0 उर्मिला मिश्रा
‘इश्क
की हरी पत्तियांँ’ की कहानियांँ इश्क़ के उन रंगों से परिचय कराती है,जो
दाम्पत्य जीवन के कैनवास के हिस्से बन गये हैं। जवाँं मन की तलहटी में
‘इश्क़ की हरी पत्तियाँ’ के बदलते रंग सवाल करते हैं, कि आखिर वो कौन सी वजह
है, कि अब औरत का भी मन मांगे मोर..! बदलती मान्याताओं के चलते दाम्पत्य
जीवन में इश्क़ के कई पेंच हैं। स्त्री-पुरुष के संबंधों को बहुत गहराई से
वरिष्ठ पत्रकार रमेश कुमार ‘रिपु’ ने उकेरा है। बदलती सभ्यता के दौर में
नई पीढ़ी के मन की भावनाओं का रंग बदल गया है,क्यों कि मुहब्बत की जुबाँ
बदल गई है।
संग्रह की
पन्द्रह कहानी अलग-अलग मूड की है। और स्त्री पात्र बोल्ड और वर्जना रहित
हैं। क्यों कि वे मेट्रो सिटी की हैं,मगर संवेदनशील हैं। स्त्री-पुरुष के
रिश्तों के दोनों कगारों की भंगिमा के साथ संवाद मन मोह लेते हैं।
इश्क़-मुहब्बत के मामले में लगातार समाज में आ रहे बदलाव को रेखांकित करती
कहानियांँ,हांँफती नहीं। कहानी स्त्री विमर्श के दायरे में है ,इसलिए यह
कहानी संग्रह मूल्यांकन के लिए चुनौती से कम नहीं है।
पहली
कहानी ‘कितनी दूरियां’ में चाहत की ऐसी अभिव्यंजना है जो पढ़ते-पढ़ते सोचने
को विवश कर देती है,कि क्या मुहब्बत का भी कोई मजहब होता है? या मुहब्बत
खुद एक मजहब है..
! कहानी खत्म होते ही खुद ही सवाल
छोड़ देती है,मन की भावनाओं से देह की कितनी दूरियाँं होती हैं..? इतनी,जैसे
होंठ से लिपस्टिक। पांँवों से पायल और फूल से खुशबू! अपने से सात साल बड़ी
मुस्लिम लड़की को हिन्दू लड़का उसे रिझाने,मनाने,और प्यार के प्रति उसकी सोच
को बदलने कई जतन करता है। अपने टूटे प्यार को भूल कर इश्क की नई पत्तियां
चुने। साझा संस्कृति की यह कहानी बताती है,स्त्री मन से ताकतवर हो तो
मुहब्बत के लिए मजहब भी बदल सकती है।
‘एक
कतरा मुहब्बत’ बदलती शहरी सभ्यता में मुहब्बत की दास्तां है। युवा बेटी
मांँ से किये गये वायदे पर,अपने पिता की पूर्व प्रेमिका को उनसे मिलवाती
है। कहानी के कुछ संवाद दिल में जगह बना लेते हैं। ‘बहुत लोग जिन्दगी में
लघुकथा की तरह आते हैं और जब जाते हैं, तो उपन्यास की दास्तांँ छोड़ जाते
हैं।’ जब भी पत्नी से झगड़ा होता है,मर्दो को अपने पहले प्यार की बड़ी याद
आती है।’’
‘राइट
परसन,इश्क में खजुराहो होना,ज़िन्दगी की बैलेंस शीट,दूसरी मुहब्बत आदि
कहानियों को पढ़ने से ऐसा लगता है,मानो कामदेव ने कागज पर संवाद लिखे हों।
लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली लड़कियों के बड़े ख्वाब हैl 'बेशर्म दिल
'से पता चलता है
लीव इन रिलेशन शिप वाली लड़कियों की
जिन्दगी में ऐसा वक्त आता है,जब उनके पास सिर्फ तन्हाई रह जाती है। अपने
ब्वाॅय फ्रेंड को अपनी सहेली के पास भेज देती है। ताकि उसकी सहेली का दिल
उस पर आ जाये और वह किसी और पर डोरे डाल सके। ‘मचलती लहर’ इश्क की दुनिया
के रहस्मयी संसार की कथा है। जहांँ महबूबा चाहती है, कि उसके पति का मर्डर,
उसका प्रेमी कर दे,फिर सुकून से मुहब्बत की शैपेन प्रेमी के साथ पी सके।
यह एक थ्रीलर कहानी है। जिसमें रोमांच गजब का है।
‘दूसरी
मुहब्बत’ जैसी औरत समय रहते खुद को नहीं बदलती, तो उनके दाम्पत्य जीवन में
इश्क़ का रंग बेनूर हो जाता है। ‘मन का सावन’ दरकती वफ़ाओं के दंश की ऐसी
कहानी है,जिसमें युवती को कैंसर होने पर उसका भ्रम टूटता है,कि उसका पति उस
पर अपनी जान लुटाता है। बेस्ट फ्रेंड उसका इलाज कराता है। तब उसे माँ की
बातों पर यकीं होता है, कि बेस्ट फ्रेंड लाइफ पाटर्नर हों,तो जिन्दगी में
शिकायत का मौका नहीं मिलता।
यदि
पति बदल जाये तो पत्नी को कितना बदल जाना चाहिए..? दो दिलों में बढ़ते दरार
की अनोखी कहानी है ‘प्यार का रेश्मी धागा’। लेखक ने कहानी को जो भाषा दी
है,वह पति और पत्नी की भावनाओ को स्पर्श कराता है। ‘इश्क की हरी पत्तियांँ’
में एक औरत दूसरी औरत को माँ बनने के लिए जो रास्ता सुझाती है,वह पुरुष
सत्ता के समक्ष यक्ष प्रश्न है। कोख औरत की है, तो उसकी कोख में किसका
बच्चा पलेगा, क्या यह फैसला लेने का हक उसे नहीं मिलना चाहिए..?
बदलते
समय में मेट्रो सिटी की नई सभ्यता की तस्वीर ‘फिर रोये रंग’ में है। गाँव
की मासूम लड़की को शातिर युवक अभिनेत्री बनवा देने का सब्ज बाग दिखाकर उसे
मुंबई में लाकर न्यूड माॅडल बना देता है। संयोग से उसका सामना अपने प्रेमी
से न्यूड माॅडल के रूप में होता है। दरअसल मुहब्बत में कुछ सांसे जिंदा लाश
हो जाती हैं। और ऐसी लाशों की गिनती कभी इंसानों में नहीं होती। रंगो की
भाषा में संवाद,दिल में उतर जाते हैं। मुहब्बत है तो दुनिया है। मंगर एक सच
यह भी है,कि मुहब्बत न होती, तो कुछ भी न होता।
कहानी की लिखावट और बुनावट उन पाठकों को ज्यादा पसंद आयेगी,जो स्त्री विमर्श की नई तपिश और नई भाषा के दीवाने हैं।
लेखक- रमेश कुमार ‘रिपु’
कीमत - 228 रुपये
प्रकाशक - प्रलेक प्रकाशन, मुंबई