Sunday, March 31, 2024

भाने लगी भाजपा,‘हाथ’ का साथ छोड़ा

रमेश कुमार‘रिपु’
मतदान के पहले बीजेपी इस प्रयास में है कि अधिक से अधिक कांग्रेसियों के माथे पर गेरूआई राजनीति का गुलाल लगा कर उन्हें अपना बना लेना है। इससे जनता में यह संदेश जाएगा कि प्रदेश में विपक्ष कमजोर हो गया। वहीं कांग्रेसी कहते हैं,अब भारतीय जनता पार्टी,भारतीय जनता कांग्रेस पार्टी हो गयी है।राजनीति का यह पेशेवराना तरीका है। पार्टी को ऐसा लगता है, कि ऐसा करने से उसके मार्ग के सारे रोढ़े हट गए। तीसरी दफा बीजेपी उदय की बात अभी गांव तक, उतनी तेजी से नहीं पहुंची है। शहरी फिजा में दो तरह की बातें हैं। मोदी को रोकने वाले और मोदी को चाहने वाले। मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है। इसलिए मध्यप्रदेश की राजनीति करने वाले यह समझ रहे हैं कि आने वाला कल बीजेपी का ही है,इसलिए ऐसे लोगों के लिए विचारधारा कोई मायने नहीं रखती। उन्हें सत्ताई पार्टी के साथ रहना ज्यादा अच्छा लगता है। चूंकि प्रदेश की राजनीतिक हवा बदल रही है। बीजेपी का दावा है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी सहित 6 पूर्व विधायक,एक महापौर,207 पार्षद,सरपंच और 500 पूर्व जनप्रतिनिधियों सहित 17 हजार कांग्रेसी बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं। इसीलिए पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं,चुनाव तक 70 हजार से एक लाख कांग्रेसी बीजेपी में शामिल हो जाएंगे।गिनीज बुक में नाम दर्ज कराएंगे। भाजपाई बनाना है कांग्रेसियों को.. सवाल यह है कि क्या थोक में कांग्रेसियों को बीजेपी के खेमें में लाने से इस बार बीजेपी 29 सीट जीत जाएगी? मध्यप्रदेश अब शिवराज के हाथ में नहीं है लेकिन, उन्होंने कर्जदार प्रदेश डाॅक्टर मोहन यादव को दिया है। मोहन यकीन दिलाने की कोशिश कर रहे हैं,कि अर्थव्यवस्था बेहतर है। प्रदेश की बागडोर सही पार्टी के हाथ में है। ग्रामीण क्षेत्र हो या फिर शहरी क्षेत्र, उसे विकास के लिए अनाथ नहीं छोड़ा जाएगा। भले उन्हें एक साल में चार नहीं,दस बार कर्ज लेना पड़े। प्रदेश पर करीब चार लाख करोड़ रुपए का कर्ज है।वहीं डिप्टी सी.एम राजेन्द्र शुक्ला रीवा की जमीन निजी हाथों को औने पौन दाम में देकर भाजपा का महाजन बन गए हैं। अभी रीवा संभाग में भाजपा ने चुनावी एजेंडे को सिर के बल खड़ा नहीं कर पाई है। लेकिन मोहन यादव मोदी की तरह हिन्दुत्व के भावनात्मक मुद्दे के उभार के जरिए वोट पाना चाहते हैं।मोहन यादव कहते हैं, हमें खुद मोदी बनना है। पारस पत्थर की तरह बनकर लोहा और दूसरी धातु को बीजेपी बनाना है। राजेन्द्र को सवालों से परहेज डिप्टी सीएम के भाषण में भिन्नता नहीं है। वो शिवराज सिंह की तरह एक ही बात हर बार दोहराते हैं। उनके भाषण रीवा संभाग से बाहर की सीमा को नहीं छूते। जबकि आज लोग यह जानना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड के संबंधी में जो कहा,उसका सच क्या है। क्या वाकयी में बीजेपी ने चंदा के नाम पर रिश्वत ली है। 16 हजार करोड़ रुपए जिन कंपनियों ने बीजेपी को चंदा दिया, उनके यहां ई.डी. ने छापा मारा तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई। ई.डी.चुनाव के वक्त ही सक्रिय क्यों होती है। मोदी की गारंटी महंगाई, बेरोजगारी,गिरते रुपये पर क्यों नहीं है। केन्द्रीय वित्त मंत्री का बजट जमीनी धरातल पर क्यों नहीं दिखता। प्रदेश कर्जदार प्रदेश क्यों बन रहा है। उनकी पार्टी के रीवा सांसद पर विपक्ष ने जो आरोप लगाए हैं, उसका सच जनता को क्यों नहीं बताते। क्यों जनार्दन मिश्रा ने ऐसा कोई सवाल संसद में नहीं उठाया, जिससे विंध्य न सही, रीवा की जनता का हित जुड़ा हो। आप के विकास के भूगोल में आम आदमी को जगह क्यों नहीं है? मध्यप्रेदश में 12876 स्कूलें बंद क्यों कर दी गयी। विकास के हब के साथ रीवा क्राइम का हब क्यों बन रहा है। सिंगापुर क्यों नहीं बन सका सिंगरौली। ऐसे कई सवाल हैं,जिनसे डिप्टी सीएम परहेज करते हैं। वो शिवराज सिंह चौहान से अलग नहीं है। इसीलिए बीजेपी हाईकमान की नजर में चुनावी महाजन हैं। अब देखना है कि विंध्य की कितनी सीट वो मोदी की झोली में डाल पाते हैं। अमहिया कांग्रेस भाजपा की हुई.. अमहिया में सत्ता अब भी है। कभी यहां अमहिया सरकार श्रीनिवास तिवारी की हुआ करती थी। अब राजेन्द्र शुक्ला की है। धीरे- धीरे अमहिया कांग्रेस का बीजेपी में विलय होता जा रहा है। सुन्दरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ ने इसकी शुरूआत की। बीजेपी में जाकर वो विधायक बन गए। श्रीनिवास तिवारी के पीए रमाशंकर मिश्रा उनके समर्थक और सिरमौर विधान सभा के कांग्रेस के एक दर्जन से अधिक पदाधिकारी भोपाल में वीडी शर्मा के हाथ बीजेपी की सदस्यता ली। दो अप्रैल को मुस्लिम नेता डाॅ मुजीब खान सहित और कई कांग्रेसी पदाधिकारी बीजेपी में डाॅ मोहन यादव की उपस्थिति में बीजेपी के हो जाएंगे। जाहिर सी बात है कि सेमरिया विधान सभा में कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा ने आधी बीजेपी को कांग्रेसी बना दिया,उसी तर्ज पर डिप्टी सी.एम. कर रहे हैं। वो कौन सी तरकीब है.. सवाल यह है कि अभय मिश्रा ने जो किया क्या वो डिप्टी सीएम कर पाएंगे। जनार्दन मिश्रा को लेकर बीजेपी के अंदर जो उहापोह की स्थिति है। नाराजगी के स्वर तेज हैं,क्या उसे मद्धिम कर पाएंगे। राजेन्द्र शुक्ला उन सभी को बांए कर दिये है,जिनसे उन्हें लगता है वो उनके विधान सभा में भीतरघात कर सकते हैं। उनके सियासी कद को कतर सकते हैं। ऐसे में जनार्दन मिश्रा के लिए व्यापक पैमाने पर अपने प्रबंधकीय चुनावी पैतरे से क्या सब कुछ आल इज वेल कर लेंगे। ऐसी कौन सी तरकीब है, उनके पास जिससे वो जनार्दन मे पक्ष में हवा बनाने के साथ वोटों को मजबूत करती है,शायद अमित शाह भी नहीं जानते होंगे। उस स्थिति में जब बसपा भी चुनावी समर में है। और उनका जिलाध्यक्ष अजय सिंह पटेल उनके और जनार्दन मिश्रा के साथ नहीं है। ऐसे में पटेल वोट किसकी झोली में जाएगी स्वयं राजेन्द्र शुक्ला भी नहीं जानते। त्रिकोंणीय स्थिति बनने पर फायदा इस बार भाजपा को मिलता नहीं दिख रहा है। रीवा में विचारधारा की लड़ाई नहीं बल्कि दो व्यक्त्विों की लड़ाई है। सियासी मामले में अभय से राजेन्द्र की बराबरी भला क्या हो सकती है।लेकिन कांग्रेस भी अनाड़ी नहीं है। अच्छे दिन की चमक खोने की उसने उम्मीदें लगा रखी है।

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