकप्रिय जन नेता बनाया है’’।
प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव कहते हैं,‘‘डेढ़ वर्षो में ही किसी भी सरकार के काम काज की रिपोर्ट आ जाए, तो हैरानी होती है। बीजेपी चाहती है कि सरकार काम करे और प्रदेश आगे बढ़े। कोरोना काल में सैकड़ों जूनियर चिकित्सकों का इस्तीफा देना, कर्मचारियों की वेतन वृद्धि की बजाए कटौती होना। बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता अभी तक देना शुरू नहीं किया गया है। सवाल यह है कि क्या शराब का विरोध करने वाली महिलाएं संतुष्ट हैं?स्वसहायता समूह की महिलाएं संतुष्ट हैं, जिनके ऋण माफ करने की बात कही गई थी। सरकार को अभी से नम्बर की दौड़ में नहीं आना चाहिए’’।
ग्यारह हजार करोड़ का घाटा
बजरंग अग्रवाल सी.ए.कहते हैं,कोयला,सीमेंट और बिजली ये चार सेक्टर है जिनसे सरकार को करीब 50 फीसदी राजस्व की आय होती है। लेकिन कोरोना लाॅक डाउन की वजह से प्रदेश की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है। लॉकडाउन में ट्रांसपोर्ट की सुविधा पूरी तरह से ठप्प होने के कारण फैक्ट्रियों में बना हुआ माल बाहर नहीं जा सका। देश का 18 फीसदी कोयला छत्तीसगढ़ उत्पादित करता है। राज्य को 26 फीसदी आय लौह अयस्क से होती है। देश का करीब 20 फीसदी लौह अयस्क भंडार यहीं है। देश का 15 फीसदी लोहे का उत्पादन छत्तीसगढ़ में होता है। लोहा उत्पादन के मामले में भी राज्य देश में दूसरे स्थान पर है। देश का करीब पांच फीसदी चूना पत्थर का भंडार छत्तीसगढ़ में हैं। राज्य में फिलहाल एक दर्जन से अधिक बड़े सीमेंट संयंत्र हैं, जो देश की करीब 20 फीसदी जरूरत पूरी करते हैं। प्रदेश को देश का पॉवर हब कहा जाता है। यहां सरकारी और निजी सेक्टर मिलाकर करीब 23 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है। इसके अलावा प्रदेश में ट्रेडिंग का व्यवसाय भी किया जाता है। जिसमें अनाज किराना कपड़ा इलेक्ट्रानिक के सामान शामिल हैं। पड़ोसी राज्य ओड़िशा झारखंड, महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश में भी छत्तीसगढ़ से ही व्यापार किया जाता है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी कम से कम 3 माह व्यापार को सुचारू रूप से चलाने में समय लगेगा। इस दौरान 10-11 हजार करोड़ के कर व आर्थिक सेवाओं का नुकसान सरकार को उठाना पड़ सकता है।
लॉकडाउन का असर
आर्थिक मंदी का यह सबसे भयावह दौर है। बेरोजगारी का प्रतिशत 40 फीसदी बढ़ गया है। मनरेगा में मिलने वाले काम से प्रदेश के बारह लाख मजदूर संतुष्ट नहीं हैं। स्टील,सीमेंट पॉवर,कोल उद्योग लगातार चलने वाले उद्योग हैं। जो एकबार बंद होते हैं, तो बगैर मेंटेनेंस के उन्हें शुरू करना मुश्किल है। इसके अलावा इन उद्योगों में काम करने वाले लेबर उत्तर प्रदेश बिहार पंजाब से आते हैं। लॉकडाउन के खत्म होने के बाद इन कर्मचारियों को वापस लौटने में भी समय लगेगा। जिसके कारण औद्योगिक क्षेत्रों को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। प्रदेश में 24 मार्च से घरेलू उड़ानें बंद हैं। साल भर 35 फीसदी कारोबार गर्मी के सीजन में ही होता है। 3 मई तक प्रतिबंध की वजह से प्रदेश में तीन सौ करोड़ का व्यापार प्रभावित हुआ। पर्यटन से जुड़े लोग और उनका व्यवसाय भी प्रभावित हुआ। 
आर्थिक आपातकाल 
पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह कहते हैं सी.एम रिलीफ फंड में जमा राशि पर श्वेत पत्र जारी करे सरकार।  सरकार बताए गांव के क्वारेंटाइन सेंटर को कितनी राशि दी। राज्य में आर्थिक आपातकाल की स्थिति है। कर्मचारियों की वेतनवृद्धि रोक दी गई है। अब वेतन में 30 फीसदी की कटौती की जा रही है।    सरकारी व्यय की सीमा को कम किया गया है। समस्त विभाग अब वो पूरे साल 70 प्रतिशत ही बजट खर्च कर सकेंगे। मध्यप्रदेश के सी.एम शिवराज सिंह चैहान ने गांवों के लिए 1500 करोड़ दिए हैं। यहां 9-10 करोड़ खर्च कर सरकार ने कोई बड़ा काम नहीं किया है। छत्तीसगढ़ में सरकार ने क्वारेंटाइन सेंटर को सरपंच के भरोसे छोड़ दिया है। सेंटर में गर्भवती मां,बच्चे की मौत हो रही है। लोग आत्महत्या कर रहे हैं। पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा,डाॅ रमन सिंह बताएं मोदी सरकार के 20 लाख करोड़ के पैकेज से छत्तीसगढ़ को कितना  मिला। 
क्वारेंटाइन सेंटरों में अव्यवस्था
क्वारेंटाइन सेंटर में 3 गर्भवती माताओं और 4 बच्चों सहित एक दर्जन लोगों की 15 दिनों के भीतर मौत हो गई। इनमें तीन लोग हादसे का शिकार हुए। वहीं 2 ने आत्महत्या कर ली। पांच श्रमिक बीमारी के कारण दम तोड़ चुके हैं। सूबे के 19216 क्वारंटाइन सेंटरों में 203581 प्रवासी मजदूरों को रखा गया हैं।   सरकार का दावा है कि 7 लाख लोगों को क्वारंटाइन में रखने की उसकी क्षमता है और इसका प्रबंध भी कर लिया गया है, लेकिन 2 लाख लोगों को भी वह ठीक से नहीं रख पा रही है। कोरोना मरीजों की संख्या 500 के पार हो गई है। मुंगेली जिले की लोरमी में स्थित एक धर्मशाला को क्वारेंटाइन सेंटर बनाया गया है। आंध्र प्रदेश के 45 प्रवासी मजदूरों को अछूतों की तरह गेट के बाहर से खाने के पैकेट दिए जा रहे हैं। खाने की गुणवत्ता बहुत खराब है। मामला सामने आने पर अधिकारियों ने मजदूरों पर आरोप लगाते हुए कहा खाने में दारू,मुर्गा की मांग कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष श्री कौशिक ने कहा कि क्वारेंटाइन सेंटर्स में लगातार हो रहीं मौतों के बाद भी   बदइंतजामी दूर नहीं किया जा रहा है। अब ये क्वारेंटाइन सेंटर्स कई तरह के इन्फेक्शन बीमारियों को जन्म दे रहे हैं।
वेतन नहीं मिलने से इस्तीफा
रायपुर,रायगढ़ और सिम्स बिलासपुर से करीब तीन सौ जूनियर रेसीडेंट डॉक्टरों ने 2 माह से वेतन नहीं मिलने पर इस्तीफा दे दिया है। कोरोना वार्ड में ड्यूटी और सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किए गए। दाऊ कल्याण सिंह सुपर स्पेश्यालिटी अस्पताल में सेवाएं दे रहीं संविदा व दैनिक वेतनभोगी नर्सों को दो माह से वेतन नहीं मिला है। जिससे वे नाराज हैं। प्रदेशभर में 383 छात्रों को जूनियर रेसीडेंट बनाकर पोस्टिंग कर दी गई लेकिन, अब तक उनका वेतन तय नहीं किया गया है। 
कैसे बने आत्म निर्भर
कृषि विज्ञान की छात्रा पल्लवी तिवारी कहती हैं,‘‘सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए किसानों को मजबूत करना। एग्रीकल्चर मार्केटिंग कानून को लचीला करें, ताकि किसान अपने उत्पादन को दूसरे राज्य में भी बेच सकें। बिग बाजार से आटा लेने की बजाय किसान से गेहूं खरीदें। आनाज खरीदें। उससे उसकी सब्जियां खरीदें। बेरोजगार युवक एक एप के जरिये अपना एक चलता फिरता किराना दुकान,सब्जी दुकान लांच कर सकता है। जिन्हें जरूरत होगी वो उसे फोन कर अपनी जरूरत के सामान मंगा सकते हैं। इससे उपभोक्ताओं को घर बैठे सामान मिल जाएगा।  किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य सरकार ने 2022 तक किया है। यह तभी संभव है जब किसान अपनी खेत में केवल धान,गेहूं,दलहन ही पैदा न करे। क्यों कि बारिश अधिक या न होने से नुकसान किसान को ही होता है। किसान सब्जियां, फल, प्याज, लहसुन, मक्का, गन्ना, मधुमक्खी पालन,गो पालन, (मिक्सड फार्मिग) की ओर भी ध्यान दे। ताकि वो एक ही उत्पादन पर निर्भर न रहे। ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में सरकार आगे आए।


 

Tuesday, June 2, 2020

सवालों के घेरे में झीरम कांड


झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं की हत्या किसी के इशारे पर हुई या फिर नक्सली हत्या थी? यह अब भी राज है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एनआइए की रिपोर्ट से खफा हैं। ऐसे में एसआईटी का गठन और झीरम मामले पर कांग्रेस का फिर से मामला दर्ज करना हैरानी भरा सवाल है।

0 रमेश  तिवारी
             बस्तर में झीरम घाटी हत्याकांड के सात साल बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो सका कि कांग्रेस के बड़े नेताओ की हत्या में नक्सलियों का हाथ था या फिर कोई साजिश थी। इस नृशंस हत्याकांड में सरकार और उनकी जांच एजेंसियों को लेकर संदेह के सवाल और टकराव की स्थिति निर्मित होती रही है। लेकिन सच्चाई सामने नहीं आई। भूपेश बघेल सीएम बनने पर एसआईटी का गठन किया। एसआईटी ने एनआईए से जांच फाइल मांगी झीरम की लेकिन, एनआईए ने अभी तक इसमें कोई भी एक्शन नहीं लिया। क्लोजर रिपोर्ट भी नहीं दी। दरअसल एनआईए की रिपोर्ट में झीरम कांड के लिए कांग्रेस को जिम्मदार ठहराया गया था,कांग्रेस रिपोर्ट को झूठ का पुलिंदा करार दिया था। एनआईए की रिपोर्ट में कहा गया कि परिवर्तन यात्रा के दौरान कांग्रेस नेताओं पर हमला,सरकार को दहशत में डालने और सरकार को उखाड़ फेकने की साजिश का हिस्सा था।
कांग्रेस का आरोप है कि विशेष अदालत में एनआईए की रिपोर्ट में पेश गए आरोप पत्र में विवादास्पद मुद्दों को शामिल नही किया गया है। खासकर शहीद के परिजन जिस षडयंत्र की बात कर रहें हैं,जांच रिपोर्ट मंे वो बात नहीं है। लेकिन रिपोर्ट में घटना का सिलसिलेवार जिक्र विस्तार से है। घटना में शहीद हुए नेता स्व. नंदकुमार पटेल के बेटे विधायक उमेश पटेल, स्व. महेंद्र कर्मा के बेटे छविन्द्र कर्मा और स्व.योगेंद्र शर्मा के बेटे हर्षित शर्मा और स्व.उदय मुदलियार के बेटे जितेन्द्र मुदलियार आदि के परिजनों का कहना है कि एनआइए की रिपोर्ट में घटना से जुड़ी कथित राजनीतिक साजिश के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। गौरतलब है कि 25 मई 2013 को झीरम घाटी में नक्सलियों ने एंबुश लगाया था। जिसमें राज्य के दिग्गज कांग्रेसी नेता प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल कद्दावर नेता वीसी शुक्ल,महेन्द्र कर्मा और उदय मुदलियार समेत 29 लोग शहीद हुए थे। 
राज्य सरकार ने गिनाई खामियां
राज्य सरकार ने एनआईए जांच में खामियां गिनाते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखी थी।  केस की जांच एसआईटी स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम से कराने और केस को ट्रांसफर करने की मांग की थी। केंद्रीय गृह सचिव को लिखे पत्र में बताया गया था कि, अब तक की एनआईए जांच में बड़े षडयंत्र को नजरंदाज किया गया है। जांच एजेंसी ने किसी दूसरी थ्योरी पर काम ही नहीं किया। यहां तक कि रमन्ना, गुडसा उसेंडी, गजराला अशोक और दूसरे नक्सलियों के बारे में बाद में कई सबूत मिले। इसके बावजूद एनआईए ने किसी भी चार्जशीट में इनको शामिल नहीं किया।
शहीद आत्माओं को न्याय नहीं मिला
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि झीरम घाटी कांड में शहीद आत्माओं को अभी तक न्याय नही मिला है। झीरम घाटी कांड के षडयंत्र की सच्चाई को सब जानना चाहते है। एनआईए को पूर्व की राज्य सरकार ने जांच सौंपा था और उन्होंने अपनी जांच कम्पलीट कर ली। लेकिन जो झीरम घाटी कांड में षंडयंत्र हुआ है,उसके बारे में कोई जांच नहीं हुई। जो नक्सली पकड़े गये है,उनका और आत्मसमर्पित नक्सलियो का बयान एएनआई ने नहीं लिया। जो घटना स्थल पर थे, उनसे भी बयान नहीं लिया गया। फूलोदवी नेताम सहित झीरम में घटना स्थल पर उपस्थित साथियों का भी बयान एनआईए ने नहीं लिया। एनआईए जांच ही अधूरी है। इस मामले में जांच पूरी हो, सबका बयान हो, जो तथ्य हैं, सामने आने चाहिये।
साक्ष्य क्यों छिपा रहे सीएम
बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने ने कहा, झीरम के मामले में जेब में सबूत होने की बात भूपेश बघेल कहते थे, सालों बीत जाने के बाद भी अब तक सबूत पेश नहीं करने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर साक्ष्य छिपाने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। हर बात के लिए भाजपा के सिर पर अपनी नाकामियों का ठीकरा फोड़ने पर आमादा रहने वाले कांग्रेस के नेता कभी अपने मुख्यमंत्री पर भी तो यह दबाव बनाएं कि वे सबूत पेश करके झीरम की जाँच को अंजाम तक पहुँचने में सहयोग करें।   
एसआईटी कुछ नहीं की
तत्कालीन भाजपा सरकार ने हमले के बाद मामले की जांच एनआईए को सौंप दी थी। सात सालों में एनआईए ने इस मामले में सौ से ज्यादा गिरफ्तारी की लेकिन,घटना क्यों और किसलिए अंजाम दी गई, इसका खुलासा नहीं कर पाई है। 2018 में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस सरकार ने एसआईटी का गठन किया। तत्कालीन आईजी विवेकानंद सिन्हा के नेतृत्व में 10 सदस्यों वाली टीम बनाई गई। टीम में विषय विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया और पहली बैठक रायपुर में पीएचक्यू में हुई। बताया जाता है कि एसआईटी गठन के बाद यह इकलौती बैठक थी, इसके बाद कोई बैठक या कोई जांच ही नहीं हो पाई। कांग्रेस का आरोप है कि झीरम कांड की जांच को प्रभावित करने के लिए केन्द्र सरकार एनआईए की जांच रिपोर्ट की नकल नहीं दे रही है। उसकी रिपोर्ट के बगैर एसआईटी मामले की जांच नहीं कर पाएगी।
किसे बचाना चाहती है सरकार
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा,’’क्या कारण है झीरम की जांच नही होने दिया जा रहा। जब बिना किसी निष्कर्ष पर पहुचे एन आई ए ने झीरम की जांच बंद कर दी है,ऐसे में केंद्र सरकार मामले की फाइल क्यो वापस नही कर रही है? आखिर किसको बचाने या कौन सा तथ्य छुपाने में के लिए केन्द्र सरकार अड़ंगेबाजी लगा रही है। सवाल यह है कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुए इस दुर्दान्त नर संहार की जांच भाजपा क्यो नही होने देना चाहती।
झीरम कांड में नया मोड़
शहीद उदय मुलियार के पुत्र जितेन्द्र मुदलियार ने झीाम कांड पर दरभा में रिपोर्ट दर्ज करा कर इस कांड को को एक नया मोड़ दिया दे दिया है। उन्होने कहा हम सात साल से एनआईए का इंतजार कर रहे थे। पर कोई भी पीड़ित पक्ष से बात नहीं किया। एनआईए ने किसी भी पीड़ित पक्ष से इस संबंध में  चर्चा नहीं की है। झीरम में षड़यंत्र के तहत हत्या की गई है। यह राजनीतिक हत्याकांड है। इसमें हम में से किसी को कोई शंका नहीं है। आरटीआई से मिले दस्तावेज में नक्सल मूवमेंट की जानकारी इंटेलिजेंस द्वारा अपने अधिकारों को दी गई गई थी। इंटेलिजेंस मार्च,अप्रैल से ही रेगुलर अधिकारियों को बताना शुरू कर दिया था कि, वहां नक्सली एकत्र हो रहे हैं। उनके पास 19- 20 मई का भी लेटर था कि वहां पर नक्सली ग्रुप मे एकत्र हो रहे हैं। जब वहां ग्रुप में नक्सलियों के एकत्र होने का इनपुट था, तो परिवर्तन यात्रा को सुरक्षा क्यों नहीं दी गई। इसमें षड़यंत्र वाला जो हिस्सा है उसका खुलासा नहीं हुआ तो हम कोर्ट जाएंगे। हमें न्याय चाहिए।
दरअसल झीरम से सुकमा जाने वाला रास्ता स्टेट हाईवे है। स्टेट हाइवे में दोनों तरफ भारी संख्या में नक्सली थे। संवेदनशील एरिया में परिवर्तन यात्रा जा रही थी। जिसकी सूचना सभी अधिकारियों को दी गई थी। फिर सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं की गई थी? यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। एनआईए ने जांच में षड़यंत्र वाले बिन्दुओं पर जांच क्यों नहीं की,उसका खुलासा होना बाकी है।
सवालों में रिपोर्ट
0 यदि एनआइए की रिपोर्ट सच है तो किन-किन चश्मदीद लोगों से बातें की गई।
0 एनआइए की रिपोर्ट की 7वीं कंडिका में लिखा है कि नक्सली माड़ में क्षेत्रीय सहयोग से समानांतर सरकार चला रहे हैं,लेकिन सरकार ने इसे माओवाद प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। सवाल यह है कि सरकार जानते हुए भी सार्थक कार्रवाई क्यों नहीं की।
0 कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के पहले मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह की विकास यात्रा बस्तर में निकली थी,उस पर नक्सली हमला क्यों नहीं हुआ?
0 नक्सलियों ने किसके इशारे पर इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दिया। किसने नक्सलियों को सूचना दी परिवर्तन यात्रा में महेन्द्र कर्मा भी शामिल हैं?
0 झीरम मामले में इतनी बड़ी चूक की वजह क्या है?
0 कांग्रेस नेताओं के काफिले को तीरथगढ़ से तोंगपाल थाने तक सुरक्षा नहीं दी गई थी। लेकिन एनआइए ने इस पर कोई टिप्पणी क्यों नहीं की?
0 हमलावरों ने एक नेता का नाम पूछ कर गोलियां चलाई,इसका मतलब हमला पूर्व नियोजित था और कुछ नेताओं पर किया गया था। इस राजनीतिक साजिश पर भी रिपोर्ट में एक शब्द नहीं कहा गया है,ऐसा क्यों?

   









‘रिपु’