Saturday, September 11, 2021

राजेन्द्र की सियासत का बी प्लान



🍙रीवा में बीजेपी ओबीसी प्रत्याशी देगी
🍙जनार्दन सेमरिया से चुनाव लड़ेंगे
🍙राजेन्द्र की टिकट फंस गई

रीवा। राजेन्द्र शुक्ला अभी से अपनी सियासत के बी प्लान को अंजाम देने में जुट गये हैं। बीजेपी चूंकि ओबीसी को तरजीह देने की सियासत में लगी है। ऐसी स्थिति में राजेन्द्र जानते हैं, अगली दफा रीवा विधान सभा से उन्हें टिकट नहीं मिलेगी। वोटर की संख्या के अनुसार रीवा में अगले विधान सभा चुनाव तक ओबीसी यानी मुस्लिम वोटरों की संख्या 27 हजार हो जाएगी। जाहिर है कि रीवा से मुस्लिम दावेदार खड़े होंगे। पटेल उम्मीदवार अभी से तैयारी कर रहे हैं। राजेन्द्र लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा गत माह संघ के एक पदाधिकारी से की है।(जो कि मेरे मित्र हैं)। वे चाहते हैं कि सेमरिया विधान सभा से जनार्दन चुनाव लड़ें।

राजेन्द्र शुक्ला इस समय अपनी सुरक्षित सीट के लिए गुणा भाग करने में लगे हैं। गत माह वे सघ के एक पदाधिकारी से मिले। उन्हें अपनी सियासत का बी प्लान बताया। उनके अनुसार जनार्दन मिश्रा को सेमरिया विधान सभा से चुनाव लड़ा दिया जाए। यदि जीत गये तो ठीक। हारने पर उनका लोकसभा का दावा कट जायेगा। जो व्यक्ति विधान सभा चुनाव नहीं जीत सका, वो लोकसभा चुनाव कैसे जीत सकता है!

🍙अजय अभी से तैयारी में
रीवा में बीजेपी अध्यक्ष अजय सिंह पटेल हैं। जो कि राजेन्द्र की पसंद के नहीं है। राजेन्द्र अपनी पूरी ताकत लगा दिये थे, कि अजय सिंह पटेल बीजेपी के जिला अध्यक्ष न  बनें। वे जानते हैं अजय उनकी सियासत की राह में कंटक हैं। वे रीवा विधान सभा चुनाव लड़ने की अपनी गोटी अभी से बिछाने लगे हैं। विधान सभा नहीं तो लोकसभा की टिकट चाहिए ही। ऐसे में राजेन्द्र और जनार्दन दोनों की राह में अजय सबसे बड़े कंटक हैं। जर्नादन को हटाने सिंधियों ने राजेन्द्र को सलाह दी है। समदड़िया इस बार उनके चुनाव का सारा मैनेेजमेंट देखेगा। जनार्दन अपनी सीट कैसे बचायेंगे,उनकी सियासत भी नहीं जानती। वैसे जनार्दन अभी तक राजेन्द्र को बड़ा महत्व देते आये हैं। लेकिन राजेन्द्र कभी भी उन्हें तरजीह नहीं दिये। यानी अगले चुनाव तक राजेन्द्र और जनार्दन में 63 नहीं 36 का सियासी रिश्ता बन जायेगा।

🍙बस कुछ दिन और..
रीवा विधान सभा पर सबकी नजर है। बीजेपी के कई विधायक और नेता राजेन्द्र की राजनीति को  खत्म करने का जाल बुनने लगे हैं। नरोत्तम मिश्रा वैसे भी राजेन्द्र को पसंद नहीं करते। वे उनकी राजनीति को खत्म करने के लिए ही गिरीश गौतम को विधान सभा अध्यक्ष बनाने में अपनी हर कोशिश को अंजाम दिया। जब तक शिवराज हैं, तभी तक राजेन्द्र बिना मंत्री के मंत्री की भूमिका का शो चला रहे हैं। वैसे शिवराज का हटना सौ फीसदी तय है।

🍙प्रदीप कंटक बनेंगे राजेन्द्र के
सबसे बड़ा सवाल यह है कि राजेन्द्र रीवा छोड़ेंगे या फिर कोई दूसरा विधान सभा तलाशेंगे। मऊगंज के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। प्रदीप सिंह पटेल के बीजेपी छोड़ने की ज्यादा संभावना है। सूत्रों कहना है कि वे बीएसपी से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। बीजेपी में आने के बाद उन्हें कुछ भी नहीं मिला,जिसकी उन्हें अपेक्षा थी। जिले में उन्हें एक ट्रांसफार्मर के लिए धरना देना और अनशन करने के बाद भी उनकी नहीं सुनी जाने से वो नाराज है। उनके समर्थक कहते हैं, कि इसके पीछे राजेन्द्र का हाथ है। लोकसभा यदि राजेन्द्र चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें शिकस्त देने प्रदीप बीएसपी से चुनाव लड़ेगे। वैसे भी प्रदीप इसके पहले बीएसपी के संभागीय संगठन मंत्री रह चुके हैं।
बहरहाल राजेन्द्र की सियासत का प्लान बी सामने आ जाने से एक नई सियासी रणनीति भी बनने लगी है। शेष अगली बार। 
@रमेश कुमार "रिपु"

 

हाथ से नहीं फिसली सत्ता’’






सियासत की जमीं पर आशंकाओं की उड़ती धूल के बैठते ही एक बात साफ हो गई, कि पाँच राज्यों के चुनाव होने तक भूपेश बघेल के हाथ में ही सत्ता की कमान रहेगी। वे राजनीति में अर्द्धविराम साबित नहीं होंगे।
0 रमेश तिवारी ‘रिपु’
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सियासी टेबल पर ढाई साल बीतते ही ‘‘पंजा’’ लड़ाने की सियासत अचानक तेज हो गई। जून में मुख्यमंत्री बदलने की हवा चली। लेकिन परिवर्तन की हवा में तब्दील नहीं हुई। फिर अगस्त-सितम्बर में टी.एस सिंह देव ने परिवर्तन की बात कहकर कांगे्रस में खलबली मचा दिये। दस जनपथ इसके लिए तैयार नहीं हुआ। और इसी के साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सत्ताई सियासत अल्पविराम साबित नहीं हुई। यह अलग बात है कि उनके हाथ से सत्ता की डोर खींचने की सियासत रायपुर से दिल्ली तक दौड़ धूप करने वालों की भारी भद्द हुई।
टी.एस सिंह देव के सलाहकार उन्हें यह बात नहीं समझा सके, कि राजनीति में कोई भी वायदा वक्त के साथ बदल जाता है। राजनीति कोई बीजगणित का सवाल नहीं है, कि सूत्र से हल होता है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस की राजनीति राजस्थान और पंजाब के सांचे में नहीं ढलेगी। इसकी वजह यह है, कि भूपेश बघेल के साथ 70 में 52 विधायक हैं। टी.एस सिंह देव अब ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका चाहकर भी नहीं निभा सकते। यह बात भूपेश के समर्थन में दिल्ली जाने वाले विधायकों की संख्या बल ने स्पष्ट कर दिया। छत्तीसगढ़ प्रभारी पी.एल पुनिया की पहली पसंद पहले से भूपेश बघेल रहे हैं। दस जनपथ भी छत्तीसगढ़ की राजनीति पर कोई फैसला लेने से पहले पीएल पुनिया की राय को नजर अंदाज नहीं कर सका। ढाई साल की सत्ताई राजनीति में भूपेश बघेल ने संगठन से लेकर दस जनपथ और मीडिया के बीच अपनी ऐसी छाप बना ली कि उस फ्रेम में दूसरा कोई फिट होता दस जनपथ को भी नहीं दिखा।
पाँंच अन्य राज्यों में गोवा,मणिपुर,पंजाब,यूपी और उत्तराखंड होने वाले चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ की राजनीतिक नेतृत्च को दस जनपथ के बदल देने से विपक्ष को मुद्दा मिल जाता और  चुनावी औजार भी। चूंकि केन्द्र सरकार इस समय ओबीसी की राजनीति को हवा दिये हुए है। भूपेश बघेल ओबीसी नेता हैं। जाहिर सी बात है कि दस जनपथ ओबीसी नेता भूपेश बघेल के हाथ से सत्ता का हस्तांतरण सवर्ण के हाथ में करने की भूल नहीं करेगा। वैसे भी संगठन में निगम मंडल में सारे लोग भूपेश के समर्थक हैं। ऐसे में बाबा ये सोच कैसे लिए कि दस जनपथ और विधायक उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की वकालत करेंगे!

ढाई साल में भूपेश बघेल ने न केवल राज्य में काम किये बल्कि कांग्रेस के संगठन और निगम मंडल पर अपने लोगों को बिठाकर अपनी ताकत बढ़ाई। बाबा बीच- बीच में सरकार पर चोट करने वाले बयान देकर भूपेश बघेल को परेशान करने की कोशिश किए। उसके बदले में उन्हें राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ा। जिसकी सत्ता होती है,उसके आईने में पत्थर फेकने वालों को आईने की खरोच तो मिलेगी ही। बाबा काग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं लेकिन, ढाई साल की सत्ता में वो विधायकों को अपना नहीं बना सके।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब बाबा क्या करेंगे? उनकी राजनीति का स्वास्थ्य ठीक रहेगा कि नहीं? मुख्य मंत्री क्या उन्हें और बाएं करेंगे? बाबा कब तक चुप रहेंगे? क्या पांच राज्यों के चुनाव के बाद बाबा फिर दस जनपथ की दौड़ लगायेंगे? हर राजनीतिक व्यक्ति की महत्वाकांक्षा होती है। बाबा भी अपने नाम के साथ मुख्यमंत्री नाम की चाह रखते हैं। हो सकता है कि पांच राज्यों के चुनाव के बाद बाबा को राष्ट्रीय महासचिव या फिर किसी राज्य का प्रभारी बना दिया जाये। बहरहाल,भूपेश की सत्ताई राजनीति की शाम नहीं हुई।