Sunday, November 27, 2022

सावरकर की चिट्ठी पर सियासी कोलाहल





''महाराष्ट्र में सावरकर का बड़ा सम्मान है। सावरकर की चिट्ठी के जरिये राहुल उनकी देश भक्ति पर सवाल यूंँ ही खड़े नहीं किये हैं। कई सियासी वजह है। वहीं उनके बयान पर भारत जोड़ो यात्रा में कोई बवाल होता,तो ठिकरा शिंदे की सरकार और बीजेपी पर फोड़ते। फिर गुजरात के चुनाव में उसे मुद्दा बनाया जाता।'' 

0 रमेश कुमार ‘रिपु’

एक व्यक्ति के दो चेहरे। उनका नाम है विनायक दामोदर सावरकर। बीजेपी के लिए वीर सावरकर राष्ट्र भक्त हैं। जबकि राहुल गांधी ऐसा नहीं मानते। वीर सावरकार को समझना है। जानना है। तो उन्हें दो हिस्सों में देखना होगा। अंडमान जाने के पहले के सावरकर और अंडमान से आने के बाद के सावरकर के बीच के अंतर को समझना होगा। कांग्रेस से जुड़े लोग अंडमान से पहले की पूरी अवधि की बात नहीं करते। उनके जेल जाने के बाद की गतिविधियों की बात करते हैं। वहीं बीजेपी उनके माफीनामा और उसके बाद की बातों को नजर अंदाज करके देखती है। कांग्रेस भी मानती है,जेल जाने से पहले वे क्रांतिकारी थे। जेल से आने के बाद उनका देश के प्रति और देश की आजादी के लिए आंदोलन करने वालों के प्रति दृष्टिकोंण बदल गया। वे ब्रितानी सरकार के समर्थक हो गए।

‘‘सावरकर के आलोचक मानते हैं कि सावरकर सन् 1937 में रिहा होने से लेकर सन् 1966 में अपनी मृत्यु तक महात्मा गांधी के खिलाफ माहौल बनाने के सिवा कुछ नहीं किया। उन्हें पचास साल काला पानी की सजा हुई। लेकिन दस साल ही रहे। 1923 में वे भारत हिन्दू राष्ट्र किताब लिख कर अंग्रेजों की मदद करने का मन बनाया। अंग्रेजों ने उन्हें हिन्दू महासभा को संगठित करने का अधिकार दे दिया। उनकी पेशन 60 रुपये महीना तय कर दी गई। सावरकर ने इंग्लैंड की रानी को लिखा था,कि आप हिंदुस्तान को नेपाल के राजा को दे दें। क्यों कि नेपाल का राजा सारी दुनिया के हिन्दुओं का राजा है। हिन्दू महासभा का सेशन नेपाल के राजा को सलामी देकर शुरू होता था और उनकी लम्बी आयु की कामना पर खत्म होता था।

सावरकर को लेकर कांग्रेस में आज भी कई तरह का संदेह है। क्यों कि सन् 1948 में मुंबई पुलिस ने सावरकर को गांधी जी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के शक में छह दिनों बाद गिरफ्तार कर ली थी। उन्हें फरवरी 1949 में बरी किया गया। गांधी जी हत्या की जांँच कर रही है कपूर कमीशन की रिपोर्ट में सावरकर को दोष मुक्त नहीं माना गया था। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गाँधी की हत्या के बाद 27 फरवरी 1948 को पंडित नेहरू को लिखे खत में कहा था,सावरकर के अधीन हिंदू महासभा है। यह एक कट्टर शाखा है। जिसने ये साजिश रची और उसे अंजाम दिया। 18 जुलाई 1948 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखे एक खत में गाँधी की हत्या के बारे में सरदार पटेल ने कहा था,कि उन्हें मिली जानकारी इस बात की पुष्टि करती है, कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा की गतिविधियों के परिणाम स्वरूप देश में एक ऐसा माहौल बना था,जिसमें ये भयानक त्रासदी संभव हुई। 

जाहिर सी बात है,इन्हीं सब तथ्यों की वजह से वीर सावरकर के प्रति कांग्रेस के नेताओं की धारणा हलग हटकर है। दूसरी ओर इंदिरा गांधी ने 1966 में सावरकर के निधन पर उन्हें क्रांतिकारी कही थीं,यह भी कहा कि सावरकर ने अपने कार्यों से देश को प्रेरित किया था।’ सावरकर ने सेल्यूलर जेल में मां भारती की स्तुती में छह हजार कविताएं जेल की दीवारों में लिखी। उन्होंने कविता कोयले और पत्थर से लिखा। लिखी कविता को कंठस्थ भी कर लिया था।

सावरकर को 1910 में नासिक के कलेक्टर की हत्या में शामिल होने के आरोप में लंदन में गिरफ्तारी के बाद काला पानी की सजा मिली। सावरकर ने अंडमान की सेल्यूलर जेल में सन् 1913 और 1920 के बीच दया याचिका दायर की थी। उसमें लिखा था,सरकार अगर कृपा और दया दिखाते हुए मुझे रिहा करती है,तो मैं संवैधानिक प्रगति और अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादारी का कट्टर समर्थक रहूँगा,जो उस प्रगति के लिए पहली शर्त है। मैं सरकार की किसी भी हैसियत से सेवा करने के लिए तैयार हूँ,जैसा मेरा रूपांतरण ईमानदार है,मुझे आशा है कि मेरा भविष्य का आचरण भी वैसा ही होगा। मुझे जेल में रखकर कुछ हासिल नहीं होगा,बल्कि रिहा करने पर उससे कहीं ज्यादा हासिल होगा। सर मैं आपका नौकर बन कर रहना चाहता हूँ।

सावरकर पर आरोप है,कि रिहाई के बाद ब्रितानी सरकार हर महीने 60 रूपए की पेंशन देती थी, इसलिए वे ब्रितानी सरकार के काम काज को अच्छा बताते थे। स्वतंत्रता आंदोलन से खुद को दूर रखा। वहीं सावरकर के प्रशंसक कहते हैं,सावरकर ने दया याचिकाएं नहीं बल्कि,आत्म.समर्पण याचिकाएं दायर की थी। उन्हें पेशन नहीं, बल्कि नजरबंदी भत्ता दिया जाता था, गुजारे के लिए । जो कि डेढ़ साल बाद दिया गया। इसलिए कि उनकी एलएलबी की डिग्री मुंबई विश्वविद्यालय ने रद्द कर दी थी। उनकी वकालत पर प्रतिबंध लग गया था। अगर उन्होंने अंग्रेजों से समझौता किया होता तो वो अपनी संपत्ति वापस मांगते। 

कांग्रेस सावरकर के जरिये बीजेपी को घेरना चाहती है। क्यों कि बीजेपी और आरएसएस सावरकर को देशभक्त के रूप में प्रचारित बरसों से कर रही है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह कहकर विवाद को हवा दिया,कि सावरकर को साजिश के तहत बदनाम किया गया है। उन्होंने अंग्रेजों के सामने दया याचिकाएं महात्मा गाँधी के कहने पर दायर की थी। वीर सावरकर एलएलबी थे। बौद्धिक थे। वो गांधी के कहने पर दया याचिका लिखे होंगे,ऐसा नहीं लगता। सावरकर की राजनीति किसी पार्टी के लिए नफा नुकसान का मुद्दा हो सकता है। लेकिन देश हित में जायज नहीं है। 

चूंकि महाराष्ट्र में सावरकर का बड़ा सम्मान है। सावरकर की चिट्ठी के जरिये राहुल उनकी देश भक्ति पर सवाल यूंँ ही खड़े नहीं किये हैं। कई सियासी वजह हो सकती है। वहीं उनके बयान पर भारत जोड़ो यात्रा में कोई बवाल होता,तो ठिकरा शिंदे की सरकार और बीजेपी पर फोड़ते। फिर गुजरात के चुनाव में उसे मुद्दा बनाया जाता। वैसे एक वर्ग मानता है,भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी की छवि में बदलाव आया है। वे पहले से अधिक परिपक्व जान पड़ते हैं। लेकिन सावरकर के मामले में उनकी जानकारी अधूरी है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का बयान गलत नहीं है,राज्य के लोग हिंदुत्व विचारक के  अपमान को बर्दाश्त नहीं करेंगे। उद्धव ठाकरे ने भी कहा सावरकर के प्रति हमारे दिल में सम्मान है। यानी सावरकर पर विवाद कोई नहीं चाहता।

 

प्यार में धोखा,साजिश और खून आता कहांँ से है..!






'अभिभावकों से डरने वाला लड़का हो या फिर शर्मिली,नाजुक,भोली छवि वाली लड़की,अब कहीं गुम हो गई है। डर फिल्म के खलनायक की तरह समाज में प्रेमियों की संख्या बढ़ी है। प्यार,में धोखा,साजिश और खून के ऐसेे मामले समाज की नींव पर प्रहार है।'

0 रमेश कुमार ‘रिपु’
इक्कीसवी सदी में मुहब्बत की एक नई पीढ़ी का उदय हुआ है। जिसने संस्कार और मर्यादा की सारी हदें पार कर फिल्मी दुनिया को एक नई पटकथा दी। देश की राजधानी दिल्ली से लगे महरौली इलाके में आफताब ने लिव इन में रहने वाली श्रद्धा के 36 टुकड़े कर अपराध की दुनिया को चौका दिया। इसी तरह देहरादून में साॅफ्टवेयर इंजीनियर राजेश गुलाटी ने अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी की निमर्म तरीके से 72 टुकड़े किये थे। शव के टुकड़े डीप फ्रीजर में रखा। हर दिन एक टुकड़ा पाॅलीथीन में भरकर फेक आता था। इस हत्या में हाॅलीवुड फिल्म ‘साइलेंस आॅफ दी लैंड’ का भी रोल है। इस फिल्म का हीरो भी अपनी गर्ल फ्रेंड का बड़ी बेरहमी से हत्या करता है।

लखनऊ में सूफियान अपनी 19 वर्षीय प्रेमिका निधि गुप्ता पर धर्म बदलने का दबाव बनाया। उसके मना करने पर उसे चौथी मंजिल से नीचे फेक दिया। संगम विहार में रामवीर लिव इन रिलेशन में रह रही अपनी गर्ल फ्रेंड को लोहे के राड से पीट-पीट कर हत्या कर दिया। मध्यप्रदेश के एक रिसाॅर्ट में अभिजात पाटीदार ने अपनी 22 वर्षीय प्रेमिका की गला रेतकर हत्या कर दी। उक्त घटनाओं ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। आखिर प्यार में धोखा,साजिश और खून आता कहाँ से है? अपनी प्रेमिका या फिर पत्नी से प्यार करने वाले अचानक डर फिल्म के खलनायक शाहरूख खान कैसे बन जाते है? 

कन्नड़ फिल्मों की नायिका मारिया सुसैराज की दोस्ती सिनर्जी एकलैब्स में काम करने वाले नीरज ग्रोबर से हो गई। नौ सेना में काम करने वाले उसके पहले ब्वाॅय फ्रेंड जेरोम को यह दोस्ती नहीं भाई। उसने दोनों को एक साथ देख लिया। तकरार के बाद जेरोम ने छुरा भोंक कर ग्रोवर की हत्या कर दी। 

शहरी भारत में भावावेश में किये जाने वाले अपराध में तेजी ने समाज को झकझोर दिया है। सन् 1990 के बाद के दशक में तलाक की संख्या में बढ़ोतरी हुई तो 21वीं सदी में स्वच्छंदता और कामूकता मे भी इजाफा हुआ। इसके पीछे एक वजह यह भी है,कि तेजी से पंजाब, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़,आन्ध्र प्रदेश आदि राज्यों में शहरीकरण अधिक हुआ। और प्रेमकरण और यौन संबंधी हत्याओं की सबसे बड़ी वजह बनें। 

उभरती माॅडल और अभिनेत्री राउरकेला की रहने वाली अभिनेत्री मून दास ने अविनाश पटनायक से रिश्ते खत्म कर लिए थे। इस अपमान को अविनाश बर्दाश्त नहीं कर सका। वह मुंबई गया। प्रेमिका की माँ,और उसके मामा की हत्या कर दिया। जब मून दास फ्लैट में उसे बंद करके भाग गई,तो वह स्वयं को गोली मार लिया। 

दरअसल सामाजिक ताना बाना बदल गया है। नये इंडिया में एक नई संस्कृति ओढ़ने वाली पीढ़ी की धड़कन देश सुन रहा है। जो अपनी भौतिक,पेशागत और यौन महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए परंपरागत बंधनों को तोड़ कर लिव इन मे रहने लगा है। इसे बुरा भी नहीं मानता? देह उनके लिए उत्सव है। तू राजी, मैं राजी,फिर क्या डैडी, क्या अम्मा का मामला है। अभिभावकों के विरोध और उनकी समझाइश का कोई असर नहीं। ज्यादा बोलने पर दो टूक जवाब,यह मेरी लाइफ है। मेरी मर्जी,इसे जैसा जीऊँ। आप कौन होते हैं,मुझे मना करने वाले।
 
अभिभावकों से डरने वाला लड़का हो या फिर शर्मिली,नाजुक,भोली छवि वाली लड़की अब कहीं गुम हो गई है। भेदभाव और दुर्व्यवहार  पर महिलाओं के पलटवार को अपनी बेइज्जती समझते हैं। श्रद्धा का विरोध आफताब बर्दाश्त नहीं कर सका और उसके 36 टुकड़े कर डाला। प्यार,में धोखा,साजिश और खून के ऐसेे मामले समाज की नींव पर प्रहार है। 

बाली उमर का बुखार लड़कियों को दिमाग से सोचने नहीं देता? सिर्फ दिल से सोचती हैं। जबकि लड़के दिमाग से सोचते हैं। यही वजह है,कि ज्यादातर जवाँं उमर की मुहब्बत की कहानी खून में भीगी होती हैं? परिपक्व उमर वालों की भी मुहब्बत में धोखा,साजिश और खून है। जैसा,कि मध्यप्रदेश का एक खूनी प्रेम त्रिकोंण, जिसने आरटीआई एक्टिविस्ट शहला मसूद की जान ले ली। दो बच्चों की मांँ जाहिदा परवेज ध्रुव  नारायण को दिल बैठी या कहें उनसे व्यावसायिक रिश्ते को दैहिक रिश्ते में बदल ली। और जब उसे लगा,कि ध्रुव नारायण से शहला मसूद भी प्यार की पींगे बढ़ा रही है। उसकी वजह से उसे न केवल प्यार बल्कि, व्यावसायिक नुकसान भी है,तो उसने पेशेवर हत्यारे के जरिये उसकी हत्या करा दी। लेकिन आफताब और श्रद्धा का मामला अलहदा है। यहांँ आफताब स्वयं प्रेमी है और अपनी प्रेमिका का हत्यारा भी है।

आफताब की क्रूरता से स्पष्ट है,कि श्रद्धा के प्रति आफताब में कोई श्रद्धा नहीं थी। उसकी लाश के 36 टुकड़े करने पर उफ तक नहीं किया। आफताब ‘डर’ फिल्म के खलनायक से भी अधिक खतरनाक किस्म का प्रेमी निकला। वहीं आफताब ने कई बार श्रद्धा के साथ मारपीट किया। फिर भी श्रद्धा का झुकाव उसके प्रति कम नहीं हुआ। अभिभावक कितना भी अपने बच्चों से नाराज हों,मगर दुश्मन नहीं है। यदि वो अपने घर वालों से बात करती,तो बच सकती थी। 

भारत की यौन क्रांति का यह भयावह चेहरा है। जहाँं जुनून में लोग अपना होशो हवाश खो रहे हैं। खाने पीने की चीजों की तरह अब यौन सुख का बाजारीकरण हो गया है। दाम्पत्य जीवन के मूल्य छिन्न भिन्न हो गए हैं। सामाजिक मान्यता और मर्यादा से जकड़े संबंधों के दिन अब लद गए। गर्ल फ्रेंड और ब्वाॅय फ्रेंड रखना स्टेट्स सिंबल बन गया है। बाद में नतीजा जो भी हो।

नई पीढ़ी को इससे कोई मतलब नहीं,कि कविता में भाषा क्या करती है। मुहब्बत में गालिब की आतिश के क्या मायने हैं। सास भी कभी बहू थी सीरियल में खलनायिका मदिरा एक रात के लिए मिहिर को संबंध के लिए ललचाती है। वहीं तुलसी और पार्वती मध्यम वर्ग को नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं। जबकि नई पीढ़ी की बहुएं और बेटियांँ परंपरागत पतिव्रता पत्नियां अब नहीं रही। अनुपमा,इमली,जैसे धारावाहिक में नैतिकता का चोला उतारने वाले पात्र सात फेरों की पवित्रता को दागदार कर रही हैं। टी.वी.और फिल्मों की नैतिकता से भारत भले न बदले,मगर उसका दृष्टकोंण बखूबी बदला है।

 

'आरक्षण की परखनली में विवादों का भ्रूण'' '





आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को जब गैस सिलेडर पर सब्सिडी नहीं दी जा रही है,तो फिर आरक्षण क्यों दिया जा रहा है? इसे देश के विकास में बाधक कितने चुनाव के बाद माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इंदिरा साहनी मामले में तय की गई आरक्षण की सीमा अब खत्म हो सकती है। उच्चतम न्यायालय क्रीमी लेयर का कोटा कम करता तो आरक्षण का लाभ औरों को भी मिलता।  

0 रमेश कुमार ‘रिपु’

सुप्रीेम कोर्ट ने आरक्षण मुद्दे पर जो फैसला सुनाया है,उससे सवालों के बैंक खुल गए। वैसे यह आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए रेवड़ी ही है। यानी मोदी सरकार की नये वोट बैंक की तलाश पूरी हो गई। अब आरक्षण का कोटा पचास फीसदी से बढ़कर साठ प्रतिशत हो गया। कायदे से सुप्रीम कोर्ट को क्रीमी लेयर को मिलने वाले आरक्षण कोटे को घटाकर दस फीसदी का लाभ आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो को देना चाहिए था। इसलिए कि अब इन्हें आरक्षण की जरूरत नहीं है। यदि ऐसा नहीं किया गया,तो देश से आरक्षण कभी खत्म नहीं होगा और आने वाले समय मे आरक्षण का कोटा सौ फीसदी तक जा सकता है। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने अपने फैसले में जायज बात कहीं,‘‘आजादी के 75 साल के बाद हमें समाज के व्यापक हित में आरक्षण की व्यवस्था पर फिर से विचार करने की जरूरत है।’’

प्रमोशन में आरक्षण के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी कोई राय जाहिर नहीं किया है। यानी यह मोदी सरकार के पाले में है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह न सोचें, कि यह आरक्षण केवल सवर्ण के लिए है। इसलिए कि कई राज्यों में जो जाति ओबीसी में है,वही दूसरे राज्य में सवर्ण है। जैसे बघेल जाति मध्यप्रदेश में सवर्ण है,लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य में ओबीसी। यानी आर्थिक रूप से पिछड़ी जाति में मुस्लिम,ईसाई आदि कई जातियाँ आएंगी। मुस्लिमों के आर्थिक रूप से पिछड़े होने की कई रिपोर्ट है,जो उनके आरक्षण का आधार बन सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अब आर्थिक रूप से पिछड़ापन आरक्षण का आधार बन गया। अभी तक सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण की व्यवस्था थी। मोदी कहते हैं,सबका साथ,सबका विकास,यानी सबको रेवड़ी दो। ताकि सत्ता का प्याला हाथ से न छिटके। बीजेपी को उम्मीद है,कि हिमाचल और गुजरात चुनाव में आरक्षण के इस फैसले से लाभ मिलेगा। वहीं विपक्ष का कहना है, कि मोदी सरकार वाकई में दस फीसदी का लाभ जरूरत मदों को देना ही चाहती है,तो उससे पहले जातिगत जनगणना जरूरी था। इससे नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का पता चलता। उन लोगों की पहचान हो जाती,जिन्हें वाकई में लाभ मिलना चाहिए। इस फैसले से ऐसा नहीं लगता, कि मोदी सरकार बहुत गंभीर थी दस फीसदी के आरक्षण को लेकर। यदि ऐसा होता तो वह रोहिणी आयोग की उन बातों को भी तरजीह देती,जिसमें बताया गया था,ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण के तहत नब्बे फीसदी से ज्यादा नौकरियांँ इस समूह की 25 फीसदी जातियों को ही मिलती है। आयोग के मुताबिक 983 ऐसी उप जातियाँ हैं,जिन्हें आज तक नौकरी नहीं मिली। इस मामले पर सरकार को विचार करना चाहिए। वैसे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मोदी सरकार की नीतिगत फैसले और विचारधारा को मजबूती मिली।

अब राज्य सरकारें अपने राज्य में आरक्षण मनमाने तरीके से बढ़ाएंगे। इससे आर्थिक और कानूनी आराजकता बढ़ने की आशंका है। क्यों कि पचास फीसदी आरक्षण की सीमा रेखा पहले भी कई राज्यों में खत्म हो गई है। महाराष्ट्र में 64,हरियाणा में 60,बिहार 60,तेलंगाना 50 फीसदी से अधिक,गुजरात 50,10 फीसदी ईडब्लयूएस कोटा शामिल,राजस्थान 64, तमिलनाडु 69,झारखंड 50, और मध्यप्रदेश 73 फीसदी। जिन राज्यों में आरक्षण पचास फीसदी से ज्यादा है,वहाँ जातीय विभाजन होगा। समानता के अधिकार का नियम आरक्षण का अधिकार बन जाएगा। यह विकास की राह में रोड़ा बनेगा। तमिलनाडु में सन् 1993 के आरक्षण अधिनियम के अनुसार शिक्षा संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में 69 फीसदी आरक्षण दिया जाता है । वहीं जनवरी 2000 में आन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल ने अनुसूचित क्षेत्र में स्कूली शिक्षकों की भर्ती के लिए अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को सौ फीसदी  आरक्षण देने का फैसला किया था। जिसे अदालत ने असंवैधानिक कहा था। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश ने आरक्षण की सीमाएं तोड़ दी है। 

छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री ओबीसी से आते हैं। छत्तीसगढ़ में कुल आरक्षण की सीमा 82 फीसदी हो गया है। यानी यहांँ ओपन वर्ग वाले सिर्फ 18 फीसदी लोग ही शिक्षा संस्थानों में प्रवेश पा सकते हैं। और सरकारी नौकरियों में जा सकते हैं। हालांकि बिलासपुर हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना है। मध्यप्रदेश में दस फीसदी कोटा शामिल है,कुल 73 फीसदी आरक्षण होने पर जबलपुर हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। राजस्थान सरकार ने पांँच फीसदी गुर्जरों को आरक्षण देना चाहती है,लेकिन हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। महाराष्ट्र में मराठाओं को आरक्षण देने की बात उठी। यानी देश में आरक्षण की सीमाएं धीरे-धीरे राज्य सरकारें बढ़ा रही हैं। एक दिन सौ फीसदी हो जाएगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत गलत नहीं कहते हैं,आरक्षण पर पुर्नविचार किया जाना चाहिए। 

सवाल यह है कि आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को जब गैस सिलेडर पर सब्सिडी नहीं दी जा रही है,तो फिर आरक्षण क्यों दिया जा रहा है? इसे देश के विकास में बाधक कितने चुनाव के बाद माना जाएगा। दरअसल राजनीति से जाति कभी जायेेगी नहीं। आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सवालों के बैंक बंद नहीं हुए। आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को दस फीसदी आरक्षण देेने सेे सरकार की नये वोट बैक की तलाश पूरी हो गई। लेकिन इस फैसले से इंदिरा साहनी मामले में तय की गई आरक्षण की सीमा रेखा मिट जाएगी। उच्चतम न्यायालय क्रीमी लेयर का कोटा कम करता तो आरक्षण का लाभ औरों को भी मिलता। 

सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण पर जो नया फैसला आया है,उससे नया विवाद आकार ले लिया है। सरकार इनकम टैक्स में ढाई लाख की छूट देती है। लेकिन आरक्षण के लिए आठ लाख रुपये आय की सीमा तय किया है। जो कि ज्यादा है। इस दायरे में देश की नब्बे फीसदी आबादी आ जाएगी। आर्थिक मापदंड पर सवाल उठ रहे हैं। वहीं अभी तक दी जा रही है आरक्षण की व्यवस्था में ओबीसी 27 फीसदी,एससी 15 और एस.टी. 7.5 फीसदी है। और दस फीसदी ईडब्लयूएस के लोगों को आरक्षण मिला है। राज्य में हर सरकार ओबीसी का कोटा बढ़ाने की बात कर रही है। बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी है। जाहिर सी बात है,ओबीसी का कोटा बढ़ाए जाने पर दस फीसदी वाले इसका विरोध करेंगे और वो भी चाहेंगे कि उनका भी कोटा बढ़ाया जाए।

दरअसल राजनीति से जाति जा नहीं रही है। इसीलिए पंचायत चुनाव,नगर निगम चुनाव,विधान सभा और लोकसभा चुनाव में भी जाति के आधार पर सीटें तय की गई हैं। यानी जिस देश में संसद ही आरक्षित हो,वहांँ जातिगत आरक्षण को खत्म कर आर्थिक आरक्षण की बात होगी,सोचना भी बेमानी है।

 

Friday, November 4, 2022

मरम्मत मांगती है देश की अर्थव्यवस्था




नोटबंदी से काला धन नहीं आया। मगर पांच सौ और दो हजार के 9.21 लाख करोड़ रुपये गायब हो गये। दूसरी ओर रुपया दुनिया के बाजर में गिर रहा है। ऐेसे में देश को ऊँची विकास दर की जरूरत है। लोगों को पाँंच किलो अनाज नहीं,नौकरी के जरिये पैसा चाहिए।  
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
दुनिया के बाजार में रुपया गिर रहा है। एक डालर 83 रुपये के पार हो गया है। भारत की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर चुकी है। आरबीआई ने हाथ खड़े कर दिये हैं। फिर भी न वजीरे आजम और न ही किसी भी राज्य के वजीरे आला के माथे पर कोई शिकन है। रिजर्व बैंक के अनुसार देश के 27 राज्यों में दस राज्य रेड जोन में है। यानी ये अपने दम पर अपनी सरकार चलाने की स्थिति में नहीं है। जीएसटी का पैसा मिलने के बाद भी। क्यों कि मिलने वाला टैक्स 80 फीसदी कम हो गया है। बिना टैक्स के कमाई की कोई योजना नहीं है। राज्यों के खर्चे 20 फीसदी से बढ़कर 55 फीसदी हो गया है। नोटबंदी से काला धन नहीं आया। मगर पांच सौ और दो हजार के 9.21 लाख करोड़ रुपये गायब हो गये। दूसरी ओर रुपया दुनिया के बाजार में गिरता जा रहा है। वहीं अर्थव्यवस्था संभाल नहीं रही है। देश को ऊँची विकास दर की जरूरत है। लोगों को पाँंच किलो अनाज नहीं,नौकरी के जरिये पैसा चाहिए।   
धनतेरस को ‘नौकरी तेरस’बताने प्रचार में छह करोड़ रुपये मोदी सरकर ने फूंक दिया। यह बताने के लिए,कि मोदी सरकार 75 हजार नौकरी बांट रही है। सुबह से एक दर्जन विभाग के मंत्री नौकरी के प्रचार की डुगडुगी पीट रहे थे। लगे हाथ घोंषणा भी कर दी,कि दिसम्बर 2023 तक दस लाख और नौकरियाँ सरकार देगी। हर साल दो करोड़ नौकरियाँ देने का वायदा था। यानी आठ साल में सोलह करोड़ नौकरियाँ। वो मिली नहीं। या कहें उसकी जवाबदारी नहीं निभा सके। जबकि सन् 1991 के बाद बैंक और रेल विभाग में 70 हजार से ज्यादा नौकरियांँ दी जाती थीं। कई बार इसकी संख्या एक करोड़ तक पहुंँची है।
सन् 2014 से अब तक 22 करोड़ 6 लाख लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया। सात लाख 22 हजार 311 लोगों को सरकारी नौकरी दी गई। विपक्ष का दावा है,कि अकेले केंद्र सरकार में ही करीब 30 लाख पद खाली पड़े हैं। सरकार की नियत ठीक नहीं है नौकरी देने में। वह एक-एक करके महत्वपूर्ण संस्थानों का निजीकरण करना चाहती है। सबसे कम नौकरी 2018-19 में महज 38100 लोगों को मिली। जबकि पांँच करोड़ 9 लाख 36 हजार 479 लोगों ने आवेदन किया था। हालांकि साल 2019-20 में 147096 युवाओं को सरकारी नौकरी मिली। अब अडानी चार सौ करोड़ रुपये रक्षा विभाग में इनवेस्ट करने जा रहे हैं। सवाल यह है कि सरकार के साथ दो-चार कारर्पोरेट रहेंगे,तो क्या अर्थव्यवस्था सुधर जायेगी? वहीं सरकार नौकरी देगी मगर पेंशन नहीं। इससे सरकार का 35 फीसदी पैसा बच जायेगा। जरूरी है कि सरकार विनिवेश को गति दे। बैंकिंग व्यवस्था में स्थिरता लाए। घरेलू और विदेशी निवेशकों के लिए प्रोत्साहन तंत्र दुरुस्त करें।
विभिन्न सरकारी विभागों में मार्च 2021 में करीब 978328 पद खाली हैं। गृहमंत्रालय में करीब 1.4 लाख पद खाली हैं। रेल मंत्रालय में करीब 2.94 लाख,रक्षा विभाग में 2.64 लाख, डाक विभाग में 90 हजार और राजस्व विभाग में करीब 80 हजार पद खाली हैं। कोरोना माहामारी के चलते सेना ने 2020-21 और 2021-22 में भर्ती प्रक्रिया को स्थगित कर दिया था। केंद्र सरकार ने हाल ही में अग्निवीर योजना की घोषणा की है। जिसकी भर्ती प्रक्रिया जारी है। इसके अलावा दिल्ली के सारे दफ्तर में संघ से जुड़े करीब पांँच हजार लोग नौकरी कर रहे हैं।
राज्यों में बेरोजगारी दर घटी नहीं है। हरियाणा की बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा 26.7 फीसदी है। जबकि राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में यह 25.25 फीसदी है। बिहार में 14.4 प्रतिशत,त्रिपुरा में 14.1,पश्चिम बंगाल में 5.6,कर्नाटक और गुजरात में सबसे कम 1.8 फीसदी बेरोजगारी है। जून 2022 में पूरे देश के लेवल पर बेरोजगारी दर 7.80 फीसदी थी। बेरोजगारी का यह आंकड़ा शहरी क्षेत्र में 7.30 और ग्रामीण क्षेत्र में 8.03 रहा। जून महीने में ही कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब 1.3 करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा। सन् 2020 में महामारी की पहली लहर में 1.45 करोड़, दूसरी लहर में 52 लाख और तीसरी लहर में 18 लाख लोगों की नौकरी गई। केन्द्र सरकार का दावा था,2022 तक किसानों को खेती लाभ का सौदा साबित होगी। लेकिन आन्ध्र में 93 फीसदी किसान कर्ज में डूबे हैं। तेलंगाना में खनिज सपदा के मामले में बहुत आगे फिर भी यहांँ 91.7 फीसदी,ओड़िसा में 60 फीसदी किसान कर्ज में डूबे हैं। कमोवेश हर राज्य में कर्ज वाले किसानों का आंकड़ा उम्मीद से ज्यादा है।
हालात इतने खराब कभी नहीं थे। मरम्मत मांगती है अर्थव्यवस्था। पिछले बरस 638 अरब डालर विदेशी मुद्रा का भंडार देश में था। इस बरस 528 अरब डालर रह गया। वहीं ग्यारह लाख करोड़ रुपये कर्ज सरकार ने उद्योगपतियों के एक झटके में माफ कर दिया। इससे बैंक और कंगाल हो गए।  
कमजोर होती अर्थव्यवस्था से अब तक 1.3 लाख लोग देश की नागरिकता छोड़ कर बाहर चले गए। इस साल अभी तक 88 हजार लोग नागरिकता छोड़ चुके हैं। आठ लाख विद्यार्थी विदेशों में पढ़ रहे हैं। विदेशों में पढ़ाई और महंगी हो गई। क्यों कि डालर की वजह से रुपया अधिक देना पड़ रहा है। देश की अर्थव्यवस्था की मरम्मत नहीं की गई तो महंगाई के साथ बेरोजगारी और बढ़ेगी। भारत का आयात महंगा हो गया है। जिससे   घरेलू बाजार में कीमतों के दाम बढ़ रहे हैं। आरबीआई ब्याज दर बढ़ाने की स्थिति में नहीं। इसलिए निवेशक अपना पैसा निकाल कर दूसरे देश में जमा कर रहे हैं। अनुमान है  कि देश की अर्थव्यवस्था 2035 से पहले नहीं सुधर सकती। जीडीपी दर में कमी हो तो महंगाई कम हो। पाँच किलो अनाज देने से देश की इकोनामी नहीं सुधर सकती। इससे वोट बैंक प्रभावित हो सकता है। साढ़े आठ हजार करोड़ के विमान में सफर करने से न देश की जीडीपी सुधरेगी और न ही डालर के मुकाबले रुपया मजबूत होगा। राज्यों को जीएसटी का पैसा नहीं दिया जा रहा है। सब्सिडी देने वाली कई योजनाओं को बंद कर दिया गया है,लेकिन लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत करने वाली योजनाओं की कमी है।
रेवड़ियाँ बांटने से राज्य सरकारों का घाटा बढ़ता गया। आजयू.पी. में 82.8 फीसदी,एम.पी. में 82,बिहार में 85, झारखंड में 82,पंजाब में 90,हरियाणा में 85,पश्चिम बंगाल में 89,राजस्थान 40, और आंन्ध्र प्रदेश में 38 फीसदी रेवड़ी बांटी जाती है। जनता के हित में सरकार बहुत कम खर्च करती है। एम.पी.मे ं4.9 प्रतिशत,झारखंड में 5.8,यूपी में 5.2,हरियाणा में 7.5,पश्चिम बंगाल में 9.7 केरल में 1.2 फीसदी खर्च होता है। दूसरी ओर सियासी दल चुनाव जीतने के लिए सत्ता में आने पर किसानों के कर्जे माफ करने की बात करते हैं। यानी ग्रामीण बैंक,कमर्शियल बैंक से कर्ज लीजिये,जो भी पार्टी आयेगी कर्जे माफ कर देगी। यानी राजनीति ही अर्थव्यवस्था के सिस्टम को खोखला कर रही है।
 

सरकार गिराने की साजिश में अव्वल बीजेपी




नये इंडिया में सरकार हड़पने की साजिश तेज है। यह दौर पैसे के दम पर सरकार गिराने और बनाने का है। आन्ध्र में विधायकों को खरीदने का भंडाफोड़ होने के बाद अब गैर बीजेपी शासित राज्यों के कान खड़े हो गए हैं। मौजूदा राजनीति इशारा कर रही है,आने वाले समय में चार राज्यों की सरकार गिर सकती है।
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
वोट से बनने वाली सरकार को प्रभावित करने वाली राजनीति के आकार लेने से लोकतंत्र का चेहरा बदलने लगा है। क्यों कि चुनी गई सरकार को गिराने की साजिश पैसे वाली राजनीति करने लगी है। यानी नये इंडिया में पैसे पर राजनीति पलने लगी। और पैसे के दम पर सरकार गिरने और बनने लगी है। केन्द्र सरकार किसी भी राज्य की सरकार के काम काज और उसकी व्यवस्था पर ऊंगली नहीं उठाना चाहती। तोहमत लगने से बचना चाहती है। कानून के जरिये हटाना जरूरी नहीं समझती। जैसा कि बाबरी मस्जिद गिरने के बाद नरसिम्हा राव सरकार ने कानून व्यवस्था के मुद्दे पर यू.पी.की कल्याण सिंह सरकार, हिमाचल प्रदेश की शांता कुमार,राजस्थान की भैरों सिंह शेखावत और एम.पी. की सुंदर लाल पटवा सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करवा दिया था। अब ऐसा नहीं होता। नये इंडिया में सरकार हड़पने की साजिश तेज है। यह दौर पैसे के दम पर सरकार गिराने और बनाने का है। आन्ध्र में विधायकों को खरीदने का भंडाफोड़ होने के बाद अब गैर बीजेपी शासित राज्यों के कान खड़े हो गए हैं।
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे कितने दिनों के मुख्यमंत्री हैं,खुद शिंदे भी नहीं जानते। क्यांे कि उनके बाइस विधायक बीजेपी में शामिल होने को आतुर हैं। इसके पीछे वजह यह है, कि सरकार में वे शिंदे गुट के हैं। लेकिन अपने विधान सभा क्षेत्र में वे शिवसेना के विधायक हैं। एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों की फजीहत हो रही है। इससे बचने वे बीजेपी में शामिल होना चाहते हैं। कम से कम मौजूदा राजनीति की कालिख लगने से बच जायेंगे। क्यों कि महाराष्ट्र के चार प्रोजेक्ट गुजरात शिफ्ट करने के बावजूद शिंदे ने केन्द्र सरकार से कुछ नहीं कहा।
टाटा एयरबस परियोजना 22000 करोड़ रुपये की है, महाराष्ट्र से गुजरात स्थानांतरित कर दिया गया। अब वायुसेना के लिए टाटा एयरबस द्वारा सी.295 परिवहन विमान का निर्माण गुजरात के वड़ोदरा शहर में होगा। उद्धव सरकार ने कोविड के समय 6.5 लाख करोड़ रुपए और दावोस से 80000 करोड़ रुपए का निवेश लाए थे। इसी तरह देश का पहला सेमीकंडक्टर प्लांट जिसकी कुल लागत 154000 करोड़ रुपये है। अब महाराष्ट्र की बजाय गुजरात के अहमदाबाद जिले में लगेगा। दो अन्य प्रोजेक्ट भी गुजरात शिफ्ट कर दिया गया। इन वजहों से देर सबेर एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों दो फाड़ की संभावना ज्यादा है। एकनाथ शिंदे के नाम के आगे से मुख्यमंत्री शब्द भी हटने की आशंका है।   
विपक्ष चीख-चीख कर कह रहा है। जनता के वोट से बने लोकतंत्र को दो चार काॅरपोरेट के लोग अपने तरीके से गढ़ने लगे हैं। देश की हर राज्य सरकार के मन में भय ब्याप्त हो गया है, कि अगली सुबह उनकी सरकार रहेगी या नहीं। बहुमत वाली सरकार के कब बुरे दिन आ जाएं,वह भी नहीं जानती। ईडी, आईटी और सीबीआई के छापे का खौफ अपनी जगह है। एक नया खौफ गैर बीजेपी सरकार को हो गया है। जैसा कि दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कहते हैं,उनकी सरकार को अस्थिर करने की साजिश बीजेपी कर रही है। आडियो टेप में दिल्ली सरकार के 43 विधायकों को खरीदने की बात सामने आई है। तेलंगाना के टी.आर.एस. के विधायकों को खरीदने के आरोप में गिरफ्तार तीन लोगों ने इस साजिश का पर्दाफाश किया। आडियो टेप में शाह और बी.एल संतोष से बातचीत में कह रहे हैं,अलग से पैसा रखा है। तेलंगाना में चार विधायकों को खरीदने के लिए 25-25 करोड़ रुपये दिये जा रहे थे। दिल्ली सरकार के 43 विधायकों को खरीदने के लिए 1075 करोड़ रुपये का अरेंज किया गया। यह अलग बात है कि कोर्ट ने पुलिस को तीनो आरोपियों रामचन्द्र भारती,संत डी सिम्हजी ओर व्यपारी नंदकुमार को हिरासत में लेने के आदेश को खारिज करते हुए रिहा करने आदेश दिया। नदकुमार को विधायक पी रोहित रेड्डी के मोहनाबाद स्थित फार्म हाउस से गिरफ्तार किया गया था।
सवाल यह है कि इतनी बड़ी रकम पर ईडी और इनकम टैक्स चुप क्यों है? यह पता लगाया जाना चाहिए कि आखिर इतनी राशि आई कहांँ से। आडियो में बी.एल संतोष का नाम आया है तो ईडी को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। चुप्पी कई संदेहों की ओर इशारा कर रही है। जाहिर सी बात है, कि पंजाब में भी सरकार को अस्थिर पैसे के दम पर करने की कोई योजना हो सकती है।  
पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में करीब 3 महीने पहले झारखंड सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी,राजेश कच्छप और नमन विक्सल,ड्राइवर और एक सहयोगी कोे गिरफ्तार किया गया था। इन्हें हेमंत सोरेन सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए 48 लाख रुपये रिश्वत दिया गया था। सरकार गिरने के बाद दस करोड़ रुपये और मंत्री पद का वायदा था। रांची के अरगोड़ा थाने में तीनों विधायको के खिलाफ एफ.आई.आर.दर्ज की गई। कांग्रेस ने तीनों को पार्टी से निष्कासित कर दिया है।
गौरतलब है,कि बीजेपी ने हेमंत सोरेन को आफर दिया था कि वो कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी के समर्थन से सरकार बना लें। अभी हेमंत सोरेन की विधायकी का मामला राज्यपाल के पास है। चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से रिपोर्ट दे दी है। फैसला राज्यपाल को करना है। जाहिर सी बात है राज्यपाल हेमंत सोरेन के खिलाफ तब तक कोई कार्रवाई नहीं करेंगे,जब तक बीजेपी सरकार बनाने के लिए किसी योजना के अंजाम तक नहीं पहुंँच जाती है। यानी झारखंड सरकार में बीजेपी को किसी शिंदे की तलाश है।    
देश की राजनीति में हाॅर्स टेªेडिंग का खेल में अचानक बड़ी तेजी से उभरा। कर्नाटक, महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश जैसे बड़़े राज्यो में विधायकों को खरीद कर चुनी गई सरकार को गिरा कर नई सरकार बनाने की राजनीति हुई है। प्रलोभन के जरिये विधायकों को पार्टी छोड़ने के लिए उकसाया गया। जिन पार्टियों से विधायक गए उन्होंने सामने वाली पार्टियों पर विधायकों को खरीदने का आरोप लगाया। सबसे अधिक चैंकाने वाला खेल मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हुआ। कमलनाथ की सरकार ज्योतिरादित्य की वजह से गिर गई और उद्धव की महाविकास अघाड़ी सरकार एकनाथ शिंदे की बगावत से गिर गई। दोनों की सरकार को गिराने में बीजेपी का अहम रोल रहा। वहीं कर्नाटक में सरकार बनने और गिरने का खेल कई बार हुआ। छब्बीस जुलाई 2019 को बीएस येदियुरप्पा चैथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस वक्त बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री हैं।
आने वाले समय में चुनी सरकार को इसी तरह गिराने का खेल चलने से भारतीय राजनीति वह नहीं रह जायेगी,जिसे जनता जानती है। जिस देश में सत्ता की बागडोर छीनने की साजिश वाली राजनीति आकार लेगी, वहाँ काॅरपोरेट जगत के लोग चाहेंगे कि केन्द्र ही नहीं राज्यो में भी सरकार उनके दम पर बने। इससे काला धन को सफेद करने वालों की संख्या बढ़ेगी। जो एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के हित में नहीं है।