Sunday, June 9, 2019

जख्मों से भरे चेहरे में साहस

                                                                   जख्मों से भरे चेहरे में साहस

आदिवासियों के बीच सोनी सोरी संघर्ष का चेहरा बन चुकी हैं। वर्दी से उभरने वाली दरिंदगी और महिलाओं से कू्रर व्यवहार के खिलाफ खड़ी होना सोनी सोरी का एक मात्र मकसद है। दिल दहला देने वाले सच को सामने लाने का साहस दिखाई तो उनके ऊपर एसिड अटैक हुआ। वे कहती हैं वर्दी के जुल्म से सच नहीं डरेगा। जख्मों से चेहरा भर गया है,मगर मुझे हर बार दोगुने साहस और हिम्मत से सच का साथ देने की ताकत देता रहेगा।
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                 छत्तीसगढ़ में माओवादी हैं तो सुरक्षा बल है। सुरक्षा बल है तो सोनी सोरी की आवाज है। जो वर्दी से उभरने वाली दरिंदगी के खिलाफ गूंजती है। सोनी सोरी का नाम आज छत्तीसगढ़ में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इस आदिवासी बाला को आज बेहद इज्जत की नजरों से देखा जाता है।सामाजिक कार्यकत्र्ता हिमांशु कुमार के मार्ग दर्शन में पढ़ी लिखी यह आदिवासी महिला कभी जबेली स्थित आदिवासियों के सरकारी स्कूल में एक शिक्षिका थी। उनके पिता मदरू राम सोरी 15 साल तक गांव के सरपंच रहे। चाचा नदानाम सोरी सीपीआई के पूर्व विधायक हैं।भाई सहदेव सोरी कांग्रेस में हैं और भतीजा लिंगाराम ने दिल्ली से पत्रकारिता का डिप्लोमा लिया है। सोनी के पति अनिल पुताने को पुलिस माओवाद के साथ आरोप में जेल भेज दिया था,बाद में उनकी मौत हो गई। सन् 2003 में सोनी सोरी ने आप‘ पार्टी के टिकट पर सांसद का चुनाव लड़ा तब से वे ‘‘आप‘‘ के बैनर तले इस क्षेत्र में नक्सलवाद को लेकर आवाज उठा रही है। दंतेवाड़ा जिले में खासकर जहां सोनी सोरी और लिंगा राम रहते हैं,पालनार,समेली,जबेली,और गीदम माओवादियों के गढ़ माने जाते हैं। घने जंगलों में अच्छादित इस इलाके में नक्सलियों और सीआरपी दोनों के ठिकाने हैं।यही वजह है कि यहां हत्यायंे और प्रति हत्यायें दोनों सक्रामक रोग की तरह फैली हुई है। यहा रहना एक सजा है। क्यों कि यहां रहते हुए माओवादियों का  साथ दिया तो पुलिस आपको मार देगी और यदि पुलिस का साथ दिया तो नक्सली मार देंगे। सम्पन्न आदिवासी परिवार से ताल्लुकात रखने वाली सोनी सोरी के पीछे भी पुलिस पड़ गई थी। सन् 2011 में पुलिस ने आरोप लगाया कि माओवादी लिंगाराम कोडपी को एसार के ठेकेदार बी.के.लाला 15 लाख रूपये देते पकड़ा गया और माओवादियों की सहयोगी सोनी सोरी फरार हो गई। पुलिस के इस आरोप के बाद सोनी सोरी कई मुश्किलों से जूझते हुए दिल्ली पहुंची और वहां उन्होंने कुछ मानवाधिकार कार्यकत्र्ताओं से मदद की गुहार लगाई।सोनी सोरी पर इससे पहले भी पुलिस कई फंदे डाल चुकी थी।7 जुलाई 2010 को क्षेत्र के कांग्रेसी कार्यकत्र्ता गौतम के घर डेढ़ सौ नक्सलियों ने हमला किया था। 15 अगस्त 2010 को कुआंकोंडा का नया तहसील आॅफिस एक बम धमाके में पूरी तरह घ्वस्त हो गया था और 16 सितंबर 2010 को नक्सलियों ने नरली में कुछ ट्रकों में आग लगा दी थी। इन सभी मामलों में पुलिस ने कोर्ट में पेश किये गये चालान में सोनी सोरी को आरोपी बनाया था। लेकिन यहां पुलिस अपने ही बुने जाल में फंस गई क्यों कि जिन तारीखों में यह घटनायें हुई दिखाई गई थीं,उन दिनों में सोनी सोरी लगातार जबेली स्कूल जाती रही थीं। जिसका सबूत वह रजिस्टर है जिस पर वो हर दिन अपनी हाजिरी भरती थीं। एसार मामले में सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद अंततः सोनी सोरी को जमानत मिल गई। आज सोनी सोरी आदिवासियों के बीच संघर्ष का चेहरा बन चुकी हैं।वर्दी से उभरने वाली दरिंदगी और महिलाओं से कू्रर व्यवहार की खिलाफत करना सोनी सोरीं का एक मात्र मकसद है। उनकी आवाज को दबाने-कुचलने की हर संभव कोशिश हो रही है। दिल दहला देने वाले सव को लगातार सामने लाने का साहस दिखाने पर उनके ऊपर एसिड अटैक हुआ। लेकिन उनकी हिम्मत टूटी नहीं। वे कहती हैं वर्दी के जुल्म से सच नहीं डरेगा। जख्मों से चेहरा भर गया है,मगर ये जख्म मुझे हर बार दोगुने साहस और हिम्मत से सच का साथ देने की ताकत देते रहेंगे। सोनी सोरी से ओपिनियन पोस्ट की लम्बी बातचीत -

0 आपॅरेशन प्रहार एक दो तीन चार से क्या नक्सली कमजोर हुए हैं।
डाॅ रमन सिंह जब मुख्यमंत्री थे तब वे ऐसा कहते थे। ऐसा लगता है कि पुलिस अफसर उन्हें ऐसी रिपोर्ट देते रहे होंगे कि नक्सली कजारे हुए हैं। आॅपरेशन प्रहार से नक्सली मारे गये हैं तो जवान भी शहीद हुए है। जो ऐसा कह रहे हैं कि आॅपरेशन प्रहार से नक्सली कमजारे हुए हैं,उनका भ्रम है। बिलकुल भी नक्सली कमजोर नही पड़े है। सच तो यह है कि इस अभियान से आदवासियों पर अत्याचार बढ़ा है।
0 रमन सरकार कहती रही है कि लाल गलियारे का क्षेत्र अब पहले से कम हो गया है। क्या यह मान लिया जाये कि रमन सरकार आगे भी रहती तो नक्सलवाद खत्म हो जाता?
00 रमन सरकार रहती तो नक्सलवाद और बढ़ गया। वारदात तो हर दिन हो रही है। वारदात यदि कम होती तो माना जाता कि नक्सलवाद खत्म होता। आये दिन आदिवासी मारे जाते रहे हैं जवान शहीद होते रहे हैं। सलवा जुड़ूम ने आदिवासियों को बहुत नुकसान किया। नक्सलवाद को खत्म करने रमन सरकार ने सलवा जुडूम को बढ़ावा देकर सबसे बड़ी गलती की।
0 कांग्रेस की सरकार आने से क्या नक्सलवाद खत्म होेने की संभावना है।
00 बस्तर की शाति के लिए कांग्रेस सरकार से बातचीत करेंगे। राहुल गांधी कहते हैं बदलाव लायेंगे। लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नक्सलाद को लेकर जिस तरह अपने बयान बदल रहे हैं,उससे ऐसा लगता है कि ये सरकार भी अभी नक्सली समस्या के निराकरण के प्रति गंभीर नहीं है। लेकिन यदि सरकार हम लोगों को बुलाकार बात करती है तो हम बात जरूर करेंगे।
0 छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद खत्म नहीं होने के पीछे पुलिस का कितना हाथ है मानती हैं।
00 पुलिस को सरकार जो आदेश देती है वो वैसा करती है। इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता कि ऐसी कई वारदातें हुई हैं बस्तर में जिसमें पुलिस का सीधे हाथ रहा है। सामूहिक बलात्कार और नक्सली बताकर पुलिस ने कईयों को गोली मार दी।  बस्तर के आदिवासियों के साथ जितना जुल्म होगा,बेराजोगारी बढ़ेगी,मार पीट किया जायेगा,सरकार जुल्म करेगी,आदिवासियों को नक्सली बताकर जेल में डाल देना,अच्छी शिक्षा की कमी और महिलाओं केे साथ जुल्म और जल जंगल जमीन से आदिवासियो को जितना बेदखल किया जायेगा नक्सलवाद उतना बढ़ेगा।
0 पुलिस कहती है कि नक्सली जब तक रहेंगे तब तक सोनी सोरी की राजनीति चलती रहेगी।
00 पुलिस से हमारा कोई बैर नहीं है। हमारी लड़ाई सरकार से है। पुलिस में जो हैं,वो भी किसी न किसी के बेटे हैं। पुलिस अपनी रोजी रोटी के लिए सरकार के इशारे पर काम करती है। मुझ पर जो आरोप लगाये गये हैं गलत है कोर्ट ने भी माना है। पुलिस मुझे नक्सली बताकर कई मामले दर्ज की। हम कोर्ट में उसकी लड़ाई लड़ रहे हैं। चार मामले खारिज हो चुके हैं। कुछ मामले चल रहे हैं। कोर्ट तय करेगा कि मै सही हॅू या फिर गलत। आदिवासियों के साथ पुलिस जब तक नक्सलियों की आड़ में जुल्म ढाती रहेगी तब तक सोनी सोरी की आवाज उठती रहेगी।
0 पुलिस कहती है कि आप नक्सलियों से मिली हैं। नक्सली आप से मिलते रहते हैं। यह आरोप या सच भी है।
00 सरकार ने मुझे बदनाम किया। मै टीचर थी। मुझे नक्सली बताया गया। मेरे भाइयों को बेदखल किया गया। यदि मै नक्सलियों की मददगार होती तो नक्सली मेरे पिता की हत्या न करते। उनसे मेरे अच्छे तालुकात होते तो मै अपने पिता को बचा लेती।
0 क्या जो नक्सली सरेंडर किये हैं वो खुश हैं ऐसा मानती हैं
00 सरेंडर को मै जायज नहीं मानती। जो व्यक्ति 10-15 साल तक नक्सली रहा है। उसके साथ अत्याचार और जुल्म होने की वजह से वह नक्सली बना। उसके सरेंडर करने के बाद उसे पुलिस बना कर उसके हाथ में बंदूक थमा दिया गया। गांवों वालों को नक्सलियों का मुखबिर कहकर उनके साथ मारपीट करता है। नक्सलियों के खिलाफ बंदूक उसे दे दिया गया मारने को। यानी नक्सली होकर गोली मारे तो अपराधी है,और पुलिस बनकर अपने आदिवासी भाइयों पर गोली चलाये तो शबासी। यह नीति गलत है।
0 बस्तर आई जी रहे एस आर कल्लूरी का जाना ठीक था या फिर उन्हें कुछ दिन और रखा जाना ठीक था।
00 उनका रहना बस्तर के लिए ठीक नहीं था। उनके चले जाने से बस्तर में हिंसा रूक गई ऐसा भी नहीं है। वे थे तब भी नक्सलियों का खौफ था आज भी है। पुलिस कई आदिवासियों को नक्सली बताकर जेल में डाल दी है। हम कोर्ट में मामला लगा रखे हैं।
0 पुलिस तो आपको माओवादियों की समर्थक कहती है,फिर ऐसी क्या वजह है कि पुलिस ने सरकार से आपको वाय श्रेणी की सुरक्षा देने की वकालत की?
00 पुलिस सच का साथ देने वालों से डरती है। सच से डरती है। निहत्थी औरत से डरती है। मुझे भी अचंभा हुआ कल तक जिस सोनी सोरी को राज्य सरकार माओवादियों की मुखबिर कहकर जेल में डाल दी थी। उसी को वाय श्रेणी कीे सुरक्षा देने की पेशकश की। आखिर ऐसा क्यों? क्या सोनी सोढ़ी बदल गई या फिर सरकार बदल गई। उसे भी लगने लगा कि सोनी माओवादी की मुखबिर नहीं है या फिर बस्तर के आईजी एस.आर.पी. कल्लुरी के खिलाफ उठने वाली ऊगलियों ने उन्हें अंदर तक डरा दिया। आनन फानन में उन्होंने मुझे वाय श्रेणी की सुरक्षा देने सरकार से सिफारिश किए। दरअसल रमन सरकार अपनी साख बचाने के लिए सियासी नाटक की है। सरकार और कल्लुरी यह बाताना चाहते हैं कि वे आदिवासी औरतों के शुभचिंतक हैं। जबकि बस्तर की महिलाएं वर्दीधारी गुंडों की वजह से बहुत ही नारकीय जीवन जी रही हैं।
0 क्या आप उन लोगों को पहचानती हैं,जिन्होंने आप पर एसिड अटैक किया?
00 मेरे साथ कभी भी गंभीर वारदात हो सकती है। पुलिस क्या करने वाली है इसकी भनक मुझे मेरे एक शुभ चिंतक से मिल गई थी। लेकिन ऐसा होगा,इसकी उम्मीद नहीं थी। यदि उस शुभ चिंतक का नाम उजागर कर देती तो पुलिस उसे नक्सली बताकर मार देती। एसआईटी मामले की जांच कर रही है। देखना चाहती हॅंू कि पुलिस किसे आरोपी बनाती है। वैसे इस वारदात की पुलिस तो कई कहानियंा बनाकर मीडिया को दे चुकी है। 
0 आपके साथ हुए वारदात मे क्या बस्तर के आईजी का हाथ हो सकता है?
00 बस्तर के आईजी एसआरपी कल्लूरी मुझ पर हुए एसिड हमले के साजिशकर्ता हो सकते हैं। इस हमले से आईजी के अलावा किसी और को कोई फायदा नहीं होगा। वे मुझे और मेरे रिश्तेदारों को सालभर से परेशान कर रहे हैं। मेरी बहन,पिता और भतीजे को उठा ले गए। भतीजे पर दबाव बना रहे हैं कि वह हमले की जवाबदारी ले ले, ताकि उसके खिलाफ कोर्ट में दस्तावेज पेश कर सकें। आईजी एस.आर.पी. कल्लुरी मेरे पिता को बुलाकर कहे ,‘‘उनकी बेटी गंदी और नंगी औरत है। मै उन्हें बताना चाहूंगी कि दुनिया में कोई भी औरत गंदी नहीं होती। सोच गंदी होती है। आप को जिस मां ने पैदा किया है वो भी गंदी नहीं है। आपकी कार्य प्रक्रिया गंदी है। गरीब आदिवासियों को नक्सली बताकर उन्हें रास्ते से हटाने की साजिश करते हो,इससे बड़ा गंदा काम और क्या होगा।
0 मामले की जांच तो एसआईटी कर रही है। क्या आपको पूरी मदद मिलेेगी,ऐसा भरोसा है?
00 मै तो दिल्ली से आने के बाद एसआईटी के अधिकारियों को ढूंढ रही हॅू कि मेरा बयान ले लें। लेकिन कोई भी अभी तक आया नहीं। आएं तो पता चले कि वो क्या पूछते हैं। अभी कुछ नहीं कह सकती कि मुझे उनसे मदद मिलेगी कि नहीं। पुलिस और सरकार के इशारे पर एसआईटी काम करेगी तो मदद मिलने की संभावना तो कम ही है।
0 पुलिस आपको माओवादी का समर्थक किस आधार पर कहती है।
00 माओवादी नहीं चाहते कि सरकारी स्कूल चलें। बच्चे पढ़ें। मै दंतेवाड़ा की जबेली पंचायत में शिक्षक थी। वहां माओवादी अक्सर आते जाते थे। माओवादी नहीं चाहते थे कि आश्रम में स्कूल चले। उन्होंने घोषणा कि आश्रम में स्कूलें लगाना बंद करें अन्यथा उन्हें गिरा देंगे। मै ने उनसे कहा कि आश्रम गिरा दोगे तो बच्चे कहां पढ़ेंगे। उनसे उनकी तालीम का हक न छीनो। उन्होंने कहा कि एक शर्त पर तुम्हारी बात मान ली जाएगी कि यहां पुलिस वाले नहीं ठहरेंगे। मै ने उन्हें इस बात का भरोसा दिलाया। आश्रम में पुलिस को ठहरने नहंीं दियां। प्रशासन को संदेह हुआ कि माओवादी मेरी बातें मानते है। पुलिस वालों ने कहा कि मै पुलिस की मुखबिर बन जाऊं। लेकिन इंकार कर दिया तो मुझे माओवादियों का समर्थक होने की साजिश कर, प्रचार किया गया। आज भी इस बात का विरोध कर रही हूूं।
0 लेकिन पुलिस का आरोप है कि माओवादियों को पैसा पहुंचाती हो।
00 पुलिस का काम है झूठा आरोप लगाना। आज तक यह सिद्ध नहंीं कर सकी कि मै माओवादियों के संपर्क में रहती हॅू। उन्हें उद्योगपतियों का पैसा पहुंचाती हॅू। जिस घटना से मुझे पुलिस जोड़ रही है,झूठ है। पैसा पहुंचाने के काम में मानकर नाम का एक पुलिस कर्मी सहित कुछ और लोग शामिल थे। जबकि पुलिस का कहना था कि मै माओवादियों को पैसा पहुंचा दूं तो तुम्हारे पति और तुम पर जो मामला दर्ज है, उसे खत्म कर दिया जाएगा। उनकी बातें नहीं मानी तो मुझे झूठे केस में फंसा दिए। चूंकि पहले से मुझ पर पुलिस का मुखबिर बनने का दबाव डाला जा रहा था। अपनी हार देखते हुए पुलिस मुझे झूठे केस में फंसाते आ रही है।
0 पुलिस से आपकी नहीं जमती। क्या यह मान लें कि कानून और पुलिस के बीच आपका छत्तीस का रिश्ता है?
00 मै कानून पर भरोसा करती हॅू। तभी तो अपने अंचल की महिलाओं के हक के लिए लड़ रही हॅू। उनके साथ पुलिस की ज्यादती के खिलाफ आवाज उठा रही हू। नहीं तो मै भी बंदूक उठाकर लाल गलियारे का रूख कर लेती। शिक्षिका बन कर बच्चों को जागृत क्यों करती कानून के प्रति और राष्ट्र के प्रति। माओवादियों की मै हितैषी होती तो मेरे पिता मुंडाराम के पैर में नक्सली गोली न मारते। मेरा घर न उजाड़ा जाता। माओवादी से पीड़ित होने का मुआवजा न दिया जाता। यदि मै पुलिस के अत्याचार और जुल्म के खिलाफ न बोलूं तो यही पुलिस कल से मुझे माओवादी या फिर माओवादी की समर्थक कहना छोड़ देंगे। लेकिन मै जख्मों से भरे चेहरे के बावजूद अन्याय के खिलाफ खड़ी होना नहीं छोड़ सकती।
00 क्या आप मानती है कि पुलिस भारी संख्या में जिन्हें माओवादी बताकर सरेंडर करा रही है वो सच में नक्सली ही है?
00 जिस तेजी से माओवादियों के सरेंडर करने की खबरे आ रही हैं,उस पर सभी को संदेह है। कई ऐसी वारदातों का खुलासा की हॅू,जिसमें पुलिस के आला अफसरों ने नक्सली बताकर जिन्हें शूट किया वे सब के सब ग्रामीण थे। उनका पुलिस के पास कोई अपराधिक रिकार्ड नहीं था। माओवादियों ने भी कई बार पाम्पलेट बांटकर कहा कि पुलिस जिन लोगों को मारी है या फिर पकड़ी है वे नक्सली नहीं है। पुलिस अपनी वाहवाही के लिए नकली नक्सली को  आत्मसमर्पण कराई है।
0 क्या यह सच है कि पुलिस ग्रामीणों को भी नक्सली बताकर मार देती है?
00 इसकी सूची बेहद लंबी है। सुकमा थाना क्षेत्र के अदलमपल्ली जंगल में गत 4 नवंबर को पुलिस ने तीन नक्सलियों को मुठभेड़ में मारने का दावा किया,किन्तु दोरनापाल थाने को घेरकर ग्रामीणों ने दावा किया कि मारे गए तीनों आदिवासी किसान थे,नक्सली नहीं। बीती कई घटनाएँ इस बात की साक्षी हैं, जिसमें चैपाल में इकठ्ठा हुए ग्रामीणों, खेतों में भेड़,बकरी चराने वाले या फिर महुआ बिन रही महिलाएं पुलिस को देखकर  डर कर भागने लगीं तो पुलिस ने उन्हें भून दिया। बात 7 मई 2013 को बीजापुर जिले के एड्समेटा में पूजा के लिए एकत्र हुए आदिवासियों को पुलिस एवं कोबरा बटालियन के जवानों ने घेर लिया और गोलियां बरसाईं। इस गोलीबारी में 3 बच्चों सहित 8 ग्रामीण मारे गए। पुलिस को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो इस घटना को उसने मुठभेड़ की शक्ल दे दी। 6 जुलाई 2011 को बलरामपुर जिले के चांदो थाना क्षेत्र के अंतर्गत लांगर टोला में 17 वर्षीय मीना खलको को पुलिस ने माआवोदी बताकर उस समय गोली मारी जब वह भेड़ों को चरा रही थी। अनीता झा न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में उसकी हत्या एवं बलात्कार की पुष्टि हुई। इसके आधार पर तत्कालीन थाना प्रभारी सहित 25 पुलिस जवानों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया। गत 24 दिसंबर को चिंतलनार में 75 नक्सलियों के आत्मसमर्ण का ढिंढोरा पीटा गया। जबकि उसमें आधा सैकड़ा लोग ग्रामीण थे। घर में सो रहे हिड़मा को पुलिस ने मीटिंग के नाम पर उठा ले गई और हत्या कर बताया कि आठ लाख का इनामी नक्सली था। नुप्पो भीमा दंतेवाड़ा का रहने वाला किसान था। उसे माओवादी बताकर जवानों ने मार डाला।
0 बस्तर में माओवादी और सुरक्षा बलों के बीच चल रही जंग में कौन जीत सकता है?
00 कौन जीतेगा और कौन हारेगा मै नहीं जानती। लेकिन एक बात कहूंगी कि इस लड़ाई में दोनों तरफ से आदिवासियों की ही हार है। मर तो आदिवासी ही रहे हैं। वो चाहे नक्सली बनकर पुलिस की गोली से मरें या फिर माओवादियों को पनाह देने या फिर मददगार बनने पर पुलिस उन्हें प्रताड़ित करे अथवा माओवादियों के लिए काम नहीं करने पर नक्सलियों की गोली का शिकार हों।
0 बस्तर में महिलाओं को नक्सलियों से ज्यादा खतरा है या फिर पुलिस से,क्या मानती हो?
00 इस समय बस्तर में नक्सलियों की आड़ में पुलिस महिलाओं को शिकार बना रही है। वो चाहे मालिनी सुब्रहमणियम को प्रताड़ित करने का मामला हो या फिर दंतेवाड़ा,बीजापुर में सामूहिक बलात्कार का अथवा महिलाओं को अपने मातृत्व का प्रमाण देने का हो या फिर स्वयं सोनी सोरी हो। दंतेवाड़ा जेल में मुझे निर्वस्त्र रखा जाता था। जहां पुलिस वाले मेरे अंगों के साथ जंगली बर्ताव करते थे। (यह कहकर सोनी फफक कर रो पड़ी) दंतेवाड़ा एसपी ने तो मेरे गुप्तांग में पत्थर तक डाल दिए थे। बस्तर में आदिवासी महिलाओं के साथ पुलिस का बर्ताव शालीन नहीं है।
0 पुलिस की आॅखों की किरकिरी बनी हुई हो,खुद पर अब अटैक होने लगा है। ऐसे में क्या जीवन का कोई मकसद है?
00 बगैर मकसद के जीना भी कोई जीना है। जेल में थी तो कोई मकसद नहीं था। मर जाना चाहती थी। लेकिन जेल में महिलाओं की बुरी हालत और उनके साथ हुई घिनौनी वारदात ने जीने का मकसद तय कर दिया। बस्तर संभाग में आदिवासी महिलाओं के साथ घिनौने और बर्बर तरीके से पुलिस पेश आ रही है। यदि इनकी खिलाफत करने वाला कोई न हो तो जीना दुश्वार हो जाए। बहन,बेटियों को ऐसे आतताइयों का जुल्म सहते हुए सिसकने नहंीं दूंगी। चाहे पुलिस मेरा एनकांउटर ही कर दे।