Wednesday, January 17, 2024

राम मंदिर से किसे मिलेगी मात और किसे सौगात

"क्या मान लिया जाए कि अयोध्या से इस बार खुलेगा दिल्ली का द्वार। इसीलिए बीजेपी बोल रही है,अबकि बार चार सौ के पार। राम नाम से यदि सत्ता का कमल खिलता है,तो फिर बाबरी मस्जिद गिरने पर कल्याण की सरकार की वापसी होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर भी इंडिया गठबंधन राम मंदिर के उद्घाटन से डरा हुआ है। उसे लगता है सियासी इवेंट बताने से आस्था का आवेग रूक जाएगा। जबकि यह दौर धर्म की राजनीति का है। और बीजेपी भी,मोदी के दौर की है। 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ धर्म की राजनीति या फिर राजनीति का धर्म। यह सवाल एक बार फिर हवा में है। राम के नाम पर राजनीति या फिर राजनीति राम पर। राम का सियासीकरण या फिर राम मय भारत। विपक्ष का आरोप है,कि राम के आसरे बीजेपी देश की सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को बदलना चाहती है। राम का राजनीतिकरण कर रही है। रामलला के उद्घाटन को सियासी इवेंट बना दिया है। जबकि इस देश में राम के प्रति आस्था रखने वालों के लिए राम मंदिर, धार्मिक भावना है। जब राम मंदिर नहीं बना था,तब विपक्ष कहता था बीजेपी वाले राम मंदिर बनाएंगे,मगर तारीख नहीं बताएंगे। अब जब 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के उद्घाटन का दिन निहित हो गया तो इसे इंडिया गठबंधन सियासी इवेंट कह रहा है। दरअसल राम मंदिर को लेकर विपक्ष में एक सियासी खौफ है। कहीं धर्म की राजनीति हावी न हो जाए 2024 के चुनाव में। इंडिया गठबंघन की बातें और उनके डर से,क्या यह मान लिया जाए कि अयोध्या से इस बार खुलेगा दिल्ली का द्वार। इसीलिए बीजेपी बोल रही है, अबकि बार चार सौ के पार। राम नाम से यदि सत्ता का कमल खिलता है,तो फिर बाबरी मस्जिद गिरने पर कल्याण की सरकार की वापसी होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इंडिया गठबंधन को लगता है,राम मंदिर के उद्घाटन सियासी इवेंट बताने से आस्था का आवेग रूक जाएगा। जबकि यह दौर धर्म की राजनीति का है। मंदिर का है। और बीजेपी भी,मोदी के दौर की है। राम के आसरे.. बीजेपी का हिन्दू और हिन्दुत्व दोनों नये दौर में उफान पर है। यही परिदृश्य सन् 1980 में शिवसेना को लेकर था। उसे हिन्दू राजनीति वाली पार्टी मान लिया गया था। लेकिन अब वो इंडिया गठबंधन में है। बाल ठाकरे जिस मकसद से शिवसेना का गठन किया था,अब वो मकसद गुम हो गया। बीजेपी हिन्दू राजनीति के घोड़े पर सवार है। इसलिए मोदी कह रहे हैं,देश के 140 करोड़ देशवासियों 22 जनवरी को जब अयोध्या में रामलला विराज रहे हों, तब अपने-अपने घरों में राम ज्योति जलाएं। खुद को नयी ऊर्जा से भरना है। जाहिर है कि, बीजेपी राम के आसरे 2024 का चुनाव जीतना चाहती है। यानी यह मान लिया जाए कि 22 जनवरी के बाद देश देश का राजनीतिक मंजर बदल जाएगा । राजनीति का धर्म भी बदल जाएगा । कहा यही जा रहा है कि यह दौर आस्था का है। मंदिर का है। धर्म की राजनीति का है। तभी तो विपक्ष के 146 सांसदों को निलंबित कर दिये जाने के बाद भी, देश में एक आवाज तक नहीं उठी। सिवाय विपक्ष के। तमिलनाडु में सनातन को लेकर बवाल मचा हुआ है। मोदी गुजरात से आकर बनारस में चुनाव लड़ सकते हैं,तो फिर रामेश्वरम से क्यों नहीं। दक्षिण को साधना भी है। क्यों कि बीजेपी को राम के आसरे अपनी हिदुत्व की परिभाषा भी बदलना है।़ आदिवसियों में नया नारा.. सवाल यह है कि क्या बीजेपी राम के आसरे पश्चिम बंगाल,महाराष्ट्र और बिहार को साधेगी। देश में हिन्दू राष्ट्र का शोर विपक्ष मचा रहा है। वहीं आदिवासियों के भीतर एक नारा उठ रहा है। कुल देवी तुम जाग जाओ। धार्मातरण तुम भाग जाओ। जो भोले नाथ का नहीं, वो हमारी जाति का नहीं। जाहिर सी बात है कि मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,झारखंड,ओड़िसा,राजस्थान और त्रिपुरा आदि राज्यों में आदिवासियों को प्रभावित करने वाला नारा अपनी एक अलग पहचान बना रहा है। मणिपुर के धार्मिक स्थलों में आग लगाए जा रहे हैं। आदिवासियों को अपनी ओर खीचने के लिए। वहीं हिन्दी पट्टी को बीजेपी अपने रंग में रंगना चाहती है। राम के आसरे वह कितने राज्यों को जीत लेगी,स्वयं बीजेपी भी नहीं जानती। राजनीति में व्यापक बदलाव.. भारत की राजनीति में व्यापक बदलाव आया है। तीन राज्यों में बीजेपी की जीत ने राजनीति की करवट बदल दी। देश का मिजाज बता रहा है,कि लोकसभा चुनाव में राम बाण विपक्ष पर चलेगा। राम मंदिर के उद्घाटन का न्यौता मिलने पर विपक्ष खिलाफत करके बीजेपी के हिन्दुत्व उभार को और बढ़ा दिया है। यह कोई नयी बात नहीं है। सावरकर के समय से हिन्दुत्व की हवा बह रही है। विहिप ने 1980 में आयोध्या का आंदोलन किया था। अशोक सिंघल ने अपने हाथ से विश्वहिन्दू परिषद गठन किया था। उस समय बीजेपी ऐसी नहीं थी,जिस तरह मोदी के दौर में है। विहिप का राम आंदोलन आज आस्था में तब्दील हो गया है। कमण्डल और रथ यात्रा से होती हुई राजनीति, आज धर्म में तब्दील हो गयी है। नयी सियासत में धर्म की राजनीति का उदय हुआ है। यह कह सकते हैं, कि धर्म की राजनीति भी बदल गयी है। तीन राज्यों के चुनाव के नतीजे आने से पहले तक संघ बड़े पशोपश में था। अब उसे भी लगता है कि 2024 में हिन्दू राजनीति काम कर जाएगी। बीजेपी के समक्ष सवा लाख मंदिर बानाने का लक्ष्य है। मंदिर बीजेपी के लिए वोट बैंक बढ़ाने का मंत्र है। विपक्ष कह रहा है कि राम मंदिर एक बहाना है। बीजेपी का मकसद हिन्दू राष्ट्र बनाना है। ताकि भविष्य में फिर कभी विपक्ष में न लौट सके। अब मोदी के पीछे संघ.. मोदी ने बीजेपी की राजनीति का दिशा और दशा बदल दिए हैं। अब संघ को मोदी के पीछे -पीछे चलना पड़ेगा। शिवसेना एक मात्रा हिन्दू पार्टी थी वो भी अपना सियासी लिबास बदल कर इंडिया गठबंधन के शिविर में चली गयी। ऐसे में हिन्दुत्व पार्टी एक मात्र बीेजेपी है। हिन्दुत्व वोट का बंटवारा बीजेपी नहीं चाहती। इसलिए उसने उद्वव ठाकरे को न्यौता नहीं दिया। उद्वव को यह बात चुभ गयी। इसलिए उन्होंने कहा, कि राम किसी एक पार्टी के नहीं है। इस देश के हर हिन्दू के राम हैं।" एतराज नहीं होना चाहिए.. राहुल की न्याय यात्रा से कांग्रेस को वोट मिल सकता है,तो फिर राम मंदिर से बीजेपी के पक्ष में राजनीति के करवट बदलने पर एतराज क्यों? विरोध क्यों? खिलाफत क्यों? राम जब सबके हैं,तो इंडिया गठबंध को यह नहीं कहना चाहिए, कि राम के आसरे बीजेपी देश की राजनीति का मिजाज बदलना चाहती है। जिन्हें लगता है,कि बीजेपी न होती तो राम मंदिर न बनता, वो बीजेपी के साथ हो लेंगे। और जिन्हें लगता है,कि राम मंदिर बनने से देश का सामजिक परिदृष्य और सांस्कृतिक धारणाएं नहीं बदलेंगी,उन्हें विरोध नहीं करना चाहिए। अधूरे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा नहीं होनी चाहिए। प्राण प्रतिष्ठा का अधिकार साधु-संत और शंकराचार्यो का है। देश के प्रधान का नहीं। उनके तर्क से जो सहमत होंगे 2024 के चुनाव में उनके वोट किसी और को जाएंगे। जाहिर सी बात है कि राजनीति सिर्फ राम आसरे नहीं की जा सकती। मगर,मतदाता की सोच को कोई भी पार्टी नहीं बदल सकती।