Thursday, March 30, 2023

मानहानि के फैसले पर टन भर राजनीति

"राहुल गांधी ने पूरे मोदी समुदाय पर आरोप नहीं लगाया। बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी का भी नाम नहीं लिया। फिर मान हानि पूर्णेश मोदी और मोदी समुदाय की कैसे हो गयी? सूरत का फैसला कहांँ तक उचित है,सवाल है ही,साथ ही सत्ता पक्ष की सियासत ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं।" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ यह एक यक्ष प्रश्न है। राहुल के बयान से किसकी मानहानि हुई। समुदाय की या व्यक्ति की? ललित मोदी,नीरव मोदी और नरेन्द्र मोदी क्या अदालत में याचिका फाइल कर कहा, कि राहुल गांधी के बयान से हमारी मानहानि हुई है? याचिका कर्ता पूर्णेश मोदी का नाम राहुल गांधी ने लिया नहीं। राहुल गांधी ने मोदी समुदाय पर आरोप लगाया नहीं। उन्होंने कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली में नीरव मोदी,ललित मोदी और नरेन्द्र मोदी को चोर कहा। और यह पूछा,कि सब चोरों के सरनेम मोदी ही क्यों हैं। यह नहीं कहा, कि सब मोदी चोर हैं। राहुल गांधी के वकील ने दलील दी थी,कि पूर्णेश मोदी को इस मामले में पीड़ित पक्ष के रूप में शिकायतकर्ता नहीं होना चाहिए था। क्योंकि राहुल गांधी नें अधिकांश भाषणों में प्रधानमंत्री को निशाना बनाया है,न कि पूर्णेश मोदी को। बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा कहते हैं,राहुल गांधी नेे ललित मोदी,नीरव मोदी और नरेन्द्र मोदी को चोर कहकर ओबीसी समाज का अपमान किया है। वहीं सवाल यह है,कि योगी आदित्यनाथ ने सी.एम. बनने के बाद आखिलेश यादव के आवास खाली करने पर गंगाजल से धुलवा कर,क्या ओबीसी समाज का सम्मान बढ़ाया था? ललित मोदी मारवाड़ी हैं और नीरव मोदी जैन। क्या इन्हें चोर कहने से ओबीसी समुदाय का अपमान होता है? नरेन्द्र मोदी ओबीसी से आते है। तेली जाति के हैँ । वैसे भी गुजरात में परचून का काम करने वाले मोदी कहे जाते हैं। क्या यह मान लिया जाए,कि देश की अर्थव्यवस्था पर चोट करके भागे नीरव मोदी और ललित मोदी का बीजेपी ओबीसी के नाम पर सम्मानित करना चाहती है? अजीब क्रोनोलाॅजी है - राहुल गांधी ने सात फरवरी को मोदी और अडानी मामले पर लोकसभा में सवाल किये। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में लिखा है कि देश के बाहर अडाणी की शेल कंपनियां हैं। सरकार बताए ये कंपनियां किसकी है। शेल कंपनियों से अडाणी के खाते में आया बीस हजार करोड़ रुपए किसका है? गौरतलब है कि देश में एक लाख 75 हजार सेल कंपनियां बंद कर दी गई हैं। सोलह फरवरी को शिकायत कर्ता पूर्णेश मोदी गुजरात हाई कोर्ट में खुद का स्टे वापस ले लेते हैँ । 27 फरवरी को सुनवाई शुरू होती है। 17 मार्च को फैसला रिजर्व और 23 मार्च को फैसला आता है। आनन फानन में लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी। प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार किसी भी जन प्रतिनिधि को दो साल या फिर इससे अधिक की सजा होती है,तो उसकी सदस्यता चली जाती है। जबकि मध्यप्रदेश में बीजेपी के दो विधायकों के साथ ऐसा अभी तक नहीं हुआ है। सूरत की अदालत का फैसला कहांँ तक उचित है,उस पर भी चर्चा है। यद्यपि सूरत की अदालत ने राहुल गांधी को एक महीने का समय दिया है ऊपरी अदालत में अपील करने का। लेकिन लोकसभा सचिवालय ने एक दिन की भी मोहलत देना उचित नहीं समझा। दिल्ली के घटनाक्रम से बहुतों को एहसास हुआ कि राजनीति क्या चीज है। असंभव को संभव बना दिया। छल,प्रपंच,स्वार्थ और साजिश। सभी एक साथ। राहुल के साथ जो हुआ,सब खेल है। प्रयोजित है। कुछ संयोग और कुछ दुर्योग। पर अभी भी बहुत कुछ होना बाकी है। कांग्रेस देश भर में सत्याग्रह कर रही है। और राहुल मामले को लेकर लगभग सभी विपक्षी दल एक हो रहे हैँ । यानी सन् 1977 जैसा मामला है। यदि ऐसा हुआ तो 2024 की चुनावी डगर बीजेपी के लिए टेढ़ी हो सकती है।जैसा कि अरविंद केजरीवाल कहते हैं,देश में गैर बीजेपी नेताओं को मुकदमें में फंसा कर खत्म करने की साजिश की जा रही है। हमारे कांग्रेस से मतभेद हैं,मगर राहुल गांधी को इस तरह मानहानि केस में फंसाना ठीक नहीं। हम अदालत का सम्मान करते हैं,पर इस निर्णय से असहमत हैं। बीजेपी नेताओं का क्या होगा - मानहानि मामले पर राजनीति का पारा ऊपर नीचे अभी होता रहेगा। इसलिए कि विपक्ष भाजपा नेताओं के पुराने वीडियो सोशल मीडिया में जारी कर सवाल कर रहे हैं,कि क्या यह मानहानि नहीं है? जैसा कि कांग्रेस नेत्री सुप्रिया कहती हैं,मोदी जी ने चीन में कहा,पिछले जनम में कोई पाप किया था,इसलिए हिन्दुस्तान में जन्म लिया। पिछले सत्तर साल में देश में कुछ नहीं हुआ। क्या देश की 140 करोड़ जनता का यह अपमान नहीं है? संसद में मोदी ने रेणुका की हंसी पर कहे,रामायण सीरियल बंद होने के बाद पहली बार शूर्पनखा सी हंँसी सुनने को मिली। सोनिया गांधी को कांग्रेस की विधवा कहा गया। शशि थरूर की पत्नी सुनंदा को पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड कहे थे। सवाल यह है कि शीर्ष नेताओं की भाषा का संस्कार ऐसा होगा, तो फिर लोकतंत्र में शिष्टता,आदर्श और मूल्यवादी राजनीति के बचने की संभावना नहीं रह जाएगी। सवाल यह भी है, कि देश के नेताओं को बोलना कब आएगा? इतनी जल्दी बाजी क्यों - लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने में इतनी जल्दी बाजी क्यों की? यह सवाल हर कोई कर रहा है। न खाऊंगा और न खाने दूंगा नारे पर अब संदेह होने लगा है। इसलिए कि जो अडानी 2014 से पहले तक दुनिया में 609 वे नंबर पर थे और कुछ साल में दूसरे नंबर पर कैसे पहुंचे? नियम बदल कर अडाणी को 6 एयरपोर्ट दिए गए। दुनिया का सबसे ज्यादा प्रॉफिटेबल मुंबई एयरपोर्ट को जीवीके से हाईजैक कर लिया गया। एयरपोर्ट में आज अडाणी की 24 फीसदी हिस्सेदारी है। 126 हवाई जहाजों का जो एचएएल का कॉन्ट्रैक्ट था, अनिल अंबानी को चला गया। प्रधानमंत्री इजराइल जाते हैं और अडाणी को ड्रोन को री फिट करने का कॉन्ट्रैक्ट मिल जाता है। 4 डिफेंस की इनके पास कंपनियां है। प्रधानमंत्री ऑस्ट्रेलिया जाते हैं और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया वन बिलियन डॉलर लोन अडाणी को दे देता है। बांग्लादेश गए। कुछ दिन बाद बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड 25 साल का कॉन्ट्रैक्ट अडाणी के साथ साइन करता है। श्रीलंका राष्ट्रपति राजपक्षा ने कहा था,कि मोदी जी ने दबाव डाला था कि अडाणी को विंड पावर प्रोजेक्ट दे दिया जाए। मोदी इन आरोपों का कोई जवाब संसद में नहीं दिए। अडानी मामले पर जेपीसी भी गठित नहीं की। उक्त बातें राहुल संसद में फिर न उठा कर सरकार को कटघरे में खड़ा करें। इसलिए राहुल की सांसदी छिनी गई। बहरहाल राहुल गांधी के जेल जाने या फिर संसद सदस्यता खत्म होने से बीजेपी को कोई खास लाभ मिलेगा, इसकी संभावना नहीं दिख रही है। इसलिए कि राहुल के रहने पर ही बीजेपी को कोसने को बहुत कुछ मिलेगा। राहुल मामले पर जिस तरह पूरा विपक्ष एक होता दिख रहा है,इससे बीजेपी को नुकसान होगा।

Thursday, March 9, 2023

सीट बेल्ट बांध लें,चुनावी मौसम बदलने वाला है

"अगले साल दस राज्यों में चुनाव है। गुजरात चुनाव के बाद से आम आदमी पार्टी ने अपनी ओर सबका ध्यान खींचा है। सियासी गलियारों में सवाल उठने लगा है,आप किसे करेगी हाॅफ। क्या आप की वजह से चुनावी मौसम बदलेगा? किस पार्टी को अपनी सीट बेल्ट बांध लेनी चाहिए..?" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ गुजरात चुनाव से सियासियों को यह एहसास हो गया,कि आम आदमी पार्टी अब क्या चीज है? गुजरात में असंभव को भी संभव कर दिया। दो राज्यों में आप की सरकार। अब दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी का मेयर,यानी एमसीडी में कब्जा। अगले साल मेघालय,छत्तीसगढ़, कर्नाटक,राजस्थान,मध्यप्रदेश और राजस्थान में चुनाव है। गुजरात चुनाव के बाद से आम आदमी पार्टी ने अपनी ओर सबका ध्यान खींचा है। सियासी गलियारों में सवाल उठने लगा है,आप किसे करेगी हाॅफ। क्या आप की वजह से चुनावी मौसम बदलेगा? किस पार्टी को अपनी सीट बेल्ट बांध लेनी चाहिए? अगले साल होने वाले दस राज्यों के चुनाव में सबका ध्यान मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में है। मध्यप्रदेश में बीजेपी एंटीइन्कमबेसी के संक्रमण से गुजर रही है। जबकि है सत्ता में। लेकिन संशय में है। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। अंदर ही अंदर खामोशी है। शांति है,पर सब अशांत हैं। कांग्रेस के खेमे में तोड़ फोड़ कर उसने सरकार बना ली,मगर चुनाव में जनता उसे सत्ता सौपेंगी कि नहीं,बीजेपी के नेता दुविधा में हैं। गुजरात में पूरा मंत्रीमंडल बदल दिया गया था। मुख्यमंत्री भी। साथ ही 103 नए चेहरों को टिकट दिया गया। क्या यहाँ भी आप की वजह से ऐसा हो सकता है,या फिर ऐसा करना पड़ेगा। आंतरिक सर्वे और इंटेलीजेंस की रिपोर्ट ने बीजेपी हाईकमान का बी.पी.बढ़ा दिया है। उसे भी लगता है,एंटी इनकम्बेंसी की वजह से बीजेपी को बड़ा नुकसान होने का अंदेशा है। मध्यप्रदेश में भी शिवराज सरकार की बड़ी सर्जरी करके ही एंटी इन्कमबेंसी कम की जा सकती है। करीब 67 विधायकों के टिकट काटने की योजना है। ताकि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के लिए भष्मासुर साबित हो सके। वहीं बीजेपी के सामने अगामी चुनाव में कई सियासी कंटक है । सिंधिया गुट के बाद आज भी कांग्रेस में 95 विधायक हैं। बीजेपी को ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट को भी टिकट देना होगा। जाहिर है टिकट वितरण में संतुलन बनाना बीजेपी के लिए मुश्किल होगा। संतुलन तभी बनेगा,जब सीनियर विधायकों की टिकट कटेगी। बीजेपी और कांग्रेस से नाराज लोगों को टिकट देने आप कांउटर खोल कर बैठ जाएगी। ऐसे में सबसे ज्यादा बवाल बीजेपी में मचेगा। और आम आदमी पार्टी की वजह से नुकसान बीजेपी को होगा। ऐसा हुआ तो चुनाव का मौसम बदल जाएगा। सीट बेल्ट बांधने की बारी बीजेपी की है। आप से कांग्रेस का संगठन ज्यादा मजबूत होने से उसे खतरे का अंदेशा कम है। बीजेपी नेता मानते हैं कि,गुजरात जैसी मध्यप्रदेश की सियासी स्थिति नहीं है। यहांँ का वोटर भी वैसा नहीं है। लेकिन बरसों से बीजेपी में जो विधायक हैं,वर्तमान में मंत्री भी हैं। चुनाव प्रचार में या फिर लोकसभा चुनाव में उन्हें लगाया जा सकता है। देखा जाए तो बीजेपी में आठ बार से विधायक हैं गोपाल भार्गव। सात बार से विधायक हैं विजय शाह,गौरीशंकर बिसेन और कर्ण सिंह वहीं छह बार से विधायकों में जगदीश देवड़ा,नरोत्तम मिश्रा,बिसाहूलाल सिंह,पारस जैन,रामपाल सिंह और गोपीलाल जाटव हैं। पांच बार से विधायक कमल पटेल,प्रेम सिंह पटेल,तुलसी सिलावट,मीना सिंह,जय सिंह मरावी,सीतासरण शर्मा,नागेन्द्र सिंह। चौदह ऐसे विधायक हैं,जो चार बार से विधायक हैं। 28 विधायक तीन बार से है। दो बार के 36 विधायक हैं और पहली बार विधान सभा पहुंचने वाले 30 विधायक हैं। जाहिर सी बात है उन मंत्रियों और विधायकों की टिकट कट सकती है जिन्हें नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में बीजेपी के जिताने का दायित्व दिया गया था,लेकिन सफल नहीं हो सके। वैसे आप के पास कोई सियासी सिद्धांत नहीं। सिवाय रेवड़ी नीति के। यह रेवड़ी नीति का जादू किन राज्यों की जनता पर चलेगा,खुद आप भी नहीं जानती। लेकिन गुजरात चुनाव में उसकी वजह से कांग्रेस 77 सीट से फिसल कर 17 सीट पर आ गई। क्या मध्यप्रदेश में भी ऐसा हो सकता है? क्या वाकई कांग्रेस का विकल्प आप बन सकती है या फिर उसे बीजेपी का भी विकल्प बतौर जनता देखती है? शहरी अबादी का मध्यम वर्ग का तबका आप की रेवड़ी नीति से प्रभावित है। यह वोटर कांग्रेस और बीजेपी दोनों को वोट करता आया है। वो बंटेगा। आप उसी वोटर पर फोकस करेगी,जिन्हें कांग्रेस और बीजेपी करती है। उसकी नजर ओबीसी,एस.सी.और एस.टी.. वोटरों पर है । सन् 2018 के विधान सभा चुनाव में आप को मात्र 2.54 लाख वोट मिले थे। जबकि नगरीय निकाय और पंचायती चुनाव में उसे सात फीसदी वोट मिले। यदि वो विधान सभा चुनाव में पन्द्रह फीसदी वोट झटक लेती है तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों का नुकसान होगा। प्रदेश में आम आदमी पार्टी का सिंगरौली में मेयर है। जबकि इसे शिवराज सिंह चैहान सिंगापुर बनाने का वायदा किए थे। यहाँ आप के पांँच पार्षद हैं। यानी सिंगरौली जिले की विधान सभा में आप का दखल रहेगा। आप ने नगरीय निकाय चुनाव में पार्षद के लिए 1500 उम्मीदवारों को टिकट दिया था। जिसमें 51 प्रत्याशी चुनाव जीते। आप के 86 पार्षद प्रत्याशी दूसरे नम्बर पर थे। मेयर चुनाव में ग्वालियर से रूचि गुप्ता ने 45 हजार से अधिक वोट पाई थीं। वहीं सिंगरौली, उमरिया, कटनी, छतरपुर, टीकमगढ़, राजगढ़, शाजापुर,रतलाम,ग्वालियर के डबरा,श्योपुर,छिंदवाड़ा में पार्टी के पार्षद चुनकर आए हैं। तो क्या यह मान लिया जाए, कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस जिन 26 सीटों पर सात हजार से भी कम वोटों से जीती है, गुजरात जैसी स्थिति बनने पर कांग्रेस को पचास से अधिक सीटों का नुकसान होगा। दिल्ली से लगे ग्वालियर चंबल में दस विधान सभा आते हैं। आदिवासी रिजर्व सीटों पर आप का जयस(जय आदिवासी युवा शक्ति) से तालमेल है। ऐसे में कांग्रेस की दस सीटों का परिणाम प्रभावित हो सकता है। 2018 के चुनाव में आदिवासी की 47 सीट में 30 सीटें बीजेपी जीती थी। इस बार यह सीट घट सकती है। विधान सभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों की वजह से उसका वोट प्रतिशत पन्द्रह फीसदी हुआ तो चुनाव का मौसम बदल जाएगा। छत्तीसगढ़ में आप एक बूथ पर दस युथ की रणनीत पर काम कर रही है। आप के कार्यकर्ता घर घर जा कर जानकारियांँ एकत्र कर रहे हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस सात सीटों पर तीसरे नम्बर पर थी। 19 सीटों पर उसका मंथन चल रहा है। कांग्रेस के 71 विधायक हैं। आप उनके लिए भी दरवाजे खोल रखी है जो बीजेपी,कांग्रेस और जोगी कांग्रेस से टिकट नहीं पाएंगे। छत्तीसगढ़ में आप के लिए खोने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन आप से सियासी नुकसान अन्य दलों को होगा,क्यों कि आप भी इस वक्त राष्ट्रीय पार्टी है।

विपक्ष को तोड़ने मोदी की नायाब रणनीति

"ईडी,आइटी और सीबीआइ की चाकू से विपक्ष की आर्थिक पाइप लाइन को चुनाव से पहले मोदी ने काटने का इंतजाम किया है। ताकि 350 से ज्यादा के लक्ष्य के तहत मुश्किल वाली 160 सीट में भी भगवा छतरी तन सके।" 0 रमेश
कुमार ‘रिपु’ बीजेपी के लिए 2024 का चुनाव जीतना ज्यादा महत्वपूर्ण है। ताकि वह इंदिरा गांधी के दस साल तक पी.एम.रहने का रिकार्ड तोड़ सके। इसके लिए मोदी सरकार ने ईडी,आइटी और सीबीआइ की चाकू से विपक्ष की आर्थिक पाइप लाइन को चुनाव से पहले काटना शुरू कर दिया है। ताकि 350 से ज्यादा के लक्ष्य के तहत मुश्किल वाली 160 सीट में भी भगवा छतरी तन सके। वैसे नौ राज्यों का चुनाव भाजपा के लिए 2024 के आम चुनाव का सेमीफाइनल है। दूसरी और कांग्रेस के लिए खुद को पुर्नजीवित करने का आखिरी मौका। लेकिन बीजेपी ने चुनाव से पहले जो रणनीति बनाई है,उसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। छत्तीसगढ़ में छठवीं बार ई.डी ने छापा मारा है। विपक्ष को जहांँ से आर्थिक हेमोग्लोबिन मिल रहा है,उस नस को ई.डी,आइ.टी. और सी.बी.आइ. के ब्लेड से सत्ता पक्ष काट देना चाहता है। ताकि विपक्ष आर्थिक रूप से विकलांग हो जाए। यह बात छत्तीसगढ़ में ईडी की कार्रवाई से स्पष्ट है। छठवीं बार ई.डी.- छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब-जब दूसरे राज्य का चुनावी प्रभारी बने,ईडी ने छापा मारा। झारखंड,असम,उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड या फिर हिमाचल प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाए गए थे,तब भी ईडी ने राज्य में छापा मारा। अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 24 फरवरी से कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन होने जा रहा है। उससे पहले ई.डी ने छापा मारा। वैसे कांग्रेस के लिए भूपेश बघेल एटीएम हैं। इसलिए सत्ता पक्ष के लिए किरकिरी बने हुए हैं। चूंकि राजनीति पैसे से चलती है। पैसे पर पलती है। ऐसे में कांग्रेस की राजनीति को तोड़ने के लिए पैसे की आवाजाही रोकना जरूरी है। या फिर ईडी,आइटी और सीबीआइ का इतना दबाव बनाओ,कि दीगर पार्टी के लोग बीजेपी में शामिल हो जाएं। प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस प्रवक्ता आर.पी सिंह,विनोद तिवारी,कांग्रेस कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल,खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन और भिलाई विधायक देवेंद्र यादव के घर पर छापा मारा। निखिल चंद्राकर कारोबारी सूर्यकांत तिवारी का कर्मचारी है। इनके पास से डायरियां बरामद हुई हैं। जिसमें लेनदेन का ब्यौरा है। लेव्ही घोटाला - यह माना जा रहा है कि पांच करोड़ की उगाही की गई है,जो कि लेव्ही घोटाला है। उसकी पूछताछ के लिए ई.डी.ने छापा मारा है। हर टन कोयले पर पच्चीस रुपए वसूला जाता है। वैसे ईडी ने कइयों को गिरफ्तार किया है। सौम्या चैरसिया जो कि सुपर सीएम कही जाती हैं,वो इस वक्त जेल में है। ईडी ने छत्तीसगढ़ में हुए 540 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार में 277 करोड़ रुपए का लिखित हिसाब दिया है। वहीं कांग्रेस का कहना है,कांग्रेस अधिवेशन को डिस्टर्ब करने की ये साजिश है। ई.डी,आइ.टी.चुप्प-मोदी की लोकप्रियता की राह में देश की चरमराती आर्थिक व्यवस्था,बड़ती महंगाई और बेरोजगारी रोड़े बन सकते है। वहीं मोदी के सियासी कामयाबी की बात करें तो 2018 और 2021 के बीच हुए 23 राज्यों के चुनाव में भाजपा केवल त्रिपुरा में सीधे चुनाव जीती। सन् 2022 के चुनाव में वह गुजरात,उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चुनाव जीती। बाकी अन्य राज्यों में वह गठबंधन की राजनीति की। लेकिन हिमाचल में हार गई। दिल्ली के एमसीडी चुनाव में भी बीजेपी दूसरे नम्बर पर थी। बीजेपी 2023 में होने वाले हर चुनाव को जीतना चाहती है। मोदी सरकार विपक्षी एकता की रस्सी को ईडी,आइटी और सीबीआइ के चाकू से काट देना चाहती है। मगर, उसकी राह में रोड़े भी हैं। जो कंटक बन सकते हैं। बीजेपी चाहती है कि विपक्ष 2024 में रहे,लेकिन ताकतवर न रहे। और जो विपक्षी पार्टी ताकतवर बनने की कोशिश करें उनके पीछे ई.डी.,आइ.टी,और सीबीआइ लगा दो। अडानी मामले में देश का ध्यान बांटने सत्ता पक्ष ने पूरी ताकत लगा दी। एक ही दिन में आम लोगों का शेयर बाजार में दस लाख करोड़ रुपए स्वाहा हो गया। कारपोरेट का पैसा किस-किस मद में लगा है,किस-किस राजनीतिक पार्टी को पैसा मनीलाॅड्रिग के तहत कितना दिया गया,इसका खुलासा न हो जाए,इसके लिए न आइटी और न ही ईडी हरकत में आई। अडानी कांड ने यह बता दिया कि कैसे कारपोरेट काम करता है। उनके लिए नियम कायदे बदल दिए गए। लेकिन सदन में राहुल ने अडानी के मामले में जो भी पूछा उन सवालों का जवाब पी.एम. ने नहीं दिया। बल्कि संसद की कार्यवाही से उनकी बातों को हटा दिया गया। महाराष्ट्र में विपक्ष की आर्थिक पाइप लाइन को पहले शिंदे के जरिए कट किया गया। फिर शिवसेना बागी के हवाले कर दिया गया। अब चुनाव आयोग ने शिवसेना का दफ्तर और सिंबल सब कुछ बागी के हवाले कर दिया। एनसीपी,कांग्रेस 2014 और 2019 में शिवसेना और बीजेपी गठबंधन के आगे नहीं टिक पाए। उद्धव के सामने कई विकट समस्या है। क्यों कि सामने बीएमसी का चुनाव है। मगर,सुप्रीम कोर्ट अभी सुनवाई कोे तैयार नहीं है। नोटिस की फ़ास - मोदी सरकार लोकसभा चुनाव से पहले वो सारे विपक्षी जिनसे बीजेपी को नुकसान हो सकता है,उन सभी के गले में ईडी,आइ.टी और सीबीआइ का सांप डाल देना चाहती है। जैसा कि पश्चिम बंगाल में ई.डी. ने 27 राजनीतिक लोगों को नोटिस दिया है। आइटी ने 715 और सीबीआइ ने 115 लोगों को। केरल में 51 लोगो को ई.डी की नोटिस मिली है। 290 आइटी और 48 सीबीआइ के रडार में है।महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस को मिलाकर 15 लोगों को ईडी की नोटिस दी गई है। 415 आइटी और 98 लोग सीबीआइ के निशाने पर हैं। छत्तीसगढ़ में 17 राजनीतिक लोगों को ईडी की नोटिस। आइटी की नोटिस 392 राजनीतिक लोगों को और 62 सीबीआइ के रडार पर हैं।तेलंगाना राज्य जिस पर केन्द्र सरकार की नजर है। यहां ईडी की नोटिस 19 राजनीतिक लोगों को,944 आई.टी और सीबीआइ के रडार पर 69 लोग हैं। पंजाब में 27 लोगों को ईडी,908 को आइटी और 51 लोगों को सीबीआइ की नोटिस दी गई है। उत्तर प्रदेश में 17 राजनीतिक लोगों को ईडी,490 को आइटी और 37 लोगों को सीबीआई की नोटिस दी गई है। राजस्थान में 16 लोगों को ई.डी जिसमें गहलोत के भाई भी शामिल है,1112 लोगों को आइटी और 86 लोगों को सीबीआई की नोटिस दी गई है। बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। बिहार में आरजेडी जब तक नीतिश के साथ हैं,तब तक ईडी की फाइल तेजस्वी के खिलाफ नहीं खुलेगी। और सीबीआइ की फाइल लालू के खिलाफ नहीं खुलेगी। देश की अर्थव्यवस्था बेहद कमजोर हो गई है। महंगाई चरम पर है और बेरोजगारी से लोग परेशान है। लेकिन विपक्ष इसकी बात न संसद में और न मीडिया में कर सके,इसलिए ईडी,सीबीआइ और आइटी के जरिए सत्ता पक्ष 2024 के चुनाव को प्रभावित करना चाहती है।