Saturday, April 1, 2023

क्या छत्तीसगढ़ के नक्सली‘कांग्रेसी’ हो गए..?

सिलगेर जैसी घटना की पुनरावृति चाहे जितनी बार हो, नक्सली नहीं चाहते कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बने। इसलिए एक बार फिर लाल सलाम के निशाने पर भाजपाई हैं। और माओवादी कांग्रेस नेता राजबब्बर की कही बात को अमल में लाने बीजेपी नेताओं की हत्या कर क्रांतिकार बनने में लगे हैं। 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ कांग्रेस नेता राजबब्बर ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस भवन में 4 नवम्बर 2018 को कहा था,‘‘नक्सली क्रांतिकारी हैं। वे क्रांति करने निकले हैं। उन्हें कोई रोके नहीं।’’ तो क्या यह मान लिया जाए कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी नेताओं की हत्या कर के नक्सली क्रांतिकारी बनना चाहते हैं। या छत्तीसगढ़ के नक्सली अपनी विचार धारा बदल लिए है। अब वे भाकपा का चोला उतार कर कांग्रेसी हो गए हैं। यह सवाल छत्तीसगढ़ में पिछले एक माह में उनके द्वारा चार भाजपा नेताओं की हत्या पर उठा है। अभी तक यही कहा जाता था कि नक्सलियों की अपनी सोच है। विचार धारा है। वे सरकार के दुश्मन हैं। वे अपनी जनताना सरकार चलाते हैं। अब वे बदल गए हैं। इसीलिए जितना उपद्रव बीजेपी के शासन मे ंकिया उतना कांग्रेस के शासन में नहीं। वे एकदम से चुप बैठ गए हैं,ऐसा भी नहीं है। वारदात करके अपने होने का एहसास कराते रहते हैं। सांसद और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव ने संसद में बीजेपी नेताओं की हत्या का मामला उठाया तो प्रदेश में राजनीति गरमा गई। बीजेपी मंडल अध्यक्ष नीलकंठ ककेम की घर में घुसकर नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी। दूसरी घटना नारायणपुर जिले के छोटे डोंगर में बीजेपी जिला उपाध्यक्ष सागर साहू की माओवादियों ने घर में हत्या की। तीसरी घटना दंतेवाड़ा जिले के हितामेटा गांव की है। पूर्व सरपंच और बीजेपी के सक्रिय नेता रामधर अलामी की हत्या की। इसके पहले बस्तर जिले के बास्तानार इलाके में भी बीजेपी जिला महामंत्री बुधराम करटम की हत्या की। हालांकि बस्तर पुलिस ने भाजपा के जिला महामंत्री के मौत को दुर्घटना बताया है। वहीं भूपेश सरकार का दावा है राज्य में नक्सली वारदातों में भारी कमी आई है। पहले जहांँ आए दिन नक्सली वारदातें हुआ करती थी,अब थम गयी है। सवाल यह है,कि अब नक्सली नरम किसके लिए हुए हैं। राजनीतिक सवाल कई हैं। उन्हीं सवालों में एक सवाल यह है,कि भूपेश सरकार नक्सलियों पर नकेल लगाने में कामयाब हो गई है तो फिर लाल सलाम के निशाने पर बीजेपी नेता ही क्यों हैं? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,बीजेपी चाहे तो एनआइए से जांच करा ले। नक्सलियों ने अपनी रणनीति बदली है। वे पहले हमला करते थे,अब घर में जाकर हत्या करने लगे हैं। वे कमजोर हुए हैं। रिकार्ड देख सकते हैं,हमने छह सौ गांवों को नक्सली मुक्त कराया है। तीन सौ स्कूल फिर से प्रारंभ किए गए हैं। सरकार किसी भी पार्टी की हो,नक्सली बंदूक से निकली गोली,‘मौत का वारंट’ बनी। छत्तीसगढ़ के दूर अंचलों में क्रांति के नाम पर लाल गलियारे में धधक रही आग में भी दहशत की कहानी है। यह आग सरकार विरोधी है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में माओवादी हिंसा के फैलाव को कम करने के मक़सद से सलवा जुडूम शुरू न किया गया होता, तो शायद माओवादियों के निशाने पर राजनीतिक दलों के नेता न होते। सलवा जुड़ूम ने माओवादियों को आक्रोशित कर दिया। सलवा जुडूम की वजह से 25 मई 2013 को नक्सलियों ने झीरम कांँड किया। नक्सलियों ने 32 कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं की बर्बरता पूर्वक हत्या की थी। यह वारदात बड़ी भयावह थी। झीरम कांँड के चार साल बाद नक्सलियों ने बीजेपी नेताओं को धमकाना शुरू कर दिया था। पुलिस के हत्थे चढ़ा तीन लाख का इनामी कुख्यात माओवादी मद्देड़ एल.जी.एस कमांडर राकेश सोढ़ी 23 जून 2017 को खुलासा किया,कि वन मंत्री महेश गागड़ा माओवादियों की हिटलिस्ट में हैं। महेश गागड़ा घोर नक्सल प्रभावित इलाके बीजापुर में रहते हैं। उन्हें मारने के लिए सेन्ट्रल कमेटी ने आदेश जारी किया था। नक्सली राकेश सोढ़ी के खुलासे पर पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह ने वन मंत्री की सुरक्षा बढ़ा दी थी। नक्सली राकेश सोढ़ी के मुताबिक माओवादियों के खिलाफ़ आॅपरेशन से सेन्ट्रल कमेटी के नेता नाराज़ हैं। ‘आॅपरेशन प्रहार’ को रोकने सेन्ट्रल कमेटी ने बीजेपी के नेताओं की हत्या की योजना बना रहे हैं।’’ नक्सली राकेश सोंढ़ी के मुताबिक मद्देड़ जिला पंचायत सदस्य और बीजेपी नेता की हत्या माओवादी कमांडर नागेश के कहने पर की गई थी। किरंदुल थाने के चोलनार में नक्सलियों ने पूर्व जनपद अध्यक्ष और कांग्रेस नेता छन्नूराम की 26 जून 2017 की रात चाकू और कुल्हाड़ी से हत्या कर दी। वे नक्सली हमले में शहीद महेंद्र कर्मा के करीबी थे। उस समय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा,‘‘बस्तर में कांग्रेसी सुरक्षित नहीं हैं। चुनाव आते ही कांग्रेस नेताओं की हत्या बस्तर में शुरू हो जाती है। राज्य सरकार सुरक्षा दे पाने में नाकाम है।’’ डाॅ रमन सिंह के समय नक्सलियों ने एक फ़रमान जारी किया था,कि भाजपा नेता,भाजपा छोड़ें और सरकार की तारीफ करना बंद करें अन्यथा उनकी जान की ख़ैर नहीं है। डाॅ रमन सिंह के समय भी बीजेपी के 35 लोग पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिए थे। भाजपा के दो जिला पंचायत सदस्यों को नक्सलियों ने गोली मार दी थी। बस्तर में माओवादियों ने 2018 के चुनाव के डेढ़ साल पहले से बीजापुर से बीजेपी को खत्म करने अपने अभियान की शुरूआत कर दी थी। बीजापुर के ग्रामीण क्षेत्रों के बीजेपी नेताओं को अल्टीमेटम दिया कि वे बीजेपी छोड़ दें। भोपालपटनम के भाजपा नेता मज्जी रामसाय और बोरगुड़ा के सरपंच यालम नारायण की नक्सलियों ने हत्या कर यह बता दिया, कि उनके फ़रमान को नकारना ठीक नहीं है। इसके बाद वनमंत्री महेश गागड़ा के काफिले पर पैगड़पल्ली के निकट हुए हमले में जिला पंचायत सदस्य रमेश पुजारी को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। महेश गागड़ा के ही करीबी भाजयुमो अध्यक्ष मुरली कृष्ण नायडू पर भी हमला किया था। मुख्यमंत्री डाॅ. रमन सिंह के लोक सुराज अभियान के दौरान 2016 में 28 अप्रैल को जब वे भोपालपटनम और तिमेड़ पहुंचे, तो दहशत के चलते क्षेत्र का कोई भी भाजपा पदाधिकारी उनसे मिलने नहीं गया था। भारतीय जनता युवा मोर्चा के बीजापुर जिला अध्यक्ष रह चुके, जगदीश कोंड्रा की नक्सलियों ने कुल्हाड़ी से 27 मार्च 2018 को हत्या कर दी थी। सिलगेर जैसी घटना की पुनरावृति चाहे जितनी बार हो, नक्सली नहीं चाहते कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बने। इसलिए एक बार फिर लाल सलाम के निशाने पर भाजपाई हैं। और माओवादी कांग्रेस नेता राजबब्बर की कही बात को अमल में लाने बीजेपी नेताओं की हत्या कर क्रांतिकार बनने में लगे हैं।