Wednesday, December 21, 2022

बेशर्म रंग कहाँ देखा दुनिया वालों ने..

.. दीपिका ने रचनात्मक कला केे जरिए केसरिया बिकनी पहनकर थिरकते हुए देश को बताया,कि केसरिया बेशर्म रंग है। यानी कि केसरिया समर्थक और केसरिया पार्टी की सरकार भी बेशर्म है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर विभिन्न माध्यमों से हिन्दू धर्म और संस्कृति को निशाना बनाने की यह सोची समझी साजिश है। 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ फारसी का शब्द है रंग। जिसका अर्थ मिजाज और हाल-चाल होता है। लेकिन रंग जब सियासी हो जाए या फिर मजहबी,तो रंग के मायने बदल जाते हैं। उनकी तासीर बदल जाती है। फिर रंग का रंग,देखते बनता है। दुनिया वालों ने कई रंग देखे हैं। फूट के रंग। प्यार के रंग। दंगे का रंग। मगर,फिल्मी दुनिया ने एक नए रग से परिचय कराया है। बेशर्म रंग। आदमी बेशर्म होता है। सुना है। लेकिन बेशर्म रंग कहाँ देखा है दुनिया वालों नें गीत के बोल पर दीपिका पादुकोंण को केसरिया बिकनी में थिरकते देख कर दर्शकों के होश उड़ गए। उनके जेहन पर सवालों की बौछारें भी पड़ी। क्यों कि अभी तक हिन्दू यही जानता है,कि केसरिया आस्था,शौर्य,और गौरव का प्रतीक है। और हरा रंग इस्लाम की आस्था से जुड़ा है। जाहिर सी बात है,हर रंग कुछ कहता है। बशर्ते रंग की जुबां को समझें।  ‘पठान’ फिल्म के ट्रेलर को देखकर लोगों ने फिल्म को नकार दिया था। कहा गया,कि यह फिल्म हॉलीवुड मूवी वॉर और मार्वल्स की कॉपी है। लेकिन दीपिका पादुकोंण ने केसरिया रंग की बिकनी पहनकर जिस अंदाज में थिरकी है,वह दर्शकों के साथ सियासी जगत का भी ध्यान अपनी ओर खींचा है। पठान फिल्म के बेशर्म रंग के गाने को यूट्यूब पर अब तक छह करोड़ से अधिक लोग देख चुके हैं। दीपिका ने रचनात्मक कला केे जरिए केसरिया बिकनी पहनकर थिरकते हुए देश को बताया,कि केसरिया बेशर्म रंग है। यानी कि केसरिया समर्थक और केसरिया पार्टी की सरकार भी बेशर्म है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर विभिन्न माध्यमों से हिन्दू धर्म और संस्कृति को निशाना बनाने की यह सोची समझी साजिश है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र में पठान फिल्म का विरोध हो रहा हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर में शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण सहित पांँच लोगों पर धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने और अश्लीलता फैलाने के आरोप में केस दर्ज किया गया है। उत्तरप्रदेश के मथुरा में अखिल भारत हिंदू महासभा संगठन के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष दिनेश शर्मा कहते हैं,फिल्म में भगवा कपड़े पहन कर सनातन धर्म को कमजोर दिखाने की साजिश की गई है। हिंदू महासभा कोर्ट से इस फिल्म पर बैन लगाने की मांग करेंगी। भगवा जैसे पवित्र रंग का प्रयोग बिकिनी के लिए करना स्वीकार नहीं किया जाएगा। गुजरात में विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने पहले ही कह दिया है,कि पठान फिल्म का यह गाना बॉलीवुड की विकृत हिंदू विरोधी मानसिकता को दिखाता है। भगवा बिकनी के दृश्यों के साथ फिल्म को गुजरात में रिलीज नहीं होने देंगे। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं,दीपिका पादुकोण टुकड़े-टुकड़े गैंग की स्लीपर सेल है। ऐसे लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश धर्म संस्कृति का उपहास,रचनात्कता कला और फिल्म के जरि कर रहे हें। फिल्म पठान दोषों से भरी है,और जहरीले मानसिकता पर आधारित है। अगर गाने के बोल और वेशभूषा में बदलाव नहीं किया गया तो विचार करेंगे कि मध्यप्रदेश में फिल्म को रिलीज करना है या नहीं। हरे रंग की बिकनी में भी दीपिका होती तो शायद विरोध न होता। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बीजेपी नेता जयभान सिंह पवैया ने कहा,जिस फिल्म का नाम पठान है। शाहरूख खान हीरो है,उस फिल्म में दीपिका को हरे रंग की चिंदियों से सजा देते। कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शाहरूख ने कहा,सीट बेल्ट बांध लें,मौसम बदलने वाला है। दुनिया चाहे कुछ भी कर ले। मैं और आप जितने भी पॉजिटिव लोग हैं, सब जिंदा हैं। शाहरुख का इशारा सोशल मीडिया पर फिल्म को ट्रोल करने वालों की तरफ था। सियासत में भी मौसम बदलेगा,कि नहीं,कोेई नहीं जानता। लेकिन हिमाचल प्रदेश का चुनाव कांग्रेस के जीतने पर टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोगों को लगता है 2024 में सियासी मौसम बदलेगा।  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बोलने के लिए शाहरूख और अमिताभ बच्चन ने उस राज्य को चुना,जहाँ कुछ माह पहले तक दंगे ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया था। वैसे देश में कितनी भी बड़ी घटना हो जाए, ये दोनों कलाकार नहीं बोलते। शाहरूख का बेटा आर्यन ड्रग्स मामले में अंदर था,तब भी मौन थे। बच्चन परिवार का गांधी परिवार से कैसे ताल्लुकात रहे हैं,सारा देश जानता है। पनामा पेपर्स में इनका नाम है। यानी नम्बर दो का पैसा इनका विदेश में जमा है। संसद में जया बच्चन ने पनाम पेपर्स का जिक्र हुआ तो खिसिया कर बोली,मैं बीजेपी को श्राप देती हूँ। यह कभी सरकार में न आए। अमिताभ बच्चन एक लम्बे समय तक मुलायम सिंह यादव की पार्टी के ब्रांड एम्बेस्डर थे। बोफोर्स में इनका नाम उछला। अजिताभ बच्चन और अमिताभ बच्चन का साथ अमर सिंह न देते,तो जेल जाने से न बचते। आज ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है,कह रहे हैं।  दरअसल भारत जोड़ो यात्रा और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणाम के बाद टुकड़े-टुकड़े वाली गैंग यह बताने में लगी है,कि देश में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है। हरिवंश राय बच्चन और अमृता प्रीतम दोनों ऐसे साहित्यकार थे,जिन्होंने खुलकर इमरजेंसी का समर्थन किया था। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है,कि अमिताभ बच्चन अपने पिता की खींची लाइन से बाहर कैसे जा सकते हैं। वैसे अमिताभ बच्चन अवसरवादी अभिेनेता हैं। जब तक मुलायम सिंह यादव के साथ थे,उनकी पार्टी का प्रचार किया। कभी समाजवादी पार्टी की नीतियों पर ऊंगली नहीं उठाई। अब ममता बनर्जी की पार्टी की ओर इनका झुकाव है। इसीलिए पश्चिम बंगाल पहुंँच गए। ममता बनर्जी ने अमिताभ बच्चन को भारत रत्न देने की वकालत कर दी तो इन्होंने भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है कह दिए।  यह देश तन से सिर जुदा के नारे को अभी भूला नहीं है। टुकड़े गैग को लगता है,चुनाव नजदीक है। देश में हवा बनाया जाना जरूरी है। इसलिए सेंसर बोर्ड के आड़ में ये सरकार को घेर कर यह बताने में लगे हैं,कि हमारे खिलाफ षडंयत्र किया जा रहा है। सियासी टेबल और सोशल मीडिया पर केसरिया बिकनी से बवाल मचा हुआ है। यूजर्स लिखते हैं, टुकड़े टुकड़े गैंग की समर्थक दीपिका पादुकोंण और कर भी क्या सकती है। भगवा रंग किस धर्म के लोगों का प्रतीक है,मुस्लिम भी जानते हैं। फिल्म का बायकॉट करने वालों का मानना है,कि भगवा जैसे पवित्र रंग का प्रयोग बिकिनी के लिए करना स्वीकार्य नहीं है।पठान फिल्म 25 जनवरी को रिलीज होगी। इससे पहले लाल सिंह चड्ढा,रक्षाबंधन और ब्रह्मास्त्र फिल्म का बायकॉट करने की भी मांग की गई थी।

Monday, December 12, 2022

देश में कौन सा माॅडल चलेगा चुनाव में







तीन राज्य। तीन चुनाव। तीन पार्टियाँ। तीन परिणाम। ऐसे में सवाल यह है,कि अगले चुनाव में कौन सा माॅडल चलेगा। गुजरात, दिल्ली या फिर हिमाचल का। गुजरात में मोदी मैजिक चला। मगर दिल्ली और हिमाचल में मोदी बेअसर रहे। हिमाचल प्रदेश में ‘हाथ’ ने कमल नोचे। आप ने दिल्ली में ‘कमल’ पर झाड़ू मार दिया। 

0 रमेश कुमार ‘रिपु’



तीन राज्यों में तीन तरह के चुनाव हुए। परिणाम भी तीन तरह के आए। गुजरात में मोदी मैजिक से कांग्रेस बाहर हो गई। और आप पांँच सीट पाकर राष्ट्रीय पार्टी बन गई। हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की हार से राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा की प्रतिष्ठा धुमिल हुई। संभावना है, कि जनवरी के बाद अब ये अध्यक्ष नहीं रहेंगे। दिल्ली में एम.सी.डी.चुनाव में आप ने ‘कमल’ पर झाड़ू मार दिया। बीजेपी के भ्रष्ट पार्षदों का सियासी लाभ 'आप' को मिला। वहीं हिमाचल प्रदेश में आप के 68 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। गुजरात में मोदी मैजिक चला। मगर दिल्ली और हिमाचल में मोदी बेअसर रहे। हिमाचल प्रदेश में ‘हाथ’ ने कमल नोचे। आप ने दिल्ली में ‘कमल’ पर झाड़ू मार दिया। जबकि दिल्ली के एमसीडी चुनाव में बीजेपी ने मोदी के पोस्टर बैनर का खूब इस्तेमाल किया था ।

गुजरात विधान सभा चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और आप तीनों ने रिकार्ड बनाया। आप ने कांग्रेस को बीस सीटों पर सीधे नुकसान पहुंँचाया। आप को 13 फीसदी और कांग्रेस को 28 फीसदी वोट मिले। आप के चुनावी समर में न होने पर उसे 41 फीसदी वोट मिलते। सन् 2017 केे चुनाव में कांग्रेस इतना ही वोट पाकर 77 सीट पाई थी। इस बार राहुल गांधी सिर्फ दो चुनावी सभा को संबोधित किया,जबकि 2017 के चुनाव में 30 रैलियांँ की थी। तब कांग्रेस को 77 सीटें मिली थी। मोदी पिछली दफा 34 रैली किये थे। तब 99 सीट बीेजेपी को मिली थी। इस बार 31 रैली और अहमदाबाद में सबसे लंबा 54 किलोमीटर का रोड शो किया। बीजेपी को 156 सीट मिली। वहीं आम आदमी पार्टी के सुप्रीमों केजरीवाल ने 19 रैली की। बीजेपी ने एंटीइन्कम्बेंसी को पलटने का भी रिकार्ड बनाया। चुनाव से 14 माह पहले मुख्यमंत्री सहित सूबे के 22 मंत्रियों को बदल दिया। टिकट वितरण में 182 में 103 नए चेहरो को टिकट दिया। पांँच मंत्री और 38 विधायको के टिकट काट दिये। जाहिर सी बात है,कि बीजेपी इस फार्मूले को मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनाएगी। खबर है,कि बीजेपी राजस्थान में अपने 71 विधायकों में 40 विधायकों की टिकट काटेगी और करीब सौ नए उम्मीदवारों को टिकट देगी।

गुजरात विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को बीस सीटों पर मिले वोट से जाहिर हैं,कि अगली बार गुजरात में कांग्रेस नहीं,बल्कि आप ही बीजेपी की मुख्य प्रतिद्वंदी रहेगी। इस बार आप ने विपक्ष के वोट को रेवड़ी नीति की चाकू से काट दिया। जिन वोटरों पर कांग्रेस का दावा करती है,उनमें आप ने सेंध मारी। आदिवासी की 33 सीटों में आप को एक सीट,कांग्रेस को तीन और बीजेपी को 26 सीट मिली।  

आप ने जातीय राजनीति के पंडाल में सेंध लगाकर कांग्रेस को बाहर कर दिया। महुआ सीट में बीजेपी को 49 फीसदी,कांग्रेस को 29 और आप को 21 फीसदी वोट मिले। व्यारा सीट पर बीजेपी को 41 कांग्रेस को 27 और आप को भी 27 फीसदी वोट मिले। जाहिर सी बात है यदि आप चुनावी मैदान में न होती तो कांग्रेस जीत जाती। डांग सीट पर बीजेपी 47 कांग्रेस को 33 फीसदी और आप को 16 फीसदी वोट मिले। कपराड़ा सीट पर बीजेपी को 42 फीसदी वोट मिला। कांग्रेस को 27 और आप को 25 फीसदी वोट मिला। देखा जाए तो गुजरात चुनाव में कम सीट के बावजूद आप ने रिकार्ड बनाए। मसलन, चोरयासी, मंगरोल,भिलोडा,देवगढ़बोरिया,फतेहपुर,झालोद में आप दूसरे नम्बर पर हैं। कांग्रेस की 67 सीटों पर मोदी ने चुनाव प्रचार कर 54 सीटें जीत ली। पाटीदार 28 विधान सभा सीटों को प्रभावित करते हैं। पाटीदार वोटर बीजेपी पर ज्यादा भरोसा किया। इसलिए बीजेपी को 24,कांग्रेस और आप को दो-दो सीटें मिली। वहीं सौराष्ट्र में आम आदमी पार्टी की इंट्री कल को बीजेपी के लिए खतरा बन सकती है। वैसे बीजेपी में यहां 48 सीट में 39 सीट जीती है। जमजोधपुर में कांग्रेस को 15 हजार वोट मिले जबकि, आप को 71 हजार वोट मिले। गरियाधार में कांग्रेस को 15 हजार और आप को 60 हजार मत मिले। बोटाद में कांग्रेस को 19 हजार और आप को 80 हजार वोट। ये वोट बताते हैं कि कांग्रेस को अपनी जमीन बनाने में भारी मशक्कत करनी पड़ेगी।  

कांग्रेस ने गुजरात जीतने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। जो प्रत्याशी जीते वो अपने कार्यकर्ता के दम पर जीते। यह माना जा रहा है राहुल गांधी का टारगेट लोकसभा चुनाव है। इसीलिए प्रियंका गांधी भी चुनाव प्रचार का हिस्सा नहीं बनी। यह कह सकते हैं,कि लोकसभा चुनाव से पहले एक और हार का अपयश राहुल नहीं लेना चाहते थे। सवाल यह है कि क्या 2023 में मध्यप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़ और कर्नाटक के चुनाव में राहुल गांधी दूर रहेंगे? हिमाचल माॅडल के दम पर कांग्रेस इन राज्यों में चुनाव लड़ेगी? 

गुजरात में कांग्रेस ने किसी भी स्थानीय नेता को फ्रंट पर नहीं लाया। बीजेपी विकास और हिन्दूत्व के मुद्दे पर चुनाव लड़ी। अरविंद केजरीवाल रेवड़ी नीति पर चुनाव लड़े। बिजली बिल माफ, सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज और मुफ्त अच्छी शिक्षा आदि वायदों के दम पर कांग्रेस वोटर को दो फाड़ करने में कामयाब रहे। लेकिन गुजरात माॅडल के आगे दिल्ली माॅडल फेल हो गया। 

सवाल यह है कि तीन राज्यों के चुनाव परिणाम से क्या 2024 के ट्रेंड का अनुमान लगाया जा सकता है? वैसे संभावनाओं पर ही राजनीति चलती है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं, अब संपूर्ण विपक्ष को एक सियासी पंडाल के नीचे आ जाना चाहिए। हिमाचल और दिल्ली के चुनाव परिणाम से क्या यह मान लिया जाए कि मोदी का सियासी रेट गिरा है। चूंकि दीगर राज्यों में क्षत्रपों का राज्य है। बीजेपी की उनसे बनती नहीं है। उद्धव ठाकरे,नीतिश कुमार, अकाली दल, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव,मायावती, केजरीवाल, नवीन पटनायक,हेमंत सोरेन और दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में केसीआर, आंन्ध्र के वाय. एस. जगमोहन रेड्डी, तमिलनाडु के एम. के.स्टालिन आदि राज्यों के क्षत्रपों से बनती नहीं है। कर्नाटक की बोम्बई सरकार भ्रष्टाचार के लिए बदनाम है। ऐसे में 2024 का चुनाव बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर हो सकती है। सवाल यह है कि 2022 का चुनाव जीतने वाली पार्टियों के सियासी माॅडल का ट्रेंड 2024 के चुनाव में भी दिखेगा क्या ? ऐसा होने पर त्रिशंकू संसद की आशंका ज्यादा है।

 

Sunday, November 27, 2022

सावरकर की चिट्ठी पर सियासी कोलाहल





''महाराष्ट्र में सावरकर का बड़ा सम्मान है। सावरकर की चिट्ठी के जरिये राहुल उनकी देश भक्ति पर सवाल यूंँ ही खड़े नहीं किये हैं। कई सियासी वजह है। वहीं उनके बयान पर भारत जोड़ो यात्रा में कोई बवाल होता,तो ठिकरा शिंदे की सरकार और बीजेपी पर फोड़ते। फिर गुजरात के चुनाव में उसे मुद्दा बनाया जाता।'' 

0 रमेश कुमार ‘रिपु’

एक व्यक्ति के दो चेहरे। उनका नाम है विनायक दामोदर सावरकर। बीजेपी के लिए वीर सावरकर राष्ट्र भक्त हैं। जबकि राहुल गांधी ऐसा नहीं मानते। वीर सावरकार को समझना है। जानना है। तो उन्हें दो हिस्सों में देखना होगा। अंडमान जाने के पहले के सावरकर और अंडमान से आने के बाद के सावरकर के बीच के अंतर को समझना होगा। कांग्रेस से जुड़े लोग अंडमान से पहले की पूरी अवधि की बात नहीं करते। उनके जेल जाने के बाद की गतिविधियों की बात करते हैं। वहीं बीजेपी उनके माफीनामा और उसके बाद की बातों को नजर अंदाज करके देखती है। कांग्रेस भी मानती है,जेल जाने से पहले वे क्रांतिकारी थे। जेल से आने के बाद उनका देश के प्रति और देश की आजादी के लिए आंदोलन करने वालों के प्रति दृष्टिकोंण बदल गया। वे ब्रितानी सरकार के समर्थक हो गए।

‘‘सावरकर के आलोचक मानते हैं कि सावरकर सन् 1937 में रिहा होने से लेकर सन् 1966 में अपनी मृत्यु तक महात्मा गांधी के खिलाफ माहौल बनाने के सिवा कुछ नहीं किया। उन्हें पचास साल काला पानी की सजा हुई। लेकिन दस साल ही रहे। 1923 में वे भारत हिन्दू राष्ट्र किताब लिख कर अंग्रेजों की मदद करने का मन बनाया। अंग्रेजों ने उन्हें हिन्दू महासभा को संगठित करने का अधिकार दे दिया। उनकी पेशन 60 रुपये महीना तय कर दी गई। सावरकर ने इंग्लैंड की रानी को लिखा था,कि आप हिंदुस्तान को नेपाल के राजा को दे दें। क्यों कि नेपाल का राजा सारी दुनिया के हिन्दुओं का राजा है। हिन्दू महासभा का सेशन नेपाल के राजा को सलामी देकर शुरू होता था और उनकी लम्बी आयु की कामना पर खत्म होता था।

सावरकर को लेकर कांग्रेस में आज भी कई तरह का संदेह है। क्यों कि सन् 1948 में मुंबई पुलिस ने सावरकर को गांधी जी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के शक में छह दिनों बाद गिरफ्तार कर ली थी। उन्हें फरवरी 1949 में बरी किया गया। गांधी जी हत्या की जांँच कर रही है कपूर कमीशन की रिपोर्ट में सावरकर को दोष मुक्त नहीं माना गया था। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गाँधी की हत्या के बाद 27 फरवरी 1948 को पंडित नेहरू को लिखे खत में कहा था,सावरकर के अधीन हिंदू महासभा है। यह एक कट्टर शाखा है। जिसने ये साजिश रची और उसे अंजाम दिया। 18 जुलाई 1948 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखे एक खत में गाँधी की हत्या के बारे में सरदार पटेल ने कहा था,कि उन्हें मिली जानकारी इस बात की पुष्टि करती है, कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा की गतिविधियों के परिणाम स्वरूप देश में एक ऐसा माहौल बना था,जिसमें ये भयानक त्रासदी संभव हुई। 

जाहिर सी बात है,इन्हीं सब तथ्यों की वजह से वीर सावरकर के प्रति कांग्रेस के नेताओं की धारणा हलग हटकर है। दूसरी ओर इंदिरा गांधी ने 1966 में सावरकर के निधन पर उन्हें क्रांतिकारी कही थीं,यह भी कहा कि सावरकर ने अपने कार्यों से देश को प्रेरित किया था।’ सावरकर ने सेल्यूलर जेल में मां भारती की स्तुती में छह हजार कविताएं जेल की दीवारों में लिखी। उन्होंने कविता कोयले और पत्थर से लिखा। लिखी कविता को कंठस्थ भी कर लिया था।

सावरकर को 1910 में नासिक के कलेक्टर की हत्या में शामिल होने के आरोप में लंदन में गिरफ्तारी के बाद काला पानी की सजा मिली। सावरकर ने अंडमान की सेल्यूलर जेल में सन् 1913 और 1920 के बीच दया याचिका दायर की थी। उसमें लिखा था,सरकार अगर कृपा और दया दिखाते हुए मुझे रिहा करती है,तो मैं संवैधानिक प्रगति और अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादारी का कट्टर समर्थक रहूँगा,जो उस प्रगति के लिए पहली शर्त है। मैं सरकार की किसी भी हैसियत से सेवा करने के लिए तैयार हूँ,जैसा मेरा रूपांतरण ईमानदार है,मुझे आशा है कि मेरा भविष्य का आचरण भी वैसा ही होगा। मुझे जेल में रखकर कुछ हासिल नहीं होगा,बल्कि रिहा करने पर उससे कहीं ज्यादा हासिल होगा। सर मैं आपका नौकर बन कर रहना चाहता हूँ।

सावरकर पर आरोप है,कि रिहाई के बाद ब्रितानी सरकार हर महीने 60 रूपए की पेंशन देती थी, इसलिए वे ब्रितानी सरकार के काम काज को अच्छा बताते थे। स्वतंत्रता आंदोलन से खुद को दूर रखा। वहीं सावरकर के प्रशंसक कहते हैं,सावरकर ने दया याचिकाएं नहीं बल्कि,आत्म.समर्पण याचिकाएं दायर की थी। उन्हें पेशन नहीं, बल्कि नजरबंदी भत्ता दिया जाता था, गुजारे के लिए । जो कि डेढ़ साल बाद दिया गया। इसलिए कि उनकी एलएलबी की डिग्री मुंबई विश्वविद्यालय ने रद्द कर दी थी। उनकी वकालत पर प्रतिबंध लग गया था। अगर उन्होंने अंग्रेजों से समझौता किया होता तो वो अपनी संपत्ति वापस मांगते। 

कांग्रेस सावरकर के जरिये बीजेपी को घेरना चाहती है। क्यों कि बीजेपी और आरएसएस सावरकर को देशभक्त के रूप में प्रचारित बरसों से कर रही है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह कहकर विवाद को हवा दिया,कि सावरकर को साजिश के तहत बदनाम किया गया है। उन्होंने अंग्रेजों के सामने दया याचिकाएं महात्मा गाँधी के कहने पर दायर की थी। वीर सावरकर एलएलबी थे। बौद्धिक थे। वो गांधी के कहने पर दया याचिका लिखे होंगे,ऐसा नहीं लगता। सावरकर की राजनीति किसी पार्टी के लिए नफा नुकसान का मुद्दा हो सकता है। लेकिन देश हित में जायज नहीं है। 

चूंकि महाराष्ट्र में सावरकर का बड़ा सम्मान है। सावरकर की चिट्ठी के जरिये राहुल उनकी देश भक्ति पर सवाल यूंँ ही खड़े नहीं किये हैं। कई सियासी वजह हो सकती है। वहीं उनके बयान पर भारत जोड़ो यात्रा में कोई बवाल होता,तो ठिकरा शिंदे की सरकार और बीजेपी पर फोड़ते। फिर गुजरात के चुनाव में उसे मुद्दा बनाया जाता। वैसे एक वर्ग मानता है,भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी की छवि में बदलाव आया है। वे पहले से अधिक परिपक्व जान पड़ते हैं। लेकिन सावरकर के मामले में उनकी जानकारी अधूरी है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का बयान गलत नहीं है,राज्य के लोग हिंदुत्व विचारक के  अपमान को बर्दाश्त नहीं करेंगे। उद्धव ठाकरे ने भी कहा सावरकर के प्रति हमारे दिल में सम्मान है। यानी सावरकर पर विवाद कोई नहीं चाहता।

 

प्यार में धोखा,साजिश और खून आता कहांँ से है..!






'अभिभावकों से डरने वाला लड़का हो या फिर शर्मिली,नाजुक,भोली छवि वाली लड़की,अब कहीं गुम हो गई है। डर फिल्म के खलनायक की तरह समाज में प्रेमियों की संख्या बढ़ी है। प्यार,में धोखा,साजिश और खून के ऐसेे मामले समाज की नींव पर प्रहार है।'

0 रमेश कुमार ‘रिपु’
इक्कीसवी सदी में मुहब्बत की एक नई पीढ़ी का उदय हुआ है। जिसने संस्कार और मर्यादा की सारी हदें पार कर फिल्मी दुनिया को एक नई पटकथा दी। देश की राजधानी दिल्ली से लगे महरौली इलाके में आफताब ने लिव इन में रहने वाली श्रद्धा के 36 टुकड़े कर अपराध की दुनिया को चौका दिया। इसी तरह देहरादून में साॅफ्टवेयर इंजीनियर राजेश गुलाटी ने अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी की निमर्म तरीके से 72 टुकड़े किये थे। शव के टुकड़े डीप फ्रीजर में रखा। हर दिन एक टुकड़ा पाॅलीथीन में भरकर फेक आता था। इस हत्या में हाॅलीवुड फिल्म ‘साइलेंस आॅफ दी लैंड’ का भी रोल है। इस फिल्म का हीरो भी अपनी गर्ल फ्रेंड का बड़ी बेरहमी से हत्या करता है।

लखनऊ में सूफियान अपनी 19 वर्षीय प्रेमिका निधि गुप्ता पर धर्म बदलने का दबाव बनाया। उसके मना करने पर उसे चौथी मंजिल से नीचे फेक दिया। संगम विहार में रामवीर लिव इन रिलेशन में रह रही अपनी गर्ल फ्रेंड को लोहे के राड से पीट-पीट कर हत्या कर दिया। मध्यप्रदेश के एक रिसाॅर्ट में अभिजात पाटीदार ने अपनी 22 वर्षीय प्रेमिका की गला रेतकर हत्या कर दी। उक्त घटनाओं ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। आखिर प्यार में धोखा,साजिश और खून आता कहाँ से है? अपनी प्रेमिका या फिर पत्नी से प्यार करने वाले अचानक डर फिल्म के खलनायक शाहरूख खान कैसे बन जाते है? 

कन्नड़ फिल्मों की नायिका मारिया सुसैराज की दोस्ती सिनर्जी एकलैब्स में काम करने वाले नीरज ग्रोबर से हो गई। नौ सेना में काम करने वाले उसके पहले ब्वाॅय फ्रेंड जेरोम को यह दोस्ती नहीं भाई। उसने दोनों को एक साथ देख लिया। तकरार के बाद जेरोम ने छुरा भोंक कर ग्रोवर की हत्या कर दी। 

शहरी भारत में भावावेश में किये जाने वाले अपराध में तेजी ने समाज को झकझोर दिया है। सन् 1990 के बाद के दशक में तलाक की संख्या में बढ़ोतरी हुई तो 21वीं सदी में स्वच्छंदता और कामूकता मे भी इजाफा हुआ। इसके पीछे एक वजह यह भी है,कि तेजी से पंजाब, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़,आन्ध्र प्रदेश आदि राज्यों में शहरीकरण अधिक हुआ। और प्रेमकरण और यौन संबंधी हत्याओं की सबसे बड़ी वजह बनें। 

उभरती माॅडल और अभिनेत्री राउरकेला की रहने वाली अभिनेत्री मून दास ने अविनाश पटनायक से रिश्ते खत्म कर लिए थे। इस अपमान को अविनाश बर्दाश्त नहीं कर सका। वह मुंबई गया। प्रेमिका की माँ,और उसके मामा की हत्या कर दिया। जब मून दास फ्लैट में उसे बंद करके भाग गई,तो वह स्वयं को गोली मार लिया। 

दरअसल सामाजिक ताना बाना बदल गया है। नये इंडिया में एक नई संस्कृति ओढ़ने वाली पीढ़ी की धड़कन देश सुन रहा है। जो अपनी भौतिक,पेशागत और यौन महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए परंपरागत बंधनों को तोड़ कर लिव इन मे रहने लगा है। इसे बुरा भी नहीं मानता? देह उनके लिए उत्सव है। तू राजी, मैं राजी,फिर क्या डैडी, क्या अम्मा का मामला है। अभिभावकों के विरोध और उनकी समझाइश का कोई असर नहीं। ज्यादा बोलने पर दो टूक जवाब,यह मेरी लाइफ है। मेरी मर्जी,इसे जैसा जीऊँ। आप कौन होते हैं,मुझे मना करने वाले।
 
अभिभावकों से डरने वाला लड़का हो या फिर शर्मिली,नाजुक,भोली छवि वाली लड़की अब कहीं गुम हो गई है। भेदभाव और दुर्व्यवहार  पर महिलाओं के पलटवार को अपनी बेइज्जती समझते हैं। श्रद्धा का विरोध आफताब बर्दाश्त नहीं कर सका और उसके 36 टुकड़े कर डाला। प्यार,में धोखा,साजिश और खून के ऐसेे मामले समाज की नींव पर प्रहार है। 

बाली उमर का बुखार लड़कियों को दिमाग से सोचने नहीं देता? सिर्फ दिल से सोचती हैं। जबकि लड़के दिमाग से सोचते हैं। यही वजह है,कि ज्यादातर जवाँं उमर की मुहब्बत की कहानी खून में भीगी होती हैं? परिपक्व उमर वालों की भी मुहब्बत में धोखा,साजिश और खून है। जैसा,कि मध्यप्रदेश का एक खूनी प्रेम त्रिकोंण, जिसने आरटीआई एक्टिविस्ट शहला मसूद की जान ले ली। दो बच्चों की मांँ जाहिदा परवेज ध्रुव  नारायण को दिल बैठी या कहें उनसे व्यावसायिक रिश्ते को दैहिक रिश्ते में बदल ली। और जब उसे लगा,कि ध्रुव नारायण से शहला मसूद भी प्यार की पींगे बढ़ा रही है। उसकी वजह से उसे न केवल प्यार बल्कि, व्यावसायिक नुकसान भी है,तो उसने पेशेवर हत्यारे के जरिये उसकी हत्या करा दी। लेकिन आफताब और श्रद्धा का मामला अलहदा है। यहांँ आफताब स्वयं प्रेमी है और अपनी प्रेमिका का हत्यारा भी है।

आफताब की क्रूरता से स्पष्ट है,कि श्रद्धा के प्रति आफताब में कोई श्रद्धा नहीं थी। उसकी लाश के 36 टुकड़े करने पर उफ तक नहीं किया। आफताब ‘डर’ फिल्म के खलनायक से भी अधिक खतरनाक किस्म का प्रेमी निकला। वहीं आफताब ने कई बार श्रद्धा के साथ मारपीट किया। फिर भी श्रद्धा का झुकाव उसके प्रति कम नहीं हुआ। अभिभावक कितना भी अपने बच्चों से नाराज हों,मगर दुश्मन नहीं है। यदि वो अपने घर वालों से बात करती,तो बच सकती थी। 

भारत की यौन क्रांति का यह भयावह चेहरा है। जहाँं जुनून में लोग अपना होशो हवाश खो रहे हैं। खाने पीने की चीजों की तरह अब यौन सुख का बाजारीकरण हो गया है। दाम्पत्य जीवन के मूल्य छिन्न भिन्न हो गए हैं। सामाजिक मान्यता और मर्यादा से जकड़े संबंधों के दिन अब लद गए। गर्ल फ्रेंड और ब्वाॅय फ्रेंड रखना स्टेट्स सिंबल बन गया है। बाद में नतीजा जो भी हो।

नई पीढ़ी को इससे कोई मतलब नहीं,कि कविता में भाषा क्या करती है। मुहब्बत में गालिब की आतिश के क्या मायने हैं। सास भी कभी बहू थी सीरियल में खलनायिका मदिरा एक रात के लिए मिहिर को संबंध के लिए ललचाती है। वहीं तुलसी और पार्वती मध्यम वर्ग को नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं। जबकि नई पीढ़ी की बहुएं और बेटियांँ परंपरागत पतिव्रता पत्नियां अब नहीं रही। अनुपमा,इमली,जैसे धारावाहिक में नैतिकता का चोला उतारने वाले पात्र सात फेरों की पवित्रता को दागदार कर रही हैं। टी.वी.और फिल्मों की नैतिकता से भारत भले न बदले,मगर उसका दृष्टकोंण बखूबी बदला है।

 

'आरक्षण की परखनली में विवादों का भ्रूण'' '





आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को जब गैस सिलेडर पर सब्सिडी नहीं दी जा रही है,तो फिर आरक्षण क्यों दिया जा रहा है? इसे देश के विकास में बाधक कितने चुनाव के बाद माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इंदिरा साहनी मामले में तय की गई आरक्षण की सीमा अब खत्म हो सकती है। उच्चतम न्यायालय क्रीमी लेयर का कोटा कम करता तो आरक्षण का लाभ औरों को भी मिलता।  

0 रमेश कुमार ‘रिपु’

सुप्रीेम कोर्ट ने आरक्षण मुद्दे पर जो फैसला सुनाया है,उससे सवालों के बैंक खुल गए। वैसे यह आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए रेवड़ी ही है। यानी मोदी सरकार की नये वोट बैंक की तलाश पूरी हो गई। अब आरक्षण का कोटा पचास फीसदी से बढ़कर साठ प्रतिशत हो गया। कायदे से सुप्रीम कोर्ट को क्रीमी लेयर को मिलने वाले आरक्षण कोटे को घटाकर दस फीसदी का लाभ आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो को देना चाहिए था। इसलिए कि अब इन्हें आरक्षण की जरूरत नहीं है। यदि ऐसा नहीं किया गया,तो देश से आरक्षण कभी खत्म नहीं होगा और आने वाले समय मे आरक्षण का कोटा सौ फीसदी तक जा सकता है। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने अपने फैसले में जायज बात कहीं,‘‘आजादी के 75 साल के बाद हमें समाज के व्यापक हित में आरक्षण की व्यवस्था पर फिर से विचार करने की जरूरत है।’’

प्रमोशन में आरक्षण के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी कोई राय जाहिर नहीं किया है। यानी यह मोदी सरकार के पाले में है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह न सोचें, कि यह आरक्षण केवल सवर्ण के लिए है। इसलिए कि कई राज्यों में जो जाति ओबीसी में है,वही दूसरे राज्य में सवर्ण है। जैसे बघेल जाति मध्यप्रदेश में सवर्ण है,लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य में ओबीसी। यानी आर्थिक रूप से पिछड़ी जाति में मुस्लिम,ईसाई आदि कई जातियाँ आएंगी। मुस्लिमों के आर्थिक रूप से पिछड़े होने की कई रिपोर्ट है,जो उनके आरक्षण का आधार बन सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अब आर्थिक रूप से पिछड़ापन आरक्षण का आधार बन गया। अभी तक सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण की व्यवस्था थी। मोदी कहते हैं,सबका साथ,सबका विकास,यानी सबको रेवड़ी दो। ताकि सत्ता का प्याला हाथ से न छिटके। बीजेपी को उम्मीद है,कि हिमाचल और गुजरात चुनाव में आरक्षण के इस फैसले से लाभ मिलेगा। वहीं विपक्ष का कहना है, कि मोदी सरकार वाकई में दस फीसदी का लाभ जरूरत मदों को देना ही चाहती है,तो उससे पहले जातिगत जनगणना जरूरी था। इससे नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का पता चलता। उन लोगों की पहचान हो जाती,जिन्हें वाकई में लाभ मिलना चाहिए। इस फैसले से ऐसा नहीं लगता, कि मोदी सरकार बहुत गंभीर थी दस फीसदी के आरक्षण को लेकर। यदि ऐसा होता तो वह रोहिणी आयोग की उन बातों को भी तरजीह देती,जिसमें बताया गया था,ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण के तहत नब्बे फीसदी से ज्यादा नौकरियांँ इस समूह की 25 फीसदी जातियों को ही मिलती है। आयोग के मुताबिक 983 ऐसी उप जातियाँ हैं,जिन्हें आज तक नौकरी नहीं मिली। इस मामले पर सरकार को विचार करना चाहिए। वैसे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मोदी सरकार की नीतिगत फैसले और विचारधारा को मजबूती मिली।

अब राज्य सरकारें अपने राज्य में आरक्षण मनमाने तरीके से बढ़ाएंगे। इससे आर्थिक और कानूनी आराजकता बढ़ने की आशंका है। क्यों कि पचास फीसदी आरक्षण की सीमा रेखा पहले भी कई राज्यों में खत्म हो गई है। महाराष्ट्र में 64,हरियाणा में 60,बिहार 60,तेलंगाना 50 फीसदी से अधिक,गुजरात 50,10 फीसदी ईडब्लयूएस कोटा शामिल,राजस्थान 64, तमिलनाडु 69,झारखंड 50, और मध्यप्रदेश 73 फीसदी। जिन राज्यों में आरक्षण पचास फीसदी से ज्यादा है,वहाँ जातीय विभाजन होगा। समानता के अधिकार का नियम आरक्षण का अधिकार बन जाएगा। यह विकास की राह में रोड़ा बनेगा। तमिलनाडु में सन् 1993 के आरक्षण अधिनियम के अनुसार शिक्षा संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में 69 फीसदी आरक्षण दिया जाता है । वहीं जनवरी 2000 में आन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल ने अनुसूचित क्षेत्र में स्कूली शिक्षकों की भर्ती के लिए अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को सौ फीसदी  आरक्षण देने का फैसला किया था। जिसे अदालत ने असंवैधानिक कहा था। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश ने आरक्षण की सीमाएं तोड़ दी है। 

छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री ओबीसी से आते हैं। छत्तीसगढ़ में कुल आरक्षण की सीमा 82 फीसदी हो गया है। यानी यहांँ ओपन वर्ग वाले सिर्फ 18 फीसदी लोग ही शिक्षा संस्थानों में प्रवेश पा सकते हैं। और सरकारी नौकरियों में जा सकते हैं। हालांकि बिलासपुर हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना है। मध्यप्रदेश में दस फीसदी कोटा शामिल है,कुल 73 फीसदी आरक्षण होने पर जबलपुर हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। राजस्थान सरकार ने पांँच फीसदी गुर्जरों को आरक्षण देना चाहती है,लेकिन हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। महाराष्ट्र में मराठाओं को आरक्षण देने की बात उठी। यानी देश में आरक्षण की सीमाएं धीरे-धीरे राज्य सरकारें बढ़ा रही हैं। एक दिन सौ फीसदी हो जाएगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत गलत नहीं कहते हैं,आरक्षण पर पुर्नविचार किया जाना चाहिए। 

सवाल यह है कि आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को जब गैस सिलेडर पर सब्सिडी नहीं दी जा रही है,तो फिर आरक्षण क्यों दिया जा रहा है? इसे देश के विकास में बाधक कितने चुनाव के बाद माना जाएगा। दरअसल राजनीति से जाति कभी जायेेगी नहीं। आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सवालों के बैंक बंद नहीं हुए। आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को दस फीसदी आरक्षण देेने सेे सरकार की नये वोट बैक की तलाश पूरी हो गई। लेकिन इस फैसले से इंदिरा साहनी मामले में तय की गई आरक्षण की सीमा रेखा मिट जाएगी। उच्चतम न्यायालय क्रीमी लेयर का कोटा कम करता तो आरक्षण का लाभ औरों को भी मिलता। 

सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण पर जो नया फैसला आया है,उससे नया विवाद आकार ले लिया है। सरकार इनकम टैक्स में ढाई लाख की छूट देती है। लेकिन आरक्षण के लिए आठ लाख रुपये आय की सीमा तय किया है। जो कि ज्यादा है। इस दायरे में देश की नब्बे फीसदी आबादी आ जाएगी। आर्थिक मापदंड पर सवाल उठ रहे हैं। वहीं अभी तक दी जा रही है आरक्षण की व्यवस्था में ओबीसी 27 फीसदी,एससी 15 और एस.टी. 7.5 फीसदी है। और दस फीसदी ईडब्लयूएस के लोगों को आरक्षण मिला है। राज्य में हर सरकार ओबीसी का कोटा बढ़ाने की बात कर रही है। बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी है। जाहिर सी बात है,ओबीसी का कोटा बढ़ाए जाने पर दस फीसदी वाले इसका विरोध करेंगे और वो भी चाहेंगे कि उनका भी कोटा बढ़ाया जाए।

दरअसल राजनीति से जाति जा नहीं रही है। इसीलिए पंचायत चुनाव,नगर निगम चुनाव,विधान सभा और लोकसभा चुनाव में भी जाति के आधार पर सीटें तय की गई हैं। यानी जिस देश में संसद ही आरक्षित हो,वहांँ जातिगत आरक्षण को खत्म कर आर्थिक आरक्षण की बात होगी,सोचना भी बेमानी है।

 

Friday, November 4, 2022

मरम्मत मांगती है देश की अर्थव्यवस्था




नोटबंदी से काला धन नहीं आया। मगर पांच सौ और दो हजार के 9.21 लाख करोड़ रुपये गायब हो गये। दूसरी ओर रुपया दुनिया के बाजर में गिर रहा है। ऐेसे में देश को ऊँची विकास दर की जरूरत है। लोगों को पाँंच किलो अनाज नहीं,नौकरी के जरिये पैसा चाहिए।  
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
दुनिया के बाजार में रुपया गिर रहा है। एक डालर 83 रुपये के पार हो गया है। भारत की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर चुकी है। आरबीआई ने हाथ खड़े कर दिये हैं। फिर भी न वजीरे आजम और न ही किसी भी राज्य के वजीरे आला के माथे पर कोई शिकन है। रिजर्व बैंक के अनुसार देश के 27 राज्यों में दस राज्य रेड जोन में है। यानी ये अपने दम पर अपनी सरकार चलाने की स्थिति में नहीं है। जीएसटी का पैसा मिलने के बाद भी। क्यों कि मिलने वाला टैक्स 80 फीसदी कम हो गया है। बिना टैक्स के कमाई की कोई योजना नहीं है। राज्यों के खर्चे 20 फीसदी से बढ़कर 55 फीसदी हो गया है। नोटबंदी से काला धन नहीं आया। मगर पांच सौ और दो हजार के 9.21 लाख करोड़ रुपये गायब हो गये। दूसरी ओर रुपया दुनिया के बाजार में गिरता जा रहा है। वहीं अर्थव्यवस्था संभाल नहीं रही है। देश को ऊँची विकास दर की जरूरत है। लोगों को पाँंच किलो अनाज नहीं,नौकरी के जरिये पैसा चाहिए।   
धनतेरस को ‘नौकरी तेरस’बताने प्रचार में छह करोड़ रुपये मोदी सरकर ने फूंक दिया। यह बताने के लिए,कि मोदी सरकार 75 हजार नौकरी बांट रही है। सुबह से एक दर्जन विभाग के मंत्री नौकरी के प्रचार की डुगडुगी पीट रहे थे। लगे हाथ घोंषणा भी कर दी,कि दिसम्बर 2023 तक दस लाख और नौकरियाँ सरकार देगी। हर साल दो करोड़ नौकरियाँ देने का वायदा था। यानी आठ साल में सोलह करोड़ नौकरियाँ। वो मिली नहीं। या कहें उसकी जवाबदारी नहीं निभा सके। जबकि सन् 1991 के बाद बैंक और रेल विभाग में 70 हजार से ज्यादा नौकरियांँ दी जाती थीं। कई बार इसकी संख्या एक करोड़ तक पहुंँची है।
सन् 2014 से अब तक 22 करोड़ 6 लाख लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया। सात लाख 22 हजार 311 लोगों को सरकारी नौकरी दी गई। विपक्ष का दावा है,कि अकेले केंद्र सरकार में ही करीब 30 लाख पद खाली पड़े हैं। सरकार की नियत ठीक नहीं है नौकरी देने में। वह एक-एक करके महत्वपूर्ण संस्थानों का निजीकरण करना चाहती है। सबसे कम नौकरी 2018-19 में महज 38100 लोगों को मिली। जबकि पांँच करोड़ 9 लाख 36 हजार 479 लोगों ने आवेदन किया था। हालांकि साल 2019-20 में 147096 युवाओं को सरकारी नौकरी मिली। अब अडानी चार सौ करोड़ रुपये रक्षा विभाग में इनवेस्ट करने जा रहे हैं। सवाल यह है कि सरकार के साथ दो-चार कारर्पोरेट रहेंगे,तो क्या अर्थव्यवस्था सुधर जायेगी? वहीं सरकार नौकरी देगी मगर पेंशन नहीं। इससे सरकार का 35 फीसदी पैसा बच जायेगा। जरूरी है कि सरकार विनिवेश को गति दे। बैंकिंग व्यवस्था में स्थिरता लाए। घरेलू और विदेशी निवेशकों के लिए प्रोत्साहन तंत्र दुरुस्त करें।
विभिन्न सरकारी विभागों में मार्च 2021 में करीब 978328 पद खाली हैं। गृहमंत्रालय में करीब 1.4 लाख पद खाली हैं। रेल मंत्रालय में करीब 2.94 लाख,रक्षा विभाग में 2.64 लाख, डाक विभाग में 90 हजार और राजस्व विभाग में करीब 80 हजार पद खाली हैं। कोरोना माहामारी के चलते सेना ने 2020-21 और 2021-22 में भर्ती प्रक्रिया को स्थगित कर दिया था। केंद्र सरकार ने हाल ही में अग्निवीर योजना की घोषणा की है। जिसकी भर्ती प्रक्रिया जारी है। इसके अलावा दिल्ली के सारे दफ्तर में संघ से जुड़े करीब पांँच हजार लोग नौकरी कर रहे हैं।
राज्यों में बेरोजगारी दर घटी नहीं है। हरियाणा की बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा 26.7 फीसदी है। जबकि राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में यह 25.25 फीसदी है। बिहार में 14.4 प्रतिशत,त्रिपुरा में 14.1,पश्चिम बंगाल में 5.6,कर्नाटक और गुजरात में सबसे कम 1.8 फीसदी बेरोजगारी है। जून 2022 में पूरे देश के लेवल पर बेरोजगारी दर 7.80 फीसदी थी। बेरोजगारी का यह आंकड़ा शहरी क्षेत्र में 7.30 और ग्रामीण क्षेत्र में 8.03 रहा। जून महीने में ही कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब 1.3 करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा। सन् 2020 में महामारी की पहली लहर में 1.45 करोड़, दूसरी लहर में 52 लाख और तीसरी लहर में 18 लाख लोगों की नौकरी गई। केन्द्र सरकार का दावा था,2022 तक किसानों को खेती लाभ का सौदा साबित होगी। लेकिन आन्ध्र में 93 फीसदी किसान कर्ज में डूबे हैं। तेलंगाना में खनिज सपदा के मामले में बहुत आगे फिर भी यहांँ 91.7 फीसदी,ओड़िसा में 60 फीसदी किसान कर्ज में डूबे हैं। कमोवेश हर राज्य में कर्ज वाले किसानों का आंकड़ा उम्मीद से ज्यादा है।
हालात इतने खराब कभी नहीं थे। मरम्मत मांगती है अर्थव्यवस्था। पिछले बरस 638 अरब डालर विदेशी मुद्रा का भंडार देश में था। इस बरस 528 अरब डालर रह गया। वहीं ग्यारह लाख करोड़ रुपये कर्ज सरकार ने उद्योगपतियों के एक झटके में माफ कर दिया। इससे बैंक और कंगाल हो गए।  
कमजोर होती अर्थव्यवस्था से अब तक 1.3 लाख लोग देश की नागरिकता छोड़ कर बाहर चले गए। इस साल अभी तक 88 हजार लोग नागरिकता छोड़ चुके हैं। आठ लाख विद्यार्थी विदेशों में पढ़ रहे हैं। विदेशों में पढ़ाई और महंगी हो गई। क्यों कि डालर की वजह से रुपया अधिक देना पड़ रहा है। देश की अर्थव्यवस्था की मरम्मत नहीं की गई तो महंगाई के साथ बेरोजगारी और बढ़ेगी। भारत का आयात महंगा हो गया है। जिससे   घरेलू बाजार में कीमतों के दाम बढ़ रहे हैं। आरबीआई ब्याज दर बढ़ाने की स्थिति में नहीं। इसलिए निवेशक अपना पैसा निकाल कर दूसरे देश में जमा कर रहे हैं। अनुमान है  कि देश की अर्थव्यवस्था 2035 से पहले नहीं सुधर सकती। जीडीपी दर में कमी हो तो महंगाई कम हो। पाँच किलो अनाज देने से देश की इकोनामी नहीं सुधर सकती। इससे वोट बैंक प्रभावित हो सकता है। साढ़े आठ हजार करोड़ के विमान में सफर करने से न देश की जीडीपी सुधरेगी और न ही डालर के मुकाबले रुपया मजबूत होगा। राज्यों को जीएसटी का पैसा नहीं दिया जा रहा है। सब्सिडी देने वाली कई योजनाओं को बंद कर दिया गया है,लेकिन लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत करने वाली योजनाओं की कमी है।
रेवड़ियाँ बांटने से राज्य सरकारों का घाटा बढ़ता गया। आजयू.पी. में 82.8 फीसदी,एम.पी. में 82,बिहार में 85, झारखंड में 82,पंजाब में 90,हरियाणा में 85,पश्चिम बंगाल में 89,राजस्थान 40, और आंन्ध्र प्रदेश में 38 फीसदी रेवड़ी बांटी जाती है। जनता के हित में सरकार बहुत कम खर्च करती है। एम.पी.मे ं4.9 प्रतिशत,झारखंड में 5.8,यूपी में 5.2,हरियाणा में 7.5,पश्चिम बंगाल में 9.7 केरल में 1.2 फीसदी खर्च होता है। दूसरी ओर सियासी दल चुनाव जीतने के लिए सत्ता में आने पर किसानों के कर्जे माफ करने की बात करते हैं। यानी ग्रामीण बैंक,कमर्शियल बैंक से कर्ज लीजिये,जो भी पार्टी आयेगी कर्जे माफ कर देगी। यानी राजनीति ही अर्थव्यवस्था के सिस्टम को खोखला कर रही है।
 

सरकार गिराने की साजिश में अव्वल बीजेपी




नये इंडिया में सरकार हड़पने की साजिश तेज है। यह दौर पैसे के दम पर सरकार गिराने और बनाने का है। आन्ध्र में विधायकों को खरीदने का भंडाफोड़ होने के बाद अब गैर बीजेपी शासित राज्यों के कान खड़े हो गए हैं। मौजूदा राजनीति इशारा कर रही है,आने वाले समय में चार राज्यों की सरकार गिर सकती है।
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
वोट से बनने वाली सरकार को प्रभावित करने वाली राजनीति के आकार लेने से लोकतंत्र का चेहरा बदलने लगा है। क्यों कि चुनी गई सरकार को गिराने की साजिश पैसे वाली राजनीति करने लगी है। यानी नये इंडिया में पैसे पर राजनीति पलने लगी। और पैसे के दम पर सरकार गिरने और बनने लगी है। केन्द्र सरकार किसी भी राज्य की सरकार के काम काज और उसकी व्यवस्था पर ऊंगली नहीं उठाना चाहती। तोहमत लगने से बचना चाहती है। कानून के जरिये हटाना जरूरी नहीं समझती। जैसा कि बाबरी मस्जिद गिरने के बाद नरसिम्हा राव सरकार ने कानून व्यवस्था के मुद्दे पर यू.पी.की कल्याण सिंह सरकार, हिमाचल प्रदेश की शांता कुमार,राजस्थान की भैरों सिंह शेखावत और एम.पी. की सुंदर लाल पटवा सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करवा दिया था। अब ऐसा नहीं होता। नये इंडिया में सरकार हड़पने की साजिश तेज है। यह दौर पैसे के दम पर सरकार गिराने और बनाने का है। आन्ध्र में विधायकों को खरीदने का भंडाफोड़ होने के बाद अब गैर बीजेपी शासित राज्यों के कान खड़े हो गए हैं।
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे कितने दिनों के मुख्यमंत्री हैं,खुद शिंदे भी नहीं जानते। क्यांे कि उनके बाइस विधायक बीजेपी में शामिल होने को आतुर हैं। इसके पीछे वजह यह है, कि सरकार में वे शिंदे गुट के हैं। लेकिन अपने विधान सभा क्षेत्र में वे शिवसेना के विधायक हैं। एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों की फजीहत हो रही है। इससे बचने वे बीजेपी में शामिल होना चाहते हैं। कम से कम मौजूदा राजनीति की कालिख लगने से बच जायेंगे। क्यों कि महाराष्ट्र के चार प्रोजेक्ट गुजरात शिफ्ट करने के बावजूद शिंदे ने केन्द्र सरकार से कुछ नहीं कहा।
टाटा एयरबस परियोजना 22000 करोड़ रुपये की है, महाराष्ट्र से गुजरात स्थानांतरित कर दिया गया। अब वायुसेना के लिए टाटा एयरबस द्वारा सी.295 परिवहन विमान का निर्माण गुजरात के वड़ोदरा शहर में होगा। उद्धव सरकार ने कोविड के समय 6.5 लाख करोड़ रुपए और दावोस से 80000 करोड़ रुपए का निवेश लाए थे। इसी तरह देश का पहला सेमीकंडक्टर प्लांट जिसकी कुल लागत 154000 करोड़ रुपये है। अब महाराष्ट्र की बजाय गुजरात के अहमदाबाद जिले में लगेगा। दो अन्य प्रोजेक्ट भी गुजरात शिफ्ट कर दिया गया। इन वजहों से देर सबेर एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों दो फाड़ की संभावना ज्यादा है। एकनाथ शिंदे के नाम के आगे से मुख्यमंत्री शब्द भी हटने की आशंका है।   
विपक्ष चीख-चीख कर कह रहा है। जनता के वोट से बने लोकतंत्र को दो चार काॅरपोरेट के लोग अपने तरीके से गढ़ने लगे हैं। देश की हर राज्य सरकार के मन में भय ब्याप्त हो गया है, कि अगली सुबह उनकी सरकार रहेगी या नहीं। बहुमत वाली सरकार के कब बुरे दिन आ जाएं,वह भी नहीं जानती। ईडी, आईटी और सीबीआई के छापे का खौफ अपनी जगह है। एक नया खौफ गैर बीजेपी सरकार को हो गया है। जैसा कि दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कहते हैं,उनकी सरकार को अस्थिर करने की साजिश बीजेपी कर रही है। आडियो टेप में दिल्ली सरकार के 43 विधायकों को खरीदने की बात सामने आई है। तेलंगाना के टी.आर.एस. के विधायकों को खरीदने के आरोप में गिरफ्तार तीन लोगों ने इस साजिश का पर्दाफाश किया। आडियो टेप में शाह और बी.एल संतोष से बातचीत में कह रहे हैं,अलग से पैसा रखा है। तेलंगाना में चार विधायकों को खरीदने के लिए 25-25 करोड़ रुपये दिये जा रहे थे। दिल्ली सरकार के 43 विधायकों को खरीदने के लिए 1075 करोड़ रुपये का अरेंज किया गया। यह अलग बात है कि कोर्ट ने पुलिस को तीनो आरोपियों रामचन्द्र भारती,संत डी सिम्हजी ओर व्यपारी नंदकुमार को हिरासत में लेने के आदेश को खारिज करते हुए रिहा करने आदेश दिया। नदकुमार को विधायक पी रोहित रेड्डी के मोहनाबाद स्थित फार्म हाउस से गिरफ्तार किया गया था।
सवाल यह है कि इतनी बड़ी रकम पर ईडी और इनकम टैक्स चुप क्यों है? यह पता लगाया जाना चाहिए कि आखिर इतनी राशि आई कहांँ से। आडियो में बी.एल संतोष का नाम आया है तो ईडी को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। चुप्पी कई संदेहों की ओर इशारा कर रही है। जाहिर सी बात है, कि पंजाब में भी सरकार को अस्थिर पैसे के दम पर करने की कोई योजना हो सकती है।  
पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में करीब 3 महीने पहले झारखंड सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी,राजेश कच्छप और नमन विक्सल,ड्राइवर और एक सहयोगी कोे गिरफ्तार किया गया था। इन्हें हेमंत सोरेन सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए 48 लाख रुपये रिश्वत दिया गया था। सरकार गिरने के बाद दस करोड़ रुपये और मंत्री पद का वायदा था। रांची के अरगोड़ा थाने में तीनों विधायको के खिलाफ एफ.आई.आर.दर्ज की गई। कांग्रेस ने तीनों को पार्टी से निष्कासित कर दिया है।
गौरतलब है,कि बीजेपी ने हेमंत सोरेन को आफर दिया था कि वो कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी के समर्थन से सरकार बना लें। अभी हेमंत सोरेन की विधायकी का मामला राज्यपाल के पास है। चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से रिपोर्ट दे दी है। फैसला राज्यपाल को करना है। जाहिर सी बात है राज्यपाल हेमंत सोरेन के खिलाफ तब तक कोई कार्रवाई नहीं करेंगे,जब तक बीजेपी सरकार बनाने के लिए किसी योजना के अंजाम तक नहीं पहुंँच जाती है। यानी झारखंड सरकार में बीजेपी को किसी शिंदे की तलाश है।    
देश की राजनीति में हाॅर्स टेªेडिंग का खेल में अचानक बड़ी तेजी से उभरा। कर्नाटक, महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश जैसे बड़़े राज्यो में विधायकों को खरीद कर चुनी गई सरकार को गिरा कर नई सरकार बनाने की राजनीति हुई है। प्रलोभन के जरिये विधायकों को पार्टी छोड़ने के लिए उकसाया गया। जिन पार्टियों से विधायक गए उन्होंने सामने वाली पार्टियों पर विधायकों को खरीदने का आरोप लगाया। सबसे अधिक चैंकाने वाला खेल मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हुआ। कमलनाथ की सरकार ज्योतिरादित्य की वजह से गिर गई और उद्धव की महाविकास अघाड़ी सरकार एकनाथ शिंदे की बगावत से गिर गई। दोनों की सरकार को गिराने में बीजेपी का अहम रोल रहा। वहीं कर्नाटक में सरकार बनने और गिरने का खेल कई बार हुआ। छब्बीस जुलाई 2019 को बीएस येदियुरप्पा चैथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस वक्त बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री हैं।
आने वाले समय में चुनी सरकार को इसी तरह गिराने का खेल चलने से भारतीय राजनीति वह नहीं रह जायेगी,जिसे जनता जानती है। जिस देश में सत्ता की बागडोर छीनने की साजिश वाली राजनीति आकार लेगी, वहाँ काॅरपोरेट जगत के लोग चाहेंगे कि केन्द्र ही नहीं राज्यो में भी सरकार उनके दम पर बने। इससे काला धन को सफेद करने वालों की संख्या बढ़ेगी। जो एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के हित में नहीं है।


 
 

 
 


 

Thursday, September 29, 2022

राजस्थान में बगावत,कांग्रेस में नई आफत







कांग्रेस के अध्यक्ष पद का नामांकन गहलोत ने भरा नहीं। सी.एम. पद से इस्तीफा भी नहीं दिया। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने नये सी.एम.के चुनाव के लिए पर्यवेक्षक भेजकर गलती कर दिया। गहलोत समर्थक विधायकों ने अपनी सियासी ताकत की नुमाइश कर गांधी परिवार को संदेश दिया, कि राजस्थान में गहलोत ही सरकार हैं। गहलोत ही कांग्रेस हैं।  

 
0 रमेश कुमार 'रिपु'
एक बार फिर राजस्थान में कांग्रेस चौराहे पर खड़ी है। दो साल पहले भी यही स्थिति थी। जब सचिन पायलट ने बगावत की थी। उस वक्त गहलोत सरकार धड़ाम होने से बच गई थी। वही खेल एक बार फिर खेला जा रहा है। मगर इस बार खिलाड़ी बदल गये हैं। कांग्रेसी पंडाल में सी. एम.की कुर्सी के लिए जोर आजमाइश का सियासी शो चल रहा है। गहलोत की पसंद सचिन पायलट नहीं हैं,जबकि आलाकमान चाहता है,सचिन ही राजस्थान के सी. एम.बनें। गहलोत के समर्थित विधायकों कहना है कांग्रेस के गद्दार को पुरस्कार आलाकमान क्यों देना चाहता है? कांग्रेस के 102 विधायकों में किसी को भी मुख्यमंत्री बना दिया जाए,हमें स्वीकार है। लेकिन गांधी परिवार विधायकों की बातें सुनने को तैयार नहीं है। विधायकों की नाराजगी को आलाकमान बगावत मानता है। देखा जाए तो राजस्थान में सियासी बवाल आलाकमान की अदूरदर्शिता की वजह से हुआ है। तीन दिनों से राजस्थान कांग्रेस की सियासी घटना सुर्खियों में है। 

अभी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरा नहीं गया और राजस्थान में नया मुख्यमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने पर्यवेक्षक भेज दिया। इस मामले में गहलोत से पूछा तक नहीं कि वे कब अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल कर रहे हैं। वैसे भी कांग्रेस अध्यक्ष  का परिणाम आने में करीब तीन हफ्ते है। राजस्थान में क्या हो सकता है हाईकमान नहीं समझ सका,तो यह एक बड़ी चूक है। यदि सोच समझ कर हाई कमान  ने कदम उठाया है तो यह एक बड़ा दांव है। क्यों कि राजस्थान में बीजेपी की सीट में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। बीजेपी के 71 विधायक हैं। बीजेपी की नजर कांग्रेस के घटना क्रम पर है। वो चाहती ही है,कांग्रेस में बगावत हो और विधायक टूटें। और वे लपक लें। हैरानी वाली बात है,कि पर्यवेक्षकों को भी इतनी जल्दी क्यों थी,नया सी.एम.का चुनाव कराने की? कांग्रेस के हाथ में दो राज्य हैं। राजस्थान की तरह छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री पद के लिए भूपेश और टी.एस.सिंहदेव में खटास है। राजस्थान में इतनी बड़ी अस्थिरता खतरनाक है। इसका असर छत्तीसगढ़ में भी पड़ सकता है।

राजस्थान में कांग्रेस के कुल 108 विधायक हैं। जिसमें से गहलोत समर्थक करीब 85 विधायकों ने गांधी परिवार के फैसले के खिलाफ विधान सभा अध्यक्ष सी.पी.जोशी को इस्तीफा दे दिये हैं। गहलोत समर्थक विधायकों ने अपनी सियासी ताकत की नुमाइश कर गांधी परिवार को संदेश दिया, कि राजस्थान में गहलोत ही सरकार हैं। गहलोत ही कांग्रेस हैं। वे सीधे-सीधे दस जनपथ को चुनौती दे दिये हैं। पर्यवेक्षक अजय माकन की नजर में यह अनुशासनहीनता है। अनुशासनहीनता कहने की नौबत आ गई तो जाहिर है इसके बड़े खतरे हैं। गहलोत ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया,कि राजस्थान में जो कुछ हो रहा है,वो मेरे बस में नहीं है। जो कुछ कर रहे हैं वो विधायक कर रहे हैं। 

कांग्रेस के देेह गोवा में कुछ दिनों पहले ही कट चुकी है। आपसी झगड़े की तपिश में पंजाब में कांग्रेस झुलस चुकी है। जैसा कि शांती धारीवाल ने कहा,कुछ लोगों की चाल है,वे चाहते हैं पंजाब की तरह राजस्थान से भी कांग्रेस चली जाए।
इससे इंकार नहीं है कि गांधी परिवार के खिलाफ अदावत के लिए विधायक मोहरा हैं,जबकि पीछे गहलोत का चेहरा है। कल तक अशोक गहलोत को जो सियासत का जादूगर कहते थे,अब उनके लिए इस जादूगर का जादू खलने लगा है।

 सोनिया और राहुल गांधीे कल तक गहलोत पर विश्वास पात्र और भरोसा का दम भरते थे, उनके भरोसे को वो बेदम कर दिए। दस जनपथ उन्हें राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष शायद ही बनाए। हो सकता है उन्हें मुख्यमंत्री पद से भी हटा दे। गेम प्लान करने वाले के खिलाफ दस जनपथ कौन सा गेम खेलता है,सब की नज़र है। 

सोनिया गांधी नहीं चाहेंगी कि पंजाब की तरह राजस्थान में कांग्रेस का हश्र हो इसलिए वे सारे विकल्प खुले रखना चाहेंगी। कांग्रेस हाईकमान के फैसले के खिलाफ गहलोत न जाएं इसके लिए पायलट और गहोलत को बिठाकर आमने.सामने बात कर सकती हैं। गहलोत पर पायलट के पक्ष में समर्थन के लिए दबाव बनाया जा सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो पायलट को खुश करने केन्द्रिय संगठन में उन्हें कोई पद देकर खुश करने की पहल हो सकती है। लेकिन पायलट मान जायेंगे,ऐसा नहीं लगता। पायलट की खिलाफत करने वाले विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की नोटिस या चेतावनी भी दी जा सकती है। लेकिन ऐसा करने पर अन्य राज्यों पर इसका विपरीत असर पड़ने का भी अंदेशा है। यह हो सकता है कि राज्यों के क्षत्रपों के अधिकार और पाॅवर में कटौती की जाए। 

बहरहाल अशोक गहलोत अलाकमान को अपनी तीन शर्तो के जरिये उलझाने का दांव खेला है। पायलट गुट के  विधायक को सी.एम.नहीं बनायें। सी.एम. का फैसला 19 अक्टूबर के बाद हो और तीसरी शर्त नया अध्यक्ष जो बने, वो ही राजस्थान का सी.एम.तय करे। पर्यवेक्षक अजय माकन का कहना था, विधायक बेवजह नाराज हो रहे हैं। ऑब्जर्वर्स तो केवल सी. एम. चयन का अधिकार हाईकमान पर छोड़ने का प्रस्ताव पारित करवाने आए हैं,किसी खास नेता को सी.एम. बनाने हम नहीं आए हैं। वहीं मंत्री और विधायकों ने कहा,राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले कोई बैठक नहीं होगी। 

गहलोत समर्थित विधायकों को संदेह है कि उनके नेता के साथ चुनाव में धोखा हो सकता है। इसलिए उन्होंने सलाह दी कि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन न भरें। इससे पहले राहुल से गहलोत ने अध्यक्ष और सी.एम. दोनों पद अपने पास रखने की बात कही थी। राहुल कहना था, एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत कायम रहेगा। अशोक गहलोत जानते हैं,कांग्रेस का अध्यक्ष बनने का मतलब क्या है?उनकी हैसियत कांग्रेस का अध्यक्ष बनने पर क्या रहेगी। मुख्यमंत्री का पद छीनेगा ही साथ पहचान भी बदल जायेगी। वे जानते हैं,दस जनपथ को दूसरा मनमोहन सिंह चाहिए। राजस्थान की मौजूदा तस्वीर से बात साफ है,कि गहलोत दूसरा मनमोहन सिंह नहीं बनना चाहते। इसलिए तीन शर्तो की दीवार खड़ी कर दी।

बहरहाल,दस जनपथ मानता है,राजस्थान की सियासी उथल पुथल से भारत जोड़ो यात्रा की छवि खराब हुई है। साथ ही गहलोत को लेकर 2024 के चुनाव की योजना पर पानी फिर गया। पायलट का विरोध करते-करते गहलोत माहौल खराब कर दिये। पार्टी अध्यक्ष बनने के पहले गहलोत का ऐसा तेवर है,तो अध्यक्ष बनने के बाद अपनी मर्जी के नहीं होंगे,इसकी क्या गारंटी? आज पार्टी,संगठन की पूरी बागडोर उन्हें दे रही है,ऐसे में उनकी क्या यह जवाबदारी नहीं बनती,कि वे राजस्थान में जो हो रहा है,उसे नियंत्रित करें। वहीं आलाकमान दूरगामी परिणाम को समझ कर रास्ता नहीं चुना तो राजस्थान का सियासी महाभारत कांग्रेस के हित में नहीं होगा।

 

सियासी वजूद बचाने की चुनौती



 "कभी धारा 356 के जरिये केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया करती थी। लेकिन अब राजनीति की धारा बदल गई है। बीजेपी की नई सियासी चाल के चलते विपक्ष के समक्ष सियासी वजूद का संकट खड़ा हो गया है। कई राज्यों में बीजेपी ने विपक्ष की सियासी दीवार में सेंध लगाकर उनके विधायकों को जोड़कर सरकार बना ली।"

0 रमेश कुमार




‘रिपु’

देश में कई पार्टियों के समक्ष सियासी वजूद का संकट खड़ा हो गया है। विपक्ष का कहना है ‘आॅपरेशन लोटस’ का खेल बीजेपी कर रही है। वह विपक्ष के सियासी दीवार में सेंध मारकर उसके विधायकों को गेरूआई पंडाल में ला रही है। जाहिर है,कांग्रेस मुक्त भारत के लिए यह एक नई रणनीति है। कभी धारा 356 के जरिये केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया करती थी। लेकिन अब राजनीति की धारा बदल गई है। विपक्षी दल के विधायक मंत्री बनने या फिर मलाईदार पद पाने अपनी ही पार्टी के साथ बेवफाई करने में संकोच नहीं करते। बीजेपी की सत्ताई धुन पर विधायक उसकी ओर खींचे चले आ रहे हैं। और बीजेपी उनके सहयोग से सरकार बना रही है।

वहीं बीजेपी की मौजूदा राजनीति पर समूचा विपक्ष एक सूर में कह रहा है,ई.डी.सीबीआइ और आइ.टी का डर दिखाकर बीजेपी विपक्ष के विधायकों को तोड़ रही है। जैसा कि गोवा कांग्रेस के प्रभारी दिनेश गुंडू राव का आरोप है कि बीजेपी ने कांग्रेस विधायकों को पार्टी बदलने के लिए 40-50 करोड़ रुपए की पेशकश की थी। गौरतलब है कि गोवा कांग्रेस के आठ विधायकों के पाला बदलने से पहले सन् 2019 में भी कांग्रेस के 15 में 10 विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। इसमें नेता विपक्ष चंद्रकांत कावलेकर भी शामिल थे। पंजाब में बीजेपी खेला न कर दे,इसलिए केजरीवाल डरे हुए हैं। और पंजाब के सारे विधायकों को दिल्ली बुलाकर बैठक किये। 
जाहिर है,बीजेपी की जिन राज्यो में सरकार नहीं है,वहांँ सरकार बनाने पार्टी तोड़ने का सियासी उपक्रम शुरू कर दिया है। कांग्रेस को मौजूदा समय में ‘जीत के हाथ’ की जरूरत है। क्यों कि सन् 2019 के लोक सभा चुनाव के बाद से अब तक कांग्रेस 17 विधान सभा चुनाव हार चुकी है। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को कितना सियासी फायदा होता है वक्त बतायेगा। क्यों कि इसी साल आठ राज्यों में चुनाव होने हैं। वैसे कांग्रेस तमिलनाडु, महाराष्ट्र में सरकार की हिस्सा थी, लेकिन वहाँं बीजेपी ने विपक्ष की सियासी दीवार में सेंध मारकर इनके विधायकों को अपने पाले में करके सरकार गिरा दी। झारखंड में जरूर सरकार का हिस्सा है,मगर कब तक यह राज्यपाल रमेश बैस पर निर्भर है।
 
‘भारत जोड़ो’यात्रा को ज्यादा दिन नहीं हुए हैं,और गोवा में कांग्रेस के आठ विधायक  बीजेपी केे तंबू में चले गये। बीजेपी को कहने का मौका मिल गया,राहुल गांधी भारत जोड़ने नहीं,कांग्रेस छोड़ने यात्रा पर निकले हैं। एक-एक करके कांग्रेस के बड़े नेता और विधायक दस जनपथ के पंजे को मरोड़ते हुए गेरूआई टीका लगा रहे हैं। दरअसल राहुल की पकड़ अपनी पार्टी में नहीं है। विधान सभा चुनाव से पहले 4 फरवरी 2022 को पणजी में कांग्रेस के सभी उम्मीदवारों ने एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। हलफनामा में विधायकों ने यह कहा था,पांच साल तक पार्टी नहीं छोड़ेंगे और कांग्रेस में रहकर गोवा की जनता का सेवा करेंगे।

गोवा में जो हुआ, उससे दस जनपथ को सबक लेना चाहिए। यही खेला झारखंड में भी हो सकता है। वैसे भी कांग्रेस के तीन विधायक बंगाल में रुपयों के साथ पकड़े गये हैं। उन्हें इस शर्त पर जमानत मिली है, कि तीन माह तक बंगाल छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे। दरसअल दस जनपथ में कांग्रेस के कुछ नेताओं का अपना एक घेरा है,और उस घेरे को तोड़कर जो भी कांग्रेसी अंदर जाने की कोशिश करता है,उसे गुलाम नहीं, आजाद बनकर निकलना पड़ता है।
दस जनपथ ने गोवा में माइकल लोबो को नेता प्रतिपक्ष बनाकर विधायकों को नाराज कर दिया। क्यों कि नेताप्रतिपक्ष की दौड़ में पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत थे। कांग्रेस हाईकमान के इस फैसले से विधायक और दिंगबर कामत के नाराज होने से कांग्रेस टूटी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सदानंद तनवड़े ने सभी विधायकों को भाजपा की सदस्यता दिलाने में देर नहीं की। दस जनपथ ने एक नहीं कई गलतियांँ की। गोवा में हार के बाद कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष गिरीश  से इस्तीफा ले लिया। लेकिन प्रदेश प्रभारी दिनेश गुंडूराव पर कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि गुंडूराव से पार्टी के कई सीनियर चुनाव के पहले से नाराज चल रहे थे। दस जनपथ ने पी.चिदंबरम को कांग्रेस का ऑब्जर्वर बनाकर भेजा था। लेकिन कांग्रेस के अंदर चल रहे सियासी द्वंद को वे हल नहीं निकाल पाए। पार्टी के अंदर हाथ मिलाने की सियासत के बजाय ‘पंजा लड़ाने’ की सियासत तेज हो गई। गोवा कांग्रेस के नए अध्यक्ष अमित पाटकर को लेकर पार्टी के अंदर खेमेबाजी शुरू हो गई। और उसका असर राष्ट्रपति चुनाव में भी देखा गया। पार्टी के चार विधायकों ने क्रास वोटिंग की लेकिन पार्टी ने डैमेज कंट्रोल का कदम नहीं उठाया। दस जनपथ ने जुलाई में पार्टी विरोधी साजिश में शामिल होने का आरोप लगाकर दिगंबर कामत और माइकल लोबो पर कार्रवाई की थी। उस वक्त हाई कमान ने कांग्रेस को टूटने से बचने के लिए अपने पांँच विधायकों को चेन्नई शिफ्ट कर दिया था।

कांग्रेस सिर्फ गोवा में ही नहीं टूटी। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से कांग्रेस की सरकार चली गई। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंद ने पार्टी से बगावत कर के शिवसेना के सियासी वजूद पर संकट खड़ा कर दिया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना लिये। कांग्रेस सरकार से बाहर हो गई। झारखंड में कांग्रेस सरकार में है,लेकिन देर सबेर वहांँ भी सत्ता परिवर्तन की संभावना है। कर्नाटक,तमिलनाडु में कांग्रेस की देह को पार्टी के विधायक काट चुके हैं। दरअसल बीजेपी ने देश के राज्यों में अपनी सरकार बनाने के लिए जो सियासी खेल खेला है,उससे विपक्ष औधे मुंह गिरते जा रहा है।

 सिर्फ काग्रेस ही नहीं अन्य पार्टी में भी सेंध लगाने का सियासी उपक्रम बीजेपी का चला। 2016 से 2020 तक एनसीपीपी के 14 विधायकों ने पार्टी छोड़ी। वहीं बीजेपी के  19 विधायको ने पार्टी छोड़ी। सबसे ज्यादा कांग्रेस के विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा। 2016 से 2022 तक में 178 विधायकों  ने पार्टी छोड़ी। बीएसपी के 17 विधायकों ने हाथी पर सवारी करना छोड़ दिया। और टीडीपी के 17 विधायकों ने पार्टी छोड़ी। इसके पीछे वजह रही बीजेपी के साथ मिलकर सत्ता में बने रहना। तीसरा मोर्चा गठन के लिए एक ओर नीतीश बीजेपी मुक्त भारत के लिए तमाम क्षेत्रीय दलों के प्रमुख से मिल रहे हैं, बिहार में बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद सी.एम. नीतीश कुमार के साथ बीजेपी ने खेला कर दिया। मणिपुर में जेडीयू के 5 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए हैं। बीजेपी का कहना है जो विधायक अपनी पार्टी से संतुष्ट नहीं हैं वे बीजेपी में आ रहे हैं। न कोई भय है और न आॅपरेशन लोटस है।

 

झारखंड की राजनीति में ‘शिंदे' की जरूरत





"लाभ के पद के मामले में हेमंत सोरेन की विधान सभा की सदस्यता तब तक राज्यपाल रद्द नहीं करेंगे,जब तब बीजेपी को झारखंड में कोई ‘शिंदे’ नहीं मिल जाता,अथवा कांग्रेस को छोड़कर हेमंत बीजेपी के समर्थन से सरकार न बना लें। ऐसा नहीं होने पर राज्यपाल राष्ट्रपति राज की सिफारिश कर सकते हैं।

0 रमेश कुमार ‘रिपु’
   
झारखंड की राजनीति विचित्र है। विचित्र इसलिए है,कि सरकार गिरने की स्थिति में है। बावजूद इसके जिन्हें सरकार बनाना है,उनकी रणनीति पर्दे में है। यानी राज्यपाल रमेश बैस भाजपा को सरकार बनाने के लिए पूरा मौका दे रहे हैं। एक सप्ताह बाद भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ चुनाव आयोग की सिफारिश पर राज्यपाल रमेश बैस ने कोई कार्रवाई नहीं की। लाभ के पद के मामले में हेमंत सोरेन की विधान सभा की सदस्यता रद्द किये जाने की कोई सूचना या फिर पत्र राज भवन से उन्हें नहीं मिला। मीडिया से जानकारी मिलने के बाद हेमंत अपनी सरकार बचाने और ‘हार्स ट्रेडिंग’ के डर से विधायकों को रायपुर छत्तीसगढ़ भेज दिये हैं। रायपुर के मेफेयर रिसॉर्ट में ठहरे कांग्रेस के 18 में से 12 विधायक ही रायपुर पहुंचे थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा के 19 विधायक रिसॉर्ट में हैं। कांग्रेस के तीन विधायक बंगाल में भारी कैश के साथ पकड़े गए थे। उन्हें तीन महीने तक कोलकाता छोड़कर नहीं जाने की शर्त पर जमानत मिली है। वहीं एक विधायक हाल ही में मां बनी हैं,इसलिए वे नहीं आ पाईं।
दो सितम्बर को भारतीय जनता युवा मोर्चा,छत्तीसगढ़ ने ‘मेफेयर रिजॉर्ट’ को घेर लिया। भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष अमित साहू ने कहा,झारखंड के विधायक रायपुर में आकर फाइव स्टार रिजॉर्ट में अय्याशी कर रहे हैं। झारखंड में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़ी हुई है। ताज्जुब होता है,अंकिता हत्याकांड के बाद भी विधायक और मंत्री इतने असंवेदनशील हैं। यहांँ अय्याशी कर रहे हैं। हम इन विधायकों को खदेड़ने आए हैं। पुलिस बल को भारी मशक्त करनी पड़ी भाजयुमो के कार्य कर्ताओं  को हटाने में।
गौरतलब है कि किशोरी अंकिता को शाहरुख नाम के युवक ने उसे घर में पेट्रोल डालकर जला दिया। इस मामले में एसडीओपी ने आरोपी को बचाने का प्रयास किया। विपक्ष के हल्ला मचाने पर मुख्य मंत्री ने उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिये। जबकि यह घटना मुख्यमंत्री के विधान सभा क्षेत्र की है। इस घटना के बाद पूरी सरकार रायपुर छत्तीसगढ़ में पिकनिक मना रही है। असंवेदनशील सरकार को इसकी चिंता नहीं है। इस घटना को लेकर जनता में रोष है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,भाजपा ईडी,आईटी का डर दिखाकर विपक्ष के विधायक खरीदनेे की राजनीति कर रही है। चुनाव आयोग की चिट्ठी आई है तो राज्यपाल उसे रोके क्यों हैं? अगर नहीं आई है,तो स्पष्ट करें। इसका मतलब है कि आप 'हॉर्स ट्रेडिंग' करना चाहते हैं। ताकि चिट्ठी खुले उसके पहले सब खरीद फरोख्त कर लें। रमन सिंह को और भाजपा को इसमें सफलता नहीं मिली,इसलिए कह रहे हैं कि माथा शर्म से झुक गया। वे खरीद फरोख्त कर लेते तो उनका सिर ऊंचा हो जाता। आखिर कांग्रेस के तीन विधायक पश्चिम बंगाल में पैसा लेकर पकड़े गए। उन्हें कौन खरीद रहा था,तब भाजपा नेताओं का सिर शर्म से नहीं झुका। बंगाल में पकड़े गये तीन विधायकों को इस शर्त पर जमानत मिली है कि तीन माह तक बंगाल छोड़ कर कहीं नहीं जायेंगे।  
 मौजूदा सियासत से जाहिर है,कि हेमंत सोरेन की विधान सभा की सदस्यता तब तक नहीं जायेगी,जब तब बीजेपी को झारखंड में कोई ‘शिंदे’ नहीं मिल जाता,अथवा हेमंत कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी के समर्थन से सरकार न बना लें। यदि चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए खुद के नाम पर खदान लीज लेने को भ्रष्टाचार मान लिया तो सत्ता और विधायकी दोनों जायेगी। अगर चुनाव आयोग खदान लीज को सरकारी लाभ मानता है,तो हेमंत को विधायक पद से इस्तीफा देना पड़ेगा। इससे हेमेंत को राजनीतिक नुकसान कम होगा, बशर्ते विधायक उन्हें दोबारा नेता चुन लें। ऐसे में अगले छह माह में उन्हें चुनाव लड़कर विधायक बनना होगा,तब तक वे सीएम बने रहेंगे। यदि चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधि अधिनियम की धारा 9 (अ) के तहत कार्रवाई की अनुशंसा कर एक सर्टिफिकेट जारी करता है,तो राज्यपाल हेमेंत सोरेने को तीन से पांच साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा सकते हैं। 
हेमंत सोरेन चाहेंगे,कि सत्ता की कमान घर में ही रहे। ऐसे में वे अपनी पत्नी कल्पना सोरेन का नाम आगे कर सकते हैं। कल्पना ओड़िसा की हैं,झारखंड की नहीं हैं। आदिवासी भी नहीं हैं। वहीं घर के अंदर इसका विरोध भी हो रहा है। हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन चाहती हैं मुख्यमंत्री बनना। दूसरा विकल्प हेमंत के पास है,अपने पिता शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बना दें। हेमंत मुख्यमंत्री उसे ही बनायेंगे जिस पर उन्हें भरोसा है। 
हेमंत सोरेन के इस्तीफा देने के बाद यदि राज्यपाल को लगता है,कि झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास मेजॉरिटी नहीं है,तो वह झामुमो के बहुमत का समर्थन करने वाले पत्रों के दावे को नहीं मानते हुए नए सीएम को पद की शपथ दिलाने से इंकार कर सकते हैं। इस परिस्थति में वे राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं।  
विधान सभा में बीजेपी के 26 विधायक हैं। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30,कांग्रेस के 18 विधायक हैं। जिसमें तीन विधायक बंगाल पुलिस के शिकंजे में है। जाहिर सी बात है झारखंड में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए 41 विधायक चाहिए। दो निर्दलीय बीजेपी के साथ जा सकते हैं,लेकिन अन्य दल के विधायकों को बीजेपी अपने खेमें में आने के लिए हार्स ट्रेडिंग  का इस्तेमाल कर सकती है। और यही डर हेमंत सोरेन को है। बीजेपी चाहेगी कि हेमंत सोरेन कांग्रेस के समर्थन की बजाय बीजेपी के समर्थन से सरकार बना लें।  
दरअसल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 और 9 अ के तहत हेमंत सोरेने की विधान सभा की सदस्यता उलझ गई है। 28 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवरदास ने चुनाव आयोग को एक शिकायत में कहा था, हेमंत ने अनगड़ा में अपने नाम से0.88 एकड़ पत्थर खदान की लीज ली है और चुनाव आयोग को दिए शपथ पत्र में यह जानकारी छिपाई है। सी.एम. सरकारी सेवक हैं,इसलिए लीज लेना गैरकानूनी है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 का उल्लंघन है। बीजेपी नेताओं ने 11 फरवरी को राज्यपाल से मिलकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता खत्म करने की मांग की थी। 
वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है,जब ओवदन किया था,तब वे किसी लाभ के पद पर नहीं थे। बीजेपी की ओर से मामला उठाए जाने पर खनन लीज को सरेंडर कर दिया है। उस पर कोई खनन भी नहीं हुआ है। ऐसे में लाभ के पद के दुरुपयोग का मामला नहीं बनता है। अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता।’’ 
बहरहाल हेमंत सोरेन विधान सभा की सदस्यता रद्द होने पर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं । सुप्रीम कोर्ट पहले भी अपने दो फैसलों में कह चुका है,कि खदान लीज पर लेना भ्रष्टाचार नहीं है। लेकिन राज्यपाल के आदेश पर उससे पहले इस्तीफा देना पड़ेगा।

 

Saturday, August 27, 2022

'सत्ता के हाथ में‘रेवड़ी की पोटली’



"देश के विकास में ‘रेवड़ी कल्चर’ बाधक है,फिर भी 11 लाख करोड़ रुपये उद्योगपतियों का लोन माफ कर दिया गया। जबकि देश के 28 राज्य घाटे में चल रहे हैँ । वहीं पांँच साल में सिर्फ तीन पार्टियों ने चुनाव में पांँच हजार करोड़ से ज्यादा फूक दिये। ऐसे में सवाल यह है,कि सरकारी खजाना लूटा और लुटाया किस लिए जा रहा है।"

0  रमेश कुमार‘रिपु’


                  पैसों पर राजनीति पलती है और पैसों के दम पर पार्टी सत्ता में आती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है, कि देश का खजाना राजनीति के लिए या फिर देश और राज्य के विकास के लिए है? क्यों कि 2014 के बाद देश की अर्थव्यवस्था में बूम नही आया। प्रधान मंत्री कहते हैं,‘रेवड़ी कल्चर‘ देश के विकास में बाधक है। फिर भी 11 लाख करोड़ रुपये उद्योगपतियों का लोन माफ कर दिया गया। जबकि देश के 28 राज्य घाटे में है। ‘रेवड़ी बांटने’ का सियासी उपक्रम हर पार्टियों ने किया। चुनाव में जितना खर्च होता है,उतनी राशि से किसी भी राज्य की अर्थव्यवस्था और विकास जगत में बूम आ सकता है। 
चुनावों में राजनीतिक पार्टियांँ दिल खोलकर पैसा खर्च करती हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। उससे पहले 2014 के चुनाव में लगभग 30 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। वोट के लिए सियासी दल जनता में रुपये,शराब,कंबल के अलाव अन्य चीजें बांटते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 20 करोड़ रुपये और 2019 के लोकसभा चुनाव में 191 करोड़ रुपये नकद पकड़ा गया था। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी में ही 115 करोड़ रुपये नकद मिला था। रेवड़ी कल्चर के जरिये वोटरों को लुभाने में बीजेपी ने 5 साल में 3 हजार 585 करोड़ रुपये चुनावों में खर्च कर दिये। कांग्रेस ने एक हजार 405 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च की। ये आंकड़ा 2015.16,17,18,19 और 2020 का चुनाव आयोग का है। जबकि इससे ज्यादा खर्च हुए हैं। यानी पाँच साल में सिर्फ तीन पार्टियों ने चुनाव में पांँच हजार करोड़ से ज्यादा फूक दिये। साल 2021 में पश्चिम बंगाल,असम,केरल, तमिलनाडु, पांडुचेरी में विधान सभा के चुनाव हुए। अकेले बीजेपी ने 252 करोड़ रुपये, टीएमसी ने 154 करोड़ रुपये,और कांग्रेस ने 85 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किये। ऐसे में सवाल यह है,कि ‘रेवड़ी कल्चर’ सत्ता पाने के लिए है या फिर गरीबी मिटाने के लिए?
 
देश में ‘रेवड़ी कल्चर’ की शुरूआत सबसे पहले आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन.टी.रामाराव ने की। उन्होने दो रुपये किलो चावल देने की घोषणा की। तमिलनाडु की राजनीति में इसका व्यापक स्वरूप देखने को मिला। क्षेत्रीय दलों ने वोटरों को प्रभावित करने एक से बढ़कर एक घोंषणायें की। 100 यूनिट फ्री बिजली,परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी, कामकाजी महिलाओं को स्कूटी खरीदने में सब्सिडी से लेकर प्रेशर कुकर, मिक्सर ग्राइन्डर, मंगलसूत्र तक देने की घोषणा की गई थी।  
हाल के समय में कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार के दौरान राजधानी बेंगलुरु में ‘इंदिरा कैंटीन’ में रोज दो लाख से अधिक लोगों को सस्ता खाना दिया जाता था। तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे.जयललिता ने अम्मा कैंटीन की शुरुआत की थी। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत (नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट) 80 करोड़ राशन कार्ड धारकों को मुफ्त राशन दिया जाता है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चैहान की सरकार अन्न उत्सव के जरिये 37 लाख गरीब परिवार जिनके पास राशन कार्ड नहीं है,उन्हें एक रुपये प्रति किलो कीमत पर चावल, गेहूंँ और नमक देती है। पांँच किलो अनाज प्रति महीना हर लाभार्थी को मिलता है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में आने के लिए किसानों से ढाई हजार रुपये क्विटल धान खरीदने और किसानों का कर्जा माफ करने का वायदा की। इससे सरकार पर नौ सौ करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ा। 
केन्द्र सरकार ने 2019 में फैसला किया कारपोरेट जगत से जो टैक्स वसूला जाता है,उसे कम कर देने से उन्हें फायदा होने पर नये उद्योग लगेंगे और लोगों को रोजगार मिलेगा। कारपोरेट जगत से तीस फीसदी टैक्स लिया जाता था,उसे एक झटके में बाइस फीसदी कर दिया गया। यानी 14.5 हजार करोड़ रुपये सरकारी खजाने को चूना लग गया। मगर बेरोजगारी दूर नहीं हुई। 
साल 2014 से 2018 के बीच 21 सरकारी बैंकों ने 3 लाख 16 हजार करोड़ रुपये के लोन माफ किए। यह भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना है। यूपीए के कार्यकाल में 2004 से 2014 के बीच सरकारी बैंकों ने 158994 करोड़ के कर्ज माफ किए। इसके अलावा निजी क्षेत्र के बैंकों ने 41391 करोड़ रुपये और विदेशी बैंकों का 19945 करोड़ कर्ज माफ किया गया। जबकि एनडीए के नेतृत्व वाली सरकार के पहले कार्यकाल 2015-2019 के दौरान सरकारी बैंकों ने 624370 करोड़ के कर्ज माफ किए। जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों ने 151989 और विदेशी बैंकों ने 17995 करोड़ के कर्ज माफ किए।
आम आदमी के नेता संजय सिंह का सवाल  गलत नहीं है। क्या केंद्र ने 72000 हजार करोड़ का लोन अडानी का माफ करके,रेवड़ी नहीं बाटी। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने कुल 11 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर देश भर के बैंकों को कंगाल बना दिया है। डीएचएफआई ने 17 बैंकों से 34000 करोड़ रुपये का लोन लिया। और बदले में बीजेपी को 27 करोड़ रुपये का चंदा दिया। क्यों कि  बीजेपी का दोस्त हैं। यानी केन्द्र सरकार ने बैंको का 34000 करोड़ रुपये लुटवा दिया। अडानी को एसबीआई से 12000 करोड़ रुपये का लोन दिया गया। राज्य सरकारों से कहा जा रहा कि 10 परसेंट कोयला विदेश से खरीदें। जबकि भारत में कोयले का उत्पादन 32 फीसदी है। जब 3000 रुपये टन भारत में कोयला मिलता है,उसके बावजूद 30000 रुपये टन विदेशों से कोयला क्यों खरीदवा रहे है?
दिल्ली के मुख्य मंत्री केजरीवाल की बातें देश का ध्यान खींचती है। क्या मैं फ्री की रेवड़ियां बांट रहा हूँ या देश की नींव रख रहा हूँ! गगन के पिता मजदूरी करते थे। आज गगन का एडमिशन आइआइटी धनबाद के कम्प्यूटर इंजीनियर में हुआ है। गगन से पूछिए कि मैं रेवड़ियां बांट रहा हूँ या देश का भविष्य संवार रहा हूँ। दिल्ली में 2 करोड़ लोगों का इलाज मुफ्त होता है। केजरीवाल फ्री में बिजली दे रहे हैं तो रेवड़ी है और मोदी सरकार मंत्रियों को 4000 यूनिट बिजली फ्री में दे,तो क्या रेवड़ी नहीं है।  
उद्योगपतियो को दिये गये लोन का रिकवरी रेट मात्र 14.2 फीसदी है। यानी एनपीए तेजी से बढ़ रहा है। 2014-15 में एनपीए 4.62 प्रतिशत था! क्या कारपोरेट का लोन माफ करना और लोकलुभावन चुनावी घोंषणा पत्र रेवड़ी कल्चर’ का हिस्सा नहीं है? चुनावी घोंषणा पत्र के जरिये सत्ता में आने वाली सरकार को अपना घोंषणा पत्र स्टाम्प पेपर में जारी करना चाहिए। ताकि घोषणाएं पूरी नहीं होने पर जनता उन्हें कोर्ट तक घसीट सके। सरकारी खजाने को लूटना और लुटाना भी तो रेवड़ी कल्चर है। पिछले 70 साल में सरकारो ने जो बनाया उसे उद्योगपतियों को बेचना,तोहफा देना ही है। 
 यूपी में बीजेपी की सरकार है। और यहांँ हर व्यक्ति पर 22,242 रुपये का कर्ज है। प्रदेश सरकार पर कुल 516 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है।  प्रदेश का विद्युत विभाग 90 हजार करोड़ रुपये के घाटे में है। लेकिन भाजपा ने किसानों को अगले पांच साल तक मुफ्त बिजली देने का वादा किया है। मुफ्त देने की 72 घोषणायें संकल्प पत्र में है। कांग्रेस पार्टी भी प्रदेश की आधी आबादी को रिझाने के लिए लड़कियों को फ्री स्कूटी देने की बात की थी। रेवड़ी कल्चर और चुनावी घोषणाओं से क्या देश की गरीबी मिटेगी,महंगाई कम होगी और बेरोजगारी दूर होगी?  2000 से 2020 के बीच किसानों को फसल का उचित दाम नहीं मिलने से करीब 70 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे होगी,जिस देश में करपोरेट जगत को टैक्स में छूट देने और एनपीए बढ़ने से बैंक डूब रहे हों,देश का ‘रेवड़ी कल्चर’ भी नहीं जानता।
मो.7974304532

 

मुँह खोले,दागे गोले,कोई क्या बोले..





‘‘किसी को लोकलाज की चिंता नहीं। लोकतंत्र शर्मिदा होता है,तो होये। नई राजनीतिक भाषा से लोकतंत्र की गरिमा गिरी है। व्यक्तिगत हमले और अमर्यादित भाषाओं का इस्तेमाल करने की होड़ लगी है। संसद में बैठने वालों के भदेश आचारण और गंदी भाषा से एक नई संस्कृति ने आकर लिया  है। जिसमें आदर्श और सम्मान का मूल्य नहीं हैं।’’  

0 रमेश कुमार‘रिपु’

 राजनीति में कूटनीति सभी करते हैं। करनी भी चाहिए। तभी तो सुर्खियों में रहेंगे। सड़क से संसद तक सभी यही करते हैं। जब भी मुंह खोलते हैं,जहर उगलते हैं। ताकि बवाल हो। हल्ला मचे। टी.वी.चैनल्स में दिखें। टी.आर.पी. का सवाल है। सभी सियासी दलों को टी.आर.पी.चाहिए। विपक्ष के अधीर रंजन चैधरी हों या फिर सत्ता पक्ष की स्मृति इरानी। राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कह दिया। भूल हो गई। जुबान फिसल गई। माफी मांग ली। लेकिन स्मृति इरानी इसे मुद्दा बना लीं। देश की अस्मिता से जोड़ दीं। सड़क से संसद तक बखेड़ा खड़ा करने में स्मृति इरानी भूल गई,वो संसद में क्या बोल रही हैं। संसद में जब तक बोलीं,एक बार भी मैडम राष्ट्रपति, माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती शब्द नहीं बोली। बार-बार द्रोपदी मुर्मू चिल्ला रही थीं। क्या यह माननीय राष्ट्रपति के पद का अपमान नहीं है? देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का अपमान संसद में भी हुआ। बाहर भी हुआ। शब्दों से। सियासियों की शब्दावली से। उनके हाव भाव से। उनके तर्क वितर्क चौकाते हैं। देश की राजनीति में भाषा का पतन चुनाव से लेकर संसद तक सैकड़ों दफा हुआ।

राममनोहर लोहिया ने कहा था,लोकराज,लोकलाज से चलता है। लेकिन अब राजनीति में  लाज के पर्दे तार-तार हो चुके हैं। ईरानी को अपनी स्मृति पर जोर देना चाहिए। उनकी ही पार्टी के बड़े नेताओं की भाषा से लोकतंत्र कई बार शर्मिदा हुआ है। जयपुर की एक रैली में प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी ने सोनिया गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा,वो कांग्रेस की कौन सी विधवा थी,जिसके खाते में पैसा जाता था। किसी महिला के वैधव्य का माखौल उड़ाना क्या सियासी संस्कृति है..?स्त्री सम्मान की दृष्टि से राजनीति की यह भाषा मर्यादाहीन है। पूर्व बीेजेपी नेता प्रमोद महाजन ने एक बार सोनिया गांधी की तुलना मोनिका लेविस्की से कर दी थी। कैलाश विजयवर्गीय ने एक ट्वीट किया था,हगामा होने पर हटा लिया। ट्वीट किया था, विदेशी माँ से उत्पन्न संतान कभी भी राष्ट्रभक्त नहीं हो सकती।

राजनीति में भाषा के संस्कार का चीरहरण होना नई बात नहीं है। भाषण में,संसद में और आरोप प्रत्यारोप के दौरान छीेटें उछालने वाली अमर्यादित भाषा के जरिये भीड़ एकत्र करने वाले को कामयाब नेता मान लिया गया है। इसीलिए अटजी को कहना पड़ा,राजनीति वेश्या हो गई। किसी को लोकलाज की चिंता नहीं। लोकतंत्र शर्मिदा होता है तो होये। नये दौर में सियासत और सियासी के लफ्ज नंगे हो गये हैं,और शोहरत गाली। सियासत में काॅमेडी का चलन बढ़ गया है। व्यक्तिगत हमले और अमर्यादित भाषाओं का इस्तेमाल करने की होड़ लगी हैं। अपनी-अपनी राजनीति के गाल लवली दिखाने की प्रतिस्पर्धा में संसद में देश हित के मुद्दे नदारत है। सियासियों की नीयत़ बनावटी नहीं,बल्कि उसमें खोट है। महंगाई, बेरोजगाारी, जीएसटी,नकली शराब से मौतें जैसे विषयों पर बातें न हो। बिल पर बहस न हो। संसद से सड़क तक सरकार की भद्द न हो, इसलिए निरर्थक बातों पर सत्ता पक्ष विपक्ष से बहस करने लगा है।   
साल 2012 में चुनावी रैली में नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के शशि थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर के बारे में कहा था,वाह क्या गर्ल फ्रेंड है। आपने कभी देखी है 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड। क्या यह भाषा महिलाओं की इज्जत की पक्षधर है,इरानी को बताना चाहिए। शशि थरूर ने ट्वीट कर कहा,मोदी जी मेरी पत्नी 50 करोड़ की नहीं,बल्कि अनमोल है। आप को यह समझ में नहीं आएगा,क्योंकि आप किसी के प्यार के लायक नहीं हैं। यह विवाद उस समय सुर्खियों में था। गुजरात के मुख्यमंत्री थे नरेन्द्र मोदी,तब कहा था,मिडिल क्लास के परिवारों की लड़कियों को सेहत से ज्यादा खूबसूरत दिखने की फिक्र होती है। अच्छे फिगर की चाहत में कम खाती हैं। एक बार मोदी की जबान विदेश मे फिसल गई थी। उन्होंने कहा था,पहले भारत में पैदा होने में भी शर्म आती थी। सवाल यह है कि सत्ता क्या व्यक्ति के संस्कार को लील जाती है। जैसा कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बोलीं. थी,ब्यूरोक्रेसी की औकात क्या है। वो हमारी चप्पलें उठाती है। असल बात ये है कि हम उसके बहाने अपनी राजनीति साधते हैं।’’

इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। शुरू में संसदीय बहसों में कम बोलने की वजह समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया उन्हें गूंगी गुड़िया कहा करते थे। 2011 के विधान सभा चुनाव मे केरल के पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंद ने कहा था,राहुल एक अमूल बेबी हैं। जो दूसरे अमूल बेबियों के लिए प्रचार करने आए हैं। साल 2002 में गोधरा कांड को लेकर गुजरात विधान सभा चुनाव में सोनिया गांधी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था।  
दरअसल नई राजनीतिक भाषा से लोकतंत्र की गरिमा गिरी है। संसद में बैठकर देश हित में,जनहित में कानून बनाने वालों का भदेश आचारण और भाषा से एक नई संस्कृति ने आकर लिया है। जिसमें आदर्श और सम्मान का मूल्य नहीं हैं। राजस्थान विधान सभा चुनाव के दौरान जदयू के नेता शरद यादव ने कहा था,वसुंधरा मोटी हो गई हैं। अब उन्हें आराम करना चाहिए। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने गुजरात चुनाव के वक्त कहा था,नरेन्द मोदी एक नीच किस्म का व्यक्ति है। हाँलाकि बाद में मोदी ने इस बयान को काफी भुनाया। नेता की अपने शहर में,राज्य में लोगों के बीच, और परिवार में पहचान है। उसकी कही बातें सुनी जाती है। कई लोग उनका अनुसरण भी करते होंगे। जाहिर है, कि उनकी भाषा शैली के बड़े खतरे हैं। रीवा के बीजेपी सांसद जनार्दन मिश्रा ने कहा, कलेक्टर को थप्पड़ जड़ देने पर दो साल के लिए राजनीति चमक जाती है। इससे पहले उन्होंने एक बयान मे कहा था,पी.एम.आवास नरेन्द्र मोदी के दाड़ी से निकलते हैं।  

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हार्दिक पटेल ने कहा, धर्म की राजनीति करने वालों को थप्पड़ मारना चाहिए। योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में कहा था, मुस्लिम समुदाय की संख्या जितनी ज्यादा है, वहांँ उतने ही बड़े दंगे होते हैं। बात जून 1997 की है। संसद में महिला आरक्षण बिल पर शरद यादव ने कहा,इस बिल से सिर्फ पर कटी औरतों को फायदा पहुंँचेगा। ये परकटी शहरी महिलाएँ हमारी ग्रामीण महिलाओं का प्रतिनिधित्व कैसे करेंगी? साल 2017 में उन्होंने वोट के संदर्भ में कहा,वोट की इज्जत आपकी बेटी की इज्जत से ज्यादा बड़ी है। बेटी की इज्जत गई तो सिर्फ गांँव और मोहल्ले की इज्जत जाएगी,अगर वोट एक बार बिक गया तो देश और सूबे की इज्जत चली जाएगी। पश्चिम बंगाल के जांगीपुर से कांग्रेस सांसद रह चुके अभिजीत मुखर्जी ने कहा था,दिल्ली में 23.वर्षीय युवती के साथ बलात्कार के विरोध में प्रदर्शनों में हिस्सा ले रही छात्राएं सजी-संवरी महिलाएं हैं। जिन्हें असलियत के बारे में कुछ नहीं पता। हाथ में मोमबत्ती जला कर सड़कों पर आना फैशन बन गया है। ये सजी संवरी महिलाएं पहले डिस्कोथेक में गईं और फिर इस गैंगरेप के खिलाफ विरोध दिखाने इंडिया गेट पर पहुंँच गईं।

अब चुनावी भाषणों में संवेदनाएंऔर इज्जत नहीं रहीं। आजम खान ने रामपुर में एक चुनावी जनसभा  में जयाप्रदा का नाम लिये बगैर कहा था,जिसको हम ऊँगली पकड़कर रामपुर लाए। उसने हमारे ऊपर क्या-क्या इल्जाम नहीं लगाए। उनकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लगे। मैं 17 दिन में पहचान गया,कि इनके नीचे का अंडरवियर खाकी रंग का है। 
मध्यप्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने शराब पीना स्टेटस सिंबल है कहा था। अपराध शराब पीकर डगमगाने से बढ़ते हैं,पीने से नहीं। शराब पीना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। बीजेपी अध्यक्ष के दौरान अमितशाह ने कहा था,राजनेताओं का काम सरहदों में रहने वाले फौजियों से अधिक जोखिमवाला होता है। उनकी बहुत खिलाफत हुई थी। गोवा के मुख्यमंत्री मनेाहर पार्रीकर ने लाल कृष्ण आडवाणी को बासी अचार कह दिया था। जुबान कब किसकी कहांँ फिसल जाये नहीं कह सकते। रामकृपाली यादव ने मोदी को आतंकवादी और हत्यारा कहा था। कांग्रेसी नेता लाल सिंह ने हदें पार कर दी थी। हम तो कुत्ते भी नस्ल देखकर लेते हैं,मोदी की क्या औकात है।’’ 

मोहन भागवत यूपी में अगस्त 2016 में शिक्षको की रैली के दौरान कहा,अगर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है तो हिन्दुओ को ज्यादा से ज्यादा बच्चे  पैदा करना चाहिए। बीजेपी वाले 1992 में मुलायम सिंह यादव को मुस्लिम परस्त होने पर मौलाना मुलायम यादव कहने लगे थे। इसका सियासी लाभ भी उन्हे मिला। 1999 में नये नये आये राजेश खन्ना ने अटल बिहारी बाजपेयी पर बिलो द बेल्ट टिप्पणी करते हुए कहा था औलाद नहीं है पर दामाद हैं.ये पब्लिक सब जानती है। नरसिम्हा राव को सभी मौनी बाबा कहते थे। बाद में यही शब्द मनमोहन सिंह के संदर्भ में भी कहा जाने लगा।