Monday, January 18, 2021

नक्सलवाद के पंजे में छग की गर्दन

      












नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ को गृहराज्य बना लिया है। बस्तर का अबूझमाड़ जंगल माओवादियों की राजधानी है। राज्य के 14 जिले नक्सल प्रभावित हैं,जबकि नक्सलियों की आवाजाही 18 जिलों में है। देश के तमाम नक्सली संगठन बस्तर के दंडकारण्य जोन को ही फालो करते हैं। माओवादी छत्तीसगढ़ को दंडकारण्य राज्य बनाने जन युद्ध कर रहे हैं,वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,नक्सली जब तक हथियार नहीं छोड़ेंगे, उनसे बात नहीं करेंगे। सवाल यह है कि और कितने गणतंत्र के बाद छत्तीसगढ़ नक्सलवाद के पंजे से मुक्त होगा।
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
                ‘‘नक्सली संगठन आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक हैं।’’ पूर्व प्रधान मंत्री डाॅ मनमोहन सिंह ने माओवादियों की हिंसक घटनाओं के आधार पर यह कहा था। 2010 में दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने घात लगाकर 76 जवानों की एक ही दिन में हत्या कर दी थी। इतने जवान एक दिन में कभी भी किसी युद्ध में शहीद नहीं हुए। बावजूद इसके मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,‘‘नक्सली संविधान पर विश्वास करें और हथियार छोड़े तभी बात होगी।’’जाहिर सी बात है कि नक्सली हथियार नहीं छोड़ेंगे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शायद भूल गये हैं कि उनकी पार्टी के कांग्रेस नेता राजबब्बर ने चुनाव के पहले कांग्रेस भवन में 4 नवम्बर 2018 को कहा था,‘‘नक्सली क्रांतिकारी हैं। वे क्रांति करने निकले हैं। उन्हें कोई रोके नहीं।’’
क्या यह मान लिया जाए कि राजब्बर नक्सलियों का हौसला आफजाई करने आए थे। ताकि नक्सली, कांग्रेसी समर्थक हो जाएं? और बस्तर की सभी 12 सीटें कांग्रेस की झोली में आ जाए। ऐसा ही हुआ। स्व. महेन्द्र कर्मा की पत्नी और काग्रेस विधायक देवती कर्मा कहती हैं,‘‘नक्सलवाद को कोई भी पार्टी खत्म नहीं कर सकती। नक्सलवाद पहले भी था,आज है, और कल भी रहेगा। वे सवाल करती हैं कि झीरम कांड में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। झीरम कांड में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा, लेकिन सरकार बीजेपी की ही क्यों बनी?
देवती कर्मा और राजबब्बर की बातों से सवाल यह है कि,क्या नक्सलियों ने बीजेपी के खिलाफ वोट कराया? डाॅ रमन सिंह कहते थे, यदि हमारी पार्टी की सरकार बनी तो 2022 तक नक्सलवाद खत्म कर देंगे।’’तो क्या यह मान लिया जाए कि नक्सली डर गए थे। और वे राजबब्बर की बातों से खुश होकर मन से कांग्रेसी हो गए हैं। इसलिए राज्य में अब उपद्रव नहीं कर रहे हैं।
क्यों बढ़ गया नक्सलवाद
भूपेश सरकार दावा कर रही है कि राज्य में 45 फीसदी नक्सली वारदात में कमी आई है। जबकि बीजेपी की राज्य सभा सदस्य सरोज पांडेय कहती हैं,राज्य सरकार ने नक्सलियों के आगे घुटने टेक दिये हैं। जिसके दुष्परिणाम हम सभी को आने वाले समय मे भुगतने होंगे।’’वर्ष 2020 में 38 नक्सली मारे गये और 28 जवान शहीद हुए हैं। 2018-20 के दौरान पुलिस ने 216 नक्सलियों को मार गिराया वहीं 966 नक्सली सरेंडर किये। जाहिर सी बात है कि ऐसा आगे भी होता रहेगा। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी शैलेष त्रिवेदी कहते हैं,‘‘डाॅ रमन सिंह ने माओवादियों के आगे घुटने टेकने का काम किया। तभी तो दक्षिण बस्तर के 3 ब्लाकों तक सीमित माओवाद, भाजपा सरकार के 15 साल के कार्यकाल में 14 जिलों तक फैला। भाजपा नेता रामविचार नेताम ने माओवादियों को 4 लाख रूपये चंदा देकर रसीद भी दी थी। सन् 2004 की विधानसभा की कार्यवाही में इस बात पर चर्चा भी हुयी थी। कांग्रेस ने जाँच की मांँग की जिसे अस्वीकृत कर रामविचार नेताम द्वारा माओवादियों को चंदा देने की मामले को रमन सरकार ने दबाया। छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा में बढ़ोत्तरी के लिये भाजपा की गलत नीतियां  जिम्मेदार थीं।’’
एक सच यह भी
राजनीतिक सच अपनी जगह है। लेकिन एक सच्चाई यह है कि नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ को गृहराज्य बना लिया है। बस्तर का अबूझमाड़ जंगल माओवादियों की राजधानी है। दंडकारण्य केन्द्रीय लड़ाई के लिए सेंटर है। राज्य के 14 जिले नक्सल प्रभावित हैं,जबकि नक्सलियों की आवाजाही 18 जिलों में है। देश के तमाम नक्सली संगठन बस्तर के दंडकारण्य जोन को ही फालो करते हैं। नक्सलियों के अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं। अर्बन नक्सली उनकी मदद करते हैं। माओवादी छत्तीसगढ़ को दंडकारण्य राज्य बनानो जन युद्ध कर रहे हैं। बीस साल का छत्तीसगढ़ पूछता है,लाल सलाम का आतंक, कितने चुनाव के बाद खत्म होगा?
माओवादियों का विदेशी संबंध
आन्ध्र प्रदेश के नक्सली लीडर कोसा, कामरेड अतायु और गणेश का नक्सलवाद, बस्तर के अबूझमाड़ से लेकर देश के दस राज्यों में चार दशक से लाल लावा छितरा रहा है। केन्द्र सरकार की तरह विदेश कूटनीति के लिए नक्सली अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के लिए 21 सितंबर 2004 से दूसरे देशों के नक्सली संगठनों से लगातार बैठकें कर रहे हैं। सन् 2006 में माओवादियों के लीडर जर्मनी की कम्युनिष्ट पार्टी एमएलजीडी और नार्वे की एकेपी के नेताओं से मिलकर बैठकें की। इस बैठक का मकसद था, आधुनिक हथियार के साथ ही समर्थन जुटाना था। आधुनिक हथियार के जरिये, वो अब सीधे लड़ाई लड़ने लगे हैं। जैसा कि 3 मई 2018 को सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच हुई मुठभेड़ के बाद जर्मन हेक्लर और कोच एच.के जी .3 राइफल बरामद हुई। झारखं डमें चीनी रायफल मिली। जाहिर सी बात है कि नक्सली संगठन सरकार को अपनी ताकत की ताकीद कराने विदेशी हथियार बाहर से लाते हैं। 2010 में हुए दंतेवाड़ा का नरंसहार, से लेकर मार्च 2020 तक हुए नक्सली हमले इस बात का प्रमाण है कि अब बस्तर का लाल गलियारा केन्द्रीय लड़ाई में अपने आप को कमजोर नहीं मानता।
अफीम की खेती करते हैं
नक्सली संगठन शोषित,गरीब,आदिवासी और भूमिहीन किसानों के हक की लड़ाई की बात राजनीतिक दलों की तरह करते हैं। जबकि नक्सली संगठन का लेवी और उगाही करना एक मात्र लक्ष्य है। बस्तर में जितने भी उद्योग हैं,उनसे नक्सली पैसा लेते हैं। नौ सितंबर 2011 में बैलाडीला खदानों से लौह अयस्क ले रही बहुराष्ट्रीय कंपनी एस्सार अपनी सुरक्षा के लिए 15 लाख रूपये एक स्थानीय ठेकेदार बी.के. लाला को दो नक्सल समर्थकों को देते हुए पुलिस ने रंगे हाथों पकड़ा था। पुलिस का मानना है कि माओवादी छत्तीसगढ़ से एक हजार करोड़ रूपये से अधिक की राशि हर बरस उगाह कर आंध्र पहुंचाते हैं। नोटबंदी और कोरोना काल में उनकी उगाही का धंधा मंदा पड़ा है। दंतेवाड़ा के तत्कालीन आइ.जी एस.आर.पी. कल्लूरी ने 2010 में बीजापुर में नक्सलियों की अफीम की खेती पकड़ी थी। कल्लूरी कहते हैं, गांँजा और अफीम की खेती से भी नक्सली खासा धन जमा कर लेते हैं। खुफिया रिपोर्टों से खुलासा हुआ है कि नक्सल प्रभावित पाँंच राज्यों में नक्सली 1443 हेक्टेयर जमीन पर अफीम की खेती करते हैं। लेवी का आधा से अधिक हिस्सा मिलिट्री कमांड को जाता है। उससे हथियार खरीदे जाते हैं। सुरक्षा बलों का कहना है कि सन् 2007 में नक्सलियों ने 17.5 करोड़ रुपए खर्च कर एके.47 और राकेट लांचर खरीदे थे। इसी तरह दिसंबर 2008 में 200 ए.के.47 राइफलें खरीदीं। जाहिर सी बात है कि नक्सलियों के पास सुरक्षा बलों से लड़ने के सारे आधुनिक हथियार हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,छत्तीसगढ़ में ना ही ए. के. 47 बनती है और ना ही गोली के कारखाने हैं। अवैध हथियार कहाँ से और कैसे आते हैं, गृहमंत्रालय को पता करना चाहिए।’’
दण्डकारण्य राज्य की तैयारी
दंतेवाड़ा एस.पी अभिषेक पल्लव कहते हैं, बस्तर के नक्सलियों के संबंध चीन और नेपाल से हैं। वो वहांँ के नक्सली संगठन से मिलते हैं।’’दरअसल माओवादी दूर की सोच रखते हैं। वे जानते हैं कि दंडकारण्य राज्य या देश बनाने के लिए हमें विदेशी कूटनीतिक का सहारा लेना पड़ेगा। इसके लिए वे सन् 1996 में वर्कर्स पार्टी आॅफ बेल्जियम द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद में हिस्सा लिए। इस परिसंवाद में 40 देशों के करीब 60 संगठनों ने हिस्सा लिया था। उस समय पीडब्लयूजी से जुड़े माओवादियों ने फिलीपीन्स के सीपीसी,जर्मनी के एमएलपीडी,पेरू के जीसीबी,तुर्की के टीकेपी,नार्वे के एकेपी के अतिरिक्त अन्य कई साम्यवादी संगठलों से संपर्क किया था। पिछले 20 वर्षो से नेपाली माओवादियों के साथ बैठकें कर रहे हैं। दंडकारण्य राज्य बनाने की तैयारी नक्सली जोर शोर से कर रहे हैं। उनकी मंशा है, पहले अपने प्रभाव वाले राज्यों में दण्डकाराण्य प्रदेश बनाने की। केन्द्र सरकार ने एमपी और छत्तीसगढ़ को पांँच-पाँच बटालियन दी है,नक्सलियों से लड़ने के लिए। आशंका है कि नक्सली गुरिल्ला युद्ध तेज कर सकते हैं। ओड़िसा में नक्सलियों की बैठक में तय किया गया है कि तमिलनाडु,कर्नाटक,गुजरात से लेकर केरल,नेपाल और बंगाल तक स्वतंत्र गलियारा बनाना। अपनी ताकत बढ़ाना। सामाजिक,जनजाति पृष्ठभूमि के लोगों को जोड़ना। वैसे भी नक्सली संगठनों ने अपना विस्तार उत्तर बिहार,पंजाब, हिमाचल, गुजरात प्रदेश तक कर चुके हैं। मध्यप्रदेश में बालाघाट से आगे बढ़ने की योजना है। इन दिनों दो सौ से ज्यादा नक्सली बालाघाट में हैं। कलकत्ता की बैठक में नेपाल से आन्ध्र तक रेड जोन बनाने का फैसला हो चुका है। यानी नक्सली आन्ध्र में एक बार फिर पैठ बनाना चाहते हैं।
संगठन में बौद्धिक महिलाएं
बस्तर में एक सैकड़ा स्थानीय गुरिल्ला दस्ता है। 70 सैन्य दल बेहद खतरनाक हैं। जिन्हें हर तरीके का प्रशिक्षण दिया गया है। नक्सली महिला दस्ते में पढ़ी लिखी महिलाओं की संख्या अधिक है। कू्ररता में ये पुरूषों से बीस हैं। झीरम कांड हो और ताड़मेटला कांड, इसका प्रमाण है। जहानाबाद जेल ब्रेक कांड करने में बस्तर की महिला नक्सलियों का हाथ था। गुरिल्ला सदस्यों की मुखिया सुजाता है,जो कि स्नातक है। पार्टी के पोलित ब्यूरो की सदस्य एम. कोटेश्वर राव की पत्नी है। बस्तर में करीब चार हजार महिलाएं गुरिल्ला की सदस्य हैं। पुलिस चैकियों की तरह अलग अलग इलाके में दलम सक्रिय हैं। दलम सैन्य कार्रवाई करते हैं। जबकि संघम जन अदालत लगाने और माओवादी एजेंडा को प्रचारित करने का काम करते हैं। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में जमीनी झगड़े,पारिवारिक विवाद,जातीय संघर्ष के अलावा वैवाहिक मुद्दों का भी निपटारा करने लगे हैं। इसके पीछे अपनी छवि को राबिन हुड की तरह पेश करना है। बस्तर में एक सैकड़ा के करीब इनामी नक्सली हैं। जिनमें एक से 20 लाख रूपये तक की इनामी महिला नक्सली भी हैं। पुलिस ने इनामी नक्सलियों के बड़े बड़े पोस्टर लगा रखे हैं। सूचित करने वालों को इनाम देने की घोषणा कर रखी है। बस्तर के बीजापुर में 17 स्कूल कई बरसों से बंद है। नक्सली इन स्कूलों में नक्सलवाद का पाठ पढ़ाते हैं।
तो छग नेपाल बन जाएगा
कभी किसी ने सोचा भी नहीं रहा होगा कि 40 हजार किलोमीटर में फैला अबूझमाढ़ माओवादियों का दण्डकारण्य बन जाएगा। सन् 1979 में सीतारमैया ने छह सदस्यों के एक दल को दंडकारण्य भेजा था। वो यहां 1990 तक रहे और दंडकारण्य को नक्सलियों को आधार क्षेत्र बनाया। सीतारमैया नक्सलियों के जत्थे को दंडकारण्य इसलिए भेजा था, ताकि ठीक से परख कर बताएं कि तेलंगाना में वारदात करने के बाद बस्तर का यह क्षेत्र आश्रय के लिए ठीक है कि नहीं। झारखंड का बूढ़ा पहाड़ जो छत्तीसगढ़,झारखंड ओर उत्तर प्रदेश की सीमाओं को छूता है। नक्सली तीनों राज्यों में आने जाने का जरिया इसी बूढ़ा पहाड़ को बना रखें है। अबूझमाढ़ नक्सलियों का मजबूत ठिकाना है और झारखंड के नक्सलियों के लिए बूढ़ा पहाड़ सुरक्षात्मक ठिकाना है। पुलिस चाहकर भी ना अबूझमाड़ में घुस पाती है और न ही बूढ़ा पहाड़ में हमला बोल सकती। बहरहाल आज माओवादियों ने छत्तीसगढ़ और झारखंड को अपना गृह राज्य बना लिया है। यह माना जा रहा है कि यदि कांग्रेस सरकार 2023 तक नक्सलवाद खत्म नहीं कर सकी, तो छत्तीसगढ़ को दूसरा नेपाल बनने से रोक पाना मुश्किल हो जाएगा।
 

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