Wednesday, June 19, 2019

पत्रकारिता का पतन...


यकीन नहीं होता पर देख कर यकीन करना ही पड़ेगा। कुछ लोग पत्रकारिता का पतन करने का ठेका ले रखा है। बात करते है संवेदना की और खुद कोई पत्रकार संवेदनहीन हो जाये तो बड़ी शर्म आती है। आज तक की रिपोर्टर अंजना ओम कश्यप को इतनी भी तमीज नहीं है कि कोई डाॅक्टर मौत के कगार पर खड़े बच्चों के इलाज में जुटा है तो, उससे सवाल दर सवाल करना चाहिए कि नहीं? अंजना को इतनी तो समझ होनी चाहिए कि एक डाॅक्टर सिर्फ इलाज करता है,व्यवस्था नहीं करता है। अस्पताल में मरीजों के लिए बेड की व्यवस्था अस्पताल प्रशासन करता है। अस्पताल का अधीक्षक की जवाबदेही होती है। प्रदेश के मुख्यमंत्री की जवाबदेही होती है। सरकार की होती है। लेकिन बिहार में चमकी बीमारी से बेहाल बच्चों के इलाज में जुटे एक चिकित्सक से कल वो लाइव सवाल कर रहीं थी,अभी जो बच्चा आया है,उसे कहां भर्ती करेंगे। बिस्तर तो है नहीं। कहां रखेंगे। आईसीयू में क्यों सीधे भर्ती नहीं कर रहे हैं। बेड यहां है नहीं,फिर बच्चे को किस बेड में रखोगे।
वो डाॅक्टर बार बार कह रहा है अभी जो बच्चा आया है, उसे नर्स देख रही है। और भी बच्चें हैं, आप देख रही हैं उन्हें भी इलाज की जरूरत है। एक एक करके देख रहे हैं। लेकिन अंजना ओम कश्यप न जाने किस हैसियत से उसे लताड़ रही थीं। मानो उस डाॅक्टर से बड़ी डाॅक्टर हैं। उन्हें सब कुछ पता है कि डाॅक्टर के इलाज में क्या खामियां है।
उनके सवाल देखिये, अभी अभी सी.एम यहां से गये हैं,यह आपकी व्यवस्था है। आप को पता होना चाहिए कि बच्चे को कौन सा इलाज तत्काल देना चाहिए। बताइये अभी तक कितने बच्चे मर चुके है। चिकित्सक ने कहा,आप विभाग में नीचे जाकर इसकी जानकारी ले सकती हैं। यह आईसीयू है। लेकिन अंजना उस डॅाक्टर को बीमार बच्चे की इलाज में रूकावट लगतार डाल रही थीं,उन्हें अपनी टीआरपी की पड़ी थी। अपनी पत्रकारिता झाड़ रही थीं। सच्चाई तो यह है कि आज तक का लेबल जब तक है, तभी तक उनकी पत्रकारिता है। उनकी पत्रकारिता कैसी है सारा देश कल देखा। सबने थू थू किया। ऐसे लोगों को यह समझ नहीं है कि कब, कहां,क्या सवाल करना चाहिए। पत्रकारिता ऐसे लोगों की हरकत से ही कलंकित हुई है।

आधी दुनिया की नई कहानियां


छत्तीसगढ़ की महिलाएं न केवल साहस की नई कहानियां गढ़ रही हैं बल्कि अपनी उपलब्धियों से   अपनी पहचान बनाते हुए एक नए भारत का निर्माण कर रही हैं। बदल रहे देश के साथ कामयाबी की पताका भी फहरा रही हैं।

0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                             छत्तीसगढ़ में माओवादियों के सबसे खतरनाक इलाका दरभा में सीआरपीएफ की 80 वीं






बटालियन में पहली बार सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडर की रूप में पदस्थ उषा किरन साहस की ऐसी कहानियां गढ़ रही हैं जो लाल गलियारे में अद्भुत और बेमिसाल है।  इसलिए कि माओवादियों के साथ महिला नक्सलियों को सबने देखा है। लेकिन सी.आर.पी.एफ में पहली बार असिस्टेंट कमांडर के पद पर कोई महिला आई है। उषा किरन कहती हैं सीआरपीएफ मेरे डीएनए में है। मेरे दादाजी सी.आर.पी.एफ में अपनी सेवाएं दे चुके हैं पिताजी विजय सिंह इंस्पेक्टर है। भाई भी फोर्स में हैं। मूल रुप से गुड़गांव की उषा अपने परिवार से सी.आर.पी.एफ ज्वाइन करने वाली तीसरी पीढ़ी हैं। इन्हें सी.ए.पी.एफ 2013 की परीक्षा में 295वीं रैंक मिली थी। वो ट्रिपल जंप में (गोल्ड मेडल ) राष्ट्रीय विजेता भी रह चुकी हैं। केमिस्ट्री बीएससी (अनर्स) 76 प्रतिशत के साथ उत्र्तीण की हैं। उषा ए.के 47 लिए लाल गलियारे के उस रास्ते में जवानों का बे खौफ नेतृत्व कर रही हैं जहां माओवादियों की तूती बोलती है। ऊषा किरन को 332 महिला बटालियन में नियुक्ति के लिए तीन विकल्प दिए गए थे। जम्मू एंड कश्मीर, नॉर्थ-ईस्ट और नक्सल बेल्ट। उषा अपने पिता विजय सिंह को प्रेरणस्त्रोत मानती हैं। वे 2008-09 के दौरान सुकमा में सी.आर.पी.एफ को अपनी सेवाएं दे चुके हैं। पुलिस और लोगों के बीच दूरियां इसलिए है कि यहां समुचित विकास अभी नहीं हुआ है। वे बताती हैं जब माओवादी क्षेत्र भडरीमऊ गई तो महिलाओं ने मुझे घेर लिया। उनके चेहरे पर खुशी देकर मुझे ताज्जुब हुआ। सबने कहा, महिला अधिकारी की देखरेख में उनके घरों की जांच होती है तो उन्हें शिकायत नहीं रहेगी।

12 राज्यों में नाम किया रोशन
यूं तो तैराकी छोरों का खेल है, पर म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के‘‘। वाकय में युवराज को अपनी चारों बेटियां पर गर्व करना उनका हक बनता है। इनकी कहानी दंगल के महावीर सिंह फोगाट से अलग नहीं है। युवराज की चार बेटियां हैं पूजा,रेखा,नेहा और ऋतु। युवराज की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि अपनी बेटियों के सपनों को पूरा कर सकें। उनकी चारों बेटियां अपने मामा की तरह तैराकी में अवाॅर्ड और मैडल जीतने की चाह रखती थीं। उन्हें पता था कि उनके पिता स्वीमिंग पूल और डाइट का खर्च नहीं उठा सकते। जिससे कुछ वर्षो तक बेटियांें को तैराकी छोड़नी पड़ी। इस बीच बड़ी बेटी का तैराकी में प्रदेश स्तर पर सलेक्शन हो गया। जहां उसने आधा दर्जन मेडल जीते। पिता युवराज की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्हांेने बेटियों के सपनों को पूरा करने सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया। युवराज कहते हैं,यह मेरे लिए गर्व की बात है कि आज मेरी चारों बेटियां मेरा,राज्य और शहर का नाम रौशन कर रही है। युवराज की चारों बेटियां गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, गोवा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश पं बंगाल, ओडिशा, झारखंड, आंध्र प्रदेश और पूर्वी राज्यों में आयोजित तैराकी गेम में बेस्ट प्रदर्शन कर दो सौ से ज्यादा मेडल जीतकर राज्य का नाम रोशन कर चुकी हैं। युवराज कहते हैं, तैराकी की शुरुआत में चारों बहनों को महराजबंद व बूढ़ातालाब में प्रैक्टिस कराया। युवराज उन दिनों को आज भी नहीं भूले हैं जब बेटियों की डाइट नॉन वेज, अंडा, सलाद और दूध आदि पूरा करने लोगों से पैसे उधार लिए। इससे पहले तक बेटियां डाइट में चना,मूंग भिगोकर खाती थीं। सरकार की ओर ऐसे खिलाड़ियों के लिए आर्थिक व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वे अपने लिए नया मुकाम बना सकें।
वर्कफोर्स मैग्जीन में बनाई जगह             
विश्व की 25 युवा प्रतिभाओं में कोरबा की अभिलाषा मालवीय ने जगह बनाकर एक नया रिकार्ड हिन्दुस्तान के नाम किया। क्यों कि पिछले छह साल में कोई भी भारतीय इस मुकाम तक नहंीं पहुंचा। यूएसए की वर्कफोर्स संस्था हर साल एक स्पर्धा आयोजित कराता है, जिसमें विश्व के 25 ऐसे युवाओं का चयन होता है जिनकी उम्र 40 से अधिक नहीं होती। युवा अपनी योग्यता के दम पर किसी फर्म या कंपनी की शाख को देश ही नहीं विदेश तक पहुंचाते हैं। ऐसे युवाओं में कोरबा के वाय. के. मालवीय की 31 वर्षीय बेटी अभिलाषा मालवीय ने आॅन लाइन भाग लिया। लाखों की संख्या में विश्व के युवाओं ने हिस्सा लिया। सबने अपनी अपनी उपलब्धियां प्रस्तुत की। वर्कफोर्स गेम चेजर्स अवार्ड 2016 के लिए अभिलाषा मालवीय का चयन हुआ। बेगलुरू के खालिद रजा और मुंबई की सबेरा पटनी को भी यह सम्मान मिला। यूएसए की वर्कफोर्स मैग्जीन ने इन तीनों प्रतिभाओं को जगह देकर सम्मानित भी किया। अभिलाषा वर्तमान में रायगढ़ स्थित जिंदल स्टील एंड पावर कंपनी में एच.आर. हैं। 
मै हूं मिसेज इंडिया              
यह आम धारणा है कि शादी के बाद महिलाओं की आजादी छिन जाती है। लेकिन प्राची अग्रवाल और उनका ससुराल ऐसा नहीं मानता। तभी तो प्राची को अपने सपने को साकार करने में उनका ससुराल और पति सहयोग करते हैं। उसी का नतीजा है कि चेन्नई में हुए मिसेज इंडिया 2017 के फाइनल राउंड में इंडिया से आए 46 कंटेस्टेंट को पीछे करते हुए रैंप पर जलवे बिखेरकर रायपुर की प्राची अग्रवाल ने ये खिताब अपने नाम कर लिया। ये कॉम्पिटिशन सितंबर 2016 में स्टेट लेवल पर हुआ था। जिसमें प्राची चैथे स्थान पर थीं। फिर इन्हें सेमी फाइनल राउंड में जाने का मौका मिला। योग व मार्शल आर्ट से खुद को पहले से ज्यादा फिट कर रैंप पर इस ताज की हकदार बनीं। प्राची इस कॉन्टेस्ट के फाइनल राउंड में वे ट्रेडिशनल आउटफिट के साथ मेक इन इंडिया थीम पर रैंप कैटवॉक की। मॉर्शल आर्ट में गल्र्स को ट्रेंड कर सेल्फ डिफेंस के लिए तैयार करने वाली प्राची को वहां सोशल वर्क के लिए भी अच्छे नम्बर मिले थे। प्राची कहती हैं,मुझे खुशी है कि ससुराल में मुझे आजादी है अपनी जिन्दगी को जैसा चाहूं गढ़ूं। तभी तो आज मै मिसेज इंडिया हॅू‘‘। मॉर्शल आर्ट और योग से खुद को फिट रखने वाली प्राची एक बच्चे की मां हैं। प्राची पति के बिजनेस में भी हाथ बंटाती हैं।

बैंक से छोटे पर्दे पर आ गई
मॉडलिंग का जुनून धृति पटेल पर इस कदर छाया कि वह स्टेट बैंक की नौकरी छोड़ कर इसे ही अपना कॅरियर बनाने की दिशा में चल पड़ी। आज छोटे पर्दे पर लाइफ ओके में प्रसारित होने वाला गुलाम सीरियल में मुख्य किरदार निभा रही हैं। माॅडलिंग में कई खिताब अपने नाम करने वाली धृति भारत-अफगानिस्तान पर आधारित फिल्म काबुली पठान में नायिका का किरदार निभा चुकी हैं। बचपन से ही शोहरत की ख्वाहिश रही इसलिए माॅडलिंग को चुना। इलेक्ट्रानिक्स और इलेक्ट्रीकल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए वर्ष 2014 में मॉडलिंग की शुरूआत की। मिस ब्यूटीफुल छत्तीसगढ़, मिस ब्यूटीफुल रायपुर, मॉडल आफ द इयर आदि प्रमुख खिताब धृति को मिला। मॉडल ऑफ द इयर कॉम्पीटिशन में वे फस्र्ट रनरअप रहीं। मिस इंडिया की तैयारी भी कर रही हैं। वर्ष 2015 में नागपुर में आयोजित फेमिना मिस इंडिया कान्टेस्ट के लिए उनका चयन हुआ। बैंक की नौकरी छोड़कर मुंबई आ गई। मुंबई में उन्होंने हजारों प्रिंट शूट्स किए जिसके बाद गुजराती फिल्म का ऑफर मिला। इस फिल्म में बेहतर अभिनय के कारण उन्हें लाइफ ओके चैनल में प्रसारित गुलाम सीरियल में काम करने का ऑफर मिला।

माउंटेन गर्ल
नक्सल प्रभावित बस्तर की नैना धाकड़ अब बस्तर पुलिस की माउंटेन गर्ल हैं। इन्होंने बर्फ की चादर से ढकी 6 हजार 512 मीटर ऊंचे पहाड़ भागरीरथी 2 पर बस्तर पुलिस का झंडा फहरा कर न केवल एक नया इतिहास गढ़ी बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य का नाम भी रोशन किया। बस्तर पुलिस का झंडा एस.पी आरिफ शेख ने नैना को दिया था। नैना धाकड़ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बस्तर विश्वविघालय की टीम के साथ 2010 में जाने का मौका मिला था। इसके बाद नैना ने कुछ अलग करने का ठान लिया और 2015 में उत्तराखंड में माउंट क्लबिंग की ट्रेनिंग ली। नैना ने महज 16 दिनों में अपना पूरा सफर तय किया।

इंदू सरकार की रश्मि
मधुर भंडारकर की फिल्म इंदू सरकार में संजय गांधी से इंस्पायर्ड किरदार की गर्लफ्रेंड का रोल निभाने वाली रायपुर की रश्मि झा कहती हैं, इस फिल्म में उनका चयन इतनी आसानी से नहीं हुआ। इस रोल के लिए उन्होंने ऑडिशन दिया था। करीब 25 मॉडल और मौजूदा एक्ट्रेसेस इस ऑडिशन में शामिल हुईं थीं। दृअलग-अलग राउंड्स में टेस्ट लिए गए। तकरीबन 3 से 4 महीने के बाद ये रोल दिया गया। इतना ही नहीं रश्मि का लुक कैसा हो ये खुद मधुर भंडारकर ने तय किया। पांच बार हेयर स्टाइल 8 बार साड़ियों का स्टाइल वगैरह ट्राय करने के बाद फायनल लुक तय हुआ। जब ये रोल ऑफर हुआ तब इन्हें खुद भी नहीं पता था कि इस पर इतनी कंट्रोवर्सी होगी। रश्मि ने इस फिल्म को लेकर फैमिली से भी छुपाया। जब इन्हें इस रोल के लिए सलेक्ट किया गया तब इन्होंने इसके बारे में किसी को भी नहीं बताया। पूरी फिल्म शूट हो गई। जब ये तय हो गया कि फिल्म अब रिलीज होने वाली है तब इन्होंने अपनी मां और बहन से कहा,क्या आप लोगों को मधुर भंडारकर की फिल्में अच्छी लगती हैं। इनकी मां ने जवाब दिया हां बिल्कुल। रश्मि ने कहा, मैं इनकी अपकमिंग फिल्म इंदू सरकार में एक रोल में हूं। ये सुन इनकी बहन तो उछल पड़ी। बैंगलोर से ग्रैजुएशन खत्म करने के बाद मॉडलिंग के लिए पैरेंट्स राजी हो गए थे। कुछ रिश्तेदारों के बीच ये बात जरूर थी कि बिना किसी फिल्मी बैकग्राउंड के कैसे मुंबई में कुछ होगा लेकिन अब सब रश्मि को एप्रीशिएट कर रहे हैं।

बेटियों ने दिखाया दम
जिस इलाके को नक्सली खुद अपनी जागीर मानते थे,वहां बेटियों ने बंदूक की नोंक पर सड़के और पुलिया बनवाकर माओवादियों को झटका दे रही हैं। 2006 में बीजापुर जिले के भैरममगढ़ गांव के तहत कर्रेमरका से टिण्डोरी जाने वाले सड़क मार्ग को और पुलिया को माओवादियों ने तहस नहस कर दिया था। कोई भी ठेकेदार सड़कें और पुलिया को बनाने को तैयार नहीं था। बहादुर बेटियां जिन्हें महिला कमांडो के नाम से पुकारा जाता है, इन्होंने सड़कें और पुलिया अपने दम पर बनावाईं। बीजापुर कलेक्टर अय्याज तम्बोली एवं पुलिस अधीक्षक के एल धु्रव को स्थानीय नागरिकों ने बताया कि सड़कें और पुलिया नहीं है। चूंकि इस क्षेत्र में नक्सलियां का खतरा हर पल रहता है इसलिए सवाल यह था कि कौन बनाएगा। ऐसे में बीजापुर की महिला कमांडो को सुरक्षा का जिम्मा दिया गया। इन बेटियों ने बहादुरी का परिचय दिया। तेज धूप और बारिश के बीच  कर्रेमरका से टिण्डौरी तक सड़क मार्ग अपनी देख रेख में बनवाया। पुलिस महानिरीक्षक बस्तर रेंज विवेकानंद सिंह उप पुलिस महानिरीक्षक दक्षिण बस्तर रेंज सुंदरराज पी.ए पुलिस अधीक्षक बीजापुर के.एल धु्रव एवं जिला पंचायत सीईओ अभिषेक सिंह ने बेटियों के साहस को सलाम करते हुए कहा,आज नक्सलवाद दम तोड़ रहा है तो इन बेटियों की बहादुरी का ही कमाल है।

गरीब बच्चों की गुरू
कोई बच्चा गरीबी की वजह से अपनी पढ़ाई बंद न कर दे इसलिए पिछले 32 सालों से मां शंखिनी महिला उत्थान केंद्र की महिला टोली नक्सल जिला गीदम में ऐसे बच्चों को ढूंढ कर उनकी शिक्षित करने का दायित्व निभा रही है। संस्था की अध्यक्ष बुधरी ताती इस सामाजिक कार्य को करने अपना घर नहीं बसाया। उन्होंने तय कर लिया है कि आर्थिक अभाव के चलते जो बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं उन्हें पढ़ायेंगे। उनके पढ़ाए डेढ़ सौ बच्चे सरकारी नौकरी पर हैं। साथ ही ऐसे बच्चे संस्था को सेवा भी दे रहे हैं। संस्था को चलाने के लिए सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहंी मिलती,फिर भी वे गरीब बच्चों को भविष्य संवारने में जुटी हुई हैं।





अबला बन गई बला

             बस्तर की शर्मिली आदिवासी महिलाएं लज्जा छोड़कर बंदूक उठा ली हैं। पुलिस के रोजनामचे में इनामी हार्डकोर नक्सली बन गई हैं। कोई भी उन्हें अब अबला नहीं बल्कि, बला कहता है। खूंरेजी महिलाएं कही जाती हैं।
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                         बस्तर में नक्सलियों के एक बड़े नेटवर्क का संचालन अब महिलाएं ही करती हैं। कभी ये आदिवासी महिलाएं बेहद शर्मिली हुआ करती थीें लेकिन अब इनके चेहरे पर लज्जा नहीं दिखती। बर्बरता और कू्ररता की एक मिसाल बन गई हैं। नक्सली महिलाओं के नाम से जानी जाती हैं। नक्सली नेता अपने संगठन में खूंरेजी महिलाओं को आरक्षण देते हुए उन्हें कैडर के हिसाब से पद देते हैं। पद,प्रतिष्ठा और अच्छे वेतन के लिए आदिवासी लड़कियां चूल्हा चैका और पढ़ाई छोड़कर माओवादी बन रही हैं। बस्तर के सातों नक्सल प्रभावित जिलों में ऐसी कई महिला नक्सली खूंखार लीडर हैं जो बेहतर तरीके से नक्सली मूवमेंट को अंजाम दे रही हैं। जंगल में रहते हुए इनका आचारण भी जंगली हो गया है। दया के भाव इनके चेहरे में नहीं झलकता। ममता की उम्मीद भी बेमानी है। पुलिस वालों की सख्त दुश्मन हैं। इनकी बर्बरता और हिंसक वारदात की वजह से पुलिस ने कई महिला नक्सलियों पर इनाम घोषित किया है। जिसमें कुमारी वनोजा पर 8 लाख, कुमारी सोढ़ी लिंगे पर 5 लाख एवं माड़वी मंगली की गिरफ्तारी पर 3 लाख रूपए का इनाम है।
नक्सली महिलाओं की हिंसक वारदात की वजह से अब उन्हें कोई भी अबला नहीं बल्कि कहता है। नक्सल प्रभावित जिला सुकमा के बुरकापाल में 24 अप्रैल को माओवादी और सुरक्षा बल के जवानों के बीच हुई मुठभेड़ में तीन सैकड़ा से अधिक माओवादी थे। जिसमें से आधे से अधिक वर्दी में महिला नक्सलीं थी। जो सुरक्षा बल के जवानों पर गोलियां चला रही थीं। चैकाने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ में अब तक जितनी भी बड़ी वारदातें हुई हैं उसमें महिला नक्सलियों की अहम भूमिका रही है। दरभा के झीरम घाटी पर हुए कांग्रेसियों की परिवर्तन यात्रा हमले को भी नक्सली महिला लीडरों ने अंजाम दिया था। बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा को झीरम घाटी में बेरहमी से मारा गया था। उन्हें मारने वालों में ज्यादातर महिलाएं ही शामिल थीं। महिला नक्सली कर्मा को पीटते हुए सड़क से लगभग आधा किलोमीटर अन्दर ले गई थीं और इस दौरान उनके चेहरे पर चाकुओं से वार भी करती रहीं। कर्मा की हत्या के बाद उनके शव पर डांस करने वाली भी महिला नक्सली ही थीं। ये क्रोध का चरम था।पिछले कई घटनाओं में महिला नक्सलियों के नाम सामने आने के बाद पुलिस ने भी अति संवेदनशील क्षेत्रों में संदिग्ध महिलाओं पर नजर रखना प्रारम्भ कर दिया है। बस्तर के पूर्व आई जी एस.आर.पी. कल्लूरी के समय सबसे अधिक महिला नक्सलियों ने सरेंडर किए। सरेंडर की  कुछ महिला नक्सलियों की शादी भी प्रशासन ने कराया। ताकि महिलाओं में समाज की मुख्यधारा में शामिल होने की इच्छा जागे। यह अलग बात है कि उनके हटते ही लालगलियारे में महिला नक्सलियों की हलचल एक बार फिर तेज हो गई है।
महिलाएं आसानी से करती हैं रेकी
बस्तर संभाग के सातों जिले अतिसंवेदनशील हैं। सभी जिले में बंदूक चलाने में माहिर बड़ी संख्या में महिला नक्सलियों की भरती की गयी है। मारकाट में माहिर महिला नक्सलियों को बड़े ऑपरेशन की जिम्मेदारी भी दी जाती है। अब तक इनामी सैकड़ों नक्सली महिलाएं पुलिस के हत्थे भी चढ़ी हैं। जिन्होंने खुलासा किए हैं कि बड़े नक्सली लीडर ज्यादातर महिला नक्सलियों को ही अॅापरेशन की कमान सौंपते हैं। इसलिए कि महिलाएं बड़ी आसानी से फोर्स के कैम्पों तक पहुंच कर रैकी कर सकती हैं और बेखौफ होकर बाजार व शहरों में रहकर नेटवर्क तैयार कर सकती हैं। 
दलम की कमांडर हैं महिलाएं
बस्तर की जेलों में वर्तमान में लगभग 50 महिला नक्सली कैद हैं। जिन्हें सातों जिलों से पुलिस ने पकड़ा है। इनमें चार हार्डकोर नक्सली निर्मल्लका, सोनी सोढ़ी, पदमा एवं चंद्रिका हंै जो नक्सलियों के बड़े मूवमेेंट को आपरेट करती थीं। 2006 से महिला नक्सलियों को दलम में शामिल किया जा रहा है। बस्तर संभाग के दरभा, भेज्जी, फरसेगढ़, कुटरू, छोटेडोंगर, झारा घाटी, आवापल्ली, आमाबेड़ा, ओरछा सहित आधा दर्जन इलाकों में महिलाओं को एरिया कमांडर के पद पर तैनात कर नक्सली मूवमेंट को बढ़ाने और हिंसा फैलाने का काम सौंपा गया है। पुलिस भी मानती है कि इन दस सालों में बड़ी संख्या में महिलाएं नक्सली दलम मेें शामिल होकर संगठन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई हैं। पुलिस की संदिग्ध महिलाओं पर पैनी निगाह है।
गजब की बसंती
कांकेर जिले के लोहारी गांव की रहने वाली नक्सली कमांडर संध्या उर्फ बसंती उर्फ जुरी गावड़े को पुलिस आज तक नहीं भूली है और न ही माओवादी नेता। सन् 2010 में ताड़मेटला में हुए नक्सल हमले में 76 जवान शहीद हुए थे। इस वारदात को अंजाम देने में बसंती का हाथ था। बसंती 2001 में नक्सलियों के बाल संगठन में शामिल हुई थी। इसके बाद संगठन में अलग-अलग जगहों पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाने के बाद अपने गांव में जन मिलिशिया कमांडर के तौर पर काम कर रही थी। नक्सल नेताओं के शोषण से तंग आ कर बसंती ने आत्मसमर्पण कर दिया। उसका प्रमुख काम पुलिस पार्टी पर हमला कर हथियार लूटना, सीनियर नक्सली नेताओं की सुरक्षा करना,संगठन के विस्तार में सहयोग करना और नक्सली संगठन के खिलाफ काम करने वालों को सजा देना था। उसने जो गंभीर वारदात को अंजाम दिया उसमें से दुर्गूकोन्दल, आमाबेड़ा, कोयलीबेड़ा और पखांजूर थाना क्षेत्र में कई जगह विस्फोट, आगजनी और एम्बुश लगाने की घटनाओं में शामिल। 13 सितंबर 2003 दंतेवाड़ा जिले के गीदम थाने में हमला और लूट। 2007 में बीजापुर जिले के रानीबोदली कैंप पर हमला। 2013 में मन्हाकाल निवासी जग्गु धुर्वा की हत्या प्रमुख है।
27 जवानों की जान ली सुकाय
प्रदेश के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के गीदम थाना क्षेत्र से सुकाय वेट्टी को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया। सुकाय वेट्टी पिछले पांच सालों से नक्सलियों से जुड़ी थी। 2011 में एलजीएस सदस्य के रूप में वह संगठन से जुड़ी। पूर्वी बस्तर डिविजन के कुआनार में एल.जी.एस. की सक्रिय सदस्य थी। सन् 2010 में मुडपाल के जंगल में पुलिस पर एम्बुश लगाकर हमला,नारायणपुर के धौड़ाई इलाके में सीआरपीएफ के जवानों पर हमला इसमें 27 जवान शहीद हुए थे। 2013 में कोंडागांव के केशकाल थाना क्षेत्र में पुलिस नक्सली मुठभेड़ में शामिल थी। दस लाख की इनामी थी।
माओवादी महिला बना दिए
पिछले कुछ वर्षो से माओवादियों की टुकड़ियों में महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके पीछे सरकार विरोधी मानसिकता आदिवासी महिलाओं को माओवादी बना रही है,ऐसा कोई कारण नहीं है। बस्तर की आदिवासी महिलाएं बस्तरिया संस्कृति को ही ओढ़ती और बिछाती आई हैं। हाड़तोड़ मेहनत करना और पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेती किसानी से लेकर वनोपज एकत्र करना, हाट बाजारों में बेचने के अलावा घर गृहस्थी और बाल बच्चे संभालना यह उनका स्थायी गुण है। विषम परिस्थितियों में नहीं घबराना आदिवासी महिलाओं की विशेषता है। आदिवासी महिलाओं की यही विशेषता लालगलियारे की जरूरत बन गया। आदिवासी औरतों में अनुशासन और किसी भी काम को मन लगाकर करने की इच्छा शक्ति बहुत तेज होती है। उनकी इस खूबी का इस्तेेमाल माओवादी नेताओं ने खूंखार छापामार और कू्ररता में उन्हें तब्दील कर उन्हें माओवादी महिला बना दिए हैं।
नाबालिग युवतियांे की मांग
आन्ध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुई कई बड़ी नक्सली वारदातों को अंजाम देने वाली रमोली ने पुलिस को जो बताया वह किसी अजूबा से कम नहीं है। रमोली कहती है,बड़े नेता नाबालिग युवतियों को संगठन में शामिल करने का दबाव बनाते हैं। पहले युवतियों में जोश भरा जाता है कि यह अपने लोगों के लिए हमारी लड़ाई है। लेकिन शामिल होने के बाद दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। जुगरी निवासी छिनारी नारायणपुर मर्दापाल एलओएस सदस्य के रूप में वर्ष 2008 में भर्ती हुई थी। वर्तमान में उसे भानपुरी एरिया कमेटी सदस्य की जिम्मेदारी दी गई थी। दोनो महिला नक्सलियों पर 50-50 हजार का इनाम था। माओवादियों को प्रेम और संतान पैदा करने की इजाजत नहीं होती। आठ लाख रूपए की इनामी नक्सली 20 वर्षीया आसमती को 10 लाख रूपए के इनामी नक्सली संपत से प्यार हो गया। इन दोनों की मुहब्बत परवान चढ ही रही थी,इसकी भनक कमेटी के सचिव राजू उर्फ रामचन्द्र रेड्डी को लग गई। दोनों को अलग कर दिया। आसमती को यह अच्छा नहंी लगा और वह घर बसाने के लिए लाल गलियारे से नाता तोड़ने के लिए संपत को विवश किया और दोनों ने हथियार डाल दिए। छत्तीसगढ़ सीमा से लगे ओडिशा राज्य के मलकानगिरी जिले में एसपी मित्रभानु महापात्रो के समक्ष दो महिला समेत पांच माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया। इसमें एक माओवादी सुभा मड़कामी उर्फ राजू पर एक लाख रुपए का इनाम घोषित था। बताया गया है कि सुभा मड़कामी 23 वारदातों में शामिल रहा। महिला माओवादी भिमे माड़ी उर्फ कुमारी आठ वारदात, सोमा पोडयामी उर्फ विक्रम पांच वारदात में शामिल था।
जनयुद्ध का प्रशिक्षण
पुलिस को शिकायत मिल रही है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र के गांवों से लगातार आदिवासी महिलाएं लापता हो रही हैं। वहीं नक्सली हर गांव में प्रत्येक घर से एक युवती मांग कर उन्हें हथियार संचालन का प्रशिक्षण के साथ विद्रोह का भी ज्ञान देते हैं। ताकि वे बंदूक उठा सकें और चला सकें। नक्सली कैम्पों में मिली किताबों से पता चला कि घने जंगलों में नक्सली युवतियों को क्रांति का पाठ पढ़ा रहे हैं। किताब में दंडकारण्य जनता विद्रोह का एक पाठ भी जोड़ा गया है। जाहिर है कि महिला माओवादियों के दम पर ही छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की दहशत है। जिस दिन नक्सलियों का साथ देना महिलाएं बंद कर देंगी माओवादी की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी।










नक्सलियों नें बदल ली जिन्दगी

   
राजनांदगांव पीटीएस में तीन सैकड़ा जवानों के साथ ग्यारह ऐसे जवान भी प्रशिक्षण ले रहे हैं जो कभी नक्सली थे। आत्मसमर्पण के बाद इनकी जिन्दगी बदल गई है। देश और कानून की रक्षा के लिए अब ये माओवादियों के खिलाफ लड़ेंगे।





0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                      राजनांदगांव पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र (पीटीएस) में 354 जवानों के साथ बस्तर संभाग से आए 11 ऐसे सिपाही भी हैं जो कभी नक्सली जीवन जीते थे। जिनके नाम से लोग डरते थे। अब वे नक्सली जीवन छोड़कर समाज की मुख्य धारा में शामिल हो गए हैं। लेकिन कोई भी जब सूनता है कि वे नक्सली थे,तो एक बार चैंक जाता है। इसलिए कि नक्सली अब पुलिस की वर्दी में हैं। अब वे बंदूक भी उठाएंगे तो माओवादियों के खिलाफ। जाहिर है कि उनकी जिन्दगी और सोच बदल गई है। कानून और समाज की रक्षा में उनकी भूमिका क्या है, सिपाही की वर्दी पहने के बाद महसूस करते हैं। पुलिस अफसरों को भरोसा है कि लंबे समय तक माओवादियों के साथ रहने की वजह से प्रदेश में जितने भी माओवादियों ने समर्पण कर सिपाही बनकर समाज की सेवा करना चाहते हंै, वे नक्सली अभियान में मददगार साबित हो सकते हैं। इसलिए कि उन्हें माओवादी कैसे और किस तरह की योजनाएं बनातें हैं,अपनी योजनाओं को किस तरह अंजाम देते हैं, उससे परिचित हैं। उनकी योजनाओं को मात देने इनकी मदद कारागार साबित हो सकती है।
पूर्व माओवादी अब वर्दी में                                     
प्रदेश में तीन पीटीएस केन्द्र है। सभी पीटीएस केन्द्रों में इस समय विभिन्न जिलों में आत्म समर्पण कर यहां आए माओवादी प्रशिक्षित किए जा रहे हैं। करीब आधा सैकड़ा नक्सली हैं जो माना,चंदखुरी और राजनांदगांव पीटीएस में प्रशिक्षण पा रहे है। रमन सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले उन सभी नक्सलियों को जो शिक्षित हैं और सिपाही बनना चाहते है,उन्हे भर्ती करने का आदेश दिया है। राजनांदगाव पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र में जिला पुलिस बल के साथ माओवादी कानून की बारिकियों को तो समझ ही रहे हैं साथ ही, अन्य लोगों के साथ हर तरह का प्रशिक्षण भी ले रहे हैं। राजनांदगांव पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र की ए. एस.पी मोनिका ठाकुर कहती हैं,सभी जिले से यहां पुलिस कर्मी प्रशिक्षण के लिए आए हैं। साथ में वे माओवादी भी हैं जो समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर सरेंडर कर दिए हैं।   शिक्षित पूर्व माओवादियों कों शासन की ओर से सिपाही के पद पर भर्ती किया गया है। वे यहां अन्य सिपाहियों के साथ रहतेे हैं। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें उनके जिले में भेज दिया जाएगा। जिले के अधिकारी उनसे जैसी ड्यूटी चाहेंगे लेंगें‘‘।
एंबुश लगाने में माहिर
राजनांदगांव के पीटीएस ट्रेनिंग कैम्प में बस्तर के पूर्व 11 नक्सलियों को लड़ने को ट्रेनिंग दी जा रही है। ये नक्सली गोरिल्ला वार से लेकर एंबुश लगाए जाने की सभी तकनीक को अच्छी तरह जानते हैं। सभी नक्सली इनामी थे जो पुलिस के सामने सरेंडर करके भरोसा दिलाया है कि भविष्य में वे लाल गलियारा के खिलाफ बंदूक उठाएंगे। यह अलग बात है कि कभी सिपाही बने माओवादियों की अपने इलाके में दहशत थी लेकिन अब वे अपने टैंलेंट से पुलिस की मदद करेंगे। 
नक्सली इलाकों में होगी पोस्टिंग
पीटीएस में प्रशिक्षण ले रहे बस्तर के पूर्व 11 माओवादी जवानों की पोस्टिंग मार्च के बाद नक्सली इलाकों में होगी। इस ट्रेनिंग के बाद आने वाले समय में इन्हें दो महीने की जंगल में लड़ने की ट्रेंनिग भी दी जाएंगी। पीटीएस में सभी को नौ महीने की ट्रेनिंग दी जा रही है। नक्सल एक्टिवीज को बढ़ता देख अब ट्रेनिंग भी तेज हो गया है। बेसिक कोर्स के साथ ही फिटनेस और जंगल के हिसाब से रस्सा, बीम, ऑप्टिकल फ्रंट रोल के अलावा हथियारों की ट्रेनिंग दी जा रही है। इन जवानों को 10 की जगह 20 किलो मीटर की रनिंग कराई जा रही है। 50 डिप्स और पुशअप लगवाए जा रहे हैं। पीटीएस में 354 जवानों में 80 प्रतिशत बस्तर के हैं।
 नहीं लौटा तो भाई की कर दी हत्या
यहां ट्रेनिंग ले रहे तूर सिंह कांकेर के रहने वाले हैं। सरेंडर के बाद घर वापसी के लिए बार,बार नक्सलियों ने कई दबाव बनाया। बड़ा भाई फूलसिंह भी पुलिस में है। दो दिसंबर को ही नक्सलियों ने उनके छोटे भाई ढेलूराम धु्रव को मार डाला। पीटीएस के एस.पी बी.एल मनहर ने बताया कि नक्सल मूवमेंट बढ़ने की वजह से जवानों की ट्रेनिंग हार्ड कर दी गई है। मार्च में पास आउट के बाद इनकी पोस्टिंग बस्तर क्षेत्र में की जाएगी। पहले सें जंगल में रहने का अनुभव अब पुलिस के काम आएगा। सुकमा के रहने वाले 45 साल के सुभाष कोमरे गोरिल्ला वार के साथ निशाने बाजी में माहिर हैं। इन्हांेने बताया कि 1993 से 2014 तक डीवीसी मेंबर रहे। पांचवीं क्लास में थे तभी नक्सली साथ ले गए। उनकी पत्नी समबती भी नक्सली थीं। 2014 में कोमरे दंपति ने सरेंडर किया।
बदल गई सोच
सुकमा के एतरानपार के रहने वाले 30 साल के लोकेश कर्मा वर्ष 2001 से 2009 तक नक्सलियों के साथ रहे। वे एंबुश की प्लानिंग से लेकर सूचना जोड़ना, रैकी करना,भर्ती कराने का काम करते थे। अब यहां आने के बाद इनकी सोच बदल गई है। ट्रेनिंग से ये मजबूत हो रहे हैं।
नक्सली कमांडर को मारा
कांेडागंाव के अजय बधेल सन् 2006 से 2011 तक नक्सलियों के साथ रहे। पांच साल तक माओवादियों के साथ रहने और उनके विचार धाराओं से धीरे धीरे अजय का मोह भंग होने लगा। समाज की मुख्य धारा में शामिल होने का उन्होंने एक दिन इरादा बनाया और अपने आप को सरेंडर कर दिया। वे बताते है नवंबर 2013 में एक मुठभेड़ के दौरान उनके दोनों पैरों में गोली लग गई थी। फिर भी वे गोली चालाते रहे। उन्हें लगा कि जंगल में रहकर देश की रक्षा के लिए गोली चलाना ज्यादा अच्छा है और  अपने आप को सरेंडर के लिए मजबूत किया। किसी को बताया तक नहीं। उनमें शुरू से सिपाही बनकर समाज की सेवा करने की इच्छा थी। भाई की हत्या की वजह से गलत राह पर चले गए थे। सिपाही में भर्ती होने के बाद वे 2015 में एक मुठभेड़ में एलओएस कमांडर को मार गिराया। कमकानार मंगालूर क्षेत्र के 27 वर्षीय गोपाल गुड्डू डिवीजन एक्शन कमांडर था।
65 फीसदी नक्सलियों का सफाया  बाॅक्स में
गृह सचिव वी.वी.आर सुब्रम्हण्यम ने कहा कि, साल 2017 में 300 से ज्यादा नक्सलियों को आपरेशंस के दौरान मार गिराया गया। पिछले 2 सालों में 1476 नक्सल आपरेशंस चलाए गए। इसमें 1994 नक्सलियों की गिरफ्तारी हुई। वहीं 1458 नक्सलियों को मार गिराया गया। नक्सलियों पर कुल 4 करोड़ का इनाम था। वहीं 1280 किलो की आईईडी 263 स्थानों से बरामद की गई। 100 हैंड ग्रेनेड और 2319 डेटोनेटर भी बरामद किये गये। इस दौरान 102 जवान शहीद भी हुए। जवानों के 43 हथियार लूटे गए। साल 2017 में 1017 नक्सली गिरफ्तार हुए। जिनमें 79 नक्सलियों पर इनाम था। इनामी नक्सलियों पर 1 करोड़ 41 लाख का इनाम था। 2022 तक नक्सलवाद पूरी तरह से खत्म कर दिया जायेगा। अब सिर्फ बीजापुर और सुकमा में नक्सलियों की मौजूदगी है। केंद्र और राज्य सरकार के 70 से 75 हजार जवान नक्सलियों से लड़ रहे हैं। 4 नई बटालियन में 5 हजार जवान मार्च तक तैनात किए जाएंगे। बस्तर में 60 से 65 फीसदी नक्सली का सफाया हो गया है। नक्सल आपरेशन के लिए साल 2017 को याद किया जायेगा क्योंकि ऑपरेशन प्रहार के दौरान जवान ताड़मेटला जैसे नक्सलियों के गढ़ तक पहुंचे और आपरेशन को अंजाम दिया। गोलाराम और भोपालपट्टनम, नगरकोलम, जैसी कई ऐसी जगह थी, जहां जवानों ने पहली बार अपनी मौजूदगी दिखायी। डीजीपी ए एन उपाध्याय ने बताया कि आपरेशंस के साथ-साथ डेवलपमेंट के भी काफी काम हुुुए। बस्तर में पुलिस की देखरेख में 2 साल में 700 किलोमीटर की रोड बनी, जबकि 1300 किलोमीटर रोड बनने का काम जारी है। वहीं 75 नए थाने भी खोले गये।