Friday, December 18, 2020

अपनी मर्जी का वजीरे आला

     







मुख्यमंत्री बतौर भूपेश बघेल ने अपने दो साल के कार्यकाल में नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने ढेर सारी योजनाओं की घोंषणा की। अपनी मर्जी की राजनीति भी खूब की ।इन दिनों टी.एस सिंह देव और और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच बढ़ती खटास की की खबर सूर्खियांें में है। अचानक भूपेश बघेल ने इस्तीफा दे दूंगा कहकर उन बातों को हवा दे दियां कि पार्टी उन्हें अर्द्धविराम करने की तैयारी में है। चर्चा है कि पश्चिम बंगाल के चुनाव के बाद प्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिल सकता है।  
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
                बतौर तीसरे मुख्यमंत्री 17 दिसम्बर 2018 को भूपेश बघेल ने जब कुर्सी संभाली, तो लोगों की जुबान पर एक सवाल तब भी था और आज भी है। टी.एस सिंहदेव ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी या फिर दोनों के बीच कोई सियासी समझौता हुआ है? सवाल को तवज्जो नहीं मिली। समय के साथ भूपेश बघेल प्रदेश कांग्रेस में और पार्टी हाईकमान मे अपनी पकड़ बनाते चले गये। वक्त के साथ भूपेश को यह एहसास होने लगा कि उनके राजनीतिक रास्ते में आगे चलकर टी.एस सिंहदेव कंटक बन सकते हैं,तो उनके मीडिया सलाहकारों ने सत्ता के दो धु्रव बना दिये। एक टी.एस सिंह देव और दूसरा भूपेश बघेल।
बेचैन करने वाली बात
कभी भूपेश बघेल और टी.एस सिंह देव प्रदेश में जय और वीरू की जोड़ी के नाम से प्रसिद्ध थे,लेकिन उसमें गांठ पर गांठ पड़ती गई। टी.एस सिंह देव से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल धीरे धीरे दूरियांँ बनाने लगे और उनके अधिकारों में कटोती करने लगे। उन्हें सरकारी प्रवक्ता से हटा दिया। उनकी छवि धूमिल करने उनको सूचित किये बगैर स्वास्थ्य विभाग की भूपेश बघेल ने बैठक की। उनकी हर फाइलों पर नजर रखी जाने लगी। अब वे दूसरे नम्बर के मंत्री की हैसियत से बाहर हैं। उनकी जगह कृषि मंत्री रविन्द्र चैबे और वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने ले ली। कांग्रेस के सीनियर लीडर की छवि को धूमिल करने की सारी कोशिशों के बीच टी एस सिंह देव मौन की राजनीति का रास्ता चुना। अपना ध्यान अपने विभाग पर फोकस किया। प्रदेश में ही हीं देश में नम्बर एक पर पंचायत और सांख्यिकी विभाग रहा। मनरेगा,पी.एम सड़क योजना,जीएसटी वसूली में छत्तीसगढ़ सबसे आगे रहा। कोरोना काल में हर जिले में सस्ती जांच की व्यवस्था की।
शिलान्यास की राजनीति
भूपेश बघेल प्रदेश में अपनी छवि को निखारने दूसरे साल ताबड़तोड़ लाखों करोड़ों रूपये की योजनाओं का, शिलान्यास की राजनीति को अहमियत दी। वहीं आयकर विभाग का छापा उनके निज सचिव के यहाँ पड़ने पर बड़ी भद्ध भी हुई। इस बीच टी एस सिंह देव और मुख्यमंत्री बघेल के बीच बढ़ती दूरियों से कांग्रेस की प्याली में टकराहट का ज्वार भी देखा गया। किसानो के खाते में साल के अंत तक राशि नहीं आने पर एक चैनल को इस्तीफा देने की बात कहकर सीधे सीधे उन्होंने सरकार को घेरा। कांग्रेस के घोषणा पत्र को पूरा नहीं किये जाने को लेकर भी स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री टीएस सिंह देव ने सरकार पर ऊगली उठाने लगे तो मुख्यमंत्री ने उनके पर कतरना शुरू किया। जाहिर सी बात है कि दो साल तक मुख्यमंत्री ने अपनी छवि राष्ट्रीय नेता बनाने में लगाई,वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को अपने हाथ में लेने के सारे जतन भी किये। प्रदेश प्रभारी पी एल पुनिया कहते हैं,‘‘ भूपेश सरकार का दो साल का कार्यकाल लाजवाब रहा। प्रदेश की जनता की आकांक्षाओं के अनुकूल,सरकार खरी उतरी।’’
बेचैन करने वाली बात
राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा है कि भूपेश बघेल को प्रदेश कांग्रेस में अर्द्धविराम करने की तैयारी हाई कमान ने कर ली है। टी.एस सिंह देव और भूपेश के बीच ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री बने रहने का सियासी समझौता हुआ है। जाहिर सी बात है यदि छत्तीसगढ़ में यह फार्मूला लागू हुआ, तो राजस्थान में भी यही होगा। संसदीय सचिव विकास उपाध्याय कहते हैं,भूपेश बघेल कांग्रेस और प्रदेश में अपनी राजनीतिक बेल की जड़ें इतनी गहरी कर लिये हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए हाई कमान के पास कोई वजह नहीं है।’’वहीं स्वास्थ्य पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा मुख्यमंत्री का कार्यकाल आलाकमान की इच्छा पर निर्भर करता है। मुख्यमंत्री दो दिन के भी हुए हैं और 15 साल के भी। यह सब आलाकमान तय करता है। पिछले दिनों कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी के साथ भूपेश की विशेष मुलाकात,चर्चा में थी। यह कयास लगाया गया कि उन्हें केन्द्र की राजनीति के लिए राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा रहा है। गौरतलब है कि भूपेश बघेल केन्द्र सरकार पर लगातार हमला करते आए हैं। इससे वो सुर्खियों में हैं। केन्द्र की लगभग हर योजना पर मीन मेख निकाली। कृषि नीति को भी अपने राज्य में लागू नहीं करने, अलग से कानून बनाने कैबिनेट की बैठक की।
केन्द्र कर रहा है भेदभाव
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी सरकार के दो वर्षों के कार्यकाल पर कहा कि देश का जीडीपी सिकुड़ गया है, जो कि बेहद चिंतनीय है। लेकिन छत्तीसगढ़ में मंदी का असर नहीं है। छत्तीसगढ़ एक मॉडल है। हम कोशिश कर रहे हैं कि छत्तीसगढ़ के जो उत्पाद हैं, उनके विक्रय की व्यवस्था की जा सके। बीजापुर, बिलासपुर, सूरजपुर जैसे तमाम क्षेत्रों में विकास कार्य हुए हैं। केंद्र सरकार हमें पैसे नहीं दे रही है। जीएसटी का 4000 करोड़ से अधिक की राशि हमें मिलनी थी। केंद्र सरकार भेदभाव कर रही है। सभी के हाथ में रोजगार हो यह कोशिश राज्य सरकार की है। मनरेगा में बेहतर कार्य हुआ है। वाटर रिचार्जिंग जैसे क्षेत्र में बेहतर कार्य किए जा रहे हैं। इस बार 2305 खरीदी केन्द्र बनाए गए हैं। इस बार सरकार ने 90 लाख मीट्रिक टन खरीदी का लक्ष्य रखा है। किसानों को पांच बार टोकन दिए जाएंगे। प्रदेश में 2017-18 में 56.85 लाख टन धान की खरीदी हुई थी। अब यह आंकड़ा 83.94 लाख टन तक पहुंच गया है। इस बार धान का रकबा 27 लाख 59 हजार 385 हेक्टेयर से अधिक है। किसानों की संख्या 12 लाख 6 हजार से बढ़कर 18 लाख 38 हजार हो गई है।
मोहन मरकाम हुए खफा
प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में भले भूपेश बघेल अपनी पकड़ा बनाए हुए हैं लेकिन, मुख्यमंत्री बदले जाने की चर्चा के चलते प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम भी अपने सुर बदल दिये हैं। निगम मंडल की नियुक्ति में उनके अपने समर्थकों का नाम नही होने से मरकाम बैठक से नाराज होकर चले गए। यह माना जा रहा था कि मोहन मरकाम भूपेश के रबड़ स्टाम्प हैं। कांग्रेस में 30 आदिवासी विधायक हैं,जो कि मरकाम के साथ हैं। भूपेश बघेल ने परिस्थिति को देखकर कहा कि संगठन और पार्टी की रायशुमारी के बाद निगम मंडल में नियुक्ति की जाएगी।
सत्ता विभाजन फार्मूला साफ करें
चर्चा है कि हाईकमान के सामने हुए मौखिक समझौते के तहत पहले ढाई साल भूपेश बघेल मुख्यमंत्री रहेंगे,इसके बाद के ढाई साल टी.एस सिंहदेव। इन चर्चाओं पर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा, ‘‘कांग्रेस हाईकमान सत्ता विभाजन के इस फार्मूले को स्पष्ट करे। और बताए प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन रहेगा।’’
किसान अन्याय योजना
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना को अन्याय योजना बताते हुए कहा, किसानों को आधे अधूरे भुगतान पर चिंता जताते हुए प्रेदश के वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंह देव को उनकी चुनौती याद दिलायी है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने कहा था किसानों को अंतर की राशि नहीं मिलेगी तो वे इस्तीफा दे देंगे। एक माह विलंब से धान खरीदी हो रही है। किसानों को गत वर्ष का बकाया अब तक नहीं मिला। मुख्यमंत्री बताएं क्या नयी खरीदी से पूर्व किसानों का पुराना भुगतान हो जाएगा। केंद्र सरकार ने नए कृषि कानूनों में किसानों को 72 घंटों के भीतर उनकी खरीदी गई उपज के एकमुश्त भुगतान का प्रावधान कर दिया है और ऐसा न होने पर यह आपराधिक कृत्य माना जाएगा।  
सफल रहे
भूपेश बघेल तेदूपत्ता का बोनस ढाई हजार से बढ़ाकर चार हजार रूपये किये।
 धान के समर्थन मूल्य की राशि ढाई हजार रूपये की। गोधन न्याय योजना के तहत दो रूपये किलो गोबर खरीद रही है सरकार।
नरूवा,गरूवा, घुरूवा और बाड़ी योजना से ग्राम सुराज का अलख जगाया। बिजली बिल में आधी छूट। मोर जमीन,मोर मकान, मुख्यमंत्री मितान योजना,पौनी पसारी योजना,हमर गांव,हमर योजना के तहत ग्राम पंचायत,जनपद पंचायत,जिला पंचायत को अच्छा काम करने पर पुरस्कृत करना।
 धरसा विकास योजना,पढ़ाई तंहर दुआर,पढ़ाई तुहर मोहल्ला,पचास रूपये में कोविड की जांच की सुविधा मुहैया की।
भूपेश चूके
किसानों को गत वर्ष का बकाया अब तक नहीं मिला।
सरकार बनते ही पूर्ण शराबबंदी का वायदा।
बेरोजगारों को चार हजार रूपये मासिक बेरोजगारी भत्ता नहीं दिया। अपराध पर नियंत्रण नहीं।
नक्सलवाद के खात्मे के लिए अब तक नीति नहीं बनी। कांग्रेस के घोषणा पत्र के वायदे अधूरे हैं।
धान कीएमएसपी ढाई हजार रूपये चार किश्तों में देकर सरकार बिचैलियों को लाभ पहुंचाना चाहती है। प्रदेश को कर्जदार बना दिया।
 
 

धान खरीदी पर टकराव

     










भूपेश सरकार ने केन्द्र सरकार से धान खरीदी का कोटा 24 लाख मीट्रिक टन से बढ़ाकर 32 लाख मीट्रिक टन करने पत्र लिखा। लेकिन केन्द्र सरकार ने खरीदी पर ही रोक लगा दी। इस बार 90 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य है। राज्य में लगभग 38 लाख मीट्रिक टन धान की खपत है। इससे ऊपर खरीदी जाने वाली लगभग 49 लाख मीट्रिक टन धान का सरकार क्या करेगी। इसे लेकर चिंता बढ़ गई है।


 0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
             धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान खरीदी पर टकराव की आंधी के चलते प्रदेश की राजनीति के केन्द्र में किसान आ गए हैं। भूपेश सरकार की मंशा है सीधे केन्द्र सरकार को कटघरे में खड़ा करना। वह प्रदेश के किसानों का ध्यान अपनी ओर खींचने और उनकी नजरो में शुभ ंिचतक बनने के लिए यह बताने में लगे हैं कि उनकी सरकार ढाई हजार रूपये प्रति क्विंटल धान समर्थन मूल्य पर खरीदना चाहती है,लेकिन केन्द्र सरकार खरीदने से मना कर रही है। प्रदेश में करीब 80 प्रतिशत आबादी कृषि से जुड़ी है। और 43 प्रतिशत कृषि भूमि में धान की फसल  होती है। धान का रकबा 27 लाख 59 हजार 385 हेक्टेयर है। सन् 2018-19 80 लाख 40 हजार टन धान का उत्पादन हुआ था। 16 लाख पंजीकृत किसानों ने सोसायटी के माध्यम से अपना धान बेचा था। इस बार 19 लाख किसानों ने पंजीयन कराया है। 
भूपेश बघेल ने 2500 रुपये क्विंटल धान खरीदी को लेकर केन्द्र सरकार को तीन दफा पत्र लिखा।     केंद्रीय मंत्री से मिलकर राशि की मांग की किन्तु केंद्र ने कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने 2500 रुपये क्विंटल धान खरीदा। इस बार भी छत्तीसगढ़ की सरकार 2305 धान खरीदी केन्द्रों के माध्यम से 90 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने जा रही है। केंद्र और राज्य के बीच किसानों के समर्थन मूल्य को लेकर अक्सर राजनीति होती रही है।
इंदिरा गांधी कृषि महाविद्यालय की एम.सी की छात्रा पल्लवी तिवारी कहती हैं,‘‘प्रदेश़ के किसानों को अपनी आर्थिक दशा सुधारनी है तो उन्हें अन्य लाभकारी फसलों की तरफ भी जाना होगा। मध्यप्रदेश की तरह सोयाबीन, सूरजमुखी, कपास आदि फसलें लेनी चाहिए। लेकिन सरकार फसल चक्र परिवर्तन करने का रिस्क नहीं लेना चाहती। सरकार किसानों को खुश रखने के लिए कर्ज लेकर बोनस देती है। यानी समर्थन मूल्य से अधिक पर धान खरीद सकती है किंतु उन्हें अन्य लाभकारी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित नहीं करती।’’  
सी.एम.ने लिखा पत्र
सीएम भूपेश बघेल ने कहा,‘‘केंद्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर सेंट्रल पूल में एफसीआई के लिए 26 लाख टन उसना और 14 लाख टन अरवा चावल लेने की मांग की है। साथ ही 2020-21 में समर्थन मूल्य की खरीदे जा रहे धान की समय पर मिलिंग कराने कहा है। सीएम बघेल ने लिखा है कि एफसीआई द्वारा 2016-17 और उससे पहले उसना के अलावा अरवा चावल भी लिया जाता था। इसलिए एफसीआई द्वारा छत्तीसगढ़ की जरूरत से ज्यादा चावल उसना के साथ अरवा के रूप में भी लेना चाहिए।
कृषि मंत्री रविन्द्र चैबे ने कहा, डीसीपी योजना अंतर्गत लिए जाने वाले सभी धान का समय पर निराकरण किया जा सके। धान के रखरखाव में कोई क्षति न हो। राज्य में स्थापित 400 उसना राइस मिलों की मिलिंग क्षमता 5.68 लाख टन प्रतिमाह और 1504 अरवा मिलों की अरवा मिलिंग क्षमता 18.83 लाख टन प्रतिमाह है। इसे ध्यान में रखते हुए खरीफ वर्ष 2020-21 में एफसीआई में 26 लाख टन उसना चावल व 14 लाख टन अरवा चावल उपार्जन की अनुमति दी जाए।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में खरीफ विपणन वर्ष 2020- 21 में समर्थन मूल्य पर लिए जाने वाले धान की कस्टम मिलिंग के बाद 60 लाख टन चावल लेने की कार्ययोजना का अनुमोदन केन्द्र सरकार ने किया है। इसमें एफसीआई में सेंट्रल पूल के अंतर्गत अनुमानित सरप्लस 40 लाख टन चावल उपार्जित किया जाएगा और शेष 20 लाख टन चावल राज्य में पीडीएस की आवश्यकता हेतु छत्तीसगढ़ स्टेट सिविल सप्लाइज कॉर्पोरेशन लिमिटेड में उपार्जित किया जाएगा।   
केंद्र सरकार ने कहा
वहीं धान खरीदी शुरू होने से पहले ही केन्द्र ने चिट्ठी लिखकर कहा है कि यदि राज्य सरकार इसी तरह किसानों को बोनस देगी तो वो धान नहीं खरीदेगी। इस पत्र ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है क्योंकि राज्य में लगभग 38 लाख मीट्रिक टन धान की खपत होती है। इससे ऊपर खरीदी जाने वाली लगभग 49 लाख मीट्रिक टन धान का सरकार क्या करेगी। इसे लेकर चिंता बढ़ गई है। इससे अरवा और उसना मिलाककर लगभग 34 लाख मीट्रिक टन चावल बनेगा। अब अगर केन्द्र सरकार इसे नहीं लेगी तो फिर इस चावल का वह क्या करेगी। ये एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।
राजनीति जोरों पर
धान खरीदी मामले पर कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला कहते हैं, केन्द्र सरकार धमका रही है, पत्र भेजकर कह रही है कि अगर बोनस दिया तो चावल नहीं खरीदेंगे। यह रवैया किसान विरोधी है। हमारी सरकार 2500 रुपए क्विंटल ही धान खरीदगी। वहीं बीजेपी सांसद सुनील सोनी का कहना है कि क्या कांग्रेस सरकार ने केंद्र से पूछकर अपना घोषणा पत्र तैयार किया था। केंद्र सरकार के पास केवल छत्तीसगढ़ नहीं बल्कि, और भी राज्यों की जिम्मेदारी है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक कहते हैं, सरकार को अपने घोषणा पत्र के मुताबिक धान खरीदने का इंतजाम करना चाहिए। बोनस देने का वायदा किया था, जिसे लागू करंे। अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए कांग्रेस सरकार केंद्र पर भेदभाव करने के आरोप लगा रही है।
धान बेचने वाले किसान बढ़े
साल 2018-19 में 15.71 लाख किसानों से 80.38 लाख मीट्रिक टन और साल 2019-20 में 18.38 लाख किसानों से 83.94 लाख मीट्रिक टन धान की बिक्री की थी। राज्य में दो सालों में पंजीकृत किसानों की तुलना में धान बेचने वाले किसानों में बढ़ोतरी हुई है। साल 2017-18 में 76.47 फीसदी किसानों ने धान बेचा था। वहीं 2018-19 में यह आंकड़ा 92.61 प्रतिशत और 2019-20 में 94.02 प्रतिशत पर पहुंचा था। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वर्ष 2000 में पहली बार सरकार ने समर्थन मूल्य पर लगभग 4.63 लाख मीट्रिक धान खरीदा था। जबकि साल 2014 आते तक यह आंकड़ा लगभग 80 लाख मीट्रिक टन हो गया था। 2013 में हुए चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणा.पत्र में 21 सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी का वादा किया था।
आत्महत्या कर लिया किसान
कोंडागांव जिले के बड़ेराजपुर तहसील के मारंगपुरी निवासी किसान धनीराम ने फांसी लगा ली। उसके पास 6.70 एकड़ जमीन थी। इस हिसाब से 100 क्विंटल धान बेचने की तैयारी में था। पर सरकारी रिकॉर्ड में जमीन का रकबा घट जाने से केवल 11 क्विंटल धान बेचने का ही टोकन कटा। उस पर कोऑपरेटिव बैंक का 61932 रुपए कर्ज भी था। ग्रामीण किसान की आत्महत्या के पीछे मात्र 11 क्विंटल धान बेचने के टोकन को मुख्य कारण बता रहे हैं। धनीराम ने 2.713 हेक्टेयर भूमि पर धान बोया था लेकिन त्रुटिवश 0.320 हेक्टेयर में धान की प्रविष्ठि हो गई थी। इसके लिए पटवारी को निलंबित कर दिया गया है और तहसीलदार को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।     
कांग्रेस दिल्ली में करेगी आंदोलन
केन्द्र ने दो टूक कह दिया है कि यदि भूपेश सरकार किसानों को बोनस देगी तो चावल नहीं खरीदेंगे। केन्द्र के इस निर्णय के बाद राज्य सरकार के सामने धान खरीदी को लेकर संकट पैदा हो गया। इस फैसले से नाराज कांग्रेस नेताओं ने केंद्र के खिलाफ दिल्ली में आंदोलन की रणनीति तैयार कर ली है। केन्द्र व राज्य संबंधों में किसान हित को लेकर टकराहट का सिलसिला पुराना है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद केन्द्र में एनडीए की सरकार थी, तब अजीत जोगी ने पूरे मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ 7 रेसकोर्स रोड पर धरना,प्रदर्शन किया था। इस बार भी छत्तीसगढ़ की सरकार 2305 धान खरीदी केन्द्रों के माध्यम से 90 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने जा रही है। वहीं केन्द्र सरकार मात्र 8 प्रतिशत फसल ही समर्थन मूल्य पर खरीदती है।
धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में चावल की 23 हजार से ज्यादा किस्में हैं। प्रदेश के कृषि विवि में इन किस्मों का जर्मप्लाज्म सुरक्षित रखा है। छत्तीसगढ़ में लगभग दर्जनभर ऐसी किस्में हैं जिनकी फसल ली जा रही है। इनमें मुख्य रूप से आईआर.54, आईआर.36, इंदिरा सोना, पूर्णिमा, समलेश्वरी, दंतेश्वरी नरेंद्र धान.97, एमटीयू.1010 शताब्दी और सहभागी धान प्रमुख हैं। इनमें लगभग सभी मोटे धान की श्रेणी में आते हैं।
पहले दिन यानी एक दिसम्बर को 30 हजार 446 किसानों ने धान बेचा। किसानों से 98 हजार 968 मीट्रिक धान खरीदी की गई है। बहरहाल चालू विपणन वर्ष में किसानों की संख्या और धान के रकबे में बढ़ोत्तरी को देखते हुए इस साल समर्थन मूल्य पर बीते वर्ष की तुलना में अधिक खरीदी का अनुमान है। वहीं अन्य राज्यों से दलाल प्रदेश में धान मंगा कर खपाने की जुगत में लगे हैं। मध्यप्रदेश और झारखंड से की कई गाड़ियां धान से लदी पकड़ी गई हैं।
 
 

लोन वर्राटू,फर्जी कांसेप्ट

   
बस्तर का दंतेवाड़ा और सुकमा जिला को पुलिस ने इनामी नक्सलियों का केन्द्र बना दिया है। जबकि दंतेवाड़ा की डेढ़ सौ पंचायतों में केवल बीस पंचायतें ही रेड जोन में है। भरमार बंदूक के साथ सरेंडर करने वाले नक्सली को भी पुलिस लाखों का इनामी बना देती है। नक्सली सभी वर्दी में होते में हैं। लेकिन दंतेवाडा में पांच सौ नक्सलियों के सरेंडर का लक्ष्य पूरा करने बनियान पहने ग्रामीणों को भी पुलिस नक्सली बता रही है। नक्सलवाद के इतिहास में लोन वर्राटू को फर्जी परिकल्पना कहा जा रहा है।


0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
                   भूपेश सरकार ने नक्सलियों के आगे घुटने टेक दी है। नक्सलवाद पर इस सरकार ने राजनीति की है। जिसके दुष्परिणाम हम सभी को आने वाले समय मे भुगतने होंगे। राज्य सभा सदस्य सरोज पांडे के इस बयान के बाद देखा जा रहा है कि सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए अपने घुटने सीधे क्या किये, बस्तर पुलिस ने दंतेवाड़ा जिला को इनामी नक्सलियों का ठिकाना बना दिया। इस जिले में डेढ़ सौ पंचायतें हैं। जिसमें केवल बीस पंचायतें ही रेड जोन में हैं। करीब 30 पंचायतें ग्रे एरिया कहलाती हैं। जहां सुरक्षाबल और माओवादी, दोनों ग्रामीणों के सम्पर्क में रहते हैं। बची हुई 100 पंचायतें ग्रीन क्षेत्र हैं, जहां राज्य पुलिस और प्रशासन का पूर्ण अधिकार है। लेकिन देखा जा रहा है कि बस्तर पुलिस ने इनामी नक्सलियों के सरेंडर की झड़ी लगा दी है। दंतेवाड़ा पुलिस को साल के अंत तक पांँच सौ नक्सलियों के सरेंडर का लक्ष्य दिया गया है। दंतेवाड़ा एस.पी अभिषेक पल्लव कहते हैं, हमने 1600 ग्रामीणों के नक्सली बनने की पहचान कर ली   है। इनमें करीब 200 सशस्त्र लड़ाके हैं। नक्सली बनने ग्रामीणों को लोन वर्राटू के जरिये सरेंडर करने की मुहिम को अंजाम दिया जा रहा है। लोन वर्राटू अभियान के तहत अब तक 56 ईनामी 208 नक्सलियों ने सरेंडर किया है।’’
इनामी नक्सली बनाने की कहानी
अपने ढाई साल के कार्यकाल में कल्लूरी नक्सलियों के आत्म समर्पण का रिकार्ड बनाए, लेकिन सरकार की समिति ने पाया कि केन्द्रीय गृहमंत्रालय के तय मानको के अनुसार केवल तीन फीसदी ही आत्मसमर्पण सही थे,बाकी सब फर्जी थे। नक्सलियों के सरेंडर की संख्या बढ़ाने की प्रक्रिया एक बार फिर देखी जा रही है।  इसलिए कि भरमार बंदूक जिसके पास है, वो एक लाख का इनामी नक्सली कैसे हो सकता है। भरमार बंदूक से चिड़िया तक नहीं मरती। दंतेवाड़ा एस.पी डॉ अभिषेक पल्लव ने बताया कि भांसी झिरका के जंगल मे सर्चिंग पर निकले जवानों के सामने भरमार के साथ माओवादी राजेन्द्र तेलाम जो कि डीएकेएमएस अध्यक्ष था ने सरेंडर किया। रेलवे संपति को नुकसान पहुंचाने, माओवादी विचारधारा का प्रचार करन,े नक्सलियों को राशन पहुंचान,े सहित अन्य काम करता था। इनामी नक्सली बनाने की कहानी बड़ी आसानी से पुलिस गढ़ने लगी है। जगदलपुर के पत्रकारों का कहना हैं, बस्तर आई जी. पी. सुन्दराज दूसरा कल्लूरी बनना चाहते हैं। यही वजह है कि लोन वर्राटू के फर्जी परिकल्पना की आड़ में भारी संख्या में ग्रामीणों को नक्सली बताकर सरेंडर कराने की मुहिम शुरू किया गया है।
कैसे कैसे इनामी नक्सली
तीन लाख का इनामी नक्सली सोमडू जो कि राइफल के साथ सरेंडर किया। पुलिस उसे दरभा डिविजन दलम सुरक्षा का प्लाटून सेक्शन डिप्टी कमांडर बता रही है। जबकि वह नक्सली नेता मंगतू के कहने पर बड़ेगुडरा के सुरेश से आठ लाख रूपये लेकर रायपुर आया था। एक अनजान व्यक्ति ने उसे एके 47 का कारतूस,वर्दी और स्टेशनरी दिया। सामान लेकर वह दंतेवाड़ा आ गया। मंगतू ने उसे रायपुर से सामान लाने को कहा था। मौका पाकर वह पुलिस के समक्ष सरेंडर कर दिया। सोमडू वेट्टी का कहना है वह ए.के.47 लेकर कुछ दिनों तक डिवीजन मेंबर चैतू विनोद देवा, जगदीश, जयलाल आदि की सुरक्षा में लगा रहा और मौका लगते ही समर्पण कर दिया। इसके अलावा एटेपाल निवासी व छोटेगुडरा पंचायत जनमिलिशिया सदस्य बामन उर्फ डेंगा यादव, नहाड़ी ककाड़ी पंचायत जनमिलिशिया सदस्य देवा मड़कम, डुवालीकरका चेतना नाट्य मंडली सदस्य लक्ष्मण और स्कूलपारा निवासी चेतना नाट्य मंडली सदस्य कुमारी मड़कम बोज्जो ने आत्मसमर्पण किया। पुलिस के अनुसार ये सभी सड़क काटने आईईडी प्लांट करने नक्सलियों की मीटिंग के लिए ग्रामीणों को बुलाने का काम करते थे।
गृह मंत्री की शिकायत
गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू कहते हैं केन्द्र सरकार छत्तीसग के साथ दोहरा बरताव करती है। नक्सलवाद की गंभीर समस्या छत्तीसगढ़ में है, बावजूद इसके पुलिस आधुनिकीकरण बजट में कटोती कर दी है।   2013-14 में प्रदेश का पुलिस आधुनिकीकरण बजट 56 करोड़ रुपए था, जो 2020-21 में 20 करोड़ रह गया है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में भी हमने 20 करोड़ का प्रस्ताव दिया था,लेकिन राज्य को मिले मात्र 9.7 करोड़ रुपए। वहीं बिहार को 27.6 करोड़, ओडिशा को 15.6 करोड़ रूपये, उत्तर प्रदेश को 63.19 और महाराष्ट्र को 47 करोड़ रुपए दिए गए।  
गृह वापसी की अपील
बस्तर पुलिस लोन वर्राटू के जरिये हर जिले में गृह वापसी के तहत आत्म समर्पण की अपील कर रही है। नक्सल विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रहे बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी ने कहते हैं लोन वर्राटू कार्यक्रम सरकार और पुलिस की एक विशेष अभियान है। जिसके तहत गुमराह होकर नक्सली बने ग्रामीण अपने घरों को वापस आएं और सरकार की मदद से नई जिंदगी शुरू कर सकें। लोन वर्राटू के तहत सरेंडर करने की नीति में यह नहीं है कि आत्मसमर्पित माओवादी रोजगार के लिए पुलिस में ही भर्ती हो,जैसा की पहले था। अब उनके लिए इच्छानुसार रोजगार की सुविधा दी जा रही है,बैंक लोन की व्यवस्था भी अन्य विभागों से मिलकर की गई है। लोन वर्राटू के शुरुआती परिणाम काफी पॉजिटिव हैं।’’दंतेवाड़ा एस.पी अभिषेक पल्लव कहते हैं,दंतेवाड़ा पहला जिला है,जहां 35-40 नक्सल प्रभावित जिलों में सर्वे कर नक्सलियों की पहचान की गई है। इस अभियान के तहत सरेंडर करने वाले नक्सलियों को पहले की तरह 10 हजार रुपए त्वरित राहत के रूप में दिया जाता है इसके बाद उनके रोजगार की व्यवस्था स्व सहायता समूह बनाकर की जाएगी।’’
फर्जी परिकल्पना
जानकारों का कहना है कि पुलिस चर्चा में बने रहने के लिए नक्सलवाद के खिलाफ फर्जी परिकल्पना लेकर आए दिन कोई न कोई अभियान शुरू करती है। लोन वर्राटू के जरिए नक्सलियों के नाम के पाम्पलेटस ग्राम पंचायतों में,सरकारी भवनों में और ग्रामीणों के घरों के बाहर की दीवारों में उनसे वापसी की अपील करते हुए चस्पा किये जा रहा हैं। इनामी नक्सलियों के फ्लेक्स लगाए गए हैं। इसके साथ ही सुरक्षा बलों की टीमें गांव में जाकर ग्रामीणों से भी आग्रह कर रहीं हैं कि, वे अपने साथियों को माओवाद की राह छोड़ मुख्य धारा से जुड़ने के लिए प्रेरित करें।
अभियान पारदर्शी और शांतिपूर्ण
बस्तर आई जी सुन्दरराज कहते हैं लोन वर्राटू अभियान पारदर्शी अभियान है। नक्सलियों के परिजनों के घरों में पाम्पलेट्स लगाकर उनसे पावती ली जाती है, ताकि इनामी नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर ग्रामीण विरोध न करें। अक्सर पुलिस पर नक्सलियों की आड़ में आम ग्रामीणों को मारने और अत्याचार के साथ बर्बरता का अरोप लगता है। ग्रामीणों को पहले से बता दिया जाता है कि, उनके यहां कौन कौन नक्सली हैं।‘‘ यह माना जा रहा है कि लोन वर्राटू को पायलट प्रोजेक्ट की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। यदि सफलता मिली तो इसे माओवादी प्रभावित अन्य जिलों मंे भी लागू किया जाएगा।  
सुर्खियों का मायाजाल
सुर्खियों में रहने के लिए पुलिस कभी गोंडवी भाषा में पोस्टर पाम्पलेट लगा कर ग्रमीणों से नक्सली बने लोगों को सरेंडर की अपील करती है। इस बार लोन वर्राटू का नाम दिया है। इसे सलवा जुड़ूम से अलग प्रचारित किया जा रहा है। सलवा जुड़ूम नक्सलियो के खिलाफ एक सशस्त्र लड़ाई थी। उसमें कोई योजना नहीं थी। नक्सलियों की विचारधारा को प्रसारित करने वाले उनके फ्रंटल संगठनों को कमजोर करने का कोई तोड़ नहीं था। जबकि लोन वर्राटू के तहत माओवादी विचारधारा को प्रोपोगेट करने वाले उनके फ्रंटल घटकों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। सरेंडर पॉलिसी के तहत नक्सलियों के लिए दी जाने वाली सुविधाओं की जानकारी ग्रामीणों को दी जाती है।
पुलिस का लोन वार्राटू अभियान में केवल निचले पायदान के नक्सलियों को ही सरेंडर करने की अपील की जा रही है। जबकि नक्सली लीडरों के लिए अभियान में कुछ भी नहीं है। जाहिर सी बात है कि आगे चलकर यह अभियान भी सफलता के झंडे नहीं गाढ़ सकता है। जब तक नक्सलियों के बड़े लीडरों को मुख्य धारा में शामिल करने की कोई योजना नहीं बनती लोन वार्राटू भी फर्जी परिकल्पना ही साबिता होगा। पुलिस अपनी पीठ थपथपाने के लिए पाँच सौ नक्सलियों ने सरेंडर किया,इसका रिकार्ड बना लेगी। पुलिस को कायदे से यह पता करने चाहिए कि ग्र्रामीण नक्सली बन क्यों रहे हैं। उसका समाधन क्या है। नक्सली लीडर सरेंडर कैसे करें,नक्सली छत्तीसगढ़ को गृह जिला क्यों बना रखें हैं।
 

 









सलीके से उठाए सवाल

          





समकालीन व्यंग्य के  एक  महत्वपूर्ण हस्ताक्षर  गिरीश पंकज अपने नए व्यंग्य संग्रह राजनीति का आईपीएल‘‘ के जरिये बड़े सलीके से सवाल उठाते हैं। उनके व्यंग्य के किरदार या फिर विषय समाज के अक्स हैं। इस  संग्रह में  छत्तीस व्यंग्य रचनाएं हैं। इनका हर व्यंग्य समाज के अंतर्विरोधों की बानगी है। यही वजह है कि वह सीधे दिमाग पर छा जाता है। कई सारे व्यंग्य कथानक शैली में होने की वजह सेए ऐसा लगता है कि कोई कहानी है। इनके व्यंग्य की खासियत यह है कि बोलचाल की भाषा में है। इसलिए पढ़ते वक्त पाठक को लगता है कि वो स्वयं एक किरदार है। यह लेखक की अपनी खूबी और शैली है। बोलचाल की भाषा में व्यंग्य के संस्कार हर आदमी में देखा गया है। और उसे पकड़ने की कला में माहिर हैंए गिरीश पंकज। जैसा कि संग्रह का पहला व्यंग्य ष्ष्कूकुर वाली माॅर्डन फेमिली। कुत्ते पालना आजकल फैशन है। स्टेटस सिंबल है। एक कुत्ते का नाम राॅकी दूसरे का डाॅगी। अपने को माॅर्डन बताने के लिए लोग अंग्रेजी प्रेमी होते जा रहे हैं। विदेशी नस्ल के कुत्तों को पालनेएघुमाने और उसके साथ घूमने वाली महिलाएं और माॅर्डन लड़कियों के चोचले पर लेखक ने करारा तंज कसा है। यह व्यंग्य सलीके से सवाल छोडता है कि कुकुर घुमाने के बहाने अंग प्रदर्शन करना ही क्या माॅर्डन होने की निशानी है। आधुनिकता के नाम पर पतन की बारीक रेखा तक भी व्यंग्यकार की दृष्टि जाती है।
उपवास का लजीज मीनूष् शीर्षक का व्यंग्य जनता के हितों के बहाने भूख हड़ताल पर बैठने वाले नेताओं का कच्चा चिट्ठा है। भूख हड़ताल पर बैठने वाले नेता अपनी भूख शांत करने के तरीके किस तरह निकाल लेते हैंए वह बताया गया है। यहांँ भी एक सवाल है किए जब नेताओं को अपनी भूख की चिंता पहले हैए तो वो भूख हड़ताल पर बैठने का नाटक क्यों करते हैं।बहुत बड्डे समाज सेवी रचना में व्यंग्यकार ने बताया कि समाज सेवा का नशा के नाम पर लोग क्या.क्या करते हैं। ऐसे समाज सेवी होते कौन हैं। शराब बेचने वाले सच्चे समाज सेवी, खुद को कहते हैं। और वो भी इन्हें सच्चे समाज सेवी बताते हैंए जिन्हें ये चंदा देते हैं। समाज में यत्र.तत्र. सर्वत्र फैले दोगले चरित्र को रेखांकित करती है यह रचना।
किताब का नाम राजनीति का आईपीएल है। जाहिर है कि ज्यादातर व्यंग्य रचना राजनीति से जुड़ी हुई हैं। राजनीतिक व्यक्तियों की छोटी.छोटी हरकतों को व्यंग्य रचना का विषय बनाया गया है। राजनीतिक जीवन में इतनी विसंगतियां पसरी हैं कि कोई भी व्यंग्यकार राजनीति पर व्यंग्य किए बगैर रह नहीं सकता। फिर चाहे परसाई हों या शरद जोशी। राजनीति पर व्यंग्य करने की एक लंबी परंपरा है, मगर त्रासदी यह है  कि सैकड़ों व्यंग्य लिखे जाने के बावजूद  राजनीति की दुम टेढ़ी की टेढ़ी है। हादसे में होने वाली मौत पर नेताओं के उदासीन या असंगत किस्म के बयानों  से, अकसर आम आदमी गुस्से से भर जाता है। उनकी हंँसी के क्या कहने‘‘ शीर्षक की रचना में सवाल है कि क्या नेताओं को आम आदमी की समस्याओं को हँस कर टालना चाहिए? राजनीति के मसखरे चरित्र पर यह व्यंग्य गंभीर विमर्श की गुंजाइश पैदा करता है।
स्वच्छता अभियान की आड़ में झाड़ू लगाना भी एक कला है। शीर्षक की रचना बताती है कि देश में नेता किस तरह झाड़ू लगा रहे हैं। यह एक ऐसा पाखंड है जो खुलेआम किया जा रहा है। यही कारण है कि जैसे.जैसे झाड़ू  लगती है वैसे.वैसे व गंदगी भी बढ़ती जाती है। फोटो खिंचाने के लिए झाड़ू लगाना और देश की अर्थव्यवस्था पर झाड़ू मारनाए वाकय में सबसे बड़ी कला है। सवाल यह है कि ऐसी कला आम आदमी कब सीखेगा। इस संग्रह में व्यंग्य के शीर्षक ही बता देते हैं कि वो किसकी बात करते हैं। व्यंग्य के शीर्षक ही पाठक को रचना पढ़ने पर बाध्य कर देते हैं। सभी व्यंग्य एक तरह से पाॅकेट.बम हैं, जो विसंगतियों को विस्फोट के साथ नष्ट करने की कोशिश करते हैं।
 जिस तरह क्रिकेट के आईपीएल में खिलाड़ी बिकते हैं,ठीक उसी तरह विधायक और सांसद की बोली आफ द रिकार्ड लगती है। लोकतंत्र का आईपीएल बरसो से चला आ रहा है। इसमें एक नेता कहता हैए हमें अभी कुछ वर्षो के लिए लीज पर लिया गया है। राजनीति में विधायकों को दूसरे दल के लोग लीज पर ही लेते हैं। यह रचना मध्यप्रदेश की राजनीति के पहले लिखी गई है। लेकिन इसे पढ़ने पर लगता है कि लेखक ने इसकी स्क्रिप्ट पहले ही लिख दी थी। सवाल यह है कि वोटर को खरीद कर नेता विधायक बनता है ऐसे में बाद में उसका बिकना क्या गलत है, लोकतंत्र के बाजार में बिकने वालों के अलग अलग रेट तय हैं। इसलिए राजनीति का आईपीएल कभी बंद नहीं होगा।
कुल मिलाकर इस संग्रह की तमाम  व्यंग्य रचनाएं अपने समय की अराजक घटनाओं का एक तरह से कोलाज ही है जिसे पढ़कर हम सत्य से वाकिफ तो होते हैं बेचैन भी होते हैं, मगर मूकदर्शक बनकर ही रह जाते हैं।  फिर भी व्यंग्य की सार्थकता यही है कि, वह पाठक को बेचैन तो करता है। यह बचैनी ही भविष्य के वैचारिक परिवर्तन का माध्यम बन सकती है।
▪ राजनीति का आईपीएल .- गिरीश पंकज
किताब गंज प्रकाशन, 195 रूपये
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
    
 

आस्तीन चढ़ाने की सियासत

       
केन्द्र की योजनाओं में खामियाँ बताकर प्रदेश में लागू नहीं करने के लिए भूपेश सरकार केन्द्र से भिड़ने के लिए हमेशा आस्तीन चढ़ाए रखने की सियासत को तरजीह देती आई है। जबकि केन्द्र सरकार टकराव के मूड में नहीं है। यही वजह है कि केन्द्र सरकार ने कई बार छत्तीसगढ़ सरकार को पुरस्कार से नवाजा भी।  


0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
               छत्तीसगढ़ में भारी बहुमत की कांग्रेस सरकार होने की वजह से केन्द्र की ज्यादातर योजनाएं और नीतियों की खिलाफत भूपेश सरकार करते आई है। ऐसा करने के पीछे एक मात्र मकसद सुर्खियो ंमें रहना और जनता को यह बताना कि केन्द्र की योजनाएं प्रदेशवासियों के हित में नहीं है। जबकि केन्द्र सरकार ने भूपेश सरकार को कई बार पुरस्कारों से नवाजा भी है। हमेशा आस्तीन चढ़ाने की सियासत करने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार के नए कृषि श्रम और उपभोक्ता कानूनों को छत्तीसगढ़ में लागू करने से इंकार कर दिया है। केंद्रीय कानूनों को रोकने के लिए राज्य सरकार नया कानून बनाएगी। कृषि मंत्री रविंद्र चैबे की अध्यक्षता में 13 अक्टूबर को हुई मंत्रिमंडलीय की बैठक में फैसला लिया कि राज्य के हितों की रक्षा के लिए संविधान के दायरे में रहकर विधि सम्मत कानून बनाया जाएगा। इसके लिए विधान सभा का विशेष सत्र भी बुलाया गया। मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने कहा,केंद्र के कानून से पूंजीपति ही कृषि उपज के मूल्यों को नियंत्रित करेंगे।’’ 
समर्थन मूल्य पर किसानों से धान खरीदी मामले में भी भूपेश सरकार तनातनी में थी। वह प्रति क्विंटल धान 2500 रूपये में खरीदने की बात अपने घोंषणा पत्र में कांग्रेस कही थी। केन्द्र सरकार ने कहा 1865 रूपये की दर से धान लेगी। भूपेश सरकार ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना के माध्यम से किसानों को अंतर राशि दी। अब तक किसानों के खाते में 4500 करोड़ रुपए अंतर की राशि पहुंच चुकी है।
बरदाने पर विवाद
धान खरीदी में बरदाने के मामले को लेकर केन्द और राज्य सरकार आमने सामने हैं। कृषि मंत्री रविन्द्र चैबे ने कहा,चालू खरीफ वर्ष में राज्य में 20 लाख से अधिक किसानों से प्रति एकड़ 15 किवंटल धान की खरीदी करने 4 लाख 75 हजार गठान बोरा की आवश्यकता है। जिसकी पूर्ति के लिए राज्य सरकार ने 3 लाख 50 हजार गठान जुट कमिश्नर कोलकाता से मांगे थे। शेष 1 लाख 25 हजार गठान पुराना बोरा मिलर्स एवं पीडीएस का उपयोग करने की योजना बनाई गई। लेकिन केन्द्र सरकार ने गठानों की संख्या में कटौती कर 1 लाख 43 हजार गठान बोरा देने का आदेश 9 अक्टूबर 2020 को जारी किया है। यह छत्तीसगढ़ के किसानों के साथ अन्याय है।’’
धान खरीदी मामले में भी प्रदेश सरकार के आरोप  छजका के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने कहा,एक तरफ मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी बिहार जाकर धान की लुआई हो जाने की बात स्वीकार करते हैं। जबकि प्रदेश में एक दिसंबर से धान खरीदा जाएगा। केन्ंद्र सरकार केंद्र कितना और किन शर्तों में धान खरीदेगा, निर्धारित नहीं हुआ है। हफ्ते में दो बार में दो हजार करोड़ रूपये कर्ज लेने वाली सरकार के पास किसानों से धान खरीदने के लिए फूटी कौड़ी नहंी है। कांग्रेस सरकार को 15 नवम्बर से ही किसानों की धान खरीदी करनी चाहिए ताकि किसान दिवाला नहीं दिवाली माना सके।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु देव साय ने कहा कि कृषि मंत्री झूठ बोल रहे हैं। कांग्रेस शासित पंजाब में बारदाने की कोई शिकायत नहीं है। वहां रिकार्ड खरीदी हो रही है। राज्य की राशन दुकानों से अब तक सवा दो करोड़ बारदाने वापस नहीं बुलाए गए हैं। राज्य सरकार नहीं चाहती कि किसानों का पूरा धान खरीदा जाए। इसलिए बहाना बना रही है।
कृषि नीति के खिलाफ प्रदर्शन
मोदी सरकार के कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ प्रदेश में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के बैनर तले 25 से ज्यादा संगठन एकजुट होकर प्रदेश भर में केन्द्र की कृषिनीति को किसान विरोधी बताया।   छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला और छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते ने कहा, समर्थन मूल्य पर सरकार यदि धान नहीं खरीदेगी, तो कालांतर में गरीबों को एक और दो रुपये की दर से चावल,गेहूं नहीं मिलेगा। सार्वजनिक वितरण प्रणाली पंगु हो जाएगी। इन कानूनों का असर सहकारिता के क्षेत्र की बर्बादी के रूप में भी नजर आएगा।
नई कृषि नीति किसानों की फसल को मंडियों से बाहर समर्थन मूल्य से कम कीमत पर खरीदने  व्यापार करने वाली कंपनियों व्यापारियों और उनके दलालों को छूट देती है। किसानों को विवाद की स्थिति में कोर्ट जाने के अधिकार पर रोक लगाती है। किसान नेताओं ने कहा कि कॉर्पोरेट गुलामी की ओर धकेलने वाले इन कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ देश के किसान तब तक संघर्ष करेंगे, जब तक इन्हें बदला नहीं जाता।’’
पीएम आवास योजना में रूचि नहीं
छत्तीसगढ़ सरकार केन्द्र की प्रधान मंत्री आवास योजना में भी कोई रूचि नहीं दिखा रही है। यही वजह है कि केन्द्र सरकार ने प्रदेश को राशि मुहैया नहीं कराई। प्रदेश सरकार ने 2018-19 और 2019-20 में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अपने हिस्से की राशि नहीं दी है। यह राशि 1554 करोड़ रुपए है।   पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने भूपेश बघेल को पत्र लिखकर कहा कि कांग्रेस सरकार आते ही प्रधानमंत्री आवास योजना को ग्रहण लग गया है। राज्य के हिस्से की राशि जल्द से जल्द प्रदेश सरकार जारी करे और बजट में इसका प्रावधान करें ताकि गरीबों को प्रधान मंत्री आवास मिल सके।
 जल मिशन योजना का टेंडर रद्द
केन्द्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों को शुद्ध जल मुहैया कराने जल मिशन योजना शुरू की। बस्तर इलाके में अब भी लोग लाल पानी पीने को विवश हैं। राजनांदगांव जिले के कई गांँवों में आर्सेनिक जल है। केंद्र सरकार की मंशा है कि जल जीवन मिशन योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र के हर तबके को पेयजल मिले। हर घर में नल लग सके। लेकिन भूपेश सरकार ने इसमें भ्रष्टाचार हो रहा है कहकर जल मिशन के टेंडर को रद्द कर दिया। 13 हजार करोड़ रूपये के जल मिशन के टेंडर को रद्द किये जाने पर पीएचई ने हाई कोर्ट में कैविएट लगाकर इसका दोबारा टेंडर करने की तैयारी कर ली है। आरपी मंडल सीएस और अध्यक्ष जांच कमेटी का कहना है कि राज्य सरकार ने ठेके रद्द कर दिए हैं और मुख्यमंत्री के निर्देश पर इनकी जांच चल रही है। उससे पहले ठेके नहीं हो सकते हैं। मामले की पूरी जानकारी ली जा रही है।
हिस्से की लड़ाई हैः रमन
भूपेश सरकार का आरोप है कि इस योजना के तहत करीब 6 हजार करोड़ रुपए का ठेका राज्य की बाहर की कंपनियों को मैदानी इलाकों में दिया गया और छत्तीसगढ़ के स्थानीय ठेकेदारों को बस्तर और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में छोटे मोटे ठेके दिए गए हैं।  गौरतलब है कि रीटेंडर उस समय किया जा रहा है जब 7 हजार करोड़ रुपए के विवादित टेंडरों की जांच मुख्य सचिव की कमेटी जांच कर रही है। जांच के आदेश मुख्यमंत्री ने दिये हैं,बगैर रिपोर्ट आए टेंडर रद्द करना अनुचित है। पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह कहते हैं, केन्द्र सरकार से मिली राशि 7 हजार करोड़ रूपये की बंदरबांट में लगी प्रदेश सरकार में हर कोई अपने हिस्से के लिए लड़ रहा है। इस योजना से प्रदेश के युवाओं को रोजगार भी मिलता। प्रदेश के बाहर की लगभग 44 कंपनियों को काम दिया जाना, इस बात का प्रमाण है कि प्रदेश सरकार कमीशनखोरी और बाहरी लोगों को लाभ पहुँचाने की सौदेबाजी कर रही है। इस पूरे मामले में कहीं कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई।  
बहरहाल जल मिशन में भ्रष्टाचार हुआ है या नहीं यह तो रिपोर्ट आने पर ही पता चलेगा। इस बीच केंद्र सरकार इस मामले में शिकायतों की जाँंच के लिए दिल्ली से उच्चस्तरीय टीम भेजने की चिट्ठी राज्य शासन को दी गई है। माना जा रहा है कि इस टेंडर में कुछ शर्तें ऐसी जोड़ी गई हैं,टेंडर में वही ठेकेदार या फर्म शामिल हो सकेंगी, जो इसके पहले 10 करोड़ रुपए तक का काम कर चुकी हों। इससे पहले जाँच रिपोर्ट क्या आती है,उस पर सबकी नजर है।  
 
 
 
 











Sunday, November 8, 2020

कुछ भी संभव है मरवाही में

  









मरवाही विधान सभा के उपचुनाव में अब कुछ भी हो सकता है। अभी तक कांग्रेस ढाई घर से ज्यादा चलने की बात कर रही थी। लेकिन छजका ने बीजेपी को समर्थन देकर कांग्रेस के उठते हाथ को ठिठका दिया है। आम मत है कि नए चुनावी समीकरण ने सत्ता पक्ष की धड़कने बढ़ा दी है।    


0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
            छत्तीसगढ़ में होने जा रहे मरवाही विधान सभा उप चुनाव ऐसे मोड़ पर पहुंँच गया है,जिसकी कल्पना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी नहीं की रही होगी। चुनाव प्रचार थमने के दो दिन पहले छजका के वरिष्ठ नेता धरम जीत सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक से पेन्ड्रा में मुलाकात के बाद बीजेपी का समर्थन देने की बात कहकर कांग्रेस खेमें खलबली मचा दी। राज्य में इस सियासी गठजोड़ ने सबको हैरान कर दिया है। इस नए चुनावी समीकरण से मरवाही विधान सभा क्षेत्र में अब कुछ भी हो सकता है। भूपेश बघेल की प्रतिष्ठा को धक्का भी लग सकता है। इसकी वजह यह है कि अभी तक कांग्रेस ढाई घर से ज्यादा चलने का दावा कर रही थी लेकिन छजका के समर्थन से उठता हाथ ठिठक गया है।
बीजेपी को खुला समर्थन छजका मिलने से कांग्रेस के समक्ष दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो गई। गौरतलब है कि अमित जोगी और उनकी पत्नी ऋचा जोगी का नामांकन रद्द होने के बाद जोगी परिवार के पास कोई विकल्प नहीं रह गया था। यद्यपि ऋचा जोगी ने अपने जाति का मामला हाई कोर्ट में दायर कर दी हैं। विधायक रेणू जोगी मरवाही विधान सभा में अजीत जोगी की जीवनी की किताब लेकर सबसे न्याय करने की अपील कर रही थीं। लेकिन निर्वाचन अधिकारी ने उन्हें मरवाही विधान सभा के हाट बाजार आदि स्थानों पर जाने पर रोक लगा दी। इस आधार पर कि छजका का कोई भी उम्मीदवार चुनावी समर में नहंी है और न ही छजका किसी अन्य पार्टी का समर्थन कर रही है। इसलिए प्रचार जायज नहीं है।
राजनीतिक गलियारे में इस बात की आशंका थी कि मतदान से पहले छजका बीजेपी को समर्थन कर सकती थी। इस समर्थन के बाद से कांग्रेस खेमें में हलचल तेज हो गई है। वैसे भी आठ मंत्री और दस संसदीय सचिव इस विधान सभा में महीनों से डेरा डाले हुए थे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को तीन दिन दौरा करना पड़ा।  छजका के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने कहा है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भाजपा प्रत्याशी डॉ गम्भीर को जीताने का निर्णय लिया है। मैं पार्टी के नेताओं के निर्णय से सहमत हूँ।   मेरा मानना है कि वैचारिक रूप से क्षेत्रीय दल और राष्ट्रीय दल में स्थायी समझौता सम्भव नहीं है, बशर्ते कि राष्ट्रीय दल हमारी स्वराज की भावना का सम्मान करे। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब कांग्रेस ने मेरे स्वर्गीय पिता अजीत जोगी के अपमान को अपने प्रचार का मुख्य केंद्र बिंदु बना लिया है। मेरे परिवार को चुनाव के मैदान से छलपूर्वक बाहर किया गया है। ऐसी परिस्थिति में मुझे मेरे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का निर्णय स्वाभाविक और सर्वमान्य लगता है।  
छजका बीजेपी की बी टीम
मरवाही उपचुनाव में जनता कांग्रेस के भाजपा को समर्थन दिए जाने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तंज कसते हुए कहा कि भाजपा और जोगी कांग्रेस के बीच पहले से गठबंधन रहा है। हम तो पहले ही कहते रहे हैं कि छजका भाजपा की बी टीम है। यह सब लोग जानते थे कि इनके बीच सालों से गठबंधन है। लेकिन पहली बार खुले में स्वीकार किए हैं। रमन सिंह स्वीकार किए,अब अमित जोगी भी स्वीकार कर रहे हैं।
कांग्रेस प्रत्याशी नोट बांटे
इस चुनाव में विपक्ष और सत्ता पक्ष एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। इस बीच छजका के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने सोशल मीडिया में एक फोटो शेयर की। जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी डॉ के के धु्रव भाजपा के झंडे के सामने बैठ कर खुलेआम 2000 के नोटों की गड्डी बांट रहे हैं। जाहिर है कि कांग्रेस इस चुनाव को जीतना अपनी प्रतिष्ठा बना ली है। यही वजह है कि यहां की महिलाओं को लुभाने के लिए साड़ियांँ बांँटे जाने का वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हुआ। वीडियो मरवाही विधान सभा के झिरिया टोला गाँव का है। रेणू जोगी ने कहा,जब घोषणाएं काम नहीं आईं, तो साड़ी और शॉल का सहारा लेने लगे हैं। लेकिन मरवाही के लोग बिकाऊ नहीं हैं। इसकी शिकायत जिला निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर डोमन सिंह को करने के बाद भी वो चुप रहे।’’
चुनाव की दिशा बदली
बहरहाल छजका का अब भाजपा का समर्थन करने पर कांग्रेस कैसी रणनीति बनाती है इस पर सबकी नजर है। वहीं भाजपा को इस समर्थन से कितना लाभ मिलता है यह वक्त बतायेगा। गौरतलब है कि कांग्रेस पिछले दो माह से जनता कांग्रेस के छोटे बड़े नेताओं को अपनी तरफ मिला रही थी। वहीं भाजपा ने एक कदम आगे बढ़ते हुए पूरी छजका समर्थन हासिल कर चुनाव की दिशा बदल दी है। कांग्रेस को भी लगने लगा है कि बीजेपी पहले से कुछ और भारी हो गई है। वैसे पिछले दो माह से कांग्रेस के चुनाव प्रभारी जयसिंह अग्रवाल ने जो फिल्डिंग यहां की है, उससे कांग्रेस यहांँ दिखने लगी। अजीत जोगी के चुनाव लड़ने से यहां बीजेपी हमेशा दूसरे नम्बर पर रही है। अब जोगी की पार्टी का समर्थन बीजेपी को मिलने से कांग्रेस में हताशा बढ़ी है।   
रिकार्ड मतों से जीतेंगेः भूपेश
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने मरवाही उप चुनाव की कमान संभल रखी है। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का दावा है कि कांग्रेस यहांँ रिकार्ड मतो से जीत दर्ज करेगी। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह का दावा है कि मै वहाँं दो दिन रहा। वहाँं की तस्वीर बता रही है कि जनता में बीजेपी के प्रति भारी उत्साह है। मरवाही में आम आदमी का भाव केवल कांग्रेस को हराने का है। कांग्रेस की जमानत जब्त हो सकती है। मरवाही विधान सभा की जनता मरवाही में शराब, कटोरी, साड़ी, कंबल बांटने के बाद भी कांग्रेस को वोट नहीं करेगी।  
डील और सेटिंग के आरोप गलत
डाॅ रमन सिंह ने युगवार्ता से कहा कि कांग्रेस का आरोप बेबुनियाद है कि बीजेपी और छजका के बीच किसी तरह की डील हुई है। कांग्रेस की मरवाही विधान सभा में जमीन खिसक रही है, इसलिए वो झूठ और अफवाह का सहारा ले रही है। गांव-गांव में घूमकर रेणू जोगी जनता से मिल रहीं थीं। अजीत जोगी का अपमान हुआ तो वो बाहर आईं। वो अपने लिए वोट अपील नहीं कर रही थीं। कांग्रेस को हराने की उनकी अपली बताती है कि उनके मन की ब्यथा कैसी है।  
बीजेपी की जीत तय
डाॅ रमन सिंह ने कहा कि रेणू जोगू मरवाही विधान सभा में सुबह शाम जाकर वहां की जनता से न्याय मांग रही थीं। न्याय इस इस बात के लिए अजीत जोगी को अपमानित किया गया। उनके पोस्टर जलाए गए। जोगी परिवार को मरवाही से दूर किया गया। वो अपील कर रही थीं कि इस बार मरवाही की जनता कांग्रेस की जमानत जब्त कराए। इसका असर जनता पर पड़ेगा, भाजपा की जीत तय है। जाहिर सी बात है कि छजका के समर्थन से अब भाजपा मरवाही विधान सभा में अपना झंडा गड़ता देख रही है।
कांग्रेस डील करने में माहिर
नेता प्रतिपक्ष धरम लाल कौशिक ने कहा कई मतदाताओं का कहना था कि छजका को चाहिए कि वो बीजेपी का खुलकर समर्थन कर दे। ताकि लोग बीजेपी का खुलकर प्रचार करें। रहा सवाल कांग्रेस के आरोप का कि डील हुई है। वो ऐसा स्वयं करते हैं,ऐसा दूसरों को भी कहते हैं। कांग्रेस प्रदेश में डील ही तो कर रही है। शराब की डील, रेत की डील कर रही है। अब सीमेंट के दाम 40 रुपए बढ़ गए हैं। मरवाही में शराब, कटोरी, साड़ी, कंबल बांटा जा रहा है। चुनाव आयोग के सामने बात रखी है कि मरवाही में सत्ता का उपयोग हो सकता है।
यहां के एक मतदाता ने कहा कि यह चुनाव कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए जरूरी है जीतना है,अन्यथा कांग्रेस में उनके विरोधी और विपक्ष उन्हें नोच डालेंगे। बहरहाल चुनाव के नतीजो जो भी आएं लेकिन बीजेपी और छजका यह गठबंधन कांग्रेस के लिए आगामी विधान सभा चुनाव के लिए सिरदर्द साबित हो सकते हैं।
 

 
 
 

 


 

जोगी बिन मरवाही

             
मरवाही विधान सभा उप चुनाव से तय होगा कि भूपेश बघेल मुख्यमंत्री के रूप में राज्य में कितना लोकप्रिय हैं। अमित जोगी और उनकी पत्नी ऋचा जोगी का नामांकन रद्द होने से बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी मुकाबला है। पहली बार मरवाही विधान सभा के चुनावी समर में जोगी परिवार नहीं रहेगा। सवाल यह है कि, क्या कांग्रेस को मात देने, अमित जोगी बीजेपी का साथ देंगे? 


0 रमेश कुमार ‘रिपु’’
            छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा मरवाही विधान सभा उप चुनाव हारने या जीतने से। क्यों कि कांग्रेस के 68 विधायक हैं। राज्य में यह पहला उपचुनाव है। यह चुनाव तय करेगा कि भूपेश बघेल राज्य में कितना लोकप्रिय हैं। यदि कांग्रेस यह सीट हार जाती है, तो स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव को मौका मिल जाएगा कहने को कि, भूपेश बधेल की लोकप्रियता गिर गई है। अजीत जोगी की मृत्यु के बाद यह सीट खाली हुई है। राज्य बनने के बाद से अब तक मरवाही विधान सभा में जोगी परिवार का ही कब्जा था। यह पहला अवसर है, जब छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार अजीत जोगी के बिन चुनाव हो रहा है। भूपेश बघेल और अजीत जोगी के बीच 36 का सियासी रिश्ता था। अमित जोगी को कांग्रेस से निकाले जाने के बाद अजीत जोगी दूसरी पार्टी छजका बनाई। इस पार्टी के पांच विधायक थे। अब चार रह गए। छजका के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी हैं। मरवाही सीट खाली होने पर मुख्यमंत्री ने सारी व्यवस्था बना ली थी। मरवाही विधान सभा को प्रदेश का 29 वां जिला घोषित कर दिया। नगर पंचायत मरवाही को नगर पालिका बना दिया। पूरा प्रशासनिक अमला अपने मन माफिक तैनात कर दिया।
जोगी परिवार का नामांकन रद्द
अजीत जोगी दो दशक तक राजनीतिक आदिवासी बनकर राजनीति की। निधन के साथ ही उनकी जाति का मामला भी खत्म हो गया। भूपेश सरकार एक झटके में अमित जोगी की जाति के मामले का अंत कर दिया। मरवाही विधान सभा के उपचुनाव में अमित जोगी और उनकी पत्नी ऋचा जोगी का नामांकन जिला निर्वाचन अधिकारी ने रद्द कर दिया। अमित जोगी के नामांकन में आपत्ति कांग्रेस के अलावा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की ओर से उर्मिला मार्को और निर्दलीय प्रताप सिंह भानू ने की थी। तीनों ही के पास राज्य स्तरीय छानबीन समिति के उस आदेश की कॉपी थी, जिसमें अमित जोगी का जाति प्रमाण पत्र निरस्त किया गया था। 17 अक्टूबर को करीब दो घंटे चली दावा,आपत्ति पर सुनवाई के बाद रिटर्निंग आफिसर डोमन सिंह ने ऋचा जोगी का भी पर्चा रद्द करते हुए कहा,पर्चा विधि मान्य नहीं है। छानबीन समिति ने जांच में पाया कि उनके पास अनुसूचित जन जाति का वैध प्रमाण पत्र नहीं था। मुंगेली जिला की जाति सत्यापन समिति ने पत्नी ऋचा जोगी का प्रमाणपत्र निलंबित कर दिया है। मरवाही उप चुनाव के 19 प्रत्याशियों के नामांकन पर दावा आपत्ति की जाँच में सबसे ज्यादा समय अमित जोगी पर लगा। 120 मिनट चली बहस में अमित 90 मिनट बोले।

नकली आदिवासी थे जोगी
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा,‘‘ भाजपा ने नकली आदिवासी के मुद्दे पर चुनाव लड़ा और सत्ता में आए। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने जाति मामले में पूरे 15 साल लगा दिए और उसी के दम पर सत्ता हासिल की। जोगी की जाति के संबंध में उनकी ही शिकायत थी। सभी जानते हैं कि किस प्रकार से उनकी जुगलबंदी रही है। अनुसूचित जनजाति के नाम पर बहुत से लोग फर्जी सर्टिफिकेट बनाकर नौकरी करते हैं। शिकायत होती है, तो स्टे लेकर सालों तक फायदा उठाते रहते हैं। अब फैसला आया, तो भाजपा को इसका स्वागत करना चाहिए।‘‘
यह षडयंत्र हैः डाॅ रमन
पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह ने कहा कि षडयंत्र के तहत अमित जोगी का नामांकन रद्द किया गया है।  18 अक्टूबर को अमित जोगी ने फैसला किया कि वे मरवाही विधान सभा में न्याय यात्रा निकालेंगे। उन्होंने कहा मुझे पूरा विश्वास है की मरवाही अजित जोगी और उनके परिवार के साथ हो रहे इस अन्याय के खिलाफ न्याय जरूर करेगा। कुछ लोग इस गलत फहमी मे हैं की जोगी परिवार को चुनाव लड़ने से रोक कर, उन्होंने जोगी परिवार को खत्म कर दिया है। पर मैं उन्हें कह देना चाहता हूँ की ये पिक्चर का अन्त नहीं है, पिक्चर अभी बाकी है। वहीं विधायक रेणू जोगी अपने एक वीडियो में लोगों से कह रही हैं बेटे अमित जोगी को नामांकन साजिश के तहत रद्द किया गया है। अन्याय हुआ है। अब आप लोगों को बदला लेना है।  
एससी थे अजीत जोगी के पिता
पूर्व गृह मंत्री ननकीराम कंवर कहते हैं अजीत जोगी जिस महिला को अपनी मांँ बताया करते थे, वह उनकी वास्तविक माँं नहीं थी। जोगीसार गांँव का जब मै प्रभारी था, दौरा किया करता था। जिसे वे अपनी माँं बताते थे उसके पिता ने बताया था कि इसकी शादी नहीं हुई है। यानी जोगी कंवर जाति के नहीं थे। अजीत जोगी के पिताजी अनुसूचित जाति के थे। सतनामी या कोई दूसरे जाति के। इसलिए भी उस समय भी ज्यादा कुछ नहीं बोला क्यों कि कोर्ट में मामला चल रहा था। अब जाति प्रमाण पत्र निरस्त हुआ है, तो मेरे हिसाब से सही हुआ है। आज भी मैं कह सकता हूंँ कि, वे कंवर ब्लड के है ही नहीं। वैसे जोगी सरनेम कंवर जाति में नहीं होता है। उनके पिताजी अनुसूचित जाति की थी।   
पूरा सरकारी तंत्र मरवाही में
इस समय आधा दर्जन मंत्री और संसदीय सचिव से लेकर पूरा प्रशासनिक अमला मरवाही विधान सभा में डेरा जमाए हुए है। अमित जोगी का नामांकन खारिज होने के बाद, अब बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर हैं। मरवाही विधान सभा उपचुनाव से कांग्रेस की टिकट से डाॅक्टर डाॅ कृष्ण कुमार धु्रव और बीजेपी से डाॅ गंभीर सिंह हंै। तीन नवम्बर को मतदान है। 10 नवम्बर को परिणाम आयेगा। भाजपा जहांँ पहले चुनाव में पिछे चल रही थी, अचानक से सामने आ गई।  अब लड़ाई कांग्रेस और भाजपा में आमने सामने की हो गई। वैसे इस समय सबसे चर्चा का विषय जनता कांग्रेस के दिग्गज नेता धरमजीत सिंह को लेकर हो रही है कि, आखिर वो हैं कहां। वहीं भूपेश बधेल डाॅ के के सिंह का नामांकन भरवाने आए, लेकिन टीएस सिंह देव नहीं आए। उन्हें इस चुनाव से दूर रखा गया है।
रेणू की अपील बेकार गई
मरवाही विधान सभा में छजका के कार्यकत्र्ता बहुत हैं। आदिवासी समाज के लोग हैं। अमित जोगी  भावानात्मक कार्ड खेल सकते हैं। जिला बनने से लोग खुश हैं लेकिन, अमित जोगी का नामांकन खारिज होने से नाराजगी भी देखी जा रही है। इससे पहले रेणू जोगी ने अपील की थी कि, कांग्रेस को अपना उम्मीदवार मरवाही में नहीं खड़ा करना चाहिए। जिस तरह यूपी में सपा और बसपा सोनिया गांधी के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं उतारती है। वैसा ही यहां भी करना चाहिए। भूपेश बघेल कहना था कि इस मामले पर निर्णय पार्टी हाईकमान ही ले सकता है,हम नहीं।
अर्चना कांग्रेस में शामिल
मरवाही उपचुनाव से पहले भाजपा को बड़ा झटका लगा है। भाजपा के पूर्व विधायक प्रत्याशी रही अर्चना पोर्ते और ध्यान सिंह पोर्ते कांग्रेस में शामिल हो गई हैं। साल 2018 में अर्चना पोर्ते ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ चुनाव लड़ी थीं। दूसरे नंबर पर थी भाजपा 2008 में। ध्यान सिंह पोर्ते भी भाजपा प्रत्याशी रह चुके हैं। अर्चना पोर्ते ने कहा, कुछ लोग 20 साल से आदिवासियों का हक और अधिकार छीनकर बैठे थे। लेकिन उन्होंने 20 साल से मरवाही का विकास नहीं किया। मरवाही की जनता के बारे में नहीं सोचा। इन लोगों ने जज्बातों से खेला, उन्हें ठगा। इस चुनाव में उन्हें मरवाही से बाहर करेंगे।
बहरहाल कांग्रेस विकास कार्य और जिला बनाने के दम पर, तो भाजपा कांग्रेस सरकार की विफलता को लेकर जनता के बीच है। कांग्रेस वहांँ पूरी ताकत झोंक दी है जबकि, भाजपा किसी भी तरह नहीं चाहेगी की कांग्रेस वहांँ जीत दर्ज करे। सवाल यह है कि अमित जोगी अपनी न्याय यात्रा के जरिये जनता से बदला लेने के लिए किसे वोट देने की अपील करेंगे? सबकी नजर है। वैसे वे सार्वजनिक रूप से बीजेपी को वोट देने की अपील नहीं करेंगे। लेकिन इसकी संभावना ज्यादा है कि, वे बीजेपी को वोट देने की गोपनीय तरीके से बात कर सकते है










 

 
 
 

 

 
 

 
 

कहीं भी सुरक्षित नहीं महिलाएं


प्रदेश में यौन अपराध चिंताजनक रफ्तार से बढ़ रहे हैं। कुछ ऐसी घटनाएं हंै जो खौफनाक सच्चाई को उजागर कर रहे हैं। शहरों में भी अब महिलाएं पुरूषों के हवस का आसान शिकार हैं। फिर भी कांग्रेस के मंत्री दावा करते हैं उनके यहां का गैंगरेप हाथरस जैसा नहीं है। स्पष्ट है कि कांग्रेस की मानसिकता में बदलाव की जरूरत है। पिछले नौ माह में डेढ़ हजार रेप की घटनाएं बता रही हैं कि छत्तीसगढ़ रेप स्टेट बन गया है।  


0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
            छत्तीसगढ़ में बढ़ते यौन अपराध ने कांग्रेस सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुई घटना को लेकर कांग्रेस ने प्रदर्शन किया। लेकिन बलरामपुर,कांेडागांव और जशपुर की गंभीर घटना पर कांग्रेस चुप्पी साध ली। जबकि पिछले नौ माह में छत्तीसगढ़ में डेढ़ हजार से अधिक दुष्कर्म की घटनाएं घटी। हैरान करने वाली बात है कि जांजगीर चांपा के कलेक्टर जनक प्रासद पाठक काम का लालच देकर एक महिला का यौन शोषण करते रहे। उस महिला को काम नहीं मिलने पर वह कलेक्टर जगन से दूरी बना ली। लेकिन वो उसके मोबाइल पर अश्लील मैसेज, वीडियो लगातार भेजते रहे। उसे प्रताड़ित करने के लिए उन्होंने धमकी दी, यदि उनसे नहीं मिली तो उसके पति को बर्खास्त कर देंगे। 15 मई 2020 को उनके आॅफिस में मिली। वहां उन्होंने उसके साथ दुष्कर्म किया। उसकी शिकायत पर पुलिस ने उनके खिलाफ धारा  376, 506 509 ख के तहत मामला दर्ज की। जाहिर सी बात ऐसी घटनाओं में बड़े लोगों को बचाने के लिए कई रास्ते निकल आते हैं।
 थाना प्रभारी रेपिस्ट निकला
अपने पद और ताकत का इस्तेमाल महिलाओं पर करने वाले सिर्फ कलेक्टर ही नहीं,गलत दुरूप्रयोग पुलिस अफसर भी करते हैं। पत्थगांव में थाना प्रभारी रहते हुए ओम प्रकाश धु्रव ने एक महिला को शादी का झांसा देकर उसका यौन शोषण करते रहे। उनके खिलाफ महिला ने कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करा दी। निलंबित होने पर एक साल से वे फरार थे। रायगढ़ एस. पी संतोष कुमार ने मामले की जांच की। रायगढ़ जिला न्यायालय ने 16 अक्टूबर को सरेंडर करने पर उन्हें जेल भेज दिया।
यहां का गंैगरेप भयावह नहीं
हैरानी वाली बात है कि गैंगरेप की घटनाओं की तुलना करते हुए नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डेहरिया ने कहा कि, हाथरस की घटना की तुलना में बलरामपुर में हुई घटना कम गंभीर है। सवाल यह है कि क्या गैग रेप की घटनाओं की तुलना करनी चाहिए? गौरतलब है कि बलरामपुर के वाड्रफनगर इलाके में 19 सितम्बर को एक नाबालिग लड़की को नशीली गोलियांँ खिलाकर उसके साथ दुष्कर्म किया गया। चाइल्ड लाइन के समन्वयक महेंद्र को उसने काउंसलिंग में दुष्कर्म की जानकारी दी। आरोपी जयप्रकाश अगरिया को गिरफ्तारी के बाद दूसरे आरोपी की शिनाख्ती परेड कराई गई। जिसमें घनश्याम की शिनाख्ती हुई। नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार के खिलाफ भाजपा ने वाड्रफनगर पुलिस चैकी के सामने विरोध दर्ज कराते हुए गांधी जयंती मनाई। भाजपा ने कहा है कि पुलिस आरोपी को बचाने के लिए पीड़िता की मेडिकल जांच में लेट,लतीफी की। भाजपा ने पीड़िता को 10 लाख मुआवजा देने की मांग की। वहीं स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने पीड़िता के पिता से कहा, सरकार पीड़िता के पढ़ने का सारा खर्चा उठाएगी। आप चाहें तो उसे रायपुर में भी पढ़ा सकते हैं।’’
रेपिस्ट को बचाने सौदा
ऐसे अपराध से पता चलता है समाज में गिरावट पहले से अधिक आई है। रेपिस्टों को बचाने पुलिस  सौदा करती है। जैसा कि कोंडागांव जिले के धनौरा थाना क्षेत्र के ओड़ागांव में एक युवती के साथ सात लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। दो माह पहले वह अपने मामा के यहां शादी में अपनी सहेली के साथ गई थी। देर रात आरोपी उसे उठा ले गए जंगल। वहाँं उसके साथ गैंग रेप किया। वापस लौटने पर उसने अपनी सहेली को बताया। घटना के बाद युवती के परिजन पुलिस के चक्कर लगाते रहे लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं हुई। इस बीच 4 अक्टूबर को युवती के पिता ने आत्महत्या की कोशिश की। पिता का कहना था कि वह अपनी बेटी को न्याय नहीं दिला पा रहे थे,इसलिए दुखी होकर आत्महत्या करने जा रहे थे।
कब्र से निकाला शव
ओड़ागांव की सरपंच संगीता नाग ने दावा किया कि पीड़िता की आत्महत्या के 15 दिनों बाद मामले को लेकर दो आरोपियों के परिजनों को पूछताछ के लिए थाना बुलाया गया था। इस दौरान थाने में गांँव के कुछ अन्य लोगों की मौजूदगी में परिजनों और थाना प्रभारी के बीच लेने देन की बात हुई थी। बड़ी रकम मांगे जाने पर डील पक्की नहीं हुई। थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया है। पीड़िता के सुसाइड मामले पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य यशवंत जैन ने एस.पी को पत्र लिखकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा। युवती के शव को कब्र से निकाल कर  पी.एम मेकाहारा के फारेंसिक डिपार्टमेंट के डाॅक्टरों ने किया है।
दुष्कर्म के मामलों में इजाफा इस बात का संकेत है कि गांव हो या फिर शहरी आबादी दोनों जगह बदलाव केवल दिखावटी है। लोग कितने भी रईस हों,अच्छे कपड़े पहनें,अच्छी गाड़ियों में चलें लेकिन, उनके व्यवहार में संकीर्णता बनी रहती है। शादी,बर्थडे पार्टी और अन्य आयोजनों में बलात्कार जैसे अपराध ज्यादातर होते हैं।
नौ माह में डेढ़ हजार रेप
छत्तीसगढ़ में महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध परेशान करने वाले हैं। महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, जबरन सहवास, छेड़छाड़,कपड़े खींच कर बेइज्जत करना जैसे अपराध में इजाफा हो रहा है।  राज्य में एक जनवरी 2019 से 31 जनवरी 2020 तक बलात्कार के 2575 मामले दर्ज किए गए हैं। राज्य के रायपुर जिले में सबसे अधिक 301 मामले, रायगढ़ जिले में 196, बिलासपुर में 144,सरगुजा में 139,सूरजपुर में 132, जशपुर में 123, बलौदबाजार में 123, बस्तर में 115, कोरिया में 114, बलरामपुर में 112 और कोरबा जिले में 102 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह का आरोप है कि पिछले नौ माह में डेढ़ हजार दुष्कर्म की घटनाएं प्रदेश में घटी। गैंगरेप के बढ़ते मामलों पर सी.एम. बघेल के साथ चर्चा के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को छत्तीसगढ़ आना चाहिए। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा प्रदेश की बेटियां बस्तर से बलरामपुर तक कहीं भी सुरक्षित नहीं ये कैसा नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने चले हैं। छत्तीसगढ़ के हर जिले में प्रतिदिन एक बलात्कार हो रहा है। हम राहुल गांधी को छत्तीसगढ़ आमंत्रित करते हैं।
इनामी रेपिस्ट बिहार में पकड़ाया
सीतामढ़ी बिहार निवासी बेचूराम रायपुर में काम कर रहा था। इस दौरान अगस्त 2016 में मंदिरहसौद निवासी 14 साल की किशोरी को शादी का झांसा देकर भगा ले गया। किशोरी के गायब होने पर परिजनों ने गुमशुदगी दर्ज कराई। आरोपी करीब 4 माह बाद दिसंबर में किशोरी को रायपुर रेलवे स्टेशन पर छोड़कर भाग निकला। रायपुर एसएसपी अजय यादव ने बिहार पुलिस से संपर्क किया और आरोपी को उसके गाँव से गिरफ्तार किया।
खुद के प्रदेश की चिंता नहीं
उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 साल की युवती से दुष्कर्म और हत्या के विरोध में कांग्रेस ने रायपुर में मौन प्रदर्शन किया। लेकिन उनके राज्य में हो रहे गैग रेप का उन्हें अफसोस नहीं है। जशपुर जिले में 9 अक्टूबर को 19 वर्षीय लड़की अपने रिश्तेदारों के यहांँ से लौट रही थी। आरोपी 33 वर्षीय अरूण लकड़ा, 37 वर्षीय सुशील चैहान,और फिरोज बेक ने उसका अपहरण कर उसके साथ गैंग रेप किया। पीड़िता सुबह गाँव के बाहर बिहोश मिली। उसकी मेडिकल जाँच के बाद तीनों आरोपियों के खिलाफ मामला पंजीबद्ध किया गया है।
ऐसी घटनाओं से एक बात साफ है कि बलात्कारी ज्यादातर जान पहचान वाले ही होते हैं। उन्हें लगता है कि कम उम्र की लड़कियों से रेप करने पर वो डर की वजह से किसी को बतायेंगी नहीं। समाज में एक बड़े सांस्कृतिक बदलाव की जरूरत है। जैसा कि कोरबा में एक पिता अपनी बेटी के साथ दुष्कर्म कर रहा था। हिम्मत जुटा कर उसने अपने पिता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। बढ़ता बलात्कार और बचते अपराधी से जाहिर है कि औरत कहीं महफूज नही हैं। प्रगतिशील समाज, अब भी औरत को अबला ही मानता है। जरूरी है राज्य सरकारों को अपने प्रदेश मंे यौन अपराध पर नकेल लगाने की दिशा में सोचना चाहिए।