Monday, May 2, 2022

फिर खौफ़ की तिजारत

     
जन अदालत में मौत और हिंसक वारदात के जरिए एक बार फिर माओवादी खौफ की तिजारत शुरू कर दिए हैं। नक्सलियों ने एक माह में 31 लोगों की हत्या करके सरकार के उस दावे को गलत साबित कर दिया,जिसमे ंकहा जा रहा था, कि पिछले दो साल में नक्सली कमज़ोर हुए हैं।   


0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दावा करते हैं,कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के जीवन में बदलाव आ रहा है। वहीं बस्तर संभाग में चार मार्च 2021 से तीन अप्रैल तक यानी एक महीने के भीतर नक्सलियों ने 31 हत्यायें की। इसी साल 3 अप्रैल को बीजापुर के तर्रेम थाना क्षेत्र में सुरक्षा बल और नक्सलियों की मुठभेड़ में 24 जवान शहीद हुए। यानी नक्सली घटनाओं में कमी बताने वाली कांग्रेस सरकार के उस दावे को माओवादियों ने गलत साबित कर दिया है,जिसमें कहा जा रहा था, कि पिछले दो सालों में नक्सली कमजोर हुए हैं। इसलिए नक्सली वारदातों में कमी आई है। नक्सलियों की लगातार हिंसक वारदातें यही साबित करती हैं,कि अब भी उनका बोलबाला है। उन्हें कमजोर आंकना सिर्फ़ भ्रम है।
पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा दावा करते हैंनक्सलियों की कमर टूटी है। सन् 2021 में 46 नक्सली मारे गए। साथ ही 499 माओवादी गिरफ्तार किये गये। 555 नक्सलियों ने सरेंडर किया। गढ़चिरौली में 13 नवम्बर को हुई मुठभेड़ में जवानों ने जिन 26 नक्सलियों को ढेर किया, उनमें से 7 माओवादी बस्तर के हैं। सभी पर 46 लाख रुपए का इनाम घोषित था। सबसे ज्यादा लोकेश पर 20 लाख रुपए का इनाम था। लच्छू और कोसा पर 4-4 लाख रुपये। किसन उर्फ जयमन और सन्नू पर 8-8 लाख रुपए का इनाम था। चेतन 2 लाख रुपए का इनामी था। इनमें एक महिला माओवादी भी शामिल है। जिसकी हिस्ट्री खंगाली जा रही है। पचास लाख रुपए का इनामी नक्सली मिलिंद भी इस मुठभेड़ में मारा गया है।
नक्सलियों की सरकार है
भूपेश सरकार तीन साल बाद भी नक्सल नीति नहीं बना सकी है। इसका खामियाजा नक्सल प्रभावित जिलों के लोगों को भोगना पड़ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह कहते हैं,‘‘ आप बस्तर जाकर देखिए,अब नक्सली ही कहने लगे हैं, कि उनकी सरकार बन गई है। पहले की तुलना में नक्सली घटनाएं बढ़ गई है। अप्रैल में नक्सली मुठभेड़ में सुरक्षा बल के 22 जवान शहीद हुए। इस बड़ी घटना ने विज्ञापनों में नक्सली घटनाओं में कमी बताने वाली कांग्रेस सरकार के उन दावों को गलत साबित कर दिया,जिसमे ंकहा जा रहा था कि पिछले दो साल में नक्सली कमज़ोर हुए हैं।’’
गौर तलब है,कि कांग्रेस के घोंषणा पत्र के क्रमांक 22 में लिखा है कि नक्सल समस्या के समाधान के लिए नीति तैयार की जाएगी। और वार्ता शुरू करने के लिए गंभीरता पूर्वक प्रयास किए जाएंगे। प्रत्येक नक्सल पंचायत को सामुदायिक विकास कार्यो के लिए एक करोड़ रुपये दिए जायेंगे। जिसमें कि विकास के माध्यम से उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जा सके। नक्सल प्रभावित जिले के लोग कहते हैं, आज तीन साल हो गए,कांग्रेस सरकार ने क्या नीति बनाई? बातचीत के लिए क्या प्रयास किए? नक्सल पंचायतों को कितना पैसा दिया?
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में माओवादी एक बार फिर अपनी ताकत की ताकीद करा रहे हैं। पुलिस का दावा है, कि लोन वार्राटू के जरिये एक बरस में सौ से अधिक इनामी नक्सलियों को सरेंडर कराने में दंतेवाड़ा जिला देश में पहले स्थान पर है। इन नक्सलियों पर कुल एक करोड़ 85 लाख रुपये का इनाम था।  
छग में ज़्यादा मौतें
पिछले 20 सालों में पूरे देशभर में कुल 4739 माओवादियों की बीमारी, हादसों और मुठभेड़ की वजह से मौत हुई है। इनमें 909 महिला माओवादी भी शामिल हैं। साथ ही सेंट्रल कमेटी मेंबर 16, एसएससीए, एसजेडसी, एएससी मेंबर 44, आरसी मेंबर 9 और जेसीए डीवीसी और डीसी के 168 मेंबर भी शामिल हैं। माओवादियों की किताब के अनुसार पिछले 20 सालों में अब तक कुल 4031 छोटे-बड़े हमले जवानों पर किए हैं। इन हमलों में कुल 3054 जवानों को मारने और 3672 जवानों को घायल करने का दावा किया है। सरकार बैकफुट पर
छत्तीसगढ़ अकेला ऐसा राज्य है,जहांँ माओवादियों का दबदबा है। राज्य में नक्सलियों की बढ़ती घटनाओं की वजह से पुलिस और केन्द्रीय गृह विभाग के वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार के विजय कुमार,डीजीपी अशोक जुनेजा, सी.आर.पी.एफ, बी.एस.एफ. और आई.टी.बी.पी के अफ़सरों की संयुक्त बैठक हुई। बैठक में नक्सलियों के खिलाफ़ छह माह की कार्ययोजना बनाई गई है।  
मुठभेड़ में नक्सलियों के मारे जाने के बावजूद माओवादी की दशहतगर्दी में कमी नहीं आई है। यानी इनामी माओवादियों के सरेंडर के बावजूद भाकपा की विचार धारा को अपनाने वाले अभी हैं। जो मानते हैं,कि माओवाद ही सच हैं। असंतोष और सरकार की उपेक्षा की गहरी भावना के चलते जंगल अब भी उनके कब्जे में है। अबूझमाड़ को पुलिस माओवाद के चंगुल से मुक्त नहीं करा सकी है। इन्हीं जंगलों में जनताना सरकार का आतंक कायम है।
बहरहाल बयानों से माओवादियों पर नकेल नहीं लगाया जा सकता। अब ग्रीन हंट नहीं हंटर चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं लगता कि भूपेश सरकार लाल आतंक के बढ़ते कदम को रूकने की दिशा में कोई ठोस फैसला करेगी।
            लाल आतंक के बढ़ते क़दम        
कोरोना की वजह से नक्सलियों की शांति को पुलिस ने मीडिया में जमकर प्रचार किया,कि वे कमज़ोर हो गए हैं। इसका जवाब में माओवादी एक फिर खौफ़ का व्यापार करने हिंसक वारदातें करने लगे हैं।
0 सात जनवरी 2022 को  बीजापुर के गंगालूर थाना के तहत पुसनार इडिनार में नक्सलियों ने पुलिस मुखबिर के आरोप में जन अदालत लगाकर अपने मिलिशिया कमांडर कमलू पुनेम एवं मिलिशिया सदस्य मांगी पुनेम की हत्या कर दी। नक्सलियों ने अपने साथी की मौत पर प्रेस नोट जारी कहा,नक्सली कमांडर कमलू पुनेम गद्दार था। अपनी बहन के साथ शारीरिक संबंध रखता था। एक बरस में 14 लागों की नक्सलियों ने जनअदालत लगाकर हत्या की। आईजी सुन्दराज पी ने कहा,नक्सलियों में गैगवार के चलतेे ऐसा हुआ है।
0 20 मार्च 2021 को बीजापुर जिले में माओवादियों ने पुलिस के जवान सन्नू पोनेम की हत्या कर दी। 23 मार्च को नारायणपुर जिले में माओवादियों ने सुरक्षाबल के जवानों की एक बस को विस्फोटक से उड़ा दिया। जिसमें 5 जवान मारे गए। 26 मार्च 2021 को बीजापुर में माओवादियों ने जिला पंचायत के सदस्य बुधराम कश्यप की हत्या कर दी। 25 मार्च को माओवादियों ने कोंडागांव जिले में सड़क निर्माण में लगी एक दर्जन से अधिक गाड़ियों को आग लगा दी।
0 प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में पदस्थ सब इंजीनियर अजय रोशन लकड़ा और प्यून लक्ष्मण परतगिरी 11 नवम्बर 2021 को बीजापुर जिले के गोरना से नक्सली उठा ले गये। अजय की पत्नी अपने मासूम बेटे के साथ जंगलों में कई दिनों तक भटकती रही। कई दिनों बाद नक्सलियों ने रिहा किया।
0 रावघाट एरिया कमेटी के नक्सल सप्लाई टीम के सदस्य दिनेश नुरेटि को नक्सली कमांडर राजू सलाम ने 12 नवम्बर को जन अदालत में मौत के घाट उतार दिया। माओवदियों का आरोप है कि नरेटी पुलिस के लिए काम करता था।  
0 सुकमा जिले मंें नक्सलियों ने 12 नवम्बर को 5 ग्रामीणों का अपहरण किया। इनमें एक महिला भी शामिल थी। अगवा किए गए ग्रामीणों में कवासी कोसा, सोढ़ी गंगा, कवासी हिडमा, कवासी देवा, माडवी नंदू शामिल थे।  
0 27 नवम्बर 2021 को दंतेवाड़ा में नक्सलियो ंने के.के रेललाइन को निशाना बनाते हुए रेलवे ट्रेक को उखाड़ दिया। जिससे टेªन डिरेल हो गई। किंरदुल-विशाखापट्टनम रेलवे मार्ग पर भांसी और कमालपुर के बीच नक्सलियों ने इस घटना को अंजाम दिया।
0 दो दिसम्बर को नरायणपुर में सोनपुर के साप्ताहिक बाजार से कबाड़ी का सामान लेकर लौट रहे व्यापारी सुसेन देवरी नक्सलियों के प्लांट किये गए आईइडी ब्लास्ट की चपेट में आ जाने से गंभीर रूप से घायल हो गया।
0 गरियाबंद जिले के पीपलखुटा गांव में लगभग 4 करोड़ की लागत से टैंक का निर्माण एक निजी कंपनी कर रही थी। आठ दिसम्बर को कुछ हथियारबंद नक्सली ट्रैक्टर, एक चेन माउंटेन समेत कुछ अन्य गाड़ियों में आग लगा दी।   
0 कांकेर में नौ दिसम्बर को नक्सलियों ने जवानों को निशाना बनाने के लिए सीरियल ब्लास्ट किए। रावघाट थाना क्षेत्र के बैहासालेभट में सशस्त्र सीमा बल का कैंप है। नया कैंम्प पाडर गांव में बनाया जा रहा है। ब्लास्ट की चपेट में आने से जवान अरुण शर्मा घायल हो गए।
 

 









शांत होती दहाड़

       








मध्यप्रदेश में 42 बाघों की मौत पर हाई कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। देश भर में कुल 120 बाघों की मौत हुई है। मध्यप्रदेश ने सन् 2019 में कर्नाटक से से टाइगर स्टेट का दर्जा छीना था। अब जिसके खोने का खतरा है।  
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
            मध्यप्रदेश से टाइगर स्टेट का दर्जा एक बार फिर छिन जाने का खतरा मडरा रहा है। इसलिए कि सन् 2021 में 42 टाइगर की मौत पर हाई कोर्ट ने केन्द्र सरकार और राज्य सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा है। सन् 2019 में प्रदेश में 526 बाघ थे। जबकि कर्नाटक में 524 थे। कर्नाटक में 2021 में 15 बाघों की मौत हुई जबकि मध्यप्रदेश में 42 बाधों की मौत हुई है। वहीं देश भर में 120 बाघों की मौत हुई है।
वन्य जीव कार्यकत्र्ता अजय दुबे की जन हित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रवि विजय कुमार मलिमथ और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की बेंच ने 22 नवम्बर 2021 को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और राज्य सरकार को बाघों की मौत की वजह को विस्तृत जानकारी देने नोटिस जारी किया था। याचिका दाखिल करने के बाद भी छह और बाघों की मौत हुई हैै। जिससे यह संख्या बढ़कर 42 तक पहुंच गई है।    सवाल यह है कि प्रदेश में इतनी संख्या में बाघ मर क्यों रहे हैं? वन विभाग का मानना है, कि अवैध शिकार का ऐसा कोई संगठित गिरोह सामने नहीं आया है। ज्यादातर मामले में बाघों की मौत बिजली के झटके लगने से होती है। जबकि पन्ना में कई बाघों को जहर देकर मारने की भी घटना घटी है।
तीन साल में 93 बाघ मरे
कांग्रेस विधायक सतीश सिकरवार द्वारा विधानसभा में उठाये गये सवाल पर वन मंत्री कुंवर विजय शाह ने बताया कि मध्यप्रदेश में एक जनवरी 2018 से जनवरी 2021 की अवधि में बाघ अभयारण्यों राष्ट्रीय उद्यानों एवं वन्यप्राणी अभयारण्यों में 93 बाघों की मौत हुई है। इनमें से 25 बाघों की मृत्यु अवैध शिकार एवं शेष बाघों की मृत्यु प्राकृतिक कारणों जैसे बीमारी आपसी लड़ाई वृद्धावस्था आदि के कारण हुई है। इस अवधि में बाघों के शिकार के 25 प्रकरण दर्ज किये गये हैं जिनमें अभी तक 77 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। मध्यप्रदेश में पिछले तीन सालों में 93 बाघों के मौत हुई है।
कहाँं कितने बाघ मरे
प्रदेश में 526 बाघों का घर था। यहाँं सबसे अधिक 42 बाघों की मौत हुई है। इसके बाद महाराष्ट्र में जहां 312 बाघ थे, यहां 26 बाघों ने अपनी जान से हाथ धोया। कर्नाटक जो कि 524 बाघों की मेजबानी करता है, वहां 15 बाघ काल के गाल में समा गए। उत्तर प्रदेश जहांँ लगभग 173 बाघ थे, उनमें से 9 मौतें दर्ज की गई हैं।17 सितंबर 2021 के बाद कर्नाटक में एक भी बाघ की मौत होना नहीं पाया गया। जबकि मध्य प्रदेश में आठ महीने में 31 बाघों की जान जा चुकी है। कुछ का शिकार किया गया तो कुछ स्वाभाविक मौत मरे। इसमें सबसे ज्यादा 18 मौतें टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हुई हैं। हाल ही में रातापानी सेंचुरी में भी 2 बाघों के शव मिले थे।
पीसीसीएफवाइल्ड लाइफ आलोक कुमार कहते हैं इससे इंकार नहीं है कि प्रदेश में बाघों की संख्या बड़ी तेजी से बड़ी भी है। इस वजह से उनमें टेरिटोरियल फाइट होती है। इसमें कमजोर बाघ घायल होकर या तो इलाका छोड़ देता है या मर जाता है। यह प्राकृतिक है। टेरिटोरियल फाइट रोकने के लिए सेंचुरी बनाकर नए इलाके की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है।
बाघ का शिकार क्यों
कान्हा कुछ समय शिकार के लिए सुर्खियों में था। कुछ साल पहले मुक्की गेट के समीप एक शेर को जहर देकर मारने की खबर से कान्हा कई दिनों तक सुर्खियों में था। एक विदेशी पर्यटक ने एक शिकारी की वीडियों टेप पेश किया तो पूरे मोहकमें में हड़कंप मच गया था। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रदेश के सभी राष्ट्रीय उद्यान और अभ्यारण्यों में शिकार हो रहे हैं। बाघ और शेरों का शिकार इसलिए होता है कि इन जानवरों के शरीर का हर हिस्सा अन्तरराष्ट्रीय बाजार में भारी  कीमतों में बिकता है। पैसे की चाहत में निरीह और मूक जानवरों की मौत के सौदागर प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ रहे हैं। जरूरी है कि विलुप्त हो रहे वन्य प्राणियों का शिकार करने वालों के खिलाफ और कड़े कानून बनाये जायें। साथ ही जंगली जानवरों का शिकार करने वालों को सजा नहंी मौत की सजा दी जानी चाहिए,तभी जंगली जानवरों के प्राणों की रक्षा हो सकेगी।
वन विभाग लापरवाह
जंगली जानवरों की घटती तादाद की मुख्य दो वजह है। वन विभाग का अमला अपनी जिम्मेदारी ठीक से नही निभा पा रहा है। दूसरी यह कि उनका शिकार भी जारी है। जब कहीं कोई मृत बाघ मिलता है तो,वन विभाग का अमला उस घटना पर लीपापोती ही करता है। इस कारण भी शिकारियों के हौसले बुलंद है। हाल ही में नेशनल टाइगर सरंक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने कहा,’’मृत बाघों का पोस्टमार्टम तब तक नहंी किया जा सकेगा,जब तक कि पोस्टमार्टम करने वाली टीम मे ंउसका कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं होगा। इसका मतलब यह है कि एनटीसीए की नजरों में हमारे वन विभाग की विश्वसनीयता संदिग्ध है।
वन्य प्राणी अधिनियम 1972 की धारा 9,16,38,52 के तहत यदि कोई बाघ,तेंदुआ या फिर किसी अन्य जंगली जानवर को मारता है तो एक से छह साल की सजा और जुर्माना किया जाता है। लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि अवैध शिकार करने वाले पकड़े जायें।

गौर तलब है कि पन्ना टाइगर रिजर्व में फरवरी 2009 में बाघ विहीन हो गया था। यहां बाघों के कुनबे को बढ़ाने के लिए दो अलग-अलग टाइगर रिजर्व से बाघ-बाघिनों को शिफ्ट किया गया। इसके करीब ढाई साल बाद जंगल में अप्रैल 2012 में एक बाघिन ने 4 शावकों को जन्म दिया। इसके बाद यहां बाघों का कुनबा लगातार बढ़ता गया। वर्तमान में पन्ना में 31 ये अधिक बाघ हैं।
नई सेंचुरी नहीं बने
एक और बाघों की मौत की मूल वजह का पता नहीं चल सका है। लेकिन देखा गया है कि बाघों की मौत को दबाने के लिए हर बार एक घोषणा कर दी जाती है। बाघों को शिकार न हो इसके लिए सुरक्षा के उपाय बेहतर होने की बजाय कमजोर होते हैं। नवंबर में सिंगरौली जिले में रेडियो-काॅलर वाली एक बाघिन शिकार किया गया था। अजय दुबे कहते हैं,बाघों की मौतों और अवैध शिकार के मामले में वन विभाग की ओर से अभियोजन सुनिश्चित किए जाने में विफलता की वजह से मैने जनहित याचिका दायर की।
हाल ही में वन मंत्री विजय शाह ने बुंदेलखंड में नई सेंचुरी घोषित की। जबकि कांग्रेस सरकार की प्रस्तावित 9 सेंचुरी की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है। इसमें सीहोर की सरदार वल्लभ भाई सेंचुरी भी शामिल है।
पुलिस के टाइगर सेल और वन विभाग के बीच समय-समय पर शिकारियों पर अंकुश लगाने रणनीति भी बनती है। मगर हालात जस के तस हैं। हालांकि पंजीबद्व अपराधों में आंकड़ो की बाजीगरी की वजह से वन्य प्राणियों के शिकार में कमी परिलिक्षित होती है। लेकिन सच्चाई यह नहीं है। चैंकाने वाली बात यह है, कि पुलिस के पास दर्ज मामले से कहीं ज्यादा वन्य प्राणियों का चोरी छिपे शिकार हो रहा है। इधर टाइगर सेल से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार, वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए वन अमले के साथ संयुक्त अभियान चलाया जाना जरूरी है। बहरहाल सिर्फ बाघ ही नहीं तेंदूआ पर भी संकट शिकारियों का मंडरा रहा है। समय रहते यदि बाघ और तेदूंआ के संरक्षण की दिशा में पहल नहीं की गई तो वो दिन दूर नहीं हैं जब कई नेशनल पार्क बाघ विहीन हो जायेंगे।
   
 

सरेंडर की पाॅलिसी कितनी कामयाब

       






बिहार में समर्पण नीति नहीं होने से,वहाँं के इनामी नक्सली झारखंड में फायदे के लिए सरेडर करते हैं। मध्यप्रदेश में एक दशक से कोई इनामी नक्सली सरेडर नहीं किया। लेकिन छत्तीसगढ़ में लोन वार्राटू के तहत सरेंडर करने वाले माओवादियों पर उंगली उठती आई है। माओवादी राज्यों में भी समर्पण नीति के विशेष परिणाम सामने नहीं आयें हैं।
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
              लाल आतंक पर नकेल लगाने माओवादी राज्यों में अलग-अलग नीति और रणनीति है। मध्यप्रदेश में सन् 2010 के बाद से आज तक कोई भी इनामी नक्सली ने सरेंडर नहीं किया। जबकि यहाँं के सक्रिय इनामी सात माओवादी 2021-22 में महाराट्र और छत्तीसगढ़ में जाकर सरेंडर किये। इसमें डिविजनल कमांडर ( डी.वी.सी ) दिवाकर और महिला नक्सली नीमा को पुलिस ने 13 सितम्बर 2021 को सरेंडर करना बताया। इसलिए कि दोनों को कोरोना हो गया था। महिला नक्सली नीमा डी.वी.सी.सचिव थी। दिवाकर पर 13 लाख रुपये और लक्ष्मी पर पांँच लाख रुपये का इनाम था। नीमा भोरमदेव एरिया कमेटी की कमांड संभाल रही थी। उसी की कमांडिंग में नक्सलियों ने कवर्धा में वारदातें की थी। मंडला के सीमावर्ती इलाकों में नक्सल घटनाओं को अंजाम दिया था। नीमा के डीवीसी पद छोड़ने पर दिवाकर उर्फ किशन को डीवीसी की जिम्मेदारी दी गई थी।
मध्यप्रदेश सरकार ने लाल आतंक से प्रदेश को मुक्त करने 1997 की नक्सल समर्पण नीति की खामियों में सुधार कर नई नीति बनाई,ताकि नक्सलियों को समाज की मुख्य धारा में वापस लौटने के लिए आकर्षित किया जा सके। वहीं केन्द्र सरकार की ओर से 2014 में माओवादी समर्पण और पुनर्वास नीति बनाई गई थी। इसके बाद ओड़िशा,छत्तीसगढ़,आंन्ध्र प्रदेश,तेलंगाना और महाराष्ट्र सहित कई राज्य की सरकार ने समर्पण नीति में फेरबदल किया।
नक्सलियों की श्रेणी नहीं
मध्यप्रदेश सरकार की समर्पण और पुनर्वास नीति के अनुसार राज्य के अंदर और बाहर  गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त लोग इसके दायरे में आयेंगे। प्रावधान के मुताबिक माओवादियों को पाँच लाख रुपये या फिर उन पर जो इनाम की राशि होगी,उसमें जो भी ज्यादा होगा,उन्हें मिलेगी। इसके अलावा हथियार,गोला-बारूद आदि पुलिस को बरामद कराने पर अतिरिक्त राशि मिलेगी। राज्य सरकार की समिति छानबीन कर तय करेगी,कि समर्पण स्वीकार है कि नहीं। झारखंड और ओड़िशा में नक्सलियों की पद के अनुसार श्रेणी तय है,मगर मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं है। अलबत्ता छानबीन समिति समर्पण से पहले किये गये अपराधों के मामले वापस लेने की सिफारिश कर सकती है। वैसे कानून में गंभीर अपराधों के लिए माफी का प्रावधान नहीं है। लेकिन ऐसे मामलों में पुलिस कोर्ट में चालान पेश नहीं करती। यह माना जाता है, कि ऐसा करने से नक्सली पर दबाव बनाने में मदद मिलती है।
पुनर्वास पर ज़ोर
मध्यप्रदेश में समर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास पर ज्यादा जोर दिया गया है। कौशल विकास के तहत तीन महीने तक प्रति माह नक्सलियों को 6000 हज़ार रुपये और प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत मकान देने का प्रावधान है। समर्पण के वक्त यदि नक्सली अविवाहित है, तो उसे शादी के लिए 25000 रुपये दिये जायेंगे। झारखंड में भी यही प्रावधान है। पुनर्वास नीति पढ़ने के इच्छुक माओवादी कार्यकत्र्ता को 36 महीने तक प्रति माह दो हज़ार रुपये,राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अनाज,स्वास्थ्य बीमा और खुफिया जानकारी देने में मदद करने पर गोपनीय सैनिक के तौर पर रोजगार देने की व्यवस्था है। हथियार डालने वाला माओवादी दूसरे माओवादियों के खात्मे या गिरफ्तारी में मदद करता है,तो उसे पुलिस बल में सिपाही के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में इस समय मंडला,डिंडौरी और बालाघाट को माओवादी जिला घोषित है। माओवादियों की हिंसा में मारे गये लोगों के परिजनों के लिए खेती की जमीन,रोजगार और नकद मुआवजा देने का प्रावधान है।
नक्सल नीति में सुधार
माओवादी राज्यों में खासकर छत्तीसगढ़ जहांँ माओवाद का फैलाव और प्रभाव अन्य राज्यों की तुलना मंे ज्यादा है। यहांँ नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास में 2015-2016 में भारी भ्रष्टाचार और फर्जी समर्पण की खबरें सामने आई थी। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद पर गंभीरता से विचार करते हुए पहली बार 2004 में समर्पण और पुनर्वास नीति घोषित की गई। लेकिन कोई खास कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद राज्य सरकार ने उसमें कुछ सुधार कर सन् 2014 में नक्सल नीति घोषित की। करीब सौ माओवादी सरेंडर कर समाज की मुख्य धारा में शामिल हुए थे। लेकिन छुटभैये नक्सलियों के समर्पण पर कई सवाल उठे। इसके बाद नई नीति 2016 में घोषित की गई। करीब 1160 कथित माओवादियों ने समर्पण किया। उस समय बस्तर में आई.जी.एसआरपी कल्लूरी थे। लेकिन केन्द्र सरकार की छानबीन समिति ने कहा,एक हज़ार से अधिक नक्सली कहलाने के काबिल नहीं हैं। राज्य सरकार की छानबीन समिति ने भी पाया कि समर्पण करने वाले 75 फीसदी माओवादी पुनर्वास पैकेज के पात्र नहीं हैं।
आंध्र और नक्सल नीति
माओवादी राज्यों में आंन्ध्र सरकार की 1993 में बनी समर्पण एवं पुनर्वास नीति सबसे ज्यादा सफल रही। सन् 2005 से 2015 के बीच आंध्र प्रदेश में माओवादी घटनाएं 500 से घटकर दो पर आ गई। इसका श्रेय नक्सलरोधी ग्रेहाउंड फोर्स को जाता है। दरअसल पुनर्वास का फोकस ग्रामीण क्षेत्रों में किये जाने से नक्सली लीडरों को रंगरूट नक्सली सैनिक मिलना मुश्किल हो गया।
पुर्नवास का लाभ नहीं मिला
छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में 20 अक्टूबर 2021 को पुलिस अधीक्षक सुनील शर्मा के समक्ष 43 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था। पुलिस के अनुसार सरेंडर करने वालों में कई इनामी नक्सली भी थे। 8 से 10 गांँवों के ग्रामीणों के साथ नक्सली आत्मसमर्पण करने पहुंचे। इस दौरान वहाँं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल,सीआरपीएफ के अधिकारी भी मौजूद थे। पुलिस अफसरों का कहना था,कि इन सभी को पुनर्वास का लाभ मिलेगा। लेकिन किसी को भी लाभ नहीं मिलने पर दर्जन भर माओवादी और मुखफिर एक फरवरी 2021 को कलेक्टर को ज्ञापन देने कांेडागांव कार्यालय पहुंचे।
दुर्जन कोर्राम निवासी ग्राम चांगरचेमा का कहना था,कि पुलिस मुखबिर के शक में नक्सली गांँव से उठाकर ले जाते हैं। मारपीट केे भय से जान बचाकर जिला मुख्यालय पहुंँचा। पुलिस विभाग में 12 साल तक सहायक आरक्षक के रूप में सेवा देने के बाद, वर्ष 2020 में सेवा से बाहर कर दिया गया। कुछ समर्पित और नक्सल पीड़ित ग्रामीणों में रजनू कोर्राम, शांति बघेल, मुकेश आदि दर्जन भर ग्रामीणों ने कहा, सभी नक्सल पीड़ित परिवार और समर्पित नक्सलियों को शासन द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। वहीं इस संबंध में एस.पी सिद्धार्थ तिवारी का कहना था,कि विभाग के पास अभी तक इस तरह का कोई भी शिकायत नहीं आई है।
बस्तर के आईजी सुन्दराज पी कहते हैं,‘‘समय-समय पर नक्सलियो के समर्पण और पुनर्वास नीति में सुधार किये गये हैं। छत्तीसगढ़ के नक्सली दूसरे राज्यों में जाकर सरेंडर करने से बचते हैं। इसलिए कि हर कोई चाहता है,कि जहांँ रहते हैं,वहीं समर्पण करना ज़्यादा हितकर होगा। अपने घर-परिवार के करीब रहेंगे। राज्य में नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास से संबंधित जो नियम बनाये गये हैं,उस नियम के तहत आने वाले नक्सलियों को सुविधायें मिलेगी। इसी वजह से राज्य में 2021 में करीब सात सौ नक्सलियों ने सरेंडर किया।’’
इनाम देने में बिहार पीछे
झारखंड राज्य में नक्सलियों पर नकेल कसने के लिए 12 हजार से अधिक नक्सलवाद विरोधी अभियान अब तक चलाये जा चुके हैं। बावजूद इसके सोलह जिले नक्सली जिले बने हुए हैं। वहीं  नक्सलवाद का असर बूढ़ा पहाड़,पारसनाथ क्षेत्र, कोल्हान, गुमला, खूंटी, सिमडेगा,लोहरदगा, पलामू, लातेहार, गढ़वा, चतरा, हजारीबाग, गिरिडीह, कोडरमा,बोकारो, धनबाद,रामगढ़,पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंह भूम,सरायकेला-खरसोंवा में ज्यादा है। बिहार में नक्सलियों के रिवार्ड की राशि कम होने से झारखंड में सरेंडर करते हैं। क्यों कि यहांँ इनाम की राशि तत्काल दी जाती है।इसीलिए माओवादियों को झारखंड अधिक पसंद है।
झारखंड में नक्सलियों को इनाम उनके ओहदे के अनुसार दिया जाता है, न कि उनके अपराध के रिकार्ड के अनुसार। जैसा कि नक्सली करुणा दी,पिंटू राणा एवं प्रवेश के खिलाफ बिहार से कम मामले,झारखंड में दर्ज हैं। तीनों का अपराधिक क्षेत्र ज़्यादातर बिहार ही रहा है। बावजूद झारखंड में इन पर इनाम की राशि बिहार से ज़्यादा है। पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए एक पुलिस अधिकारी ने बताया,वहांँ आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का चयन सिपाही होमगार्ड तथा एसपीओ में कर लिया जाता है। इसके विपरीत बिहार में ऐसा नहीं होता है।
किसे कितना इनाम
झारखंड राज्य में नक्सलियों की श्रेणी के अनुसार पुनर्वास पैकेज मिलते हैं। ‘ए’ श्रेणी में जोनल कमांडर एवं उसके ऊपर के स्तर के नक्सलियों को रखते हुए पुनर्वास अनुदान छह लाख रुपये में दो लाख रुपये तत्काल और चार लाख रुपये में पहली किश्त एक वर्ष बाद दूसरी किश्त दो साल बाद, सरेडर नक्सली की गतिविधियों की छानबीन विशेष शाख के किये जाने के बाद दी जाती है। बी श्रेणी में जोनल कमांडर से नीचे स्तर के नक्सली को पुनर्वास अनुदान के रूप में तीन लाख रुपये जिसमें,एक लाख तत्काल और दो लाख रुपये दो किश्तों में दी जाती है। गोला,बारूद के समर्पण के बदले अतिरिक्त राशि दी जाती है। आत्मसमर्पित नक्सलियों के बच्चों के स्नातक स्तर तक की शिक्षा में शिक्षण शुल्क, हाॅस्टल फीस और अन्य फीस के रूप मे अधिकतम चालीस हजार रुपये भुगतान किया जायेगा। इसके अलावा नक्सलियों की बेटियों के विवाह के लिए अनुदान राशि दी जाती है। इसके अलावा प्रत्यार्पण करने वाले माओवादी के सिर पर उसके मारे जाने या गिरफ्तार होने पर कोई सरकारी इनाम घोषित हो, तो समर्पण के उपरांत घोषित इनाम की राशि उन्हें ही दी जायेगी। चार लाख रुपये तक का ऋण,पांँच लाख रुपये का जीवन बीमा और आवश्यक प्रीमियम का भुगतान किया जायेगा। नक्सलियों के आश्रितों के लिए अधिकतम पांँच सदस्यों का एक लाख रुपये तक समूह जीवन बीमा भी। इसके अलावा विशेष पुलिस में नियुक्त के लिए पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक विचार भी कर सकते हैं।
नक्सलियों के समर्पण और पुनर्वास के संदर्भ में इतनी सुविधायें देने के बावजूद राज्य में नक्सलियों का मुख्य धारा में शामिल नहीं होना यही दर्शाता है,कि नक्सलवाद कमजोर नहीं हुआ है। मध्यप्रदेश में नक्सल आॅपरेशन के आई. जी. साजिद फरीद शापू कहते हैं,समर्पण नीति की कामयाबी बहुत कुछ कार्रवाईयों की कामयाबी पर निर्भर करता है। रहा सवाल आंध्र प्रदेश के माॅडल की कामयाबी का, तो समर्पण के लिए सीधे नक्सलियों पर दबाव बनाया गया है। इस मामले में ढिलाई नहीं होनी चाहिए।’’
मध्यप्रदेश में एक ओर नक्सली अपना विस्तार करने मंे लगे हुए है। वहीं दूसरी ओर पूर्वी मध्यप्रदेश में सशस्त्र बल ‘द हाॅक’ पहले से सक्रिय है। फिर भी आंध्र प्रदेश की तरह नक्सलवाद के खात्मे के लिए योजनाएं बननी चााहिए। तभी नक्सलवाद पर कामयाबी मिलेगी।

 
 

‘आप’ किसे करेगी हाफ

     






पंजाब चुनाव जीतने के बाद आप की नजर अब छत्तीसगढ़ पर है। छत्तीसगढ़िया को साधने  की उसकी रणनीति से सवाल यह है कि ‘आप’ किसकी सियासत को करेगी हाफ।
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
छत्तीसगढ़ में भी पंजाब,दिल्ली की तरह आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो केजरीवाल अपनी पार्टी की लोकप्रियता को ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए सियासी दांव खेलकर हलचल मचा दिये हैं। आप ने राज्य सभा में डाॅ संदीप पाठक को भेज कर राज्य की जनता का ध्यान अपनी ओर खींचा है। सवाल यह है कि धर्म और वर्ग आधारित राजनीति क्या अगले चुनाव में काम आयेगी? भूपेश सरकार शहरी संस्कृति की राजनीति करती है। नित्य नये इवेंट के जरिये मीडिया की सुर्खियां बनीती है। प्रदेश में बीजेपी सक्रियता की तपिश तेज नहीं है। लेकिन भूपेश सरकार की कमियों पर मीडिया में कटाक्ष करने से पीछे नहीं हटती। जोगी कांग्रेस अपना सियासी वजूद बचाने में लगी है। ऐसे सियासी हालात में आप अपने सधे सियासी तंत्र और मंत्र के दम पर तीसरा विकल्प बनने का दावा कर रही है। वैसे उसके पास ऐसा कोई बड़ा चेहरा नहीं है,जिसे सामने करके वह चुनाव फतह कर सके। इसलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और स्वास्थ्य मंत्री टी.एस.सिंह देव जो कि कांग्रेस में असंतुष्ट हैं,आप के नेता उनसे मुलाकात कर कांग्रेस की दीवार में सुराग बनाने की कोशिश की।
आप के नेताओं की उनसे हुई मुलाकात को उन्होंने पर्दे के पीछे नहीं रखा,बल्कि उसे सियासी पत्थर बनाकर फेंका। ताकि वह पत्थर दस जनपथ जाकर गिरे। उन्होंने मीडिया से कहा आप के कुछ नेता उनसे मिलने आये थे। बीजेपी मुझे सी.एम कभी नहीं बनायेगी, इसलिए बीजेपी में जाने का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने स्पष्ट किया, कि इस मुलाकात को किसी और अर्थ में न लिया जाए। वे कांग्रेसी हैं और आजीवन कांग्रेस में रहेंगे।’’ लेकिन एक सच यह भी है, कि राजनीतिक व्यक्तियों की कथनी और करनी में हमेशा अंतर रहता है। चूंकि देश भर में कांग्रेस की सियासी सेहत ठीक नहीं है। लिहाजा माकूल वक्त पर कोई बड़ा उलटफेर होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जिस तरह सरकार के खिलाफ टी.एस सिंहदेव के बयान आते रहे हैं,जानकारों का कहना है,कांग्रेस की बी टीम सिंहदेव बना सकते हैं। वैसे भी आप को कांग्रेस का विकल्प देश की जनता मानती है। तभी तो पंजाब में कांग्रेस पर नहीं ‘आप’ पर भरोसा जनता ने किया। वैसे टी.एस.सिंह देव के विकल्प बतौर आप ने छत्तीसगढ़िया को लुभाने कांकेर के भानुप्रतापपुर से युवा नेता कोमल हुपेंडी का मुख्यमंत्री घोषित किया है। गौरतलब है,कि प्रदेश में बाहरी बनाम छत्तीसगढ़िया और आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की अर्से से मांग उठ रही है।  
आप के मंसूबे बड़े
आप ने 2018 के विधान सभा चुनाव में 85 सीटों में अपने उम्मीदवार खड़े कर अपनी उपस्थिति प्रदेश में दर्ज कराई थी। उसे मात्र 123535 वोट मिले थे। उसके सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। आम चुनाव के डेढ़ साल पहले आप की सक्रियता से जाहिर है, कि उसके मंसूबे बड़े हैं। साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बघेल सरकार को कड़ी टक्कर देने के लिए सदस्यता अभियान की शुरुआत कर दी है। पार्टी का दावा है कि सभी 33 जिलों से लोग आम आदमी पार्टी से जुड़ रहे हैं। राज्य में ‘आप’ना सिर्फ बघेल सरकार बल्कि भाजपा को भी चुनौती देने की रणनीति बना रही है। आप के मैदान में आने से यहां मुकाबला त्रिकोंणीय हो सकता है। छत्तीसगढ़ आम आदमी पार्टी यूथ विंग के प्रदेश अध्यक्ष तेजेंद्र तोड़ेकर ने कहा,यहां की जनता ने पन्द्रह साल डॉ रमन सरकार और अब भूपेश बघेल सरकार को भी देख ली हैं। प्रदेश की जनता अब बेहतर विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी को देख रही है।’’  
तीसरा विकल्प बनने की चाह
पार्टी के गुजरात प्रभारी छत्तीसगढ़ निवासी सांसद डाॅ संदीप पाठक, प्रदेश प्रभारी संजीव झा और दिल्ली की आप सरकार के मंत्री गोपाल राय के हाल ही के छत्तीसगढ़ दौरे से   पार्टी अपने आप को तीसरे विकल्प के रूप में पेश करना चाहती है। आप का डेढ़ वर्ष में संगठन के विस्तार के साथ गांव-गांव में जन संवाद के जरिये लोगों तक पैठ बनाना मुख्य एजेंडा है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से यहां दो ही पार्टियांे के बीच सियासी द्वंद होता आया है। फिर भी वोटों का बंटवारा जाति आधार पर बनी पार्टियों में सपा बसपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, जदयू व वामपंथी दलों के बीच होता रहा है। छोटी पार्टियां ज्यादा उभर नहीं पाईं। लेकिन 2016 में गठित जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने 2018 के चुनाव में पांच सीटें जीतकर कुछ जगह बनाई थी। आज उसकी पार्टी के तीन विधायक हैं। अजीत जोगी की वर्ष 2020 में निधन के बाद तीसरी पार्टी की संभावनाएं भी खत्म हो गई।
छोटे राज्यों पर नजर
‘आप’ अपनी सियासी जमीन उन राज्यों में बनाना चाहती है जो छोटे राज्य हैं। दिल्ली में 2013 से आप की सरकार है। गोवा में पिछले चुनाव में दो सीट जीती। धीरे-धीरे पार्टी गोवा, गुजरात, हरियाणा,झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश,महाराष्ट्र, ओडिशा, मेघालय, नागालैंड, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ व उत्तरप्रदेश में संगठन खडा करने की कोशिश की। आप ने पंजाब में 2017 के चुनाव में बीस सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। कुछ ही महीने पहले सम्पन्न हुए विधान सभा चुनाव में पार्टी ने 117 में से 92 सीटें जीती। यह जीत उसे गुजरात, हिमाचल प्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव की ओर मोड़ दिया है।
वहीं सियासी हल्कों में चर्चा है,कि 2023 के चुनाव में ‘आप’ की वजह से जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़,बीजेपी और कांग्रेसी तीनों को सियासी नुकसान होने की आशंका है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि डाॅ रमन सिंह के 15 साल की सत्ता से उपजी एंटीइनकबैसी कांग्रेस कहांँ से लायेगी? भूपेश सरकार की ज्यादातर अच्छी योजनायें दिल्ली सरकार की कापी है। भूपेश सरकार का नारा है गढ़बों नवा छत्तीसगढ़,वहीं आप का नारा है बदलबों छत्तीसगढ़। जाहिर सी बात आप के मुखिया छत्तीसगढ़ में अपने चुनावी घोंषणा पत्र में पंजाब जैसी बातों का जिक्र करेंगे। राज्य की जनता उससे मोहित हो कर करवट बदली सकती है।
जनता बदलाव चाहती है-राय
बीजेपी का एंटी वोटर कांग्रेस को वोट करता है। कांग्रेस सत्ता में सिर्फ एंटी इनकमबेसी की वजह से उसे वाक ओवर पिछली दफा मिला। लेकिन केन्द्र में बीजेपी की सरकार है। उसके पास लीडर हैं। कांग्रेस अंदर से कमजोर हो गई है। आर्थिक रूप से भी कमजोर है। बीजेपी के सारे बड़े लीडर छत्तीसगढ़ भूपेश सरकार की घेराबंदी करेंगे। वहीं कांग्रेस सरकार इन पाँच सालों में प्रदेश को और कर्जदार बना देगी। जैसा कि आप’ के मंत्री गोपाल राय कहते हैं,गोपाल राय कहते हैं,छत्तीसगढ़ में किसी भी संसाधन की कमी नहीं है बावजूद उसके सरकार को कर्ज लेकर सरकार चलानी पड़ रही है क्योंकि सरकार की इच्छा शक्ति कमजोर है और प्रदेश में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। सरकार पर लगभग 1 लाख करोड़ का कर्ज है। प्रदेश में माइनिंग माफियाओ का राज है। सरकारी कर्मचारी सरकार से नाराज हैं। प्राइवेट स्कूल वालों ने प्रदेश में शिक्षा को धंधा बना लिया है। कांग्रेस और भाजपा मिले हुए हैं वो सिर्फ जनता को धोखा दे रहीं हैं। जनता के पास अब केजरीवाल के रूप में विकल्प मिल गया है। प्रदेश प्रभारी संजीव झा ने कहा छत्तीसगढ़ में जनता अब बदलाव चाह रही है। इस बार बदलाव जरूर होगा। जाहिर सी बात है कांग्रेस और बीजेपी के असंतुष्ट लोगों पर ‘आप’ की नजर रहेगी।
चूंकि बीजेपी प्रदेश में विपक्ष में होने के बाद भी उतनी सक्रिय नहीं है,जितनी होनी चाहिए।   कांग्रेस को अपने वर्तमान विधायकों में आधे से अधिक की टिकट नहीं काटी तो कांग्रेस की वापसी पर ग्रहण लग सकता है। क्यों कि कांग्रेस के विधायकों का काम काज से  जनता खुश नहीं है। राजनीति में जनता की सोच वक्त के साथ बदलती रही है। आप को जनता विकल्प के रूप में स्वीकार्य भी सकती है।
आप तीसरा विकल्प क्यों है सवाल पर सांसद संदीप पाठक कहते हैं,दरअसल हमने लगातार कांग्रेस को हराया है। आने वाले समय में दूसरी पार्टियों को भी हराएंगे तब क्लियर होगा कि हम देश का पूरा विकल्प बनने वाले हैं।‘ बहरहाल अपने आप में उलझी कांग्रेस एंटी इनकम्बेंसी से जूझ रही है तो बीजेपी के लिए रमन सिंह का विकल्प ढूंढना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में आप बेहतर रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरी तो इन दोनों पार्टियों की उम्मीदों पर झाड़ू चला सकती है।