Thursday, October 24, 2019

जोगी के लिए मुश्किलों का पहाड़


अजीत जोगी अपने ही बनाये फंदे में फंस गये हैं। उन पर गिरफ्तारी के साथ ही उनकी विधायकी पर भी तलवार लटक रही है। अंतागढ़ उप चुनाव कांड में अजीत और अमित जोगी आरोपी हैं। जेसीसी के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी के जेल से बाहर निकलने की संभावना कम है। ऐसे में सवाल है कि जोगी की पार्टी बचेगी या खत्म हो जायेगी।








0 रमेश कुमार ’’रिपु’’
                   ’’छत्तीसगढ़ में तीसरी राजनीतिक ताकत जोगी की पार्टी है’’। डाॅ रमन सिंह कभी यह कहकर जोगी का राजनीतिक कद बढ़ाया था। वहीं जोगी की पार्टी को भाजपा की ‘बी’ टीम कांग्रेस कहती आई है। आज पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनका पुत्र अमित जोगी की सियासत के सितारे गर्दिश में हैं। और छत्तीसगढ़ की तीसरी सियासी ताकत इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही है। जेसीसी (जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी को अपनी नागरिकता की गलत जानकारी देने के आरोप में सेशन कोर्ट ने जेल भेज दिया है। वहीं छत्तीसगढ़ की आदिवासी कल्याण विभाग की उच्चाधिकार हाई पावर कमेटी ने अजीत जोगी को आदिवासी मानने से इंकार कर  दिया है। अजीत जोगी के खिलाफ समीरा पैकरा की शिकायत पर धारा 420,467,468,471 के तहत अपराध दर्ज किया गया है। अंतागढ़ टेप कांड मामले में जोगी के खिलाफ एक नया मोड़ तब आ गया है। अंतागढ़ उप चुनाव कांड के आरोपी पूर्व विधायक मंतूराम पवार ने उपचुनाव को प्रभावित करने के लिए 7.50 करोड़ रूपये के लेन देने का खुलासा प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्टेªट नीरज श्रीवास्वत की कोर्ट में कलमबंद बयान दर्ज कराया। उन्होंने कहा कि उन्हें एक पैसा नहीं दिया गया। 2014 में हुए अंतागढ़ उप चुनाव के सौदे में फिरोज सिद्दकी और अमीन मेनन की भूमिका बिचैलिये की थी। डाॅ रमन सिंह का पहली बार नाम अंतागढ़ मामले में सामाने आया है। इससे राजेश मूणत,अजीत जोगी,अमित जोगी की मुश्किलें बढ़ सकती है। इन तीनो के खिलाफ पंडरी थाने में केस दर्ज है। मामले की जांच एसआइटी कर रही है। इस कांड की जारी सी.डी में इन सभी नेताओं की आवाज होने की आशंका है,लेकिन किसी ने भी अपनी आवाज का सेम्पल एसआइटी को अभी तक नहीं दिया। अब मंतूराम पवार के इस शपथ पत्र से जोगी परिवार पर एक और मुश्किल बढ़ गई। वहीं जेसीसी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष इकबाल अहमद रिजवी ने कहा, बीजेपी में रहते हुए मंतूराम पवार ने जिस तरह का बयान दिया है, इससे साफ जाहिर है कि वे कांग्रेस प्रवेश करने वाले हैं। कांग्रेस से मिले प्रलोभन के कारण ही वे इस प्रकार का बयान दे रहे हैं’’। पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह ने कहा,’’ दंतेवाड़ा उप चुनाव नजदीक है।  पहली बार मेरे खिलाफ राजनीतिक षडयंत्र के तहत मेरा नाम उछाला गया है। कांग्रेस की सोची समझी रणनीति के तहत मंतूराम पर दबाव बनाकर यह बयान दिलवाया गया है। इससे पहले भी मंतूराम ने विभिन्न न्यायलयों में शपथ पत्र पर बयान दिया है कि उन्होंने स्वेच्छा से अपना नामांकन वापस लिया था। और इस प्रकरण में पैसा का किसी तरह से कोई लेने देन नहीं हुआ था। इस संबंध में कोर्ट में अपना पक्ष रखूंगा’’। 
कोर्ट ने की गंभीर टिप्पणी
अजीत जोगी के खिलाफ दर्ज मामले से अब वे विधायक रहेंगे या नहीं, 19 सितंबर से कोर्ट इस मामले कीें सुनवाई करेगी। चूंकि अजीत जोगी की पार्टी जेसीसी (जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़) जोगी घराने के इर्द गिर्द घूमती है। अजीत जोगी अपनी पार्टी के सप्रीमों हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनी हाई पाॅवर कमेटी की रिपोर्ट पर,इसकी संभावना कम ही है कि हाई कोर्ट जोगी की जाति को लेकर कोई अलग से निर्णय देगी। उनकी विधायकी खत्म होने की आशंका ज्यादा है। वहीं अमित जोगी को हाई कार्ट से बेल मिलने की संभावना कम बनती दिख रही है। उसकी वजह यह है कि सेशन कोर्ट के जज विनय प्रधान ने अपने फैसले में कहा,’’ प्रजातंत्र के पावन धरा पर विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किये हैं। अपराध की गंभीरता को देखते हुए जमानत याचिका खारिज की जाती है’’। वहीं रायपुर की विशेष मजिस्टेट लीना अग्रवाल ने अंतागढ़ टेपकांड मामले में आरोपी जेसीसी के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी को ट्रांजिट रिमांड पर अदालत में पेश करने का आदेश दिया है। गौरेला पुलिस को पेशी के लिए 12 सितंबर तक का वक्त दिया है।  तीन बड़ी अपराधिक घटनाओं के बाद जेसीसी पार्टी को लेकर सियासी अटकलों का बाजार गर्म है। जोगी की पार्टी जेसीसी रहेगी या टूट जायेगी। अमित जोगी को धोखा धड़ी के जुर्म में कम से कम दो साल की सजा हो सकती हैं। इसलिए कि उनके खिलाफ पुख्ता दस्तावेज हैं। अमित जोगी के जेल में होने से अजीत जोगी भावानात्मक रूप से टूट जायेंगे। उनकी विधायकी खत्म होने और अंतागढ़ मामले की वजह से पार्टी का जनाधार तो खत्म होगा ही साथ अब उन पर जनता की विश्वसनीयता भी घटेगी। सवाल यह है कि जोगी अपनी पार्टी की कमान किसके हाथ में देंगे? 
रेणू की रूचि नहीं राजनीति में
श्रीमती डाॅ. रेणू जोगी पार्टी में ज्यादा अनुभवी हैं। यदि अजीत जोगी की गिरफ्तारी होती है तो पार्टी की कमान रेणू जोगी के हाथ आ सकती है। लेकिन पार्टी को पूरा समय देने में वे भी अक्षम हैं। स्वास्थ्य उनका भी ठीक नहीं रहता। वहीं रेणू जोगी पर कोई आरोप नहीं है। स्वच्छ छवि है ही साथ ही  समझदार नेत्री हैं। लेकिन अजीत जोगी के आदिवासी मामले पर हाई कोर्ट का भी फैसला हाई पाॅवर कमेटी जैसा ही रहा तो फिर रेणू जोगी के संदर्भ में भी तहकीकात के सवाल उठाये जा सकते हैं। उन्होंने आदिवासी के रूप में क्या, क्या, सुविधायें और लाभ लीं। यदि ऐसा कुछ भी साक्ष्य मिलता है तो फिर श्रीमती रेणू जोगी भी फंस सकती हैं। वैसे रेणू जोगी की दिलचस्पी राजनीति मे अब नहीं है। इसी से स्पष्ट है कि वे अंत तक जोगी की पार्टी में शामिल नहीं हुई। लेकिन कांग्रेस से इस्तीफा भी नहीं दिया,पर जोगी के साथ हमेशा रहीं। उन्हें इसके लिए कई बार नोटिस भी दिया गया। जब कांग्रेस ने उन्हें कोटा विधान सभा के लिए टिकट नहीं दी तो वो अजीत जोगी की पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ीं। आज जेसीसी से कोटा की विधायक हैं। ऐसे में यह भी संभावना खत्म हो जाती है कि वे कांग्रेस मंे कभी लौटेंगी। 
जेसीसी का अगला अध्यक्ष कौन?
अजीत जोगी अपनी हर सियासी गोटी बहुत सोच समझ कर चलते हैं। अपने ऊपर किसी भी तरह के खतरे की आशंका को वे पहले ही भंाप जाते हैं। वे कभी नहीं चाहेंगे कि रेणू जोगी पर कोई राजनीतिक संकट मंडराये। ऐसे में उनके घर में उनकी बहू ऋचा जोगी पर जाकर नजर ठहरती है। ऋचा जोगी राजनीति में बहुत समय से सक्रिय हैं। विपक्ष की भूमिका में वे डाॅ रमन सिंह से लेकर भूपेश सरकार तक सक्रिय दिखीं। भूपेश बघेल का ड्रीम प्रोजेक्ट नरवा,घुरवा,गोठान और बाड़ी मामले को सबसे पहले उठाया कि यह प्रोजेक्ट केवल भ्रष्टाचार का जरिया है। पिछला चुनाव जोगी ने ऋचा को अपनी पार्टी के बजाय अकलतरा से बसपा से लड़ाया। बहुत कम वोटों के अंतर से वे चुनाव हारी लेकिन राजनीति में अपनी सक्रियता नहीं छोड़ी। युवाओं के बीच अधिक लोकप्रिय हैं। ऐसे में संभावना यह भी बनती है कि रेणू के इंकार करने पर ऋचा जोगी को प्रदेश अध्यक्ष बनें। वहीं रेणू जोगी कभी नहीं चाहंेगी कि पार्टी की कमान ऋचा के हाथ में आये। क्यों कि ऋचा जोगी सबसे अधिक तेज तर्रार नेत्री हैं,पार्टी के लोगों का कहना है कि श्रीमती रेणू जोगी और ऋचा में बनती नहीं। ऋचा तभी प्रदेश अध्यक्ष बन सकती हैं जब अमित जोगी कहेंगे। अजीत जोगी पार्टी की कमान लोरमी के विधायक धरमजीत सिंह को भी सौप सकते हैं। धरम जीत सिंह चार बार के विधायक और विधान सभा के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। अनुभवी होने के साथ ही अजीत जोगी के विश्वासपात्र भी हैं। पूर्व विधायक आर. के. राय पर जोगी को कम भरोसा है। सभी को पता है कि वे जोगी के साथ रहते तो हैं,लेकिन कांग्रेस में वापस आने के लिए कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं से संपर्क में है। भूपेश बघेल की पसंद आर. के राय नहीं हैं,इसलिए उनकी कांग्रेस में वापसी अब तक नहीं हुई है।
देवव्रत से परहेज क्यों
खैरागढ़ विधायक देवव्रत सिंह जो कि कांग्रेस से सांसद भी रहे हैं। भूपेश बघेल से इनकी कभी नहीं पटी। कांग्रेस में रहकर इन्होंने भूपेश बघेल की कई बार कांग्रेस हाई कमान से लिखित में शिकायत भी की। इनकी लोकप्रियता खैरागढ़ से राजनांदगांव तक है। युवाओं के बीच सबसे अधिक सक्रिय और रईस नेता हैं। युवा हैं, धारा प्रवाह किसी भी मुद्दे पर बोलने में सक्षम हैं। विपक्ष की भूमिका बड़ी इमानदारी से निबाहते हैं। वहीं पार्टी के लोगों का कहना है कि जोगी कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी पार्टी का अध्यक्ष कोई ऐसा व्यक्ति बने जो पार्टी पर अपना दबदबा रखे। जोगी जानते हैं कि देवव्रत बहुत तेज और किसी की नहीं सुनने वाले नेताओं में से हैं। वे एक बार फैसला ले लिये तो आसानी से बदलते नहीं हैं। देवव्रत ंिसंह की वजह सेे जोगी घराने का पार्टी में कोई अस्तित्व ही नहीं रह जायेगा। इससे इंकार भी नहीं है कि देवव्रत सिंह के अध्यक्ष बनने से कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान है। भाजपा नहीं करेगी मदद
सबसे बड़ा सवाल यह है कि अपने बनाये राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसे जोगी को क्या भाजपा मदद करेगी?इसकी संभावना कम ही दिखती है। उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि संघ नहीं चाहेगा कि जोगी राजनीति में मजबूती से खड़े रहे हैं। यह अलग बात है कि डाॅ रमन सिंह जोगी को तीसरी सियासी ताकत अपने राजनीतिक फायदे के लिए बताते रहे। लेकिन उसका फायदा विधान सभा चुनाव में नहीं मिला। जिससे डाॅ रमन सिंह की राजनीतिक नजरिये से संघ के समक्ष बड़ी भद्द हुई है। अब डाॅ रमन सिंह सत्ता से बाहर हैं। लेकिन नान घोटाला और अंतागढ़ उप चुनाव कांड में उनके नाम आने से उनकी साख कलंकित हुई है। उनका दामाद डाॅ पुनीत गुप्ता भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा है। डाॅ रमन सिंह की सत्ता जाने के बाद से कोर्ट के चक्कर में डाॅ पुनीत गुप्ता का समय जाया जा रहा है। भाजपा बंटी हुई है। डाॅ रमन सिंह के साथ संघ भी नहीं है। जाहिर है कि जोगी भाजपा की ‘बी’ टीम होकर भी अकेले पड़ गये हैं।
जोगी के खिलाफ संघ
सामने नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव है। डाॅ रमन सिंह चाहते हैं कि चुनाव में जोगी की मौजूदगी रहे। इसलिए अमित जोगी को जेल हुई तो उन्होने भूपेश सरकार को घेरते हुए कहा,सरकार हिम्मत से क्यों नहीं कहती है कि हां हमने अमित जोगी को गिरफ्तार किया है। सरकार को बोलने में परेशानी क्यों हो रही है’’। संघ नहीं चाहता कि जोगी राजनीतिक रूप से मजबूत हों और सक्रिय रहे हैं। इसकी वजह यह है कि संघ हिन्दू राजनीति का समर्थक है। संघ के ज्यादातर लोग अजीत जोगी को ईसाई मानते हैं। जोगी के मुख्यमंत्री रहने के दौरान छत्तीसगढ़ में ईसाई मिशनरी को ज्यादा बढ़ावा मिला है। दिलीप सिंह जूदेव सारी जिन्दगी आदिवासियों का पैर धोकर उन्हें ईसाई से हिन्दू धारा में लाते रहे। आज जोगी अपनी जाति की लड़ाई लड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में उनकी जाति को लेकर कांग्रेस के नेता ही एक मत नहीं है। जोगी के साथ लंबे समय तक साथ रहे नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री शिव डहरिया कहते हैं,जोगी न आदिवासी हैं और न ही सतनामी हैं’’।
मुझ पर आरोप गलत हैः भूपेश
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा,मुझ पर लगाये गये आरोप बिलकुल गलत हैं। जोगी पर आरोप भाजपा ने लगाये उनकी जाति की जांच भाजपा ने की। भाजपा की ही समीरा पैकरा ने शिकायत की थी। यह पूरा किया कराया तो भाजपा का है। जोगी ने आदिवासी का अपना जाति प्रमाण पत्र दिखाया। कांग्रेस ने उन्हें विधायक,मंत्री,मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन उनका जाति प्रमाण पत्र ही गलत हो जाये तो उसमें क्या किया जा सकता है। 
बहरहाल जोगी की सियासत के सितारे गर्दिश में हैं। सभावना है कि आने वाले दिनों में प्रदेश की राजनीति में कई बदलाव हो सकते हैं।

नक्सली झीरम पार्ट टू के मूड में..

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भूपेश सरकार से नाराज नक्सलियों ने सरकार के साथ उद्योग मंत्री कवासी लखमा को देख लेने की चेतावनी देकर खलबली मचा दिये हैं। सरकार से माओविदियों की नाराजगी की वजह यह है कि कोतागुडा गांव और गोमियापाल में तीन,तीन ग्रामीणों की पुलिस ने नक्सली बताकर हत्या कर दी। भूपेश सरकार नक्सवाद पर वही काम कर रही है जो रमन सरकार ने किया। सवाल यह है कि नक्सलियों की नाराजगी कहीं झीरम पार्ट टू को अंजाम तो नहीं देगी?

0 0 रमेश कुमार ’’रिपु’’’
                  नक्सली क्या अब कांग्रेस नेताओं को अपना निशाना बनायेंगे? झीरम पार्ट टू को अंजाम देंगे? दंतेवाड़ा के भाजपा विधायक भीमा मंडावी की हत्या के बाद ऐसी क्या वजह है कि नक्सली उद्योग मंत्री कवासी लखमा को देख लेने की धमकी दी। आम आदमी की सांसे वैसे ही दहशतजदा है। बस्तर में कहा जाता है,’’यहां के आदिवासी को नक्सलियों का मुखबिर बताकर पुलिस गोली मार देती है अथवा नक्सली पुलिस का मुखबिर कहकर गोली मार दते हैं। यानी हर हाल में गोली मौत का वारंट है बेकसूर आदिवासियों के लिए।
गोली नक्सलियों की हो या फिर पुलिस की,मारा तो आदिवासी ही जाता है। माओवादी अब आदिवासियों का शुभ चिंतक बनने के लिए पुलिस पर आरोपों की गोलियों चलाने लगे हैं। जब जब कोई आदिवासी पुलिस की गोली से मरता है तो नक्सली प्रेस नोट जारी कर सरकार को कटघरे में खड़े करते हैं। जाहिर सी बात है कि इन दिनों भूपेश सरकार से नक्सली नाराज चल रहे हैं। नक्सलियों की दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी के सचिव विकास ने प्रेस नोट जारी कर कहा, सुकमा जिले के चिंतलनार पंचायत स्थित कोतागुड़ा गांव में 14 सितंबर को ग्रामीण अपने गांव के पुजारीगायता को चुनने के लिए अपनी परंपरा के अनुसार शिकार करने जंगल में गए थे। जंगली सुअर शिकार के दौरान घायल हो गया था,उसका पीछा कर रहे थे। इसी बीच चिंतलनार थाना अंतर्गत के बुर्कापाल कैंप से गश्त पर निकले डीआरजी के जवानों ने ग्रामीणों पर अंधाधुंध गोलीबारी कर सोड़ी देवाल, मुचाकी हड़मा, मुचाकी हिड़मा की निर्मम हत्या कर दी। इनमें से सोड़ी देवाल की घटना स्थल पर ही मौत हुई जबकि दो अन्य ग्रामीणों को घायल अवस्था में पकड़कर उन्हें आमानवीय यातनाएं देकर पुलिस ने उनकी जघन्य हत्या की। अपने दो पेज के पर्चे में माओविदियों ने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार चुनावी वायदा भूल गई है। ऐसा लगता है कि भाजपा शासनकाल में कांग्रेस ने फर्जी मुठभेड़ों के विरोध का केवल दिखावा किया है। कथित रुप से ग्रामीणों की हत्या और प्रताड़ना जारी है’’। माओवादियों ने कवासी लखमा को उद्योगों का समर्थक बताया और धमकी दी है। कवासी लखमा आदिवासी विरोधी हैं। उसकी चिकनी चुपड़ी बातों का भंडाफोड़ करें। जबकि कवासी के राजनीतिक विरोधी दबे सुर में नक्सली हिमायती उन्हें बताते हैं। लेकिन माओवादियों की धमकी इस ओर इशारा कर रही है कि कवासी उनके निशाने पर हैं।
इसी तरह की घटना दंतेवाड़ा के गोमियापाल में भी हुई। यहां भी पुलिस ने तीन निर्दोष आदिवासियों को गोली मार दी। गांव के पांच लड़के शराब पी रहे थे। पुलिस ने मडकामरास का पोदिया और मदाड़ी के भीमा को जबरदस्ती अपने साथ ले गई। हिड़मा पुलिस को चकमा देकर अंधेरे का लाभ उठाकर भाग गया। पुलिस अजय,पोदिया और लच्छू को लेकर आगे निकल गई। भीमा पुलिस की गोली का शिकार होने से बच गया। इस मामले पर सामाजिक कार्यकत्र्ता सोनी सोरी और बेला भाटिया ने पुलिस थाने में शिकायत करने पहुंची तो पुलिस ने उल्टे इन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया।

सलवा जुडूम का विरोध
गौरतलब है कि सलवा जूडूम का कवासी लखमा ने विरोध किया था। तब से कवासी रमन सरकार और सलवा जुडूम समर्थकों की आंखों की किरकिरी बन गये थे। तत्कालीन कलेक्टर के. आर. पिस्दा ने राज्य सरकार को एक गोपनीय पत्र भेजा था जो कि कलेक्ट्रेट में ही सार्वजनिक हो गया था। पत्र में लिखा गया था कि कवासी लखमा से सुरक्षा ले ली जाए। इन्हें नक्सलियों से कोई खतरा नही है। अब राज्य सरकार ने इनकी और इनके बेटे हरीश लखमा की सुरक्षा बढ़ा दी है।

कवासी पर गंभीर अरोप
नक्सलियों ने प्रदेश के उद्योगमंत्री कवासी लखमा को गद्दार और धोखेबाज बताया है। चुनाव के पहले आदिवासी हितैषी होने का ढिंढोरा पीटने वाले ढोंगी आदिवासियों का गद्दार, धोखेबाज कवासी लखमा सत्ता में बैठते ही आदिवासियों के जल,जंगल,जमीन व संसाधनों को कौड़ियों के भाव देशी विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करने के लिए स्वयं उद्योग मंत्री बन बैठे हैं। उन्होंने लखमा पर फर्जी मुठभेड़ को अंजाम देने वाले पुलिस कर्मियों को आउट आफ टर्न प्रमोशन दिलवाने का आरोप लगाया है। कवासी की देखरेख में छत्तीसगढ़ भू अर्जन, पुनर्वास, पुर्न व्यवस्थापन कानून 2019 पास कराया गया है, जो कि राज्य के किसानों, दलितों व आदिवासियों की जमीनों, जंगलों, खदानों को छीनकर पूंजीपतियों के हवाले करने के लिए ही बनाया गया है।

नक्सली मना रहे हैं वर्षगांठ
मुख्यमंत्री के बयानों से एक बात साफ है कि वे नक्सलियों से दो दो हाथ करने को तैयार हैं।   चैकाने वाली बात है कि माओवादियों के प्रति इतनी सख्ती दिखाने के बावजूद माओवादी बैनर में लिखा है कि 50 वीं वर्षगांठ मनाने एवं नई पार्टी भाकपा माओवादि की 15 वीं वर्षगाँठ समारोह को 21 सितंबर से 8 नवम्बर तक देश भर में क्रांतिकारी जोश के साथ मनाने के साथ दीर्घकालीन जन युद्ध को देशभर में विस्तृत और तेज करना है। नक्सलवादी क्रांति जिंदाबाद। माओवाद ऐलान कर रखा है कि बड़े पैमाने पर पार्टी का सदस्य बनो और दंडकारण्य के क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाएं। जाहिर सी बात है कि नक्सली संगठन फरवरी तक नई भर्ती करेंगे। उसके बाद वे हमला करेंगे। वहीं उनकी दहशतगर्दी अभी भी कायम है।
गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा कि इन नौ महीनों में कांग्रेस सरकार ने नक्सली गतिविधियों पर काफी हद तक काबू पाया है। पूर्ववर्ती सरकार में साहस ही नहीं था वर्ना आज तस्वीर कुछ और होती। दंतेवाड़ा की कांग्रेस विधायक देवती कर्मा बोलीं. नक्सल पहले भी था आगे भी रहेगा, इसको खत्म करना मुश्किल है।
डी.जी डी.एम अवस्थी कहते हैं,’’ नक्सली डरे हुए है। इसलिए लगातार इनामी नक्सली सरेंडर कर रहे हैं। प्रदेश में माओवाद लगातार कमजोर होता जा रहा है। ऐसा नहीं लगता कि वे झीरम पार्ट टू कर सकेंगे। वहीं माना जा रहा है कि यदि सरकार नक्सलियों के प्रति अपना सख्त रवैया बनाई रखी तो नक्सली किसी गंभीर वारदात को अंजाम दे सकते हैं। वहीं भविष्य की रणनीति के तहत खुलेआम नई भर्ती का पोस्टर,बैनर और पर्चे बांट रहे हैं, जो अच्छा संकेत नहीं है।

नक्सली वारदातें दो माह की
0 नक्सलियों ने पुलिस की मुखबिरी करने का आरोप लगाते हुए मडकम रोहित की हत्या कर दी है। घटना सुकमा जिले के डब्बाकोंटा की है।
0 नारायणपुर में नक्सलियों ने एक ठेकेदार की सड़क निर्माण में लगी जेबीसी मशीन सहित मिक्चर मशीन को आग के हवाले किया।
0 कांकेर में नक्सलियों द्वारा ब्लास्ट करने से एक कंपनी के तीन कर्मचारियों की मौत हो गई है। जिसके बाद इलाके में सक्रिय नक्सलियों पर सवाल उठने लगे हैं।
0 दुर्गुकोंदल में नक्सलियों ने भारी मात्रा में बैनर.पोस्टर लगाया है। पोस्टर में आरएसएस कार्यकर्ता दादू सिंह की हत्या करने की बात कबूली और गिरफ्तार किए गए निर्दोष आदिवासियों को छोड़ने की चेतावनी दी है।
0 नक्सलियों ने किरन्दुल थानाक्षेत्र में पेरपा चैक पर ग्रामीण ताती बुधराम की धारदार हथियार से हत्या कर दिया और शव को सड़क पर फेंक दिया। पर्चा जारी करते हुए नक्सलियों ने ग्रामीण पर पुलिस की मुखबिरी का आरोप लगाया है।







सरेंडर करने वाले इनामी माओवादी
0 दक्षिण छत्तीसगढ़ की बड़ी नक्सल घटनाओं में शामिल बताई जा रही तेलंगाना राज्य कमेटी की मेंबर सुजाता उर्फ नागाराम रुपा को बीजापुर पुलिस ने गिरफ्तार किया।
0 बीजापुर पुलिस के सामने छह नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। आत्मसमर्पित नक्सलियों में दिलीप वड्डे चिन्ना प्लाटून कमांडर माड़ डिवीजन पर आठ लाख का इनाम। मड़कम बण्डी डिप्टी सेक्शन कमांडर माड़ डिवीजन पर तीन लाख इनाम। सनकी बड्डे उर्फ सुजाता प्लाटून दो अबूझमाड़ एरिया कमेटी पर दो लाख इनाम। महेश वासम सीएनएम सदस्य नेशनल पार्क एरिया कमेटी, विनोद मेटटा सीएनएम सदस्य नेशनल पार्क एरिया कमेटी का नाम शामिल है।
0 सुकमा पुलिस ने पांच लाख की इनामी महिला नक्सली माड़वी गंगी चिंतागुफा क्षेत्र निवासी डीकेएमएस अध्यक्ष, केरलापाल एरिया कमेटी है जो कि 2006 से नक्सली कमांडर सतिषन्ना के द्वारा संगठन से जोड़ी गई थी। मड़कम हुंगी निवासी चिंतागुफा क्षेत्र कर्कोटा एलओएस सदस्या ईनामी 1 लाख रूपये,कुड़ामी गंगा निवासी कुकानार क्षेत्र पेदारास एलओएस सदस्य ईनामी 1 लाख रूपये, सोड़ी जोगा निवासी गादीरास क्षेत्र नक्सली सहयोगी।
0 दंतेवाड़ा पुलिस को नक्सलियों के खिलाफ बड़ी कामयाबी हाथ लगी। चार इनामी नक्सली समेत 28 नक्सलियों ने जवानों के सामने सरेंडर किया है। आत्मसमर्पित नक्सलियों में 26 नम्बर प्लाटून सदस्य मंगलू 2 लाख का इनाम, बामन कवासी कटेकल्याण एल जी एस सदस्य 1 लाख इनामी, हांदा एल जी एस सदस्य 1 लाख इनामी पोडियामी गंगी, सीएनएम कमांडर 1लाख इनामी सन्नू मरकाम, भीमा कुड़ामी, हांदो कुडामी,रोसोल माडवी,जोगा कवासी, बुधरा माडवी, आयता मडकामी, आयतू मडकामी, हडमा सोढ़ी, मादे कुहराम, बामन मरकाम, लक्खोकुडामी, लखमा मुचाकी, हुंगा मुचाकी, सुकड़ा मुचाकी, गागरू मरकाम, सुकड़ा मड़कामी, हडमाकवासी, लच्छूकोवासी, बामन मरकाम, बुधराम कवासी, हिड़मा मड़काम,सुकड़ा  कवासी, महादेव पोडियाम जनमिलिशिया सदस्य शामिल है।

किसी भी नक्सली नेता को जीवनदान नहीं देंगे: भूपेश
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हंै कि नक्सलियों से समझौता नहीं करंेगे। केन्द्र सरकार को चाहिए कि दूसरे राज्य के जितने भी इनामी नक्सली हैं उन्हें गिरफ्तार करे। आन्ध्र सरकार को निर्देश दे। अन्यथा छत्तीसगढ़ की पुलिस नक्सली नेताओं को जीवनदान नहीं देगी। छत्तीसगढ़ का कोई भी आदिवासी नक्सली नहीं हैं। जो भी यहां नक्सली नेता हैं वे तेलंगाना या फिर आन्ध्र प्रदेश के हैं। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश -
0 रमन सरकार के समय भी निर्दोष आदिवासी नक्सली बताकर मार दिये जाते थे। कांगे्रस सरकार के समय भी ऐसी घटनायें हो रही हैं।
00 आंकड़े बढ़ाने के लिए निर्दोष आदिवासियों को नहीं मारेंगे। और उन्हें नक्सली कहकर गिरफ्तार भी नहीं करेंगे। सच तो यह है कि हमारे यहां कोई भी अदिवासी नक्सली नहीं है। जितने भी नक्सली नेता हैं वो आन्ध्र के हैं या फिर तेलंगाना के हैं। हमारे राज्य में जो भी नक्सली नेता आयेगा वो मारा जायेगा। दूसरे राज्य में जाकर हम कार्रवाई नहीं कर सकते। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वो बताये कि कितने इनामी नक्सली हैं। हमारे यहां कोई भी आदिवासी नक्सली नहीं है।
0 छत्तीसगढ़ में ज्यादातर नक्सली नेता बाहर के हंै। क्या उनसे बात चीत कर समाधान का कोई रास्ता निकालना चाहेंगे?
0 हम किसी भी नक्सली नेता से बात नहीं करेंगे। वो छत्तीसगढ़ छोड़कर चले जायें अन्यथा हमारी पुलिस उन्हें अभयदान नहीं देगी। अभी तक जितने भी इनामी नक्सली पकड़े गये हैं वो सब के सब भरमार बंदूक के साथ नहीं बल्कि, एक के 47 जैसे घातक हथियार के साथ पकड़े गये हैं। छत्तीसगढ़ में जितने भी इनामी नक्सली हैं वो सब के सब आन्ध्र के हैं। यह आन्ध्र प्रदेश की सरकार की जवाबदारी है कि वह इन्हें गिरफ्तार करे या फिर मारे।
0 ज्यादा तर नक्सलियों के पास विदेशी हथियार हैं। आखिर ये हथियार उन्हें मिलता कहां से है?
0 सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो भी इनामी नक्सली पकड़े जाते हैं या फिर मारे जाते हैं उनके पास घातक हथियार कहां से आते हैं। चीन,जपान या फिर विदेशी रायफल छत्तीसगढ़ में बनती नहीं। इसके अलावा गोलियां भी बाहर के होते हैं या फिर हमारे देश के कारखाने के। जाहिर सी बात है कि नक्सलियों के तार बाहर से जुड़े हैं। यह केन्द्र सरकार की जवाबदारी है कि उन्हें हथियार मुहैया कराने वालों का पता करे और उनके खिलाफ कार्रवाई करे।
0 आप कश्मीर मामले का विरोध क्यों करते हैं?
00 भाजपा के घोंषणा पत्र में 370 हटाने का जिक्र था। इसलिए हमें उनके एजेंडे पर एतराज नहीं है। एतराज इस बात पर है कि छत्तीसगढ़ राज्य बना तो मध्यप्रदेश विधान सभा से प्रस्ताव पास हुआ। यू.पी विधान सभा में भी प्रस्ताव पारित होने के बाद उत्तराखंड बना, इसी तरह बिहार विधान सभा में प्रस्ताव पारित होने पर झारखंड बना। लेकिन बिना प्रस्ताव पारित हुए जम्मू और कश्मीर को अलग किये जाने पर हमें एतराज है। राज्य की जनता को बगैर विश्वास में लिये यह किया गया। जनता के विश्वास के साथ अविश्वास किया गया है।
0 इन दिनों मंदी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। क्या छत्तीसगढ़ में भी इसका असर है?
00 देश में मंदी है लेकिन,छत्तीसगढ़ में मंदी के हालात नहीं है। आटो से लेकर रियल स्टेट में भी मंदी नहीं है। प्रदेश सरकार के राजस्व में कमी नहीं आई है बल्कि, बढ़ोतरी हुई है।