छत्तीसगढ़ की महिलाएं न केवल साहस की नई कहानियां गढ़ रही हैं बल्कि अपनी उपलब्धियों से अपनी पहचान बनाते हुए एक नए भारत का निर्माण कर रही हैं। बदल रहे देश के साथ कामयाबी की पताका भी फहरा रही हैं।
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
छत्तीसगढ़ में माओवादियों के सबसे खतरनाक इलाका दरभा में सीआरपीएफ की 80 वीं
बटालियन में पहली बार सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडर की रूप में पदस्थ उषा किरन साहस की ऐसी कहानियां गढ़ रही हैं जो लाल गलियारे में अद्भुत और बेमिसाल है। इसलिए कि माओवादियों के साथ महिला नक्सलियों को सबने देखा है। लेकिन सी.आर.पी.एफ में पहली बार असिस्टेंट कमांडर के पद पर कोई महिला आई है। उषा किरन कहती हैं सीआरपीएफ मेरे डीएनए में है। मेरे दादाजी सी.आर.पी.एफ में अपनी सेवाएं दे चुके हैं पिताजी विजय सिंह इंस्पेक्टर है। भाई भी फोर्स में हैं। मूल रुप से गुड़गांव की उषा अपने परिवार से सी.आर.पी.एफ ज्वाइन करने वाली तीसरी पीढ़ी हैं। इन्हें सी.ए.पी.एफ 2013 की परीक्षा में 295वीं रैंक मिली थी। वो ट्रिपल जंप में (गोल्ड मेडल ) राष्ट्रीय विजेता भी रह चुकी हैं। केमिस्ट्री बीएससी (अनर्स) 76 प्रतिशत के साथ उत्र्तीण की हैं। उषा ए.के 47 लिए लाल गलियारे के उस रास्ते में जवानों का बे खौफ नेतृत्व कर रही हैं जहां माओवादियों की तूती बोलती है। ऊषा किरन को 332 महिला बटालियन में नियुक्ति के लिए तीन विकल्प दिए गए थे। जम्मू एंड कश्मीर, नॉर्थ-ईस्ट और नक्सल बेल्ट। उषा अपने पिता विजय सिंह को प्रेरणस्त्रोत मानती हैं। वे 2008-09 के दौरान सुकमा में सी.आर.पी.एफ को अपनी सेवाएं दे चुके हैं। पुलिस और लोगों के बीच दूरियां इसलिए है कि यहां समुचित विकास अभी नहीं हुआ है। वे बताती हैं जब माओवादी क्षेत्र भडरीमऊ गई तो महिलाओं ने मुझे घेर लिया। उनके चेहरे पर खुशी देकर मुझे ताज्जुब हुआ। सबने कहा, महिला अधिकारी की देखरेख में उनके घरों की जांच होती है तो उन्हें शिकायत नहीं रहेगी।
12 राज्यों में नाम किया रोशन
यूं तो तैराकी छोरों का खेल है, पर म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के‘‘। वाकय में युवराज को अपनी चारों बेटियां पर गर्व करना उनका हक बनता है। इनकी कहानी दंगल के महावीर सिंह फोगाट से अलग नहीं है। युवराज की चार बेटियां हैं पूजा,रेखा,नेहा और ऋतु। युवराज की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि अपनी बेटियों के सपनों को पूरा कर सकें। उनकी चारों बेटियां अपने मामा की तरह तैराकी में अवाॅर्ड और मैडल जीतने की चाह रखती थीं। उन्हें पता था कि उनके पिता स्वीमिंग पूल और डाइट का खर्च नहीं उठा सकते। जिससे कुछ वर्षो तक बेटियांें को तैराकी छोड़नी पड़ी। इस बीच बड़ी बेटी का तैराकी में प्रदेश स्तर पर सलेक्शन हो गया। जहां उसने आधा दर्जन मेडल जीते। पिता युवराज की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्हांेने बेटियों के सपनों को पूरा करने सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया। युवराज कहते हैं,यह मेरे लिए गर्व की बात है कि आज मेरी चारों बेटियां मेरा,राज्य और शहर का नाम रौशन कर रही है। युवराज की चारों बेटियां गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, गोवा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश पं बंगाल, ओडिशा, झारखंड, आंध्र प्रदेश और पूर्वी राज्यों में आयोजित तैराकी गेम में बेस्ट प्रदर्शन कर दो सौ से ज्यादा मेडल जीतकर राज्य का नाम रोशन कर चुकी हैं। युवराज कहते हैं, तैराकी की शुरुआत में चारों बहनों को महराजबंद व बूढ़ातालाब में प्रैक्टिस कराया। युवराज उन दिनों को आज भी नहीं भूले हैं जब बेटियों की डाइट नॉन वेज, अंडा, सलाद और दूध आदि पूरा करने लोगों से पैसे उधार लिए। इससे पहले तक बेटियां डाइट में चना,मूंग भिगोकर खाती थीं। सरकार की ओर ऐसे खिलाड़ियों के लिए आर्थिक व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वे अपने लिए नया मुकाम बना सकें।
वर्कफोर्स मैग्जीन में बनाई जगह
विश्व की 25 युवा प्रतिभाओं में कोरबा की अभिलाषा मालवीय ने जगह बनाकर एक नया रिकार्ड हिन्दुस्तान के नाम किया। क्यों कि पिछले छह साल में कोई भी भारतीय इस मुकाम तक नहंीं पहुंचा। यूएसए की वर्कफोर्स संस्था हर साल एक स्पर्धा आयोजित कराता है, जिसमें विश्व के 25 ऐसे युवाओं का चयन होता है जिनकी उम्र 40 से अधिक नहीं होती। युवा अपनी योग्यता के दम पर किसी फर्म या कंपनी की शाख को देश ही नहीं विदेश तक पहुंचाते हैं। ऐसे युवाओं में कोरबा के वाय. के. मालवीय की 31 वर्षीय बेटी अभिलाषा मालवीय ने आॅन लाइन भाग लिया। लाखों की संख्या में विश्व के युवाओं ने हिस्सा लिया। सबने अपनी अपनी उपलब्धियां प्रस्तुत की। वर्कफोर्स गेम चेजर्स अवार्ड 2016 के लिए अभिलाषा मालवीय का चयन हुआ। बेगलुरू के खालिद रजा और मुंबई की सबेरा पटनी को भी यह सम्मान मिला। यूएसए की वर्कफोर्स मैग्जीन ने इन तीनों प्रतिभाओं को जगह देकर सम्मानित भी किया। अभिलाषा वर्तमान में रायगढ़ स्थित जिंदल स्टील एंड पावर कंपनी में एच.आर. हैं।
मै हूं मिसेज इंडिया
यह आम धारणा है कि शादी के बाद महिलाओं की आजादी छिन जाती है। लेकिन प्राची अग्रवाल और उनका ससुराल ऐसा नहीं मानता। तभी तो प्राची को अपने सपने को साकार करने में उनका ससुराल और पति सहयोग करते हैं। उसी का नतीजा है कि चेन्नई में हुए मिसेज इंडिया 2017 के फाइनल राउंड में इंडिया से आए 46 कंटेस्टेंट को पीछे करते हुए रैंप पर जलवे बिखेरकर रायपुर की प्राची अग्रवाल ने ये खिताब अपने नाम कर लिया। ये कॉम्पिटिशन सितंबर 2016 में स्टेट लेवल पर हुआ था। जिसमें प्राची चैथे स्थान पर थीं। फिर इन्हें सेमी फाइनल राउंड में जाने का मौका मिला। योग व मार्शल आर्ट से खुद को पहले से ज्यादा फिट कर रैंप पर इस ताज की हकदार बनीं। प्राची इस कॉन्टेस्ट के फाइनल राउंड में वे ट्रेडिशनल आउटफिट के साथ मेक इन इंडिया थीम पर रैंप कैटवॉक की। मॉर्शल आर्ट में गल्र्स को ट्रेंड कर सेल्फ डिफेंस के लिए तैयार करने वाली प्राची को वहां सोशल वर्क के लिए भी अच्छे नम्बर मिले थे। प्राची कहती हैं,मुझे खुशी है कि ससुराल में मुझे आजादी है अपनी जिन्दगी को जैसा चाहूं गढ़ूं। तभी तो आज मै मिसेज इंडिया हॅू‘‘। मॉर्शल आर्ट और योग से खुद को फिट रखने वाली प्राची एक बच्चे की मां हैं। प्राची पति के बिजनेस में भी हाथ बंटाती हैं।
बैंक से छोटे पर्दे पर आ गई
मॉडलिंग का जुनून धृति पटेल पर इस कदर छाया कि वह स्टेट बैंक की नौकरी छोड़ कर इसे ही अपना कॅरियर बनाने की दिशा में चल पड़ी। आज छोटे पर्दे पर लाइफ ओके में प्रसारित होने वाला गुलाम सीरियल में मुख्य किरदार निभा रही हैं। माॅडलिंग में कई खिताब अपने नाम करने वाली धृति भारत-अफगानिस्तान पर आधारित फिल्म काबुली पठान में नायिका का किरदार निभा चुकी हैं। बचपन से ही शोहरत की ख्वाहिश रही इसलिए माॅडलिंग को चुना। इलेक्ट्रानिक्स और इलेक्ट्रीकल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए वर्ष 2014 में मॉडलिंग की शुरूआत की। मिस ब्यूटीफुल छत्तीसगढ़, मिस ब्यूटीफुल रायपुर, मॉडल आफ द इयर आदि प्रमुख खिताब धृति को मिला। मॉडल ऑफ द इयर कॉम्पीटिशन में वे फस्र्ट रनरअप रहीं। मिस इंडिया की तैयारी भी कर रही हैं। वर्ष 2015 में नागपुर में आयोजित फेमिना मिस इंडिया कान्टेस्ट के लिए उनका चयन हुआ। बैंक की नौकरी छोड़कर मुंबई आ गई। मुंबई में उन्होंने हजारों प्रिंट शूट्स किए जिसके बाद गुजराती फिल्म का ऑफर मिला। इस फिल्म में बेहतर अभिनय के कारण उन्हें लाइफ ओके चैनल में प्रसारित गुलाम सीरियल में काम करने का ऑफर मिला।
माउंटेन गर्ल
नक्सल प्रभावित बस्तर की नैना धाकड़ अब बस्तर पुलिस की माउंटेन गर्ल हैं। इन्होंने बर्फ की चादर से ढकी 6 हजार 512 मीटर ऊंचे पहाड़ भागरीरथी 2 पर बस्तर पुलिस का झंडा फहरा कर न केवल एक नया इतिहास गढ़ी बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य का नाम भी रोशन किया। बस्तर पुलिस का झंडा एस.पी आरिफ शेख ने नैना को दिया था। नैना धाकड़ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बस्तर विश्वविघालय की टीम के साथ 2010 में जाने का मौका मिला था। इसके बाद नैना ने कुछ अलग करने का ठान लिया और 2015 में उत्तराखंड में माउंट क्लबिंग की ट्रेनिंग ली। नैना ने महज 16 दिनों में अपना पूरा सफर तय किया।
इंदू सरकार की रश्मि
मधुर भंडारकर की फिल्म इंदू सरकार में संजय गांधी से इंस्पायर्ड किरदार की गर्लफ्रेंड का रोल निभाने वाली रायपुर की रश्मि झा कहती हैं, इस फिल्म में उनका चयन इतनी आसानी से नहीं हुआ। इस रोल के लिए उन्होंने ऑडिशन दिया था। करीब 25 मॉडल और मौजूदा एक्ट्रेसेस इस ऑडिशन में शामिल हुईं थीं। दृअलग-अलग राउंड्स में टेस्ट लिए गए। तकरीबन 3 से 4 महीने के बाद ये रोल दिया गया। इतना ही नहीं रश्मि का लुक कैसा हो ये खुद मधुर भंडारकर ने तय किया। पांच बार हेयर स्टाइल 8 बार साड़ियों का स्टाइल वगैरह ट्राय करने के बाद फायनल लुक तय हुआ। जब ये रोल ऑफर हुआ तब इन्हें खुद भी नहीं पता था कि इस पर इतनी कंट्रोवर्सी होगी। रश्मि ने इस फिल्म को लेकर फैमिली से भी छुपाया। जब इन्हें इस रोल के लिए सलेक्ट किया गया तब इन्होंने इसके बारे में किसी को भी नहीं बताया। पूरी फिल्म शूट हो गई। जब ये तय हो गया कि फिल्म अब रिलीज होने वाली है तब इन्होंने अपनी मां और बहन से कहा,क्या आप लोगों को मधुर भंडारकर की फिल्में अच्छी लगती हैं। इनकी मां ने जवाब दिया हां बिल्कुल। रश्मि ने कहा, मैं इनकी अपकमिंग फिल्म इंदू सरकार में एक रोल में हूं। ये सुन इनकी बहन तो उछल पड़ी। बैंगलोर से ग्रैजुएशन खत्म करने के बाद मॉडलिंग के लिए पैरेंट्स राजी हो गए थे। कुछ रिश्तेदारों के बीच ये बात जरूर थी कि बिना किसी फिल्मी बैकग्राउंड के कैसे मुंबई में कुछ होगा लेकिन अब सब रश्मि को एप्रीशिएट कर रहे हैं।
बेटियों ने दिखाया दम
जिस इलाके को नक्सली खुद अपनी जागीर मानते थे,वहां बेटियों ने बंदूक की नोंक पर सड़के और पुलिया बनवाकर माओवादियों को झटका दे रही हैं। 2006 में बीजापुर जिले के भैरममगढ़ गांव के तहत कर्रेमरका से टिण्डोरी जाने वाले सड़क मार्ग को और पुलिया को माओवादियों ने तहस नहस कर दिया था। कोई भी ठेकेदार सड़कें और पुलिया को बनाने को तैयार नहीं था। बहादुर बेटियां जिन्हें महिला कमांडो के नाम से पुकारा जाता है, इन्होंने सड़कें और पुलिया अपने दम पर बनावाईं। बीजापुर कलेक्टर अय्याज तम्बोली एवं पुलिस अधीक्षक के एल धु्रव को स्थानीय नागरिकों ने बताया कि सड़कें और पुलिया नहीं है। चूंकि इस क्षेत्र में नक्सलियां का खतरा हर पल रहता है इसलिए सवाल यह था कि कौन बनाएगा। ऐसे में बीजापुर की महिला कमांडो को सुरक्षा का जिम्मा दिया गया। इन बेटियों ने बहादुरी का परिचय दिया। तेज धूप और बारिश के बीच कर्रेमरका से टिण्डौरी तक सड़क मार्ग अपनी देख रेख में बनवाया। पुलिस महानिरीक्षक बस्तर रेंज विवेकानंद सिंह उप पुलिस महानिरीक्षक दक्षिण बस्तर रेंज सुंदरराज पी.ए पुलिस अधीक्षक बीजापुर के.एल धु्रव एवं जिला पंचायत सीईओ अभिषेक सिंह ने बेटियों के साहस को सलाम करते हुए कहा,आज नक्सलवाद दम तोड़ रहा है तो इन बेटियों की बहादुरी का ही कमाल है।
गरीब बच्चों की गुरू
कोई बच्चा गरीबी की वजह से अपनी पढ़ाई बंद न कर दे इसलिए पिछले 32 सालों से मां शंखिनी महिला उत्थान केंद्र की महिला टोली नक्सल जिला गीदम में ऐसे बच्चों को ढूंढ कर उनकी शिक्षित करने का दायित्व निभा रही है। संस्था की अध्यक्ष बुधरी ताती इस सामाजिक कार्य को करने अपना घर नहीं बसाया। उन्होंने तय कर लिया है कि आर्थिक अभाव के चलते जो बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं उन्हें पढ़ायेंगे। उनके पढ़ाए डेढ़ सौ बच्चे सरकारी नौकरी पर हैं। साथ ही ऐसे बच्चे संस्था को सेवा भी दे रहे हैं। संस्था को चलाने के लिए सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहंी मिलती,फिर भी वे गरीब बच्चों को भविष्य संवारने में जुटी हुई हैं।