Wednesday, September 23, 2020

कोविड की बाढ़,खतरे में जान


कोरोना के सक्रिय मरीजों के मामले में छत्तीसगढ़ ने देश के दूसरे राज्यों को पीछे छोड़ दिया है।   कोरोना पीड़ितों की संख्या 60 हजार से ऊपर हो गई है। कोविड इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में बेड नहीं है। कई प्राइवेट अस्पतालों के पास सुविधाएं नहीं है। वहीं संविदा स्वास्थ्य कर्मी 19 सितंबर से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर रहेंगे। करीब पांच सैकड़ा मौत के बीच मुख्यमंत्री का दावा कि कोरोना की आधी लड़ाई जीत गए हैं।  

 0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’

 











         

   छत्तीसगढ़ के जिला जांजगीर.चांपा निवासी संजय साहू कहते हैं,मार्च में प्रदेश सरकार   फ्रंट में आकर बड़े बड़े दावा कर रही थी। लेकिन अब स्थिति ठीक विपरीत है। राज्य के सरकारी अस्पताल के बेड से कई गुना कोरोना के मरीज हैं। अब मरीजों को बेड का इंतजार करना पड़ रहा है। यह शिकायत सिर्फ संजय साहू की नहीं, प्रदेश के हजारों कोविड मरीजों की है। टेस्ट रिपोर्ट पाॅजिटिव आने के बाद मरीजों को अस्पताल जाने की मनाही है।
सरकार का आदेश है बेड खाली होने पर मोबाइल पर सूचना आएगी और एबुलेंस ले जाएगी। अब प्राइवेट अस्पताल भी कोविड का इलाज कर सकेंगे। इलाज की दर भी तय कर दी गई है। ए,बी,सी तीन श्रेणियां बनाई गई है। राजधानी में 6200 से 17 हजार रुपए प्रतिदिन इलाज का खर्च है। सबसे ज्यादा खर्च ए.श्रेणी के शहर के लिए तय किया गया है। ए श्रेणी में 6, बी श्रेणी में 8 और सी.श्रेणी में 14 जिलों को रखा गया है।
एनएबीएच मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों में सामान्य मरीजों के इलाज के लिए 6200 रुपए प्रतिदिन का शुल्क तय किया गया है। वहीं एनएबीएच से गैर मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों के लिए सामान्य गंभीर और अति गंभीर मरीजों के इलाज के लिए प्रतिदिन 6200 रुपए से 10 हजार और 14 हजार रुपए शुल्क तय किया गया है। जाहिर है कि आम आदमी कोरोना का इलाज कराने की हैसियत नहीं रखता।
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि संक्रमितों को अस्पताल, एम्स और अंबेडकर हॉस्पिटल के आईसीयू में बेड नहीं मिल रहे। सरकार की महामारी से लड़ने इच्छा शक्ति कम है। प्रदेश में करीब 25 कोविड हास्पिटल हैं। निजी और शासकीय अस्पताल में केवल 11544 बिस्तर ही उपलब्ध हैं। राज्य में कोविड अस्पतालों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। पीड़ित परिवार इलाज के लिए भटक रहे हैं।’’  कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शुक्ला ने कहा, पूर्ववर्ती रमन सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं पर थोड़ा भी ध्यान दिया होता, कोरोना काल मे राज्य की स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने में इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती। जिला अस्पतालों उपस्वास्थ्य केंद्रों तक चिकित्सकों और पैरा मेडिकल स्टाॅफ की भर्तियां नहीं की डॉक्टरों के 75ः पद खाली थे और मेडिकल कालेजों तक मे विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्तियां नहीं कर पाये थे।  
जांजगीर चांपा सहित अनेक जिलों में अभी किसी भी प्राइवेट अस्पताल के संचालकों ने इलाज करने की सहमति नहीं दी है। जिले में कोविड मरीजों की संख्या 18 सौ पार हो गई है। जिले के अधिकांश प्राइवेट अस्पतालों में केवल एक ही इंट्रेस व एक्जिट गेट हैं। जबकि कोविड पेशेंट के आने,जाने के लिए अलग और स्टाफ के लिए अलग अलग रास्ते होना चाहिए। यह समस्या सिर्फ जांजगीर-चांपा जिले की नहीं,बल्कि प्रदेश के हर जिले की है।  
स्वास्थ्य कर्मी नाराज़
राज्य सरकार ने अपनेे चुनावी जन घोषणा पत्र में संविदा कर्मचारियों के नियमित करने का वादा किया  था। राज्य के सभी जिला चिकित्सालय,कोविड केयर सेंटर, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों,प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों,उपस्वास्थ्य केन्द्रों,ं सभी कार्यालयों में कर्मचारी 25 अगस्त से काली पट्टी लगाकर काम कर रहे थे। छत्तीसगढ़ प्रदेश कर्मचारी संघ के बैनर तले यह निर्णय लिया गया है कि राज्य के 13 हजार संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी नियमिती करण संबंधी मांगों को लेकर 19 सितंबर से हड़ताल पर चले जाएंगे। प्रदेश एनएचएम संघ अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से मिल चुके हैं। लेकिन कोई सार्थक आश्वासन नहीं मिला है। इस हड़ताल से कोरोना टेस्ट और इलाज प्रभावित होगा   प्रदेश एनएचएम संघ के महासचिव कौशलेश तिवारी कहते हैं,संविदा पदों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए थी किन्तु सरकार हमारी मांगांे को नजर अंदाज कर, वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग में 2100 पदों पर नियमित भर्ती कर रही है। जाहिर सी बात है कि सरकार का नजरिया ठीक नहीं है।’’  
आंगन बाड़ी क्यों खोल रहे हैं
प्रदेश में 60 हजार से ज्यादा कोरोना के मरीज हैं,इलाज की व्यवस्था नहीं है। ऐसे समय में सरकार ने 7 सितंबर को आंगनबाड़ी खोलने का आदेश दिया। पूर्व मंत्री एंव विधायक बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं सरकार 5 साल से कम उम्र के बच्चों एवं गर्भवती माताओं के साथ,साथ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की जिंदगी से खिलवाड़ करने पर तुली हुई है। शहर से लेकर गांव तक संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस काम के लिए ना तो उनके पास थर्मामीटर है और ना ही थर्मल स्कैनर है और ना ही उन्हें पीपीई किट दिया गया है। फिर भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को ऐसा निर्देश देकर सरकार उनकी जिंदगी से क्यों खिलवाड़ कर रही है?
छग कोरोना लड़ाई में पिछड़ा
कोविड को लेकर सबसे ज्यादा खराब स्थिति राजधानी रायपुर की है। स्वास्थ्य विभाग ने रोजाना 2400 सैंपल टेस्ट करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए कोविड जांच केंद्रों की संख्या भी बढ़ाई गई है लेकिन, समय और एंटीजन किट के अभाव में यह संभव नहीं हो पा रहा है। दूसरी ओर कोरोना की लड़ाई में छत्तीसगढ़ देश के सबसे खराब राज्यों में दूसरे पायदान पर है। राजधानी रायपुर की स्थिति कोरोना संक्रमण को लेकर बिगड़ती जा रही है। सबसे ज्यादा मरीज यहीं मिल रहे हैं और मौतों का आंकड़ा भी। आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश में अभी तक 77540 संक्रमित मिले हैं। इनमें से ठीक होने वालों की संख्या महज 21898 यानी रिकवरी रेट 45 फीसदी से कम है। इससे नीचे नार्थ ईस्ट का छोटा सा राज्य मेघालय है। 31 जुलाई तक कोरोना पॉजिटिव 9191 थे,लेकिनं 31 अगस्त तक आंकड़ा 31502 हो गया। ऐसा समझा रहा है कि सितंबर के अंत तक यह संख्या एक लाख के पार पहुंच सकती है। प्रदेश में हर 10 लाख की आबादी में 1097 पॉजिटिव मिल रहे। राष्ट्रीय स्तर पर यह संख्या 2801 है। अभी प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर 20280 टेस्ट हो रहे हैं। प्रदेश में टेस्ट पॉजिटिव रेट 5.4 फीसदी है जो कि राष्ट्रीय औसत का 8.6 फीसदी है।
समस्या यह भी
कोविड केयर सेंटर और कोविड अस्पताल में परिजनों को उनके मरीजों के स्वास्थ्य की जानकारी देने की व्यवस्था नहीं है। भिलाई के कोविड अस्पताल में न डिजिटल एक्सरे मशीन है। न ही सीटी स्कैन मशीन। एक्सरे फिल्म देखने विव बॉक्सेस भी नहीं है। आउट डेटेड कानवेंशनल एक्सरे मशीन लगाकर खानापूर्ति की जा रही है। प्रोटोकाल के अनुसार कोविड केयर सेंटर में आईसीयू डील करने के लिए परमानेंट निश्चेतना विशेषज्ञ और चेस्ट फिजिशियन,जनरल फिजिशियन नहीं हैं। पॉजिटिव मरीजों को ट्रेस कर अस्पताल पहुंचाने पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नहीं है। प्रोटोकाल के अनुसार गंभीर मरीजों को रेफर करने के लिए परमानेंट एंबुलेंस का काम 108 एंबुलेंस को दिया गया है। यहां तक की कोविड केयर सेंटर में भी परामानेंट एंबुलेंस नहीं है।
सरकारी अस्पताल में खुदकुशी
कोविड सेंटर में खाने की व्यवस्था को लेकर भारी शिकायत है ही, सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था चरम पर है। मरीजों का ध्यान नहीं दिये जाने की वजह से अस्पताल में ही खुदकुशी की वारदात हो रही है। मुंगली जिले के मातृ एवं शिशु अस्पताल लोरमी में बलौदाबाजार निवासी 47 वर्षीय अनिल जायसवाल कोरोना पाॅजीटिव था, ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है। सात सितम्बर से वह   अस्पताल में भर्ती था। तीन दिनों बाद मरीज वार्ड की खिड़की सेे अपने गमछे से फांसी लगाकर खुदकुशी कर लिया।  
बहरहाल इस बीमारी ने लोगों की जिन्दगी और आकांक्षाओं को बदल दिया है। वहीं सरकार से आम व्यक्ति को जो उम्मीदें थी, अब वो ध्वस्त हो गई है। रोजगार की किल्लत और वित्तीय अनिमितता से जूझ रहे प्रदेश के लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या है, कैसे कोविड से मुकाबला करें,इसलिए कि सरकार को लोगों की जान की परवाह नहीं है।
 
 
 

आदिवासियों की अनदेखी











पेशा कानून और पांँचवी अनुसूची का पालन करने की बजाए,भूपेश सरकार ग्राम सभा से फर्जी अनुमति पत्र के जरिये आदिवासियों की जमीन उद्योगपतियों को दे रही हैं। खनन में माओवादी रोड़ा न बन सकें,निजी कंपनियों को पुलिस का संरक्षण दिया गया है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में था,सरकार बनने पर फर्जी आरोप में बंद, आदिवासी रिहा किए जाएंगे। आदिवासियों के हितों की अनदेखी से अब भूपेश सरकार कटघेरे में है।  
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
              छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार लाल लड़ाकों को उनके गढ़ में कैसे मात देगी,अभी तक कोई योजना नहीं बना सकी है। जगदलपुर समेत बस्तर के शहरी इलाकों के एकदम करीब तक, नक्सलियों के बैनर,पोस्टर लगने का यह सीधा संकेत है कि, नक्सलियों का सामाजिक जीवन में और दबाव बढ़ने का खतरा बढ़ा है। पिछले बीस साल में 1769 निर्दोष आदिवासी ग्रामीणों की माओवादियों ने जानें ले ली। मगर, लाल गलियारे का दायरा कम नहीं हुआ। दंतेवाड़,बीजापुर और नारायणपुर में नक्सलियों के उत्पात में कोई कमी नहीं आई। अपने हितों की अनदेखी पर अब नाराज आदिवासी विरोध प्रदर्शन कर सरकार को उनके घोषणा पत्र की ओर ध्यान खींचा है। बस्तर संभाग की 12 सीटों को जीतने कांग्रेस ने, अपने घोंषणा पत्र में लिखा था कि,उनकी सरकार बनने पर जेल में बंद सभी    फर्जी नक्सलियों को रिहा कर दिया जाएगा। दो साल बाद भी भूपेश सरकार ने अपने घोंषणा पत्र की ओर ध्यान नहीं दिया।
आदिवासियों ने खोला मोर्चा
नक्सल और जंगल से जुड़े कई मामलों में आदिवासियों को फंसा कर जेलों में बंद किये जाने पर उनकी रिहाई की मांग को लेकर 14 सितम्बर को बड़ी तादाद में महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे नकुलनार, श्यामगिरि,पालनार इलाके में 50-100 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके पहुंचे थे। ये ग्रामीण सरकार से अपने परिवार या गाँव के लोगों को रिहा करने की मांग कर रहे थे। इस प्रदर्शन में सुकमा, बीजापुर,नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिले के हजारों ग्रामीण पैदल जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा जाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन दंतेवाड़ा से करीब 50 किलोमीटर पहले ही कुआकोंडा तहसील के श्यामगिरी गाँव में पुलिस जवानों ने इन्हें रोका और इनके साथ सख्ती से पेश आए। लाठी चार्ज में कई ग्रामीणों को चोटें आने पर जंगल और पहाड़ की ओर भाग गए। ग्रामीण आदिवासियों ने अपने नेताओं से संपर्क किया। दूसरे दिन अरविंद नेताम, सोनी सोरी और सुजीत कर्मा के नेेतृत्व में ग्रामीणों ने थाने का घेराव किया।  
ग्रामीणों की मांग
चुनाव से पहले कांग्रेस सरकार ने आश्वासन दिया था कि,फर्जी एनकाउंटर और फर्जी मुठभेड़ बंद होगी। निर्दोष आदीवासी बंदी और विचारधीन बंदी,कैदियों के रिहाई की जाएगी। सरकार की ओर से अनदेखी किए जाने से नाराज आदिवासियों ने अपनी प्रमुख माँंगों को लेकर सड़कों पर उतरे। इनकी मांँग है कि जेल में तीन साल से अधिक फर्जी नक्सली मामले में जेल काट रहे आदिवासी बंदियों को निशर्त रिहा किया जाए। आदिवासियों पर यूएपीए की धाराएं लगाना बंद किया जाए। कोरोना महामारी संकट से कैदियों का जान बचाने के लिए जमानत पर तुरंत रिहा किया जाये। जेल में बंद कैदियों को उनके परिवार वालो से मित्रो से मुलाकात करने का मौका देना चाहिए और उन्हें जरूरतमंद सामान दिया जाए। जेल में क्षमता के अनुरूप ही कैदियों को रखा जाए। जेल में अपनी समस्या बता रहे कैदियों को बर्बर तरीके से पीटा जा रहा है, इस गैर कानूनी अमानवीय कृत्य को रोकना जाए। पेशा कानून और पांचवीं अनुसूची का पालन किया जाए। शिक्षा और स्वस्थ्य विकास की मांग को पूरा किया जाए। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि, पटनायक समिति के माध्यम से छोटे,छोटे प्रकरणों में जेल में बंद आदिवासियों की रिहाई के लिए कार्रवाई का आदेश दिया गया है। पटनायक समिति के समक्ष 625 प्रकरण प्रस्तुत किए गए थे। जिनमें 404 प्रकरणों में समिति ने अनुशंसा की है। न्यायालय से 206 प्रकरण निराकृत किए गए हैं।‘‘  
आर,पार की लड़ाई लड़ेंगे: सोरी  
रिहाई मंच की प्रमुख सोनी सोरी ने बताया,‘‘पुलिस ने प्रदर्शन में शामिल कई ग्रामीणों को बर्बरता से मारा,पीटा है। हम खाली हाथ ही आये थे। क्योंकि हम सिर्फ सरकार से बात करना चाहते थे। मगर वो भी हमें नहीं करने दिया गया और हम लोगों को बुरी तरह खदेड़ा गया। घायल ग्रामीणों को देखकर इस बार हमें मजबूरन लौटना पड़ रहा है। मगर हमने हार नहीं मानी है। अगली बार हम सरकार से आर,पार की लड़ाई लड़ेंगे।‘‘
खनन के ठेका का विरोध  
भूपेश बघेल सरकार आदिवासियों के हितों की जगह उद्योगपतियों को ज्यादा तरजीह दीे रही है। जैसा कि दंतेवाड़ा के गुमियापाल पंचायत के आश्रित ग्राम आलनार के पहाड़ में लौह अयस्क की खदान है। जिसे आरती स्पंज आयरन कम्पनी को खनन के लिए दिया गया है। नक्सली गतिविधियों की वजह से   आरती स्पंज आयरन कम्पनी अब तक लौह अयस्क का खनन नहीं कर सकी है। कंपनी के खनन में आदिवासी रोड़ा न बनें,इसलिए सरकार ने गुमियापाल में पुलिस का नया कैंप स्थापित किया है।   ग्रामीणों ने कहा कि सुरक्षाबलों का काम, हमारी सुरक्षा करना है लेकिन,इनसे बड़ी कंपिनयों के लिए जमीन अधीग्रहण का काम लिया जा रहा है। बैलाडीला क्षेत्र के ग्रामीण माइंस और जमीन अधिग्रहण का विरोध करते हुए हजारों ग्रामीण किरंदुल थाना क्षेत्र के ग्राम गुमियापाल में इकट्ठे हुए। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन वास्तविक ग्रामसभा की बजाए, फर्जी तरीके से ग्राम सभा करके, लौह अयस्क खनन के अलावा दूसरे काम भी कर रहे हैं। जनपद सदस्य राजू भास्कर ने कहा कि ग्रामीणों की मांँग है कि आलनार ग्रामसभा को भी हिरोली की तरह शून्य घोषित कर आरती स्पंज आयरन कंपनी को दी गई लीज को निरस्त किया जाए।
फर्जी ग्रामीण सभा
ग्रामीणों के मुताबिक पूर्व में हिरोली की ग्रामसभा आखिर फर्जी साबित हुई और आलनार ग्रामसभा की स्थिति भी वैसी ही है। पूरे बस्तर सभंग में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244(1) पांचवीं अनुसूची लागू है। इसके बावजूद ग्रामसभा की अनुमति लिए बगैर गांँवों के जमीन का अधिग्रहण कर सरकार लीज पर दे रही है। यह आदिवासियों के अधिकार पर प्रहार है।  
आदिवासी युवाओं को मिलेगी वर्दी
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सलवा जुडूम की तर्ज पर बस्तर विशेष बल के गठन का निर्देश दिए हैं। इस विशेष बल में बस्तर के संवेदनशील क्षेत्रों की ग्राम पंचायतों के स्थानीय युवाओं को भर्ती किया जाएगा। भूपेश सरकार इसे नक्लवाद के खात्मे के लिए एक बड़ा प्लान मानती है। बस्तर अंचल की कठिन भौगोलिक परिस्थितियां और स्थानीय भाषा की जानकारी पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है। मुख्यमंत्री का तर्क है कि अंदरूनी गांँवों के युवाओं को भर्ती करने से पुलिस का काम आसान हो जाएगा। जाहिर सी बात है कि एक तरफ नक्सली आदिवासी दूसरी तरफ पुलिस आदिवासी। दोनों एक दूसरे के सीने में गोली दागेंगे।
आदिवासियों की अनदेखीः  संजय
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि नक्सली उन्मूलन के लिए लगभग दो साल में भी कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई जा सकी है। नक्सलियों के प्रति प्रदेश सरकार का नरम रुख कई संदेह और सवाल खड़े कर रहा है। रिहाई की मांग को लेकर नक्सलियों के दबाव से जूझती प्रदेश सरकार इन लोगों की रिहाई से जुड़ी तकनीकी दिक्कतों को लेकर हिचकिचा रही है, और खुद की परेशानी से बचने के लिए अब नक्सलियों से अपनी मित्रता निभाती दिख रही है।’’  
बस्तर पुलिस का प्रति प्रचार युद्ध   
पुलिस महानिरीक्षक बस्तर रेंज सुंदरराज पी. का मानना है कि माओवादियों के विकास विरोधी एंव जन विरोधी का चेहरा उजागर होना जरूरी है। इसलिए उनके खिलाफ प्रति प्रचार युद्ध किया जा रहा है। क्षेत्रीय बोली और भाषा में बैनर पोस्टर, लघु चलचित्र, ऑडियों क्लिप, नाच-गाना, गीत-संगीत एवं अन्य प्रचार,प्रसार के माध्यम से माओवादियों के काले कारनामों को उजागर किया जायेगा। यह सब स्थानीय गोंडी भाषा एवं हल्बी भाषा में किया जा रहा है। यह अभियान स्थानीय नक्सल मिलिशिया कैडर्स एवं नक्सल सहयोगियों को हिंसा त्याग कर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने आत्मसमर्पण हेतु प्रेरित करेगा। माओवादियों को लेकर चित्रों के माध्यम से यह बताने और समझाने की कोशिश पुलिस ने किया है कि माओवादी सड़क, स्कूल, पुल उद्योंगो का विरोध कर विकास का विरोध करते हैं। माओवादियों की कू्ररता को बताने उनकी हत्या का भी जिक्र पोस्टर में किय गया है।
बहरहाल आदिवासियों को नाराज करके कोई भी सरकार बस्तर से नक्सलियों को नहीं खदेड़ सकती। इसी का फायदा नक्सली उठा रहे हैं।
 
 

 
 
 
 
 

Wednesday, September 9, 2020

सरकार से तनातनी

    











लाॅक डाउन से अर्थव्यवस्था की चूलें हिल गई है। भूपेश सरकार जीएसटी की बकाया राशि नहीं मिलने और नगरनार स्टील प्लंाट को निजी हाथों में देने से, केन्द्र सरकार से नाराज है। वहीं राज्य की बीजेपी भूपेश सरकार पर हर मोर्चे पर फेल बता रही है। चुनौती दोनों के सामने है। राज्य सरकार के समक्ष अजीविका और जिन्दगी बचाने की सबसे बड़ी समस्या है। सवाल यह है कि गिरती जीडीपी के बीच कैसे उबरेगी सरकार।  
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                     छत्तीसगढ़ कोविड 19 के शिकंजे में नहीं थी, तब एक निजी एजेंसी की सर्वे रिपोर्ट मे,ं गैर भाजपा शासित राज्यों की तुलना में भूपेश देश के श्रेष्ठ मुख्यमंत्री थे। पांच महीने बाद देश के श्रेष्ठ मुख्यमंत्री के हाथ पांव फूलने लगे हैं। भूपेश सरकार के सिस्टम को कोरोना हो जाने की वजह से आज, कोरोना मरीजों की संख्या 36 हजार के पार हो गई है। जबकि मार्च में 11 में से सिर्फ एक मरीज करोना का था। राजधानी रायपुर में हर दिन करीब बारह सौ मरीज कोरोना के निकलने लगे हैं। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष धरमलाल कौशिक कहते हैं,‘‘ प्रदेश सरकार ने आज तक सर्वदलीय बैठक कोरोना के संदर्भ में नहीं की। सरकार का सिस्टम कोरोना पर नकेल लगाने में फेल हो गया। क्वारेंटाइन सेंटर में भारी अव्यस्था की वजह से मरीज वहां से भागने लगे हैं’’।
अनैतिक दबाव बना रहा केन्द्रः सिंह
कोरोना की वजह से प्रदेश सरकार के समक्ष अजीविका और जिन्दगी बचाने की सबसे बड़ी समस्या है। बस ट्रांसपोटर्स को कोरोना की वजह से साढ़े सात सौ करोड़ का नुकसान हुआ। प्रदेश के 350 उद्योगों मंे उत्पादन रूक जाने से अरबों का नुकसान हुआ। प्रदेश सरकार ने सभी विभागों के बजट में तीस फीसदी की कटौती की घोंषणा की। ऐसी विषम परिस्थियों में भूपेश सरकार ने तीन हजार करोड़ से अधिक कर्ज अब तक ले चुकी है। गोधन योजना,राजीव गांधी न्याय योजना की राशि किसानों को देने के लिए। स्वास्थ्य एवं वाणिज्य मंत्री टीएस सिंह देव ने कहा,‘‘ हमें कर्ज लेने की स्थिति न आती। जीएसटी क्षतिपूर्ति प्रदान करना केंद्र सरकार का दायित्व है और वर्तमान में अक्षम नजर आ रही है। केंद्र को स्वयं ऋण लेकर राज्यों को क्षतिपूर्ति प्रदान करनी चाहिए। जीएसटी का उद्देश्य एक राष्ट्र एक कर था। सभी राज्यों ने क्षतिपूर्ति प्रदान करने के आधार पर सहमति दी थी। लेकिन वर्तमान में   भाजपा अनैतिक निर्णय कर राज्यों पर दबाव बना रही है। आरबीआई से कर्ज के नाम पर केंद्र सरकार बोझ डाल रही है। महामारी में ऐसा करना क्रूरता है।’’
भूपेश ने लिखा मोदी को पत्र
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,हमारी सरकार छत्तीसगढ़ को बदलने में लगी है। हमारे लिए आदिवासी और किसान ही सर्वोपरि हैं। जबकि केन्द्र की बीजेपी सरकार छत्तीसगढ़ के लोगों का अहित कर है, फिर भी बीजेपी के सांसद और विधायक की चुप्पी हैरान करती है। पिछले साल अगस्त में जीएसटी का संग्रहण 1873 करोड़ था, जो इस साल बढ़कर 1994 करोड़ रूपये। वसूली में 6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। राज्य का पैसा केन्द्र सरकार नहीं देगी तो सरकार जनहित के काम कैसे करेगी? नगरनार स्टील प्लांट को केन्द्र सरकार निजी हाथों में सौपने की तैयारी कर रही है लेकिन, बीजेपी के एक भी विधायक और सांसद ने इस मामले में पी.एम को पत्र तक नहीं लिखा। जाहिर है कि बीजेपी नहीं चाहती कि यहां के लोगों को नगरनार स्टील प्लांट का लाभ मिले। एनएमडीसी द्वारा करीब 20 हजार करोड़ रूपए की लागत से बस्तर में नगरनार स्टील प्लांट का निर्माण किया जा रहा है। इस स्टील प्लांट से बस्तर की बहुमूल्य खनिज सपंदा का दोहन होगा, साथ स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। इससे बस्तर के साथ ही राष्ट्र निर्माण में भी इसके सहयोग को याद किया जाएगा। बस्तर के नगरनार स्टील प्लांट को निजी लोगों के हाथों में बेचने से लाखों आदिवासियों की उम्मीदों और आकांक्षाओं को गहरा आघात पहुंचेगा’’। गौरतलब है कि नगरनार स्टील प्लांट में लगभग 211 हेक्टेयर सरकारी जमीन छत्तीसगढ़ शासन की है। 27 हेक्टेयर जमीन 30 वर्षों के लिए सशर्त एनएमडीसी को दी गई है। बाकी पूरी शासकीय जमीन छत्तीसगढ़ शासन के स्वामित्व की है और राज्य शासन ने जो जमीन उद्योग विभाग को हस्तांतरित की है,उसकी पहली शर्त यही है कि उद्योग विभाग द्वारा भूमि का उपयोग केवल एनएमडीसी द्वारा स्टील प्लांट स्थापित किये जाने के प्रयोजन के लिए ही किया जायेगा।
अडानी से जमीन सरकार दिलाए
सरगुजा जिला प्रशासन को जांच से पता चला कि परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक में अडानी ने ग्रामीणों की जमीन अवैध तरीके से हड़प लिया है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार अडानी के खिलाफ एफआईआर दायर कर कोल खनन के लिए दी गई,स्वीकृति जमीन किसानों को वापस कराए। छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि नोटरी के शपथ पत्र पर किसानों की जमीन खरीदना अवैध है। अडानी इंटरप्राइजेज जैसी कॉर्पोरेट कंपनियों को न कानून की और न ही लोगों के अधिकारों व आजीविका की चिंता। ग्राम सभाओं के विरोध के बावजूद प्रशासन से मिलीभगत करके ग्राम सभाओं के फर्जी प्रस्ताव बनाकर पर्यावरण स्वीकृति हासिल की। कायदे से अब गांवों के सामुदायिक अधिकारों को बहाल किया जाना चाहिए। जिसे तत्कालीन भाजपा सरकार ने वर्ष 2016 में खारिज कर दिया था। सरगुजा में व्यक्तिगत वनाधिकार पत्रकों को भी सरपंचों की मदद से प्रशासन के अधिकारियों द्वारा छीने जाने के कई प्रकरण मौजूद है। ऐसे सभी पीड़ित आदिवासियों के वनाधिकार पत्रक लौटाए जाएं।   
नकली खाद,बीज पर बहस
विधायक अजय चन्द्राकर ने कहा, निजी लैब में जांच की रिपोर्ट लगाकर अमानक खाद और बीज बेचने वाली कंपिनयों को सरकार तरजीह दे रही है। जांजगीर के नवागढ़ जैजैपुर ब्लाक में 12 हजार एकड़ में धान अंकुरित नहीं हुए। कृषि मंत्री रविंद्र चैबे ने कहा कि राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था से अनुमति के बाद बीज वितरण किया गया है। 12 हजार एकड़ में धान अंकुरित नहीं होने की बात आधारहीन है। कलेक्टर की जांच में पता चला कि तुलसी से 26 बोरी धान भीगने के कारण कम अंकुरित हुआ था। डीएनए टेस्ट केवल हाइब्रिड बीजों का किया जाता है। सत्या नाम की कोई भी संस्था बीज विकास निगम में अनुबंधित नहीं है।  
 मांग से कम यूरिया
कृषि वैज्ञानिक पी एन सिंह के अनुसार एक एकड़ धान की खेती के लिए 200 किलो यूरिया खाद चाहिए। छत्तीसगढ़ में लगभग 39 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। ऐसे में प्रदेश को 19 लाख टन यूरिया चाहिए। जबकि सहकारी समिति को केवल 6.3 लाख टन यूरिया सरकार ने उपलब्ध कराया है। इस प्रकार प्रदेश में प्रति हेक्टेयर यूरिया की उपलब्धता केवल 122 किलो और प्रति एकड़ 49 किलो ही है। बाकी 12.13 लाख टन यूरिया के लिए किसान बाजार पर निर्भर है। देश मे रासायनिक खाद का पूरे वर्ष में प्रति हेक्टेयर औसत उपभोग 170 किलो है,जबकि छत्तीसगढ़ में यह मात्र 75 किलो ही है। दावा है कि 18 अगस्त तक सरगुजा संभाग में 18825 टन यूरिया की आपूर्ति की जा चुकी है, लेकिन सहकारी समितियों तक यह सप्लाई नहीं हुई है। यही वजह है कि धमतरी, कांकेर, सरगुजा, अंबिकापुर आदि जिलो में किसान यूरिया के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं। छत्तीसगढ़ की 1333 सहकारी समिति में 14 लाख सदस्यों में से 9 लाख सदस्य समिति से लाभ प्राप्त करते हैं। प्रदेश में 8 लाख बड़े और मध्यम किसान है।  
विपक्ष का अरोप
बीजेपी उपध्याक्ष सच्चिदानंद उपासने ने कहा, प्रदेश सरकार ने मंत्रियों और विधायकों के अधिकार छीन लिए। कर्ज लेकर सरकार चल रही। राज्य में सरकार नही, माफिया राज चल रहा। स्मार्ट गांव बनाने का दावा करते हैं, लेकिन एक गांव का नाम बता दें। पंचायतों में धान सड़ रहा, शराब माफिया की नजर है। सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचला। प्रदेश में पिछले साल 7629 लोगों ने आत्महत्या की। जिसमें 233 किसान भी हैं। यह प्रदेश के लिए शर्मनाक बात है।
सत्ता पक्ष का तर्क
प्रदेश कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा,भाजपा नेताओं की वफादारी मोदी के प्रति तो दिखती है लेकिन, छत्तीसगढ़ की जनता के हितों और हकों के प्रति नहीं। मोदी के प्रति वफादारी साबित करने के लिए इनने छत्तीसगढ़ की जनता की जरूरतों, दुख, दर्द और तकलीफ की अनदेखी की हैं। भाजपा के नेता कह रहे हैं कि, राज्य सरकार कर्ज लेती जा रही है। किसानों के साथ जो वायदा किया है, उसे पूरा करने के लिए कर्ज ले रहे हैं। मोदी सरकार संसाधन उपलब्ध नहीं करवा रही है और भाजपा नेता राजनीति कर रहे हैं। केंद्र सरकार छत्तीसगढ़ के साथ अन्याय कर रही है फिर भी भाजपा नेता चुप हैं।  
बरहाल,राजनीतिक विरोध अपनी जगह है। अधिकतर लोगों में सामान्य आर्थिक परिस्थितियों, रोजगार, मंहगाई और को लेकर हताशा है। सामान और सेवाओं की मांग में भी भरी कमी आई है। कायदे से सरकार को उद्योग जगत में कैसे जान फूंकने के लिए क्या कदम उठाए जाएं, इसकी पहल की जानी चाहिए।
 
 

 
 
 
 
    
 

गोबर से बदलती किस्मत

 









गोधन न्याय योजना ग्रामीणों के लिए आजीविका का साधन बन रहा है। वहीं विपक्ष का आरोप है कि बिहार के चारा घोटाला की तरह गोबर घोटाला की कहानी भी आकार लेने लगी है। एक पशुपालक को पन्द्रह दिनों के गोबर बेचे जाने का 44 हजार रूपया भुगतान किया गया। यानी गाय एक दिन में 59 किलो गोबर देती है।
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
            कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर विकासखण्ड के ग्राम मुंगवाल के रति राम कुमेटी के पास एक भी पालतू मवेशी नहीं है। बावजूद इसके वे 70 से 80 किलो गोबर प्रति दिन गोठान में बेचते हैं। रति राम के तीन एकड़ जमीन है। जिसमें धान की फसल ले रहे हैं। रतिराम खुश हैं कि वे रोज घूम घूम कर गोबर एकत्र कर, बेचने पर डेढ़ पौने दो सौ रूपया पा जाते हैं। सिर्फ रतिराम ही नहीं, प्रदेश में ऐसे लोगों की संख्या अब बढ़ती जा रही है। जाहिर है कि भूपेश सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यस्था को मजबूत करने के मकसद से गोधन न्याय योजना शुरू की है,उसके परिणाम अब दिखने लगे हैं। गोरतलब है कि छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जहां सरकार गोबर खरीदती है।        
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने  20 जुलाई हरेली पर्व के दिन गोधन न्याय योजना की शुरूआत की। राज्य के पशुपालक, किसान एवं ग्रामीणों से दो रूपए किलो की दर से गौठानों में गोबर बेच रहे हैं। सुराजी गांव योजना के तहत अब तक राज्य में कुल 4377 गौठानों का निर्माण किया जा चुका है। इनमें से 4341 गौठानों में गोबर खरीदी की जा रही है। राज्य में पशुपालन को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण एवं संवर्धन किया जाना इस योजना का उद्देश्य है। गोधन न्याय योजना के तहत क्रय गोबर से वर्मी कम्पोस्ट तैयार करना, जैविक खेती को बढ़ावा देना तथा ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को बेहतर बनाने के साथ ही लोगों को रोजगार से जोड़ना है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 20 अगस्त को राजीव गांधी की जयंती के अवसर पर गोबर बेचने वाले ग्रामीणों, किसानों एवं पशुपालकों को 4 करोड़ 50 लाख 12 हजार 500 रूपए की राशि उनके खाते में स्थानांतरित की। यह राशि राज्य के 4341 गौठानों में 2 अगस्त से 15 अगस्त तक क्रय किए गए गोबर का है। यानी 20 जुलाई से 15 अगस्त तक क्रय गोबर के एवज में कुल 6 करोड़ 17 लाख 60 हजार 200 रूपए का भुगतान किसानों ग्रामीणों एवं पशुपालकों को मिला। एक रिर्पोट के मुताबिक राज्य में प्रतिदिन औसत रूप से 11 हजार क्ंिवटल से अधिक की गोबर खरीदी हो रही है। गोबर बेचने वालों में 49.71 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग के 37.41 प्रतिशत लोग अनुसूचित जनजाति वर्ग के, तथा 8.30 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति वर्ग के हैं।
आत्म निर्भरता
कोरोना काल में रोजगार में कमी आई है। ऐसे समय में गोधन योजना ग्रामीणों के लिए आय का अच्छा जरिया है। सुकमा जिले की गांव दुब्बाटोटा गौठान की कमल स्व.सहायता समूह की 13 महिलाओं द्वारा गोबर में केंचुआ डालकर वर्मी खाद तैयार किया जा रहा है। समूह की महिलाएं बताती है कि गोबर से बने खाद से उन्हें आर्थिक लाभ मिलेगा। साथ ही जैविक खाद से किसानों को अच्छी फसल मिलेगी। कृषि विभाग द्वारा उन्हें जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण भी दिया गया है। सुकमा जिले में अब तक 13 हजार से भी अधिक पशुपालकों का पंजीयन गौठानो में किया जा चुका है। महिलाएं कहती हैंै कि  पहले गोबर का उपयोग केवल घर लीपने और छेना बनाने में करते थे,गोधन योजना से अब चार पैसे मिलने लगा है। बिलासपुर जिले के चार विकासखंडों में ग्रामीण क्षेत्रों के 72 गोठानों में स्व सहायता समूहों ने 2 हजार 650 क्विंटल से अधिक खाद का उत्पादन किया। जिनमें 700 क्विंटल से अधिक खाद बेचा जा चुका है। निर्मित खादों को उद्यानिकी विभाग वन विभाग की नर्सरियों में उपयोग किया जा रहा है। इससे जैविक खेती को बढ़ावा मिल रहा है।
अब नाली में नहीं फेकते गोबर
भिलाई के कोसा नाला के पशुपालक रोहित यादव के पास सोलह गायें हैं। हर दिन इनसे लगभग दो सौ से तीन सौ किलो गोबर होता है। समस्या थी कि, इसे कहां फेंके,खासकर शहरी क्षेत्र के लोगों के लिए। गोधन न्याय योजना से यह समस्या तो दूर हुई साथ ही अब उन्हें इसकी अच्छी खासी कीमत भी मिलने लगी है। हर दिन वे पांच सौ से छह सौ रुपए का गोबर बेच रहे हैं। रोहित कहते हैं मेरे पास गोबर रखने के लिए जगह नहीं है। इसलिए हर दिन गौठान में गोबर बेच देते हैं।
गोधन का सकारात्मक असर
भिलाई नगर निगम के कमिश्नर ऋतुराज रघुवंशी ने सभी जोन कमिश्नरों को हर दिन गोबर खरीदी, वर्मी टैंक बनाने और इसके पेमेंट की स्थिति की नियमित मानिटरिंग करने के निर्देश दिए हैं। आर्य समूह की सुशीला जंघेल ने बताया कि प्रति दिन करीब सात हजार क्विंटल गोबर आता है। बड़े पैमाने पर वर्मी कंपोस्ट के लिए कच्चा माल तैयार हो रहा है। गोधन न्याय योजना में तेजी से भुगतान होने का बड़ा सकारात्मक असर दिखा है। पशुपालकों के लिए सरकार की यह योजना आर्थिक अवसर लेकर आई है। इससे लोग पशुधन को सहेजेंगे भी और पशुपालन को बढ़ावा भी मिलेगा।    
गोबर घोटाला की आशंका
भाजपा किसान मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संदीप शर्मा ने गौ धन न्याय योजना को लेकर एक बड़े घोटाले की आशंका जताई है। पशुपालकों को हुए भुगतान की राशि से सवाल उठता है कि ऐसी कौन.सी गाय है, जो रोज 59 किलो गोबर देती है। दुर्ग जिले के एक पशुपालक को 15 दिनों में बेचे गए गोबर के लगभग 44 हजार रुपए भुगतान हुआ है। पशुपालक के पास 25 गायें हैं। एक गाय प्रति दिन 59 किलो गोबर दी यानी 15 दिन में 885 किलो। 25 गाय का कुल गोबर हुआ 22125 किलो। जो कि संभव नहीं है। सवाल यह है कि ऐसी कौन.सी गाय है जो रोज 59 किलो गोबर देती है। आशंका है कि प्रदेश सरकार गौ.धन न्याय योजना के नाम पर एक बड़े घोटाले को अंजाम देने जा रही है। बिहार के चारा घोटाला सदृश्य क्या छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इस योजना के द्वारा गोबर.घोटाला को अंजाम देने की मंशा से यह योजना लेकर आई है।
गोबर की चोरी से बखेड़ा
गोबर प्रति किलो दो रूपये बिकने की वजह से अब लोग गोबर भी चुराने लगे हैं। कोरिया जिले के मनेंद्रगढ विकासखंड के ग्राम रोझी में एक गो पालक लल्ला राम और सेमलाल के बाडे में रखे करीब सौ किलो गोबर किसी ने चुरा लिया। यह तब पता चला जब दोनों की पत्नियां फूलमति और रिचबुधिया बाड़े में जाकर देखा। वहां गोबर का ढेर नहीं था। गोठान समिति में जाकर गोबर चोरी की इस घटना की जानकारी दी गई। गोठान समिति की ओर से चोर को पकड़ने की फरियाद के साथ एक आवेदन स्थानीय थाने में दिया गया है। हैरानी वाली बात है कि पुलिस कैसे पता चलायेगी कि गोबर आरोप लगाने वाला का कौन सा है।
 गोबर की लकड़ी
जशपुरनगर में अब गोबर की लकड़ी से होटल और ढाबों के चूल्हों में आग सुलग रही है। खनिज न्यास निधि के सहयोग से जिला प्रशासन ने जिले के दुलदुला विकासखंड के ग्राम पंचायत पतराटोली में गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन स्थापित कर इसका संचालन शुरू कर दिया है। जनपद पंचायत कुनकुरी की अध्यक्ष चंद्रप्रभा भगत ने युग वार्ता को बताया कि 29 स्व.सहायता समूह की महिलाएं गोबर से लकड़ी बना रही हैं। इससे पर्यावरण शुद्ध होगा, साथ ही जंगलों में अनावश्यक लकड़ी का कटाव भी रूकेगा। जल,संरक्षण एवं संर्वधन को बढ़ावा भी मिलेगा। जिले में नवाचार के तहत मशीन के माध्यम से गोबर से लकड़ी बनाई जा रही है। जशपुर जिले के ग्रामीणों को रोजगार भी मिल रहा है। कलेक्टर महादेव कावरे ने बताया कि ग्राम पंचायत पतराटोली में स्व.सहायता समूह की महिलाओं को गौण खनिज मद से 1 लाख 35 हजार की लागत से गोबर से लकड़ी बनाने का मशीन र्दी गई है। इसका लाभ उठाकर समूह की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है।  
कैसे बनाए गांेबर से लकड़ी
गोबर से लकड़ी बनाने के व्यवसाय में स्पर्धा बहुत कम है। मगर मांग ज्यादा। आत्म निर्भर बनने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण धंधा है। गो मेक मशीन 42 हजार से एक लाख रूपये तक की मिलती है। इस मशीन से 15 सेंकंड में गोबर से एक किलो की लकड़ी बनती है। दस हजार से पचास हजार रूपये तक आय प्रति माह कर सकते हैं। गाय का गोबर,सूखा भूसा और घास को मशीन में डालकर लकड़ी तैयार किया जाता है। जबकि लकड़ी करीब छह सौ रूपये क्विंटल मिलती है। ढाई इंच मोटी और बीच में गोबर की लकड़ी के छिद्र होता है,ताकि यह आसानी से जल सके। ऐसी लकड़ियों का इस्तेमाल ईंट भट्ठों के अलावा यज्ञ एवं हवन में भी होता है।
     
 

गोठान बना गायों की कब्रगाह

       
 








भूपेश सरकार गोठानों के जरिये गोधन योजना को आर्थिक संबल में तब्दील करने का दावा करती है। जबकि गोबर खरीदने की प्रक्रिया सतत नहीं है। 30 जून से रोका छेकी योजना बंद कर दी गई। ऐसे में गोठान का कोई औचित्य नहीं। वहीं एक गोठान में 50 गायों की मौत ने सरकार के गोठान की पोल खोल दी है। क्या सरकार ऐसे ही गोठान के दम पर ग्रामीण अर्थव्यस्था को मजबूत करेगी?  
0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’
                     छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 20 जुलाई की सुबह नौ बजे दुर्ग जिले के नवागांव से आए चार चरवाहों से 48 किलो गोबर अपने सरकारी प्रांगण में खरीद कर, उन्हें 96 रूपये का भुगतान कर दिया। उस गोबर को मुख्यमंत्री ने जय छत्तीसगढ़ महिला स्वयं सहायता समूह को दे दिया। जिसका उपयोग वर्मी कंपोस्ट बनाने में किया जाएगा। दरअसल, ऐसा इसलिए किया गया ताकि, देश को भी पता चले कि मुख्यमंत्री गोधन न्याय योजना के प्रति सजग हैं। वे मुख्यमंत्री निवास में भी गोबर लाने वालों से गोबर खरीदते हैं। गोधन न्याय योजना की शुरूआत सरकार ने बड़े जोर शोर से की। चार लाख किलो गोबर खरीदने के बाद सरकार चुप हो गई। कई दिनों तक गोबर खरीदी की योजना ठप रही। पशु पालकों के शोर मचाने पर सरकार फिर गोबर खरीदने लगी है। कांग्रेस सरकार दावा कर रही है कि, हर पंचायत में गोठान बनाएं जाएंगे। प्रथम चरण में 2400 से ज्यादा पंचायतों में गोठान और 15 एकड़ में चारागाह बनाए गये हैं। पशु किसी का भी हो, गोबर पर चरवाहे का हक होगा। छत्तीसगढ़ में 11630 ग्राम पंचायतें हैं। गोवंश से प्राप्त गोबर को गोठान समितियों में बेचा जाएगा। चरवाहा खुद गोबर लाकर बेचता है, तो उसे दो रूपये प्रति किलो के हिसाब से भुगतान होगा। 
योजना को वाट लग गई
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,‘‘राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत किसानों को समर्थन मूूल्य की राशि दी गई और गोधन न्याय योजना,उसी दिशा में उठाया गया कदम हैं। इन निर्णयों से गांवों की अर्थव्यवस्था को ताकत मिलेगी। किसानों के साथ कांग्रेस सरकार सच्चा न्याय कर रही है। किसान उनकी प्राथमिकता में पहले नम्बर पर हैं’’। लेकिन एक सच यह भी है कि,राजनांदगांव जिले में किसानों को सोयाबीन के जो बीज दिए गए, वो अंकुरित नहीं हुए। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कहा कि मवेशियों की मौत से यह स्पष्ट हो चला है कि नरवा.गरुवा.घुरवा.बारी का नारा देने और गौधन न्याय योजना का ढोल पीटने वाली प्रदेश की नाकारा कांग्रेस सरकार गौठानों की कोई पुख्ता इंतजाम तक नहीं कर पा रही है। और जिन पर गौठानों के संचालन का जिम्मा थोप दिया गया है, वे भी कुछ कर पाने में खुद को असहाय हैं। गौधन की मौतों का यह सिलसिला प्रदेश सरकार के लिए काफी महंगा पड़ेगा। गौठान बने नहीं हैं जो बने हैं उनमें चारा.पानी तक का कोई इंतजाम नहीं है। गौठानों की बदइंतजामी.बदहाली का जमीनी सच से यह प्रदेश रू.ब.रू हो चुका है और मेड़पार बाजार की यह घटना प्रदेश सरकार के नाकारेपन की इंतिहा दर्शाने वाली है। बीजेपी के प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने कहते हैं,गोबर खरीदने का पैसा सरकार के पास है नहीं,पंचायत और मनरेगा के पैसे से चार दिन गोबर खरीदेंगे, उसके बाद गोधन की बात करना बंद कर देंगे। मै समझता हूं गोठान और गोबर खरीदी की योजना कांग्रेस शासन का सबसे बड़ा घोटाला होगा। ग्राम मेड़पार बाजार के जर्जर गोठान में 50 से ज्यादा गायों की दम घुटने से मौत हो गई। सवाल यह है कि क्या ऐसा ही, गोठान हर जगह बने हैं। कांग्रेस का गोठान गायों की मौत का स्मारक बन गया है’’।
गोठान बना मौत का कब्रगाह
तखतपुर विधानसभा के हिर्री थाना अंतर्गत ग्राम मेड़पार बाजार में 50 से ज्यादा गायों की दम घुटने से मौत हो गई। गौठान को पुराने जर्जर भवन में पंचायत की ओर से अस्थाई रूप से बनाया गया है। वहीं बने एक कमरे में गंदगी के बीच गायों को बंद कर रखा गया था। बदबू फैली, तो 26 जुलाई की सुबह ग्रामीणों को इसका पता चलने के बाद हंगामा शुरू हो गया है। विपक्ष इसे गोहत्या कह रहा है,वहीं सत्ता पक्ष लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कह रहा है। गोठान में केवल गाय मरी हैं,यह कहना पर्याप्त नहीं हे। सच तो यह है कि सरकारी योजनाओं के साथ मानवीय संवदेनाएं भी मरी हैं। सवाल यह भी है कि, ग्राम पंचायत मेड़पार के जिस सचिव सरपंच और जनपद सदस्य के खिलाफ लापरवाही का प्रकरण कायम किया गया है। उन्हें क्या योजना के संबंध में कोई प्रशिक्षण दिया गया था? यदि नहीं,तो यह अफसरशाही की गलती है।
पंचायत के लोगों को पता नहीं
’’गाय की आत्म कथा’’ के लेखक गिरीश पंकज कहते है,‘‘पंचायत के लोगों को शायद ये भान नहीं था कि छोटे से हाल में इतने सारे पशुओं को रखने से, उनके गोबर और मूत्र से अमोनिया गैस निकलेगी। बंद कमरे में आक्सीजन की कमी होगी। जिससे मवेशियों का दम घुट सकता है। सरकारी योजनाओं का दम इसी तरह घुटता है। सरकार बड़े जोर,शोर से कोई योजना लाती है, किन्तु उसे क्रियान्वित करने वाली सरकारी मशीनरी को इस बारे में ना तो कोई प्रशिक्षण दिया जाता है, ना ही संवदेनशील किया जाता है। सरकार के आदेश को सिर आंखों पर रखने वाली सरकारी मशीनरी एजेंसी किस तरह काम करती है,यह मेड़पार की घटना से साफ हो गया’’।
सरकार की सफाई
राज्य शासन ने एक बयान जारी कर बताया कि, मेड़पार गांव में पशुओं की मौत की खबर का, रोका छेका अभियान से कोई संबंध नहीं है। राज्य में रोका छेका अभियान 30 जून को समाप्त हो गया है। रोका छेका अभियान के तहत जानवरों से फसलों को बचाने के लिए,उन्हें खुले वातावरण में गौठान में रखे जाने के निर्देश दिए गए थे। इस घटना में स्थानीय व्यक्तियों ने पशुओं को एक भवन में बंद कर के रख दिया। यह ग्राम पंचायत द्वारा निर्मित गोठान नहीं था। यह व्यवस्था गोठान की मूल परिकल्पना के  विपरीत है। सवाल यह है कि, फसलों को आवारा पशुओं से बचाने और सड़कों पर होनी वाली दुर्घटनाओं को रोकने रोका छेका अभियान अचानक बंद क्यों कर दिया गया? यदि बंद कर दिया गया है, तो गोठान का क्या औचित्य?इसका जवाब सरकार अभी तक नहीं दी है।
हवा हवाई है योजनाएं
सरकार का दावा है कि, प्रदेश में प्रथम चरण में 2800 गोठान बनने हैं, जिसमें 2240 गोठान बन गये हैं। गोबर एकत्र होने के बाद गोठान समितियां इसे नगरीय निकायों को भेजेंगी, जो इसको वर्मी कंपोस्ट, गार्डन पावडर गोबर दीया,गोबर धूपबत्ती आदि बनाया जाएगा। रोका छेकी योजना 30 जून से सरकार ने बंद कर दिया है,ऐसी स्थिति में पांच हजार गोठान किस मकसद के लिए बनाए जायेंगे? गोठान में कौन से मवेशी रखे जाएंगे? गोठान में मवेशी होंने पर ही, स्वसहायता समूह उनसे गोबर लेगी और खाद बनाएगी। क्या यह मान लिया जाए कि सरकार की योजनाएं केवल फाइलों में संचालित होंगी? रोका,छेका योजना के बाद, गोधन न्याय योजना की शुरुआत हरेली के दिन बड़ी धूमधाम से की गई। सरकार ने अपनी इस योजना को नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी के साथ जोड़ते हुए, उम्मीद जाहिर की कि, इसमें सभी का सहयोग मिलेगा। सवाल यह है कि, जब पशुओं को लाभकारी व्यवसाय के साथ जोड़ा गया है, तो फिर अवारा पशुओं को क्यों घूमने दिया जा रहा है? इससे इंकार नहीं है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की महत्वाकांक्षी गोधन न्याय योजना, ग्रामीण अर्थव्यस्था को मजबूत कर सकती है। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि, सरकार योजना बना लेती है लेकिन,उसके क्रियान्वन की अच्छी प्रक्रिया को अंजाम नहीं दे पा रही है।  
गोवंश की हत्या हुई है
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रदेशाध्यक्ष अमित जोगी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ट्वीट कर कहा कि गोबर बेचने की उत्सुकता में अपने सिर गौहत्या का पाप न लें। बारिश में गोबर ज्यादा इकट्ठा करने की कोशिश में गोवंश को बगल के खुले स्थान पर न रखकर बंद कमरे में ठूंस कर रखा गया। घुटन से 55 गोवंश की मौत हो गई। मृत गायों में तकरीबन 10 गाय गर्भवती थीं। सभी गोवंश निजी और पालतू थे। बहरहाल यह गोधन न्याय योजना और मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट गोठान कितना लाभदायी है, यह तो दूसरे चरण से पता चलेगा। प्रथम चरण ने इसकी सफलता पर कई संदेह पैदा कर दिये हैं।
 
 

जल,जमीन,जंगल की लड़ाई

     







छत्तीसगढ़ में दो दशक से आदिवासी और नक्सली सरकार से जल,जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं। पेशा कानून का क्रिन्यावन नहीं होने से आदिवासी अपनी जमीन के लिए राजस्व संहिता की धाराओं में ही उलझा हुआ है। वहीं प्रदेश में कांग्रेस के 31 आदिवासी विधायक हैं, फिर भी आदिवासी समाज फटा पोस्टर ही है।
 
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
            
                          आजादी के सात दशक के बाद भी छत्तीसगढ़,मध्यप्रदेश,ओड़िसा और झारखंड का आदिवासी जल,जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहा है। छत्तीसगढ़ में दो दशक से  नक्सली सरकार के खिलाफ लड़ रहा है। जाहिर सी बात है कि नक्सली बना आदिवासी सरकार की नीतियों से संतुष्ट नहीं है। हैरानी वाली बात है कि छत्तीसगढ़ में प्रदेश की 90 विधान सभा सीटों में 10 अनुसूचित जाति और 29 अनुसूचित जन जाति और सामान्य सीटें 51 है। कांग्रेस के पास सभी 29 सीटें अनुसूचित जन जाति की है। इसके अलावा उसके दो और आदिवासी विधायक हैं,जो सामान्य सीट से जीतकर आए हैं। यानी कांग्रेस में 31 विधायक आदिवासी हंै। जबकि बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय आदिवासी हैं। रामविचार नेताम अनुसूचित जन जाति के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पूर्व सांसद विक्रम उसेंडी कहते हैं, जल,जंगल और जमीन का मुद्दा आदिवासियों के लिए उनकी अस्मिता से जुड़ा मुद्दा है। जिसका भाजपा पूरा सम्मान करती है’’। सच्चाई ठीक इसके उलट है। पर्यावरण की हत्या का ठेका हर पार्टी उद्योगपतियों को देती आई है। जिसका विरोध आदिवासी समाज करता आया है। बैलाडीला की खदान और पच्चीस हजार पेड़ काटने का ठेका भी भूपेश सरकार ने गौतम अडानी को दिया था। जिसका सभी ने विरोध किया था। समस्या यथावत है।
सब जगह नाराजगी एक सा
आदिवासी क्षेत्रों में कुटीर और लघु उद्योगों को बढ़ावा देकर आदिवासियों को आत्म निर्भर बनाया जा सकता है। जबकि आदिवासी इलाकों में खनन को लेकर आदिवासियों और सरकार के बीच संघर्ष होता रहता है। छत्तीसगढ़ के बैलाडीला इलाके में लौह अयस्क की खुदाई या फिर ओडिशा के सुंदरगढ़ इलाके में आदिवासियों की नाराजगी एक जैसा ही है।
मजबूर करती है सरकार
सरकार किसी भी पार्टी की हो वो आदिवासियों को उजड़ने के लिए मजबूर करती आई है। आदिवासी विरोध करते है ंतो उनके खिलाफ झूठे प्रकरण भी कायम कर उन्हें डराया जाता है। मार्च 2011 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के ताड़मेटला, मोरपल्ली और तिम्मापुर में आदिवासियों के 252 घर जला दिए गए थे। सीबीआइ की जांच रिपोर्ट में इसका खुलासा भी हुआ। फर्जी मुठभेड़ों में आदिवासियों की हत्या कर नक्सली करार दिए जाने की घटनाएं आम हैं। पिछले करीब 20 वर्षों से आदिवासी समाज से कोई भी नेता सामने आकर सरकार की नीतियों का खुलकर विरोध नहीं किया। छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्य नक्सल समस्या के कारण विकास से दूर हैं। आदिवासियों की संस्कृति और उनकी परंपराओं को सहेजते हुए विकास करना होगा। नक्सली घटनाओं के पीछे की सोच को बदलनी होगी। किसी एक घटना के लिए गांव के सभी आदिवासियों को नक्सल समर्थक मान लेना गलत है। रमन सरकार के समय तत्कालीन बस्तर आई जी एस.आर कल्लूरी ने ऐसा खूब किया। छत्तीसगढ़ में एनीमिया और कुपोषण के मामले 53 फीसदी से ज्यादा है। आदिवासी बहुल राज्यों में समस्याएं अनेक हैं। इनके समाधान के लिए जन चेतना के साथ राजनैतिक बदलाव और सत्ता में उनकी भागीदारी भी बढ़ानी होगी।
किसने क्या किया
छत्तीसगढ़ में पन्द्रह वर्षो तक बीजेपी की सरकार थी। डाॅ रमन सिंह कुल बजट का 35 फीसदी आदिवासी क्षेत्रों के विकास में खर्च किया। प्रदेश के सभी 27 जिलों में युवाओं के कौशल उन्नयन के लिए लाईवलीहुड कॉलेजों की स्थापना की। इनमें से अधिकांश कॉलेज आदिवासी जिलों में संचालित है। बस्तर एजेकुशन हब बना। आदिवासियों को चावल,नमक और चना देने के साथ चरणपादुका भी दी। वहीं भूपेश सरकार ने चुनाव से पहले लोहंडीगुड़ा के आदिवासियों से वायदा किया था कि उनकी सरकार बनी तो उनकी जमीन उन्हें लौटा देंगे। 2008 में इस क्षेत्र में टाटा का स्टील प्लांट लगना था। सरकार ने 1707 वनवासियों से करीब 4200 एकड़ जमीन अधिग्रहित की। ज्यादातर वनवासियों को उनकी जमीन का मुआवजा भी दे दिया गया,लेकिन विरोध के चलते प्लांट नहीं लगा। कांग्रेस सरकार ने जमीन का मुआवजा भी वनवासियों के पास ही छोड़ दिया गया है। बघेल सरकार ने लॉकडाउन में वनवासियों से महुआ की खरीदी 17 की बजाए 30 रुपए में करने का फैसला लिया है। इस फैसले से 40 लाख आदिवासियों को फायदा पहुँचने की उम्मीद है। तेन्दूपत्ता के बोनस की राशि 2500 रूपये से 4000 रूपये की। प्रदेश के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों विशेषकर बस्तर अंचल के अनुसूचित जनजाति वर्ग के रहवासियों के खिलाफ दर्ज प्रकरणों की समीक्षा कर सरकार ने 215 प्रकरण वापस लिए।
आदिवासियों की प्रमुख मांगें
अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार अधिनियम 1996 बनाया गया है। जिसे पेसा कानून कहा जाता है। पेसा कानून का क्रियान्वयन तत्काल किया जाये। इसलिए कि, आदिवासी अपनी खोई हुई जमीन का केस भू.राजस्व संहिता की धारा 170 क के तहत जीत जाता है लेकिन, राजनीतिक दबाव की वजह से उसे कब्जा नहीं मिलता। प्रकरण को राजस्व मंडल एवं कोर्ट में उलझा दिया जाता है। राज्य सरकार इन प्रकरणों में आदिवासी वर्ग का प्रतिरक्षण नहीं करती। बोधघाट परियोजना पर रोक लगाई जाए। सलवा जुडूम से विस्थापित आदिवासियों को एक कमेटी बनाकर तत्काल सीमांत प्रदेशों से वापस लाकर बसाया जाए। अंगार मोती देवी स्थल, गंगरेल का स्थायी पट्टा गोंड़ समाज के नाम पर जारी किया जाये। अनुसूचित क्षेत्रों कोयला,लोहा,बॉक्साइट, चूना पत्थर इत्यादि कच्चा माल खदानों से निकाला जा रहा है और इन मिनरलो का 25ः रॉयल्टी प्रभावित आदिवासी परिवारों को दिया जाये।
सरकार श्वेत पत्र जारी करे
भाजपा विधायक एवं पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा यदि आदिवासियों के बीमा, बोनस, लाभांश छात्रवृत्ति के मामले में सरकार सही है, तो मीडिया व जनता के सामने श्वेतपत्र जारी कर दस्तावेज   प्रस्तुत करे। सरकार बीमा का नवीनीकरण,तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासी परिवार को दो सीजन का बोनस 597 करोड़ रूपये,आदिवासियों की सहकारी समितियों को लाभांश का 432 करोड़ वितरित क्यों नहीं किया गया। जाहिर सी बात है कि सरकार झूठ बोल रही है। सरकार उन जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई जिन्होंने आदिवासी परिवारों के साथ अन्याय किया है।
वाह वाही न लूटे भूपेश सरकार
छजका के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी कहते है, भूपेश सरकार अपने आप को आदिवासियों का हितैषी कहती है तो बताए, बस्तर के आदिवासियों के आराध्य नंदराज पर्वत में हजारों पेड़ों को काटकर उसपर विराजमान पिट्टोर मेटा देवी के मंदिर को ध्वस्त करके, लोहे की खदान चालू करने के फैसले को अभी तक निरस्त क्यों नहीं किया। आदिवासियों की जमीन पर बने 10000 करोड़ की लागत के नगरनार इस्पात संयंत्र, जिसपर बस्तर के नौजवानों का प्रथम अधिकार है,की नीलामी करने के एकपक्षीय फैसलों का भूपेश सरकार ने विरोध नहंी किया है। जबकि पोलावरम और इचंपल्ली बाँधों के निर्माण से सुकमा और बीजापुर जिले के लाखों आदिवासी बेघर और बरबाद हो जाएंगे। आदिवासी बाहुल्य सरगुजा, रायगढ़ और कोरबा में पेसा कानून के अंतर्गत बिना ग्रामसभा की अनुमति प्राप्त किए,निजी कम्पनियों को भूपेश सरकार ने 24 कोयला और बॉक्साइट खदाने चालू करने की अनुमति दे दी। आदिवासियों के आर्थिक विकास की बात करने वाली भूपेश सरकार ने एक भी वृहद वनोपज आधारित उद्योग की योजना नहीं बनायी। आदिम जाति कल्याण विभाग को शिक्षा विभाग में विलय पूर्व सरकार ने किया था, जिसका कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए पुरजोर विरोध किया था,भूपेश सरकार ने अभी तक उसे बदलने का आदेश नहीं दिया।   
आदिवासी विकास विरोधी नहीं
सर्व आदिवासी समाज बैलाडीला क्षेत्रीय अध्यक्ष राजकुमार आयामी ने कहा, पूरा बस्तर संभाग पांचवी अनुसूचित क्षेत्र होने के बाद भी सरकार द्वारा संविधान में हमारे लिए दिए गए अधिकारों का उल्लंघन करते हुए फर्जी ग्राम सभाएं कर हमारे जल, जंगल, जमीन उद्योगपतियो को दे रही है। आदिवासी समाज विकास विरोधी नहीं है लेकिन, सरकारें विकास के नाम पर आदिवासियों की आजीविकाएं छीनती हैं। उद्योग या खनन के लिए सरकार जमीन के बदले एकमुश्त राशि ही क्यों देती है। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर की दूरी पर धुर नक्सल प्रभावित ग्राम पंचायत गुमियापाल में विश्व आदिवासी दिवस पर संयुक्त पंचायत जनसंघर्ष समिति के अध्यक्ष नंदराम कुंजाम ने कहा नंदराज पहाड़ में अडानी कंपनी की लड़ाई हो या आलनार में, सरकार की कोशिश को कामयाब नहीं होने देंगे। चाहे हमें अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए जान देनी पड़ी’’।
बहरहाल कुछ योजनाओं का मोह दिखाकर सरकार आदिवासियों का शोषण करती आई है। यही वजह है कि आदिवासी समाज आज भी फटा पोस्टर है।

 

कोविड से मात खाते भूपेश

 









कोविड 19 में एकदम से उछाल आने और विपक्ष के हमले से विवश होकर भूपेश सरकार को लाॅक डाउन की घोषणा करनी पड़ी। प्रदेश सरकार ने तबाही के वाइरस को गंभीरता से नहीं लिया, यही वजह है कि आज हर विभाग में कोरोना के मरीज हैं। मंत्री के घर से लेकर मंत्रालय तक कोरोना पहुंच गया है। क्या मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दे पाएंगे इस महामारी को मात?
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
  छत्तीसगढ़ में कोविड-19 के मामलों में खतरनाक रूप से बढ़ोतरी होने पर विपक्ष ने मीडिया में सवाल किया,‘‘क्या भूपेश सरकार राजधानी रायपुर को भोपाल या इंदौर बनाना चाहती है’’। ऐसा सवाल विपक्ष इसलिए किया कि लाॅक डाउन के वक्त यहां मुश्किल से 11 कोरोना के मरीज थे। जिसमें दस ठीक हो गए थे। इसके बाद लाॅक डाउन, अनलाॅक होने पर भी कोरोना को लेकर हालात बिगड़े नहीं थे। कोरबा के कटघोरा तहसील में कोराना बम फूटने पर, स्थिति नियंत्रण में है, सरकार का यही दावा था। अब कोविड 19 पांव पांव चलकर, गांव गांव पहुंच गया। इस वक्त प्रदेश में करीब 6 हजार कोरोना के मरीज हैं। माना जा रहा है कि यह संख्या अगस्त तक दस हजार के करीब पहुंच जाएगी। अब तक 30 मौतें हो गई है। सवाल यह है कि महामारी कोविड- 19 के कहर की दूसरी लहर जानलेवा कैसे हो गई।
लापरवाही
कोरोना को लेकर सरकार और प्रशासन गंभीर नहीं थे। वरना बिलासपुर सेंट्रल जेल में 21 जुलाई को 9 कैदी संक्रमित न मिलते। प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के बंगले के दो कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। दोनों ही कर्मचारी महिला हैं। गृहमंत्री के बंगले में मेड का काम करती थीं। एसआईबी के डीआईजी के संक्रमित मिलने के बाद, पुराने पुलिस मुख्यालय को सील कर दिया गया है। हाईकोर्ट के दो कर्मचारी कोरोना संक्रमित मिले। डाॅक्टर और नर्से संक्रमित मिली। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने कहा कि कोराना टेस्ट की वजह से कोविड 19 के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। यानी वे चाहते हैं कि कोविंड 19 का पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर आंकड़े न बताए जाएं। सवाल यह है कि ऐसा करने से क्या समस्या का हल हो जाएगा? रायपुर कोराना का हाॅट स्पाॅट बना तो प्रदेश के 10 जिलों में 22 जुलाई से 28 जुलाई तक का पूर्ण लॉकडाउन किया गया है। वहीं अन्य जिलों में भी आंशिक छूट देने के साथ सख्ती बढ़ा दी गई है।  
पहले से अधिक सख्ती
इस बार पुलिस मोहल्लों और गलियों में दोगुनी फोर्स से नजर रख रही है। पकड़े गए लोगों को प्रतिबंधात्मक धाराओं में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा। बाहर निकलने का पुख्ता कारण नहीं बताने वालों की गाड़ी जब्त कर कोर्ट में पेश की जाएगी। शासन के आदेश के उल्लंघन पर धारा 188 का केस दर्ज करेंगे। गलियों में ड्रोन से  नजर रखा जा रहा है। जरूरी समझा गया तो लाॅक डाउन बढ़ाया जा सकता है। रोजाना 5000 से अधिक टेस्टिंग किया जा रहा है, जिसे बढ़ाकर अब 10 हजार करने का लक्ष्य रखा गया है। लॉक डाउन का अधिकार जिला प्रशासन को दिया गया है, कोरोना को नियंत्रित करने का। कोविड-19 के बढ़ते कदम की वजह से मंत्रालय व संचालनालय के सभी दफ्तर भी बंद है। रायपुर में 2 सौ से ज्यादा और बीरगांव में 40 से ज्यादा इलाकों को कंटेनमेंट जोन घोषित किया गया है।  
सरकार दोषीः साय
एक तरफ भूपेश सरकार केन्द्र सरकार से पैसा नहीं मिलने का रोना रो रही है,दूसरी ओर हर विभाग के बजट में तीस फीसदी की कटौती कर दी है। बावजूद इसके 15 संसदीय सचिव और निगम मंडल में खाली पड़े 32 पद भरने के साथ ही अपने चार सलाहकारों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर खर्चा को बढ़ाया। कोरोना में सोशल डिस्टेसिंग की बात सरकार करती रही, दूसरी ओर राजनीतिक कार्यक्रमों में भीड़ एकत्र करती रही। जबकि शादी व्याह में 20 लोगों से अधिक शामिल होने की इजाजत नहीं है। जनता पूछ रही है, राजनीतिक कार्यक्रम में भीड़ पर नकेल क्यों नहीं? प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कहा, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार राजनीतिक नियुक्तियां करने में मस्त है, जबकि प्रदेश की जनता कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते त्रस्त है। कोरोना के नाम पर पैसों की कमी का रोना रोती सरकार सियासी नौटंकियों में सरकारी धन पानी की तरह बहा रही है। वहीं कोरोना वॉरियर्स सफाई कर्मियों का वेतन काटकर उन्हें भी हताश करके उनका मनोबल तोड़ने का काम कर रही है। कोरोना की जांच के लिए टेक्नीशियन और एनएमए आदि रिक्त पदों की भर्ती दिसंबर में हो जाती तो आज कोरोना के खिलाफ लड़ाई में आसानी होती।
कोरोना में रायपुर टाॅप पर
राजधानी रायपुर को मुख्यमंत्री सुरक्षित नहीं कर पाए। आज राजधानी रायपुर कोरोना में टाॅप पर है। 22 जुलाई को प्रदेश में 268 और रायपुर में 84 कोरोना के मरीज मिले। भाठागांव में कोरोना से मरी महिला के संपर्क में आने से 24 लोगों को संक्रमण हुआ। पिछले दस दिनों में कोराना के 1800 मरीज मिले। अभी तक 5731 संक्रमित मरीज मिल चुके हैं। इनमें 30 मरीजों की मौत हो गई। हॉटस्पॉट बन चुके रायपुर में 1494 मामले मिले हैं। इनमें से 10 की मौत हो गई है। हालांकि प्रदेश में 4114 मरीजों के स्वस्थ होने के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी भी दी गई है। शराब बेचने वाली सरकार ने ध्यान नहीं दिया कि शराब बिकवाने वाली प्लेसमंट कंपनी के कर्मियों ने तमाम बैरीकेट्स उखाड़ दिए हैं। अब शराब दुकानें कोरोना संक्रमण का अड्डा बन गई हैं।   
संक्रमण का नया हमला
छत्तीसगढ़ में अब कोरोना के गंभीर लक्षणों वाले मरीज सामने आने लगे हैं। इन मरीजों को ऑक्सीजन और वेंटीलेटर की भी जरूरत पड़ रही है। डॉ भीमराव अंबेडकर मेकाहारा के मेडिसिन विभाग के एच.ओ.डी डॉ आरके पांडा ने बताया कि अब मरीजों में कोरोना के साथ डायरिया, न्यूरोजिकल साइड इफेक्ट, हार्ट और यूरिन की समस्या भी आ रही है। एक माह पहते तक माइल्ड केस आ रहे थे। उनमें कोई समस्या नहीं थी। अब 30 से 35 केस ऐसे आए हैं, जो गंभीर लक्षण वाले हैं। यह पता चला कि है कि जिन मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी है, उनको लंग्स फेफड़े में फाइब्रोसिस यानी चकत्ते हो सकते हैं। बार,बार लंग्स में इंफेक्शन होने से निमोनिया होगा।  
प्रमुख खामियां
कंटेनमेंट जोन में लोगों को उनके घरों तक जरूरी सामान न पहुंचाए जाने से बाजारों में भीड़ होने लगी। टेस्ट नतीजे अब भी दो दिन से पहले नहीं मिल रहे हैं। कोविड का टेस्ट पाॅजिटिव आए बिना किसी व्यक्ति को अस्पताल में दाखिला नहीं किया जाता। क्वारंटीन सेंटरों में रह रहे बहुतों से लोगों ने साफ सफाई में कमी,खाना ठीक नहीं,अव्यस्था और खाने के लिए पैसे लिये जाने की शिकायत की है। ज्यादादर अस्पतालों में 25 फीसदी डाॅक्टर और नर्से बीमार हैं या क्वारंटीन में हैं। जिससे स्वास्थ्यकर्मियों की कमी पड़ गई है। समय पर सरकार ने भर्ती का आदेश निकाला नहीं। राज्य सरकार अतिरिक्त स्टाफ उपलब्ध कराने में नाकाम हो गई है। पहले जैसी सख्ती भी नहीं होने की वजह से, कोरोना मरीज बढ़े हैं। सरकार बड़े सरकारी अस्पतालों में एक डिप्टी कलेक्टर नियुक्त करे, ताकि वह प्रत्येक बेड के लिए एक यूनीक कोड तय करे और मरीज के डिस्चार्ज की नीति पर नजर रखे। बहरहाल ऐसी सभावना है कि इस बार की सख्ती से सरकार कोरोना विस्फोट की स्थिति को नियंत्रित कर ले।