Monday, January 1, 2024

हाथ’ में खिल गया कमल

'मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ‘हाथ’ से सत्ता जाने के बाद सवाल यह है, कि कांग्रेस क्या खुद को उबार पाएगी? भूपेश सरकार को लेकर मीडिया और हाईकमान आश्वस्त थे, कि सत्ता नहीं जाएगी। लेकिन भूपेश सरकार के भ्रष्टाचार और उसके अहंकारी मंत्रियों से गुस्साई जनता ने कांग्रेस को किनारे कर दिया। राजस्थान ने अपना सियासी रिवाज कायम रखा। तेलंगाना कांग्रेस को सात्वना पुरस्कार के रूप में मिला। 0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु‘‘ किसी ने नही सोचा था कि मध्यप्रदेश,राजथान और छत्तीसगढ़ के चुनाव भाजपा के लिए आनंददायी टी पार्टी साबित होगी। खासकर छत्तीसगढ़ में। मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह यह मान लिए थे, कि इस बार शिवराज की बिदाई तय है। लेकिन कांग्रेस के ये दोनों नेता जनता के मूड और उनकी सोच को नहीं समझ सके। यही हाल छत्तीसगढ़ में भूपेश का था। उन्हें यकीन था कि गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का उनका स्लोगन,गोबर खरीदी,गो मूत्र खरीदी,किसानों की धान खरीदी योजना,किसानों का कर्जा माफ और आदिवासी को लुभाने वाली नीति उनके खाते में जाएगी। इसीलिए भूपेश और प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलेजा कहती थीं इस बार 75 के पार। यह तो नहीं हो सका । मगर हाथ से सत्ता चली गयी। छत्तीसगढ़ में भूपेश की गृहलक्ष्मी योजना देर से प्रचारित हुई,जबकि भाजपा महतारी योजना फार्म छपवाकर जनता से भरवाने लगी। मध्यप्रदेश के लाड़ली बहना योजना जैसा ही यह था और यह योजना सियासी गेम चेज करने का सबसे बड़ा कारक बना। भूपेश सरकार को लेकर मीडिया और हाईकमान आश्वस्त थे, कि सत्ता नहीं जाएगी। लेकिन भूपेश सरकार के भ्रष्टाचार और उसके अहंकारी नौ मंत्रियों से गुस्साए प्रदेश वासियों ने कांग्रेस को किनारे कर दिया। राजस्थान ने अपना सियासी रिवाज कायम रखा। तेलंगाना कांग्रेस को सात्वना पुरस्कार के रूप में मिला। भूपेश से कर्मचारी नाराज.. छत्तीसगढ़ में महतारी योजना ने सियासी गेम चेंज कर दिया। मध्यप्रदेश की लाड़ली बहना योजना की तरह। बारह दिन बाद भूपेश ने गृहलक्ष्मी योजना के तहत पन्द्रह हजार रुपए सालाना देने की घोंषणा की। वहीं भूपेश सरकार ने अपने घोंषणा पत्र को पूरा नहीं किये। प्रदेश के छत्तीसगढ़ सर्वे विभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ 45 हजार हैं। संविदा अनियमित,दैनिक वेतन भोगी प्लेस मेट,ठेका कर्मचारियों को मिलाकर यह संख्या ढाई लाख से ऊपर है। कर्मचािरयों ने भूपेश के खिलाफ वोट किया। भूपेश सरकार छह लाख वोट से हार गयी। जबकि इन्ही कर्मचारी और उनके परिवार की संख्या ही दस लाख से ज्यादा है। अन्य कर्मचारियों को मिला दें तो यह संख्या पच्चीस लाख हो जाती है। केन्द्र की आयकर टीम और ईडी ने छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के करीबियों के यहां छापा मार कर सियासी स्थिति बिगाड़ दी। चर्चा थी, कि आने वाले समय में बिहार के चुनाव की फंडिग छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से होना था। कांग्रेस के खिलाफ हवा.. छत्तीसगढ़ में चुनावी नतीजे के सर्वे यही बता रहे थे, कि वहां भूपेश सरकार फिर से लौट रही है। लेकिन भूपेश सरकार का जाना यह बताता है कि ईडी का छापा गलत नहीं था। महादेव ऐप झूठा नहीं था। कोयला घोटाला सही था। भूपेश सरकार के नौ मंत्री बुरी तरह हार गये। वो जनता से कटे हुए थे। भूपेश स्वयं सारे विभाग के मंत्रियों को काम करने की छूट नहीं दी। हर जिले में कलेक्टर मुख्यमंत्री का एजेंट बतौर काम कर रहे थे। उनका राजनीतिक मीडिया प्रभारी हो या फिर मीडिया प्रमुख ने पत्रकारों के दो खेमे बना दिये। पत्रकारों को मुख्यमंत्री से दूर रखा। जिससे मुख्यमंत्री को सही जानकारी नहीं मिल सकी। लाड़ली बहना का अंडर करेंट.. मध्यप्रदेश में सन् 2018 में कांग्रेस की सरकर बनने के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ज्योतिरादत्यि सिंधिया को नाराज न किये होते तो न सरकार जाती और न ही कांग्रेस की इतनी बुरी गत होती। इसलिए भी कि कांग्रेस में ज्योतिरादित्य से बड़ा लोकप्रिय कोई युवा नेता नहीं है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह साढ़े तीन साल तक केवल बयान बाजी करते रहे। जिला स्तर पर कांग्रेस को रिचार्ज करने का काम नहीं किया। संगठनात्मक ढांचा तैयार नहीं किया। चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह ने कहा था,कि जिन 60 सीटों पर कभी कांग्रेस चुनाव नहीं जीती उन्हें जीताने की जवाबदारी मेरी है। हैरानी वाली बात है, कि ऐसी सीटों को जीताने के लिए कुछ किया नहीं। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लहर है यही कहते रहे। बाहर इसका शोर था। लेकिन अंदर लाड़ली बहन का करेंट तेज है, कांग्रेस के बड़े नेता नहीं भाप सके। मध्यप्रदेश में कांग्रेस अनाथ रही.. कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद छिंदवाड़ा,भोपाल और इंदौर से कहीं बाहर नहीं गए। दिग्विजय सिंह के प्रति अब भी जनता में रोष है। कमलानाथ जिले में पार्टी संगठन का ढांचा नहीं खड़ा कर सके। जिले में कांग्रेस के पास जमीनी कार्य कर्ता नहीं है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की लोकप्रियता गिर गयी है। मीडिया में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को जय वीरू की जोड़ी का नाम मिला। आपसी गुटबाजी और बड़े नेताओं के बीच आपसी खींचतान मीडिया में दिखा। लाड़ली बहना योजना का अंडर करेंट इतना भयावह निकला कि पंजा चारो खाने चित हो गया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में उसी बात का जिक्र था, जिसे शिवराज चुनाव से पहले की पूरा कर दिये थे। कमलनाथ का सर्वे भाजपा को 85 सीट से ज्यादा नहीं दे रहा था,स्थिति ठीक उल्टी हो गयी कांग्रेस की। प्रदेश में कमलनाथ का सियासी प्रचार तंत्र कमजोर रहा। कई संभाग में बड़े नेता एक बार भी नहीं गये। संघ ने पूरे प्रदेश में एक लाख से अधिक बैठकें की चुनाव से पहले। उसने जनता की नब्ज को परखा। कई उम्मीदवारों को टिकट संघ के कहने पर मिला। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास जनाधार वाले नेताओं की कमी है। दिग्विजय सिंह को रिटायर हो जाना चाहिए। वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश को अब नए सिरे से कांग्रेस को खड़ा करना चाहिए। राहुल को भी समझना चाहिए कि केवल भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस उदय नहीं होगा। यदि ऐसा ही लोकसभा में रहा तो सियासी जगत से कांग्रेस का अंतिम संस्कार हो जाएगा। क्यों कि सन् 2014 के बाद से कांग्रेस की राज्यों से पकड़ कमजोर होती जा रही है। 2004 में 14 राज्यों में कांग्रेस काबिज थी। 2009 में 11 राज्य,2014 में उसकी सत्ता 9 राज्यों तक सिमट गई। 2019 में चुनाव में 6 राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन 2020 में मध्यप्रदेश उसके ‘हाथ’ से निकल गया। 2023 में तीन राज्य हाथ से निकल गये।

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