Friday, September 20, 2019

दंतेवाड़ाः किसकी सियासत का करेगा कबाड़ा


कांग्रेस का आगामी राजनीतिक भविष्य दंतेवाड़ा उप चुनाव तय करेगा। इस चुनाव के परिणाम से यह पता चलेगा कि प्रदेश में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कितना लोकप्रिय हुए। इसलिए कि लोकसभा चुनाव के दाग अब भी नहीं धुले हैं,वहीं डाॅ रमन सिंह सरकार में न रहकर भी लोकसभा की नौ सीट जीता ले गये। हाथ किसी का भी हो,लेकिन श्रेय उन्हें ही मिला। मंतूराम पवार के आरोप निश्चय ही दंतेवाड़ा उप चुनाव को ध्यान में रख कर लगाए गए हैं। पर ऐसा नहीं लगता कि उनके आरोपों की छाया इस चुनाव में दिखेगी। क्यों कि उन्होंने विश्वास खो दिया है। दूसरी वजह यह है कि यहां मुद्दे को लेकर चुनाव लड़ने से कांग्रेस बच रही है, जबकि बीेजेपी विकास की बात कर रही है। कांग्रेस ने चुनाव को आरोप प्रत्यारोप के रंग में रंग दिया है।इससे उसे नुकसान की आशंका ज्यादा है।
उम्मीद टूट सकती है
दंतेवाड़ा में भावानात्मक हवा का थोड़ा बहुत असर है। लेकिन बीजेपी के पक्ष में ज्यादा है। दंतेवाड़ा की यह सीट भाजपा के पास थी। यदि कांग्रेस इसे अपने पक्ष में कर लेती है तो आने वाले निकाय और पंचायत चुनाव में कांग्रेस की उम्मीद,पर पानी फिरने की आशंका कम हो सकती है। वैसे अभी आठ माह की सरकार जनता के बीच अपनी खास छाप नहीं बन सकी है। इसकी वजह यह है कि सरकार का सारा पाॅवर एक जगह सिमट गया। अन्य मंत्री सिर्फं नाम के मंत्री है। नौकरशाह उनकी सुनते नहीं। इस वजह से प्रदेश में काम काज ठप हैं। डाॅ रमन सिंह ने अपने कार्यकाल में दंतेवाड़ा के लिए जो काम किये हैं,उसका लाभ बीजेपी को मिलता है या फिर कांग्रेस को नरवा,घुरवा,बाड़ी और गोठान के नारे से वोट मिलता है,पूरे प्रदेश की नजर है। वेसे मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट पोस्टर की तरह फड़फड़ा रहा है।
आदिवासियों के हक की बात नहीं
दंतेवाड़ा में आम आदिवासी के हक की बात इस उप चुनाव में कोई भी बड़ी पार्टी नहीं कर रही है। सिर्फ आरोप और प्रत्यारोप तक ही सिमट गया है यह चुनाव। दरअसल कांग्रेस को पता है कि उसने अपने आठ माह की सरकार में दंतेवाड़ा के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया है, जिसे वो हवा दे सके। न तो पलायन रोकने का उसके पास कोई योजना है। न ही बेरोजगारी दूर करने की कोई ठोस योजना है। बेरोजगारी भत्ता यहां के बेरोजगारों को कब देगी,बताया। बेवजह जेलों में बंद आदिवासियों को कब छोड़ा जायेगा,उसकी तारीख तय की नहीं। सिर्फ घोंषणाओं की बात है। और इस बात को नक्सली भी तूल दे रहे हैं कि कांग्रेस सरकार ने वायदा तो किया था लेकिन, पहल अभी तक नहीं की। दंतेवाड़ा के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को लाल पानी पीना ,अब भी मजबूरी है। उन्हें मीठा पानी कब और कैसे मिलेगा, इसकी बात कांग्रेस के किसी भी मंत्री ने नहीं की। देश चांद पर चन्द्रयान भेज रहा है, उस दौर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्कूल में भौरा चलाने की शिक्षा देते और तस्वीर खिंचाने तक सिमट गये। दूसरी ओर नक्सली आम आदमी कोे मौत के घाट उतारने से बाज नहीं आये। दूसरी तरफ पुलिस पर आरोप है कि उसने आदिवासियों को इनामी नक्सली बताकर भून दिया। जबकि वहां के लोगों का दावा है कि मारे गये लोग नक्सली नहीं हैं। ऐसी वारदातों से सवाल यह उठता है कि दंतेवाड़ा उपचुनाव से इस विधान सभा के लोगों को क्या मिलेगा?
खूनी खेल कितने चुनाव तक
सरकार और पुलिस दोनों यह बताने केा तैयार नहीं है कि कितने इनामी नक्सली हैं। भीमा मंडावी की हत्या नक्सलियों ने की। चुनाव तक और चुनाव के बाद भी न जाने कितने लोग नक्सली बारूद और गोली के चपेट में आयेंगे सरकार को भी पता नहीं। फिर ऐसे चुनाव का क्या अर्थ, यहां का आदिवासी लगाये? सरकार किसी भी पार्टी की हो, यहां के आदिवासी को हर हाल में मरना ही है। चाहे नक्सली मार दें या फिर पुलिस नक्सली बताकर मार दे। यह खेल कितने चुनाव तक चलेगा, सरकार को बताना चाहिए।