Friday, June 26, 2020

गजराज के बुरे दिन


 
छत्तीसगढ़ में हाथियों के बुरे दिन आ गए है। एक सप्ताह में छह हाथियों की बड़ी दर्दनाक मौत हुई। वन अमला किसी को भी नहीं बचा सका। जबकि सरकार ने हाथियों की निगरानी के लिए हर साल दो करोड़ रूपये खर्च करती है। सवाल यह है कि क्या किसान हाथियों से अपना घर,अपनी फसल और बाग बगीचे बचाने के लिए उन्हे कीटनाशक दवा खिला रहे हैं?










0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’
                छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में 20 माह की गर्भवती हथिनी की लिवर की बीमारी से मौत हो गई है। ऐसा सरकार की रिपोर्ट कहती है। जबकि डाॅक्टरों का कहना है कि तालाब का प्रदूषित पानी पीने की वजह से हथिनी के लिवर में इंफेक्शन हो गया था। तालाब वन विभाग ने बनवाया था। चैकाने वाली बात है कि हाथियों पर निगरानी रखने वाले भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिक और अफसर कितने लापरवाह हैं कि हथिनी बीमार है, इसका पता नहीं लगा सके। जबकि सरकार सालाना 2 करोड़ रूपये हाथियों की देख रेख के लिए खर्च करती है।   
सूरजपुर जिले में प्रतापपुर वनपरिक्षेत्र के गणेशपुर के जंगल में 8 जून को हाथियों की दहाड़ ग्रामीणों ने सुनी। सुबह हथिनी की लाश पड़ी थी। इसकी जानकारी वन अधिकारियों को दी गई। डॉ महेंद्र कुमार पांडेय ने पोस्टमार्टम किया। हथिनी के पेट में 20 माह का मादा बच्चा था। जिसकी गर्भ में ही मौत हो गई थी। हथिनी के लिवर में इंफेक्शन की वजह से पानी भर गया था। लीवर इंफेक्शन की वजह से उसकी मौत हो गई थी। हथिनी के लिवर में 150 सिस्ट थे। जो कि इतनी संख्या में उन्होंने किसी जानवर में नहीं देखे। पोस्टमार्टम में उसके पेट में ज्यादा चारा भी नहीं मिला। अब ऐसे में वन विभाग के उस दावे पर सवाल उठ रहे हैं, जो मॉनिटरिंग करने का दावा करता है। कायदे से सरकार और वन विभाग को तालाबों की सफाई के साथ ट्रीटमेंट कराना चाहिए ताकि, हाथियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम न हो।
हाथी मरें सरकार का क्या
यह अकेली घटना नहंी थी। दस जून को वहां से कुछ दूरी पर ही तालाब के पास दूसरी हथिनी का शव मिला। पास ही एक बोरी कीटनाशक पड़ा हुआ था। इसके बाद 11 जून को बलरामपुर में तीसरी हथिनी का सड़ा, गला शव मिला। बताया गया है कि इसकी मौत पांच दिन पहले ही हो चुकी थी। यानी तीन दिन मे तीन और एक सप्ताह में सात हाथियों की मौत हुई। सूरजपुर में सड़क से महज 200 मीटर दूर गणेशपुर जंगल में शव पड़ा था। बदबू आने पर ग्रामीणों ने वन विभाग को इसकी सूचना दी। सूरजपुर जिले में पिछले छह माह में सात हाथियों की मौत हो चुकी है। इसमें सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले में 4, बलरामपुर में 2 और जशपुर में एक की मौत हुई है। ये मौत 6 माह के भीतर हुई है। वहीं पिछले 5 साल में अकेले सूरजपुर जिले में 22 हाथियों की जान जा चुकी है। 
मौत की वजह अलग       
तीनों हथिनियों की मौत की रिपोर्ट अलग अलग है। एक की मौत हृदयाघात, दूसरे की टाॅक्सीसिटी और तीसरे की इन्फेक्शन से हुई है। भारत सरकार के वाइल्ड लाइफ से जुड़े अधिकारियों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए यह रिपार्ट बता दी गई। सरकार ने मनमाफिक रिपोर्ट बना के जवाब दे दिया, लेकिन घटना स्थल पर एक बोरी कीटनाशाक क्यों पड़ा था,इसका जवाब नहंीं दिया। गौरतलब है कि कीटनाशक के पैकेट के पास हाथियों का दल खड़ा रहा। हाथियों ने कीटनाशक पैकेट और हथिनी का शव उठाने नहीं दिया। पशु चिकित्सक का आशंका है कि जहर दिया गया है। क्यों कि सूखे नाले में हथिनी के शव के सूंड से झाग निकल रहा था। वनकर्मियों के अनुसार जिस दल की दो हथिनी की मौत हुई है, यह प्यारे हाथी का दल है। बलरामपुर जिले के राजपुर रेंज के अतौरी जंगल में 6 जून को प्यारे हाथी का दल आया था। यहां से होते हुए गणेशपुर की ओर चला गया। आशंका है कि उसी दौरान हथिनी अस्वस्थ होने की कारण चलने में पिछड़ गई होगी और बाद में उसकी मौत हो गई।
करेंट से हाथी की मौत
रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ वन मंडल के गेरसा गांव में किसान भादो राम राठिया और बलसिंह अवैध बिजली के कनेक्शन से खेत की सिंचाई कर रहे थे। खुले तार की चपेट में आने से 16 जून को एक हाथी की मौत हो गई। दोनों किसानों को जेल भेज दिया गया है। इस क्षेत्र में कुछ दिनों से 27 हाथियों का दल पहाड़ के इलाके से कटहल खाने आते हैं। हाथी कटहल खाने आया था, करंट लगने से उसकी मौत हो गई। इसके अलावा 18 जून को एक दंतैल हाथी छाल रेंज के बेहरामार गांव में मृत मिला। देर रात भोजन की तलाश में आने की संभावना  है। धरमजयगढ़ क्षेत्र में तीन दिन में यह दूसरे हाथी की मौत हुई। करेंट लगने से उसकी मौत हो गई।
कीचड़ में नन्हें हाथी की मौत
दलदल में 38 घंटे तक नन्हा हाथी फंसा था लेकिन, उसे वन विभाग नहीं निकाल सका और 12 जून को उसकी मौत हो गई। यह घटना कोरबा के कटघोरा वन परिक्षेत्र के कुल्हरिया की है।  हाथी के शव का पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ अजय तोमर, डॉ ए.के. कोसरिया व डॉ एन.के दुबे ने पोस्टमार्टम के दौरान पाया कि हाथी के एक पैर में 15 सेंटीमीटर सूजन था। जिस स्थान पर हाथी बैठा था, वह खेत है। बांगो डूबान क्षेत्र का हिस्सा होने से हमेशा यहां दलदल रहता है। घुटना मुड़ गया था, इसके बाद वह उठ ही नहीं पाया। वन विभाग के उप सचिव गणवीर ने कहा, दलदली क्षेत्र के कीचड़ में फंसी मादा हाथी को बचाने के लिए प्रभारी डी.एफ.ओ. संत ने कोई प्रयास नहीं किया। इससे शासन की छवि धूमिल हुई है। कटघोरा के प्रभारी डीएफओ डीडी संत को निलंबत कर दिया गया है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक अतुल कुमार शुक्ला और बिलासपुर मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी पी.के. केशर को कारण बताओं नोटिस जारी किया गया है।
कीचड़ में हाथी की मौत
गरियाबंद मैनपुर क्षेत्र से 21 हाथियों का दल धमतरी ब्लॉक के मोंगरी गांव से होकर गुजर रहा था। 15 जून की रात यहां हाथी का बच्चा फंस गया। ग्रामीणों की मदद से उसे निकालने की कोशिश की गई लेकिन नहीं निकाल सके। 16 जून की सुबह उसकी मौत हो गई। ग्रामीण सगनु राम नेताम ने बताया कि 7 जून से हाथी इसी इलाके में थे। सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि, इतने कीचड़ में तो हाथी खेलते हैं।
हाथी बेहोश हो गया
कोरबा जिले के ग्राम पंचायत गुरमा के आश्रित ग्राम कटरा डेरा के एक किसान के घर 14 जून को एक हाथी घुस आया। बेहोश होकर गिर गया। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉक्टर की मौजूदगी में वन विभाग के अमले और ग्रामीणों की मदद से हाथी को करवट लिटाया गया। जिससे सांस लेने में हाथी को राहत मिली। हाथी की ऊंचाई 1.9 मीटर है। अस्वस्थ हाथी का इलाज जारी है। उत्तर सिंगापुर वन क्षेत्र मगरलोड में 17 हाथियों का दल ग्राम मोहेरा, जलकुंभी, हतबंद, अमलीडीह, परसाबुड़ा, रैगाडीह, राजाडेरा के आस पास देखा गया है। गरियाबंद क्षेत्र में इन हाथियों ने उत्पात मचाकर अब मगरलोड क्षेत्र में प्रवेश कर चुके हंै। हाथियों के एक दल ने ग्राम गंजईपुर में एक आदमी को कुचलकर मार चुके है। 
समिति एक माह में देगी रिपोर्ट
सरगुजा संभाग में हाथियों की मौत के मामले की जांच के लिए रिटायर्ड मुख्य वन संरक्षक के.सी बेवर्ता की अध्यक्षता में एक कमेटी र्गिठत की गई है, जो एक माह में रिपोर्ट देगी। कमेटी में वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ आरपी मिश्रा, वरिष्ठ पशु चिकित्सक, वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ देवा देवांगन इस बात की जांच करेंगे कि क्या हाथियों की ऐसी मौत रोकी जा सकती थी या नहीं। वहीं पूर्व वन मंत्री महेश गागड़ा कहते हैं, तीन हाथियों की मौत पर हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए। अब तक गठित समितियां और एसआईटी ने एक भी मामले की रिपोर्ट नहीं दी। सवाल यह है कि क्या छत्तीसगढ़ हाथियों की कब्रगाह बन रहा है?